बुधवार, अक्तूबर 02, 2013

कुछ वाँ की.. तो कुछ याँ की...

एक नये तरह का प्रयोग किया है...देखें जरा...कैसी गज़ल निकली है:

BORDER

कब परिंदो को पता था, आंगनों में भेद का

एक दाना वाँ चुगा था, एक दाना याँ चुगा...

सरहदों से जा के पूछो, कौन किसका खून है

एक कतरा वाँ गिरा था, एक कतरा याँ गिरा..

राज इतना जान लो, तब हर अँधेरा दूर हो

एक दीपक वाँ जला था, एक दीपक याँ जला

आसमां को कब पता था, कौन मांगे है दुआ

एक तारा वाँ गिरा था, एक तारा याँ गिरा

है जमाना लाख बदला, पर न बदला है ’समीर’

दिल तुम्हारा वाँ छुआ था, दिल तुम्हारा याँ छुआ..

 

-समीर लाल ’समीर’