कमर का दर्द, वैसे तो अब काहे की कमर, कमरा ही कहो, हाय!! बैठने नहीं देता और ये छपास पीड़ा, लिखूँ और छापूँ, लेटने नहीं देती. कैसी मोह माया है ये प्रभु!! मैं गरीब इन दो दर्दों की द्वन्द के बीच जूझता अधलेटा सा - दोनों के साथ थोड़ा थोड़ा न्याय और थोड़ा थोड़ा अन्याय करने में व्यस्त. वैसे तो थोड़ा थोड़ा न्याय और थोड़ा थोड़ा अन्याय करते रहना ही सफल जीवन का सूत्र है मगर दर्द!!!
छपास पीड़ा पत्नी के समान लगातार साथ बनी रहती है और यह कमर का दर्द, मानो महबूबा की याद, लौट लौट आती है, लौट लौट जाती है. महबूबा तो महबूबा होती है, समय समय पर बदल भी जाती है.
पिछले बरस इसी सीजन में महबूबा थी एसीडीटी और अब की बार है यह कमर दर्द. उसी महबूबा की याद के समान कमर दर्द किसी को दिखता भी नहीं. चोट लगी हो, प्लास्टर बँधा हो, आँख सूज आई हो तो लोगों को दिखता है, साहनुभूति मिलती है. मगर कमर दर्द, पत्नी सोचे कि काम न करना पड़े इसलिए डले हैं और ऑफिस वाले सोंचे कि ऑफिस न आना पड़े, इसलिए डले हैं, और मित्र तो खैर आलसी मान कर ही चलते हैं.
छपास पीड़ा के चलते लिखने बैठ जाओ तो पत्नी की सोच और मजबूत हो. देखो, कम्प्यूटर के लिए उठने बैठने में कोई दर्द नहीं और वैसे पड़े हैं करहाते हुए. मुआ कम्प्यूटर न हुआ, दवा हो गई कि सामने बैठ जाओ और दर्द गायब. क्या जबाब दिया जाये इसका? कोई जबाब हो भी नहीं सकता सिवाय इसके कि नजर बचा कर कम्पयूटर का इस्तेमाल किया जाये. अभी भी बाजार के निकली है तो मौका निकाल कर बैठे हैं. हालांकि कमर में दर्द है मगर कहते हैं न कि बड़ा दर्द छोटे दर्द को भुलवा देता है सो लिख रहे हैं.
आप सोच सकते हैं कि मैं कमर दर्द से परेशान हूँ तो पत्नी बाजार कैसे निकल गई? सोचने पर कैसी रोक? पत्नी मेरी है, मैं नहीं सोच रहा मगर आप नाहक सोच सोच कर परेशान हैं मगर क्या करें, हम भारतीय. यही तो हमारी पहचान है. लेकिन ये कमर दर्द तो अब इतनी इतनी सी बात पर हो उठता है कि अगर इसके पीछे वो बाजार जाना छोड़ दे तो कहो, बाजार का रास्ता ही भूल जाये और छपास पीड़ा, इसके लिए रुके तो यह तो वैसा ही हो गया कि साहब को बीपी रहता है, इसलिए बाजार नहीं जा रहे. यह तो इन बिल्ट बीमारी है, इसमें रुकना कैसा?
वैसे तो बाजार वो आदतन भी चली जाती है बिना किसी काम के भी जैसे हमारा कमर दर्द चला आता है लेकिन आज खास प्रयोजन से निकली है इसलिए निश्चिंत हूँ कि दो घंटे के पहले तो आने वाली नहीं, तब तक लिख लिखा कर छाप डालूँगा और मूँह ढक कर सो जाऊँगा. बीमारी में बीमार न लगे, तो क्या खाक लगे गालिब!!
बाजार जाने का खास प्रयोजन ऐसे बना कि आज सुबह मुझे कमर दर्द में जरा आराम था तो नीचे चला आया टहलने. पत्नी पीछे बैक यार्ड में कुछ क्यारियाँ सजाने में जुटी थी. हम भी पीछे निकल गये. कल ही नई पत्थर वाली सीढ़ी बनाई थी.
उसी से उतरते पैर संभाल नहीं पाये और भदभदा कर घास में गिर पड़े. दो कुलाटी खाई. कल्पना कर के मुस्करा रहे हैं न आप? शरीर तो ऐसा हो गया है कि अगर समतल सड़क पर भी बैलेन्स जमा कर न चलें तो गिर पड़ें फिर वो तो सीढ़ी थी. गिरे, पैर मुड़ा सो अलग और कमर दर्द को तो मानो ब्याह का सुस्वागतम का बोर्ड दिख गया हो, नाचते गाते बैण्ड लिए फिर चला आया. किसी तरह उठ कर वापस चले आये बिस्तर पर.
