आज यहाँ रविवार है. भारत के लिए निकलने से पहले ऐसे तीन रविवार ही मिलेंगे अतः व्यस्तता चरम पर है. आज कविता पढ़िये:
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जब कुछ लिखने का मन नहीं होता तब खोलता हूँ नम आँखों से डायरी का वो पन्ना जहाँ छिपा रखा है गुलाब का एक सूखा फूल जो दिया था तुमने मुझे और भर कर अपनी सांसो में उसकी गंध बिखेर देता हूँ एक कागज पर... -लोग उसे कविता कहते हैं!!! -समीर लाल ’समीर’ |
आदरणीय समीर जी
जवाब देंहटाएं"ला-जवाब" जबर्दस्त!!
शब्दों को चुन-चुन कर तराशा है आपने ...प्रशंसनीय रचना।
कमाल की प्रस्तुति ....जितनी तारीफ़ करो मुझे तो कम ही लगेगी
जवाब देंहटाएंगुलाब सी शीतल ताजगी का अहसास करा गई आपकी रचना।
जवाब देंहटाएंसही कहा डायरी के पन्ने कह जाते हैं बीते वक्त की कहानी और कभी खोल जातें हैं कुछ छिपे राज की परतें जो कभी गुदगुदाते हैं और कभी टीस दे जातें हैं...
जवाब देंहटाएंबीते हुए कल की यादें किताब में दबे हुए सूखे गुलाब की मानिंद जेहन में रहती हैं। पता नहीं कब हवा के एक झोंके से किताब का वह पन्ना खुल जाता है और यादें बाहर आ जाती हैं।
जवाब देंहटाएंसुन्दर कविता भाई साहब
आभार
बहुत रोमांटिक रचना ,बधाई ।
जवाब देंहटाएंसृजन का एक कारण यह भी है सुंदर रचना बधाई
जवाब देंहटाएंलाजवाब गुलाब...
जवाब देंहटाएंखुशबू भी पुराने गुलाबों में ही मिलती है । नए गुलाब तो खुशबू विहीन हो गए हैं ।
जवाब देंहटाएंगुलाब के फूल पर छपी पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगी ।
... bahut badhiyaa ... behatreen !!!
जवाब देंहटाएंइस फूल की गंध को आप अपनी सांसों में बार-बार भरे और उसकी गंध को बार-बार कगज़ पर बिखेरे। बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
जवाब देंहटाएंबेटी .......प्यारी सी धुन
सहेजी हुई यादो के फूल सूख कर भी मुअत्तर रहते है. खूबसूरत अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएं''फूल के रुख़ पर नमी सी है जो उनके रु-ब-रु,
है निदामत* का अरक़, शादाबी-ए-शबनम* नही।''
*[पश्चाताप, **ओंस की ताज़गी]
http://mansooralihashmi.blogspot.com/search/label/story
में qoute किया हुआ शेर.
Simply Mindblowing!
जवाब देंहटाएंडायरी का वो पन्ना
जवाब देंहटाएंजहाँ छिपा रखा है
गुलाब का एक सूखा फूल
जो दिया था तुमने मुझे
बहुत ही ख़ूबसूरत भाव ... आभार
समीर बाबू! भगवान करे यह ख़ुसबू आपके जीवन को सदा सुवासित करती रहे और हमें नित नूतन कविता का आनंद प्राप्त होता रहे!!
जवाब देंहटाएंजब कुछ लिखने का
जवाब देंहटाएंमन नहीं होता
तब खोलता हूँ
नम आँखों से
डायरी का वो पन्ना
" मन को छु गयी ये अभिव्यक्ति.."
regards
सूखे फूल जिस तरह किताबों में मिले ...
जवाब देंहटाएंइस तरह उसकी यादों के सिलसिले ...
सुन्दर कविता ...!
आपकी कविता का यही स्वरूप भाता है।
जवाब देंहटाएंडायरी में तो ऐसे नायब चीज़ कभी मिल ही जाते है जो कुछ ऐसे लम्हे याद दिला देते हैं जो कागज़ पे एक कविता का शक्ल ले लेती है...
