tag:blogger.com,1999:blog-23257105.post963380985362778669..comments2024-03-04T07:12:33.254-05:00Comments on उड़न तश्तरी ....: मीर की गज़ल सा.......Udan Tashtarihttp://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comBlogger43125tag:blogger.com,1999:blog-23257105.post-83657077575783754212007-10-22T12:20:00.000-04:002007-10-22T12:20:00.000-04:00eakdam bhav vibhor kar dene vali rachna ha kafi sa...eakdam bhav vibhor kar dene vali rachna ha kafi samaya bad itni achi rachna padhne ko mila bahut khub bahut bahut badhai..Dr.Bhawna Kunwarhttps://www.blogger.com/profile/11668381875123135901noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-23257105.post-5290566782875999352007-10-21T12:11:00.000-04:002007-10-21T12:11:00.000-04:00दिल को छू लिया आपकी कविता ने।दिल को छू लिया आपकी कविता ने।malhanrakeshhttps://www.blogger.com/profile/13192316707655619650noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-23257105.post-63870058967279000772007-10-20T15:40:00.000-04:002007-10-20T15:40:00.000-04:00आँखे नम हो गयी। और क्या कहूँ----आँखे नम हो गयी। और क्या कहूँ----Pankaj Oudhiahttps://www.blogger.com/profile/06607743834954038331noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-23257105.post-21300954837487589862007-10-20T14:08:00.000-04:002007-10-20T14:08:00.000-04:00समय बड़ा बलवाल होता है भाई और परिवर्तन एक सत्य है....समय बड़ा बलवाल होता है भाई और परिवर्तन एक सत्य है....आभाhttps://www.blogger.com/profile/04091354126938228487noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-23257105.post-9932722349227478612007-10-20T01:32:00.000-04:002007-10-20T01:32:00.000-04:00sameer bhai, bhaav vibhor kar diya aaj, aap to kav...sameer bhai, bhaav vibhor kar diya aaj, aap to kavita ke bhi maharathi hain,Sajeevhttps://www.blogger.com/profile/08906311153913173185noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-23257105.post-77748166877001725942007-10-20T00:08:00.000-04:002007-10-20T00:08:00.000-04:00बहुत सही!बहुत सही!Dharnