शनिवार, जून 09, 2018

काम पर नहीं वायरल होने पर ध्यान दो!!


आज पान की दुकान पर तिवारी जी बता रहे थे कि उनके मोहल्ले के ९० प्रतिशत घरों में अब भूत नाचा करते हैं. सभी घरों के बच्चे बड़े शहरों या विदेशों में जाकर बस गये हैं. किसी के यहाँ दोनों बुजुर्ग और किसी के यहाँ एक बचा, कभी बच्चों के पास चले जाते हैं तो कभी वापस आकर भी तबीयत और बुढ़ापे के चक्कर में घर में ही बंद रह जाते हैं. मोहल्ले में अब पहले वाली हलचल नहीं रही. हमारे जमाने की बात ही कुछ और थी. वैसे यह बात हर जमाने के बुजुर्ग के मुख से सुनी जा सकती है चाहे कितने ही युग बदल जायें कि हमारे जमाने की बात ही कुछ और थी.

चाय पर चर्चा और मन की बात से विपरीत पान की चुकान पर चर्चा में जन की बात सच होती है और फिर भी बहुत देर तक गंभीर नहीं रह पाती, कोई न कोई मनचला कुछ मजाक का पुट लगा ही देता है. यही तो जिन्दगी जीने का तरीका है वरना तो एक तरफा मन की बात के हाल देख ही रहे हैं.
तिवारी जी की गंभीर बात पर घन्सु ने चुटकी लेते हुए कहा कि चलिये इसी बहाने आप भूतों का नाच देख ले रहे हैं, कितनों के नसीब में होता है इसे देखना. कभी सेल्फी विडीओ उतरवाईये भूतों के साथ नाचते हुए. एकदम्मे वायरल हिट होगा आपका विडीओ. बस, उसमें लोग कन्फ्यूज न हो जायें कि कौन तिवारी जी हैं और कौन भूत!! वैसे वो भूत हैं कौन मजहब के..देख लिजियेगा हिन्दु ही हों? इतना कह कर घन्सु भाग लिया. तिवारी जी मूँह में इस बीच पान तम्बाकू घुल गई थी तो उसी के लोभ में घन्सु को गाली भी फेंक कर नहीं मार पाये और झुंझला कर रह गये. घन्सु जैसी हरकत सोशल मीडिया पर भी चल रही हैं सुबह से शाम तक. किसी भी गंभीर बात को करने ही नहीं देते हैं लोग. बस, संप्रदायिकता की तीली से आग लगाई और दौड़ लगा दी. हर चर्चा का अंत संप्रदायिकता और मजहबी टच. किसी भी समस्या के निदान पर कोई बात ही नहीं करता है.
थोड़ा ठहर कर तिवारी जी ने पान थूका और कहने लगे कि घन्सु को तो मैं शाम को देखता हूँ. तब बीन होगा हमारा ये जूता और नागिन डांस करेंगे घन्सु और तुम उतारना पूरे काण्ड के सेल्फी. तब उसे समझ आयेगी कि वायरल हिट कौन सी सेल्फी होती है.
नया जमाना है. परिभाषायें बदल रही हैं. आज फोटो, विडीओ चाहे खुद खींचों या कोई और- कहलाती सेल्फी ही है. फोटोग्राफ, विडीओग्राफ, सेल्फी चाहे जो हो, कहेंगे सेल्फी है. सेल्फी न हुई मुई सरकार हो गई हो. चाहे जो जीते, जो हारे, सरकार तो उनकी ही बनेगी.
कभी वायरल होता था तो एण्टी बायोटिक खाना पड़ती थी. बुखार देकर बदन तोड़ कर रख देता था वायरल. उस रोज तिवारी को बताया कि पिछले एक हफ्ते वायरल हो गया था इसलिए आ नहीं पाये पान की दुकान तक तो पूछने लगे व्हाटसएप पर फारवर्ड नहीं किये? कौन सा वाला विडीओ वायरल हुआ तुम्हारा? इस तरह बदली हैं परिभाषायें.
कभी किसी को डाऊन फील कराना हो तो अच्छे खासे मुस्कराते बंदे को चार पांच लोग थोड़े थोड़े अन्तराल पर अलग अलग इतना बस पूछ लें-’क्या भाई, तबीयत गड़बड़ है क्या? बड़े बुझे बुझे लग रहे हो, बुखार वगैरह तो नहीं है?’ विश्वास जानिये शाम होते तक अगर सही में बुखार न भी आया तो भी बंदा घर पर रजाई ओढ़े मिलेगा. इसी तर्ज पर बार बार बोल कर सारे देशवासियों को विकास और अच्छे दिन भी दिखा ही दे रहे हैं और लोग भ्रमित हुए जिता भी दे रहे हैं.
आज बड़ी से बड़ी समस्या चाहे वो कितनी भी वायरल क्यूँ न हो गई हो, का निदान उससे भी अधिक वायरल कोई और विषय कर देना हो गया है.
इधर हाल ही में पेट्रोल के दामों का हल्ला वायरल हो चला तो एकाएक डब्बू जी अपने भतीजे की शादी में गोविंदा का नाचा हुआ गाना नाच दिये. मीडिया ने उसे हाथों हाथ लिया. जब मीडिया ने उसे वायरल बताना शुरु किया तब तक वो सही मायने वायरल भी नही हुआ था. मगर फिर तो जो स्पीड पकड़ी की ऐसा लगा इतना मँहगा पेट्रोल फुल टैंक भरवा कर जेट उड़ा हो. लोग पेट्रोल भूल भाल कर डब्बू जी के नाच में ऐसा मस्त हुए कि कहीं गोविन्दा का इन्टरव्यू आ रहा है तो कहीं किसी फिल्म स्टार का ट्वीट. प्रदेश के मुख्य मंत्री डब्बू जी को सपरिवार घर बुलवा रहे हैं तो मीडिया डब्बू जी के घर के बाहर पूरी तरह मुस्तैद. डब्बू जी समझ ही नहीं पा रहे हैं कि आखिर उनके ठुमके में ऐसा क्या था कि पूरा देश झूम उठा?
बारात में भला कौन नहीं नाचा है? यह तो वैसा ही प्रश्न है कि किस नेता ने घोटाला नहीं किया है. बमुश्किल एक दो मिल जायें तो भी बहुत.ऐसे में आज देश के न जाने कितने नागिन डांसर जिन्होंने बारातों में सड़क पर गोबर की परवाह न करते हुए लोट लोट कर नाच का नायाब प्रदर्शन किया है, अपने आप को ठगा महसूस कर रहे हैं. उनकी कमी इतनी ही रह गई कि उनको मीडिया नें वायरल नहीं घोषित किया.
आज अगर छा जाना है तो काम पर नहीं वायरल होने पर ध्यान दो!! वायरल होने का जमाना है!!
-समीर लाल समीर


भोपाल से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे के रविवार जून १०, २०१८ के अंक में:



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1 टिप्पणी:

  1. इतने बरस हो गए, पर आज भी यहाँ की लोक-भाषा, लोक-व्यव्हार, लोक-शैली में जिस बखूबी से अभिव्यक्ति की है वह अत्यंत सराहनीय है, बेहतरीन. क्या धाँसू लिखा है ....

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