जवाब देंहटाएंdiary ka har ek panaa ek khubsurat ateet hai..
जवाब देंहटाएंbahut khub..
चंद तथ्य विकीपीडिया से-
जवाब देंहटाएं"गुलाब ने अपनी गन्ध और रंग से विश्व काव्य को अपना माधुर्य और सौन्दर्य प्रदान किया है। रोम के प्राचीन कवि वर्जिल ने अपनी कविता में वसन्त में खिलने वाले सीरिया देश के गुलाब की चर्चा की है। अंगरेज़ी साहित्य के कवि टामस हूड ने गुलाब को समय के प्रतिमान के रुप में प्रस्तुत किया है। कवि मैथ्यू आरनाल्ड ने गुलाब को प्रकृति का अनोखा वरदान कहा है। टेनिसन ने अपनी कविता में नारी को गुलाब से उपमित किया है। हिन्दी के श्रृंगारी कवि ने गुलाब को रसिक पुष्प के रुप में चित्रित किया है ‘फूल्यौ रहे गंवई गाँव में गुलाब’। कवि देव ने अपनी कविता में बालक बसन्त का स्वागत गुलाब द्वारा किए जाने का चित्रण किया है। कवि श्री निराला ने गुलाब को पूंजीवादी और शोषक के रुप में अंकित किया है। रामवृक्ष बेनीपुरी ने इसे संस्कृति का प्रतीक कहा है।"
तब खोलता हूँ
जवाब देंहटाएंनम आँखों से
डायरी का वो पन्ना
जहाँ छिपा रखा है
गुलाब का एक सूखा फूल
जो दिया था तुमने मुझे
समीर जी आप की इन पंक्तिओं ने मुझे ३० साल पहले की यादों मैं जाने को मजबूर कर दिया.
धन्यवाद्
बेहद खूबसूरत नज़्म्…………सारे भाव उमड आये हैं।
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंऔर मैं?
जवाब देंहटाएंजब कुछ लिखने का मन करता है
तब खोलता हूँ
बडी अपेक्षा से
ब्लॉग साइट का वो पन्ना
जहाँ छिपा रखा है
आपके विचार
जो किसी गुलाब के फ़ूल से कम नहीं
सूँघ सूँघ कर
उसकी गंध
बिखेर देता हूँ अपने विचार
कीबोर्ड पर...
-लोग उसे टिप्प्णी कहते हैं!!!
जी विश्व्नाथ
समीर जी !
जवाब देंहटाएंसादर वन्दे,
आपने किसी सुसुप्त ज्वालामुखी की तरह शब्दों को आजाद कर दिया है, ये सिर्फ एक कविता नहीं पूरी की पूरी कहानी है ........
रत्नेश
यादों के नाप तोल के पैमाने अलग मजाल,
जवाब देंहटाएंसूखे फूल को नज़र लगे, तो खिल जातें है ...
बहुत कमाल की कविता जनाब... लिखते रहिये... और अपने हुनर का राज़ यूँ सारें आम न करें तो बेहतर ... !
बहुत बढ़िया सर , ऐसे ही झांकते रहिये डायरी के पन्नो के पीछे .
जवाब देंहटाएंभर कर अपनी सांसो में
जवाब देंहटाएंउसकी गंध
बिखेर देता हूँ
एक कागज पर...
बहुत उम्दा.
विजय दशमी की हार्दिक शुभकामनाएं.
मुझे लगता है कि सबके पास किसी किताब में रखा एक सूखा गुलाब का फूल होता है. उसे देखकर कोई आह भरता है, कोई आँसू बहाता है, कोई किसी को याद करता है तो कोई कविता लिखता है.
जवाब देंहटाएंultimate ..sir ji :)
जवाब देंहटाएं3/10
जवाब देंहटाएंसाधारण
अब समझ में आया आपकी रचनाओं का रहस्य.
जवाब देंहटाएंडायरी का वो पन्ना
जवाब देंहटाएंजहाँ छिपा रखा है
गुलाब का एक सूखा फूल
जो दिया था तुमने मुझे
मन को छू लेने वाली कविता...