लेटे ही थे कि पत्नी तैयार होती नजर आई. जिज्ञासावश जानना चाहा कि कहाँ चली? कहने लगी, अच्छा हुआ आप गिर पड़े कम से कम चैक हो गया. मुझे पहले ही संदेह था कि सीढी में पत्थर छोटे लग गये हैं. अब जाकर बड़े ले आती हूँ वरना कोई गेस्ट न गिर जाये पार्टी वगैरह में.
अब बताईये, हम तो हम न हुए, टेस्टर हो गये और उपर से सुनने मिला कि अच्छा हुआ गिर पड़े, कम से कम चैक हो गया? पत्नी न हुई वो वाली गुजराती हो गई जो गलती से कुऎँ में गिर जाये तो निकलने का इन्तजाम बाद में देखेगी, पहले स्नान कर लेगी कि अब गिर तो गये ही हैं, पहले स्नान कर लें.
अब यह लिख कर जब सोऊँगा तो हीटिंग पैड रख लूँगा शायद सोते में दर्द न बढ़े!! दर्द बताया न महबूबा की याद सा है, सोते में ज्यादा बढ़ जाता है.
अस्पताल जाने का मन नहीं है, वहाँ पिछली बार धोखा लग गया था. इसी दर्द के चलते गये थे अस्पताल. डॉक्टर ने कहा कि दो दिन भरती रहना पड़ेगा. रुम अलॉट हो गया. डॉक्टर देख दाख कर दवाई दे कर चला गया. कह गया कि अब नर्स के हवाले. पत्नी को भी घर भेज दिये कि अब नर्स देख लेगी.
थोड़ी देर में एक काला (आम इन्सानों की तरह ही अपनी खोट मुझे भी नजर नहीं आती-मगर सामने वाली की खोट पर फट से नजर चली जाती है) बड़ा ऊँचा पूरा आदमी सामने आकर दाँत चियारे खड़ा हो गया. मैने पूछा, कहो भाई, कैसे आना हुआ? कहने लगा मैं आपकी नर्स हूँ.
बताओ, बीमार आदमी के साथ ऐसी चीटिंग और चुहल!! भला अच्छा लगता है क्या? हमारे भारत में तो नर्स लड़कियाँ होती हैं. नर्स का नाम सुनते ही जो आकृति मानस पर छा जाती है, उसमें पुरुष का कैसा स्थान? ये कैसी नर्स? पूरी परिभाषा ही बदल कर रख दी. एन फॉर नर्स पढ़ाते थे स्कूल में जब तो कितनी बेहतरीन सफेद स्कर्ट में फोटो रहती थी और एक ये हैं मानो एन फॉर नालायक!! बीमार आदमी को हैप्पी की बजाय सैड कर दिया. उसी को पाप लगेगा, हमें क्या!!
खैर, जमाना बदला है, पहले पत्नी के नाम पर भी कहाँ पुरुष सुने थे, अब तो जहाँ देखो वहीं सरकारी मान्यता प्राप्त पति पत्नी-दोनों पुरुष या दोनों महिलाएँ. ये कैसा बदलाव आया है तेरी दुनिया में प्रभु!!! वो दिन दूर नहीं जब आप अपनी पत्नी के रुप में किसी सुन्दर कन्या का स्वप्न सजाये बैठे होंगे और माँ बाप आपकी शादी किसी लड़के से सेम सेक्स मेरिज अधिनियम के तहत तय कर आयें.
लोग ’गे कपल’ से मिलें तो पूछें कि भाई साहब आपकी अरेंजड मेरिज थी या लव? आप सोच रहे होंगे कि ’ऐसा भी भला कभी हो सकता है.’ ठीक सोचा, हमारे जमाने में, बहुत पुरानी बात नहीं है फोटो देख लो हमारी, कोई हमसे कहता कि एक लड़का एक लड़के से शादी करेगा तो हम भी यही कहते कि ’ऐसा भी भला कभी हो सकता है.’ लेकिन होने लगा न!!
पूरा मूड सत्यनाश हो गया अस्पताल में भरती होने का. कमर दर्द भी खुद ही ऊड़न छू हो गया और हम अगले दिन ही घर चले आये.
अब ऐसी धोखाधड़ी की जगह कौन खुद से चल कर जाना चाहेगा, इसलिए इस बार घर पर ही आराम करते हैं.