भई हम तो शब्दों को चुरा सकते है, अतः चुराए शब्दों में कहें तो गुलाब सी शीतल ताजगी का अहसास करा गई आपकी रचना।
जवाब देंहटाएंभागदौड है तो पसीने की बूंदे आना लाज़मी है :) भारत में आप का स्वागत है॥
जवाब देंहटाएंबेहतरीन कविता ...!!
जवाब देंहटाएंगज़ब....लाजबाब ...और गुलाब का फूल भी ढूंढ कर लगया है.बहुत ही खूबसूरत.
जवाब देंहटाएंगुलाब तो होता ही प्रेम के सन्देश देने वाला फिर चाहे वह सूख ही क्यों न जाए? यादों के रूप में डायरी में गुलाब ही मिलते हैं और उनकी खुशबू कभी ख़त्म नहीं होती. सुन्दरअभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंगुलाब का ऐसा रंग पहले कभी नहीं देखा।
जवाब देंहटाएंसमीर जी आप के लेखन में जादू है..... हर बार आती हूँ और २-३ बार पढ़ लेती हूँ. यूँ कम शब्दों में अहसासों को समेटने का जादू कोई आपसे सीखे!
जवाब देंहटाएंजब कुछ लिखने का
जवाब देंहटाएंमन नहीं होता
तब खोलता हूँ
नम आँखों से
डायरी का वो पन्ना ..
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बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
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समीर जी हमने तो आज दिल की डयरी से कोई भी पन्ना अभी तक नही खोला है!
आपकी इस कविता के दाद में मेरी कविता की एक पंक्ति
जवाब देंहटाएंजीवन निर्वाद सत्य है सपना नहीं है .
मैंने जो लिख दिया मेरे ज़ज्बात है
कोई रचना नहीं है.
गुलाबो सी महकती पोस्ट है |
जवाब देंहटाएंशब्द जैसे ढ़ल गये हों खुद बखुद, इस तरह कविता रची है आपने।
जवाब देंहटाएंवाह.........
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर .....
जवाब देंहटाएंअंतस में कैद स्मृतियों के सुवासित पल कभी बीतते नहीं और अंतस के बाहर निकलने के बाद भी बनकर खुश्बुओं के बादल सभी को अपनी महक की सौगात सौंप जाते हैं. बेहद खूबसूरती से पिरोई दिल को छू जाने वाली रचना. आभार.
जवाब देंहटाएंसादर
डोरोथी.
सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंगुलाब की गंध
डायरी में बंद !!!!
हमें भी लेने दे आनंद
कविता की इस से बेहतर परिभाषा शायद ही कहीं पढ़ी हो...कमाल किया है आपने...ये ऐसा कमाल है जो सिर्फ और सिर्फ आप ही कर सकते हैं....वाह.
जवाब देंहटाएंनीरज
लाजवाब गुलाब...
जवाब देंहटाएंकमाल की प्रस्तुति
swagat ke sath vijayanama.blogspot.com
लाजवाब अनुभुति
जवाब देंहटाएंफूलों की तरह दिल में बसा के रखा है ,
जवाब देंहटाएंयादों के चरागों को जला के रखा है !
खुशबू हम तक पहुंच गई।
जवाब देंहटाएंआदरणीय समीर जी
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना ... आपने शब्दों को बहुत ख़ूबसूरती से पिरोया है ... शुभकामनाएं
वाह ,भावना या शब्द क्या कहूँ क्या जबरदस्त है !
जवाब देंहटाएंभर कर अपनी सांसो में
जवाब देंहटाएंउसकी गंध
बिखेर देता हूँ
एक कागज पर...
-लोग उसे कविता कहते हैं !!!
बहुत सुन्दर रचना हमेशा की तरह ...दशहरा पर्व पर हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं ... आभार
श्री सुर्यभानु गुप्त का एक शेर आपकी बात को इस तरह कह रहा है -
जवाब देंहटाएंयादों की इक किताब में कुछ खत दबे मिले
सूखे हुए दरख्त का चेहरा हरा हुआ
bahut hi utkrisht rachna...
जवाब देंहटाएंbahut mahkta hua sa ehsaas..
जवाब देंहटाएंगुलाब की पेशानी पर लिखी चंद पंक्तियाँ ही काफी थी ....
जवाब देंहटाएंएक पूरी ज़िन्दगी की सीख दे गयीं ये पंक्तियाँ .....
महकना आसान नहीं होता .....
वाह.....!!
वाह बहुत सुंदर. आपकी कविता पढ़कर कज़लवाश साहब की एक बहुत पहले पढ़ी ग़ज़ल याद आ गई ...
जवाब देंहटाएंओहो तो भारत जाने की तैयारी है. बढ़िया.
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर प्रस्तुति . धन्यवाद
जवाब देंहटाएंआप का हिसाब तो मेरे लिये भी सही बेठता हे जी
गुलाब का यह फूल कभी मुरझाने न पाए। हमेशा सुगंध बिखेरता रहे।
जवाब देंहटाएंबहुत रोमांटिक रचना !बधाई ।
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट सृजन. वाह.
जवाब देंहटाएंwah.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर कबिता. सुंदर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर कबिता. सुंदर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएं"लाजवाब प्रस्तुति "
जवाब देंहटाएं...और जब कुछ लिखने का मन होता है
जवाब देंहटाएंबन्द करता हूँ आँखों को
पलकों की कोर से भी
कुछ नहीं देखता
तुम हर ओर नजर आती हो
कलम अनायास ही चल पड़ती है
कागज पर उकेरने शब्द
एक लम्बी आह लेकर
और उभर आता है तुम्हारा अक्स
लोग उसे भी कविता कहते हैं.....
आज तो चिट्ठा पूरी तरह से गुलाब की खुश्बू से महक रहा है :)
जवाब देंहटाएंगुलाब ही की तरह अहसासों के सुर्ख रंग से सजी कोमल, महकती कविता .....आभार !
जवाब देंहटाएंजी हाँ! उस गन्ध को पहचान कर; उस गन्ध को महसूस कर जो कुछ लिखा जायेगा वह कविता ही होगी. (लोग कहें या न कहें)
जवाब देंहटाएंbahut badhiya ...
जवाब देंहटाएंआपने इस गुलाब को बड़े जतन से संभाल कर रखा है, तभी तो यह अभी तक खुश्बू बिखेर रहा है, वरना आजकल तो लोग इसे .....!
जवाब देंहटाएंस्मृतियों का गुलाब कभी नहीं मुरझाता वरन जीने की उमंग उत्पन्न करता है ...सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंaksar ye phul kuch shabd de jate hain
जवाब देंहटाएंउस गुलाब को हमेशा महफूज़ रखना.
जवाब देंहटाएंभावभीनी रचना.
waah
जवाब देंहटाएंमहकना यूं भी आसान नहीं होता। वाकई, बिल्कुल सही बात है। सही बात क्या बल्कि बहुत गहरी बात है, पता नहीं क्यों चार लाइनों में ही होठों पर मुस्कुराहट तैर गई।
जवाब देंहटाएंक्या कहूं? बस इतना ही कि शानदार।
जिन यादों को संजोने के लिए.... पन्नो में फूल रखे जाते हैं... उनसे तो ऐसी सुंदर रचना ही उपजती है....
जवाब देंहटाएंsookhe gulaab ki khushboo kuchh khas hoti hi hai... awesome...
जवाब देंहटाएंआज मैं भी रख दूं एक गुलाब किताब में। शायद साल भर बाद उसे सूंघ कर कवि बन जाऊं।
जवाब देंहटाएंझिझकता हूं - शायद न भी बनूं। तब एक गुलाब बेकार होगा।
कुछ अलग ही अंदाज और भाव...अच्छा लगा.
जवाब देंहटाएंप्रशंसनीय रचना......
जवाब देंहटाएंभर कर अपनी सांसो में
जवाब देंहटाएंउसकी गंध
बिखेर देता हूँ
एक कागज पर...बहुत खूबसूरत भाव...बधाई.
बेहद ख़ूबसूरत और लाजवाब रचना! बधाई!
जवाब देंहटाएंbahut hi pyari rachna....
जवाब देंहटाएंlaajawaab....
Mere blog par bhi sawaagat hai aapka.....
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aadarneey sameerjee !
जवाब देंहटाएंitanee saaree taareefon ke baad ab main taareef karoon yaa naa karoon koi farq naheen padataa. haathee ke pair me meraa bhee pair shaamil hai.
अच्छा प्रयोग है समीर जी.
जवाब देंहटाएंउभर आई हैं
गुलाब की
पेशानी पर
पसीने की
चंद बूँदें
महकना
यूँ भी
आसां
नहीं होता
-विजय तिवारी " किसलय " जबलपुर //
हिन्दी साहित्य संगम जबलपुर
आपकी सरल अभिव्यक्ति हमेशा मन को भा जाती है । विजय दशमी की मंगल कामनाएं ।
जवाब देंहटाएंbahut bahut sunder...! :-)
जवाब देंहटाएंawesome,khubsurat ehsaas se bhari choti si nazm pasand aayi.
जवाब देंहटाएंआदरणीय समीर जी, बहुत बहुत धन्यवाद आप मेरे ब्लाग पर आये
जवाब देंहटाएंव बहुमुल्य सुझाव दिये आगे भी आशा करती हु आप का सहयोग
ऎसे ही मिलता रहेगा
और आप की बहुत ही खूबसूरत सी व ताजगी से भरपूर कविता के लिये बहुत बहुत बधाई
आदरणीय समीर जी, बहुत बहुत धन्यवाद आप मेरे ब्लाग पर आये
जवाब देंहटाएंव बहुमुल्य सुझाव दिये आगे भी आशा करती हु आप का सहयोग
ऎसे ही मिलता रहेगा
और आप की बहुत ही खूबसूरत सी व ताजगी से भरपूर कविता के लिये बहुत बहुत बधाई
आदरणीय समीर जी, बहुत बहुत धन्यवाद आप मेरे ब्लाग पर आये
जवाब देंहटाएंव बहुमुल्य सुझाव दिये आगे भी आशा करती हु आप का सहयोग
ऎसे ही मिलता रहेगा
और आप की बहुत ही खूबसूरत सी व ताजगी से भरपूर कविता के लिये बहुत बहुत बधाई
आदरणीय समीर जी, बहुत बहुत धन्यवाद आप मेरे ब्लाग पर आये
जवाब देंहटाएंव बहुमुल्य सुझाव दिये आगे भी आशा करती हु आप का सहयोग
ऎसे ही मिलता रहेगा
और आप की बहुत ही खूबसूरत सी व ताजगी से भरपूर कविता के लिये बहुत बहुत बधाई
आदरणीय समीर जी, बहुत बहुत धन्यवाद आप मेरे ब्लाग पर आये
जवाब देंहटाएंव बहुमुल्य सुझाव दिये आगे भी आशा करती हु आप का सहयोग
ऎसे ही मिलता रहेगा
और आप की बहुत ही खूबसूरत सी व ताजगी से भरपूर कविता के लिये बहुत बहुत बधाई
और इस कविता को कहने वाले को लोग शहंशाह कहते हैं...
जवाब देंहटाएंजय हिंद...
bahut hi sundar badhai
जवाब देंहटाएंऐसी प्यारी कविता तो रोज़ पढ़ने का मन करेगा समीर भाई ...
जवाब देंहटाएंमज़ा आ गया ..
जनाब समीर लाल साब ....महकना यूँ भी आसान नहीं होता ,महकना वोह भी गुलाब के पसीने के साथ जनाब एक कविता छात्र के रूप में मेरा ख्याल है एक अनूठा अनुभव है
जवाब देंहटाएंभर कर अपनी सांसो में
उसकी गंध
बिखेर देता हूँ
एक कागज पर... -लोग उसे कविता कहते हैं
वाह जनाब क्या बात कही है .मुझे वसीम साब का शेर याद आ रहा है जो अर्ज करता चलूं
किसी गुलाब की खुशबु से हम भी महकेंगे /इसी आस में यहाँ तो मोसमे बहार गया .
I have never witnessed anyone receiving as many comments on a blog post as you do! now that i read your work, i know the reason ;)
जवाब देंहटाएंsheer brilliance, hats off sir !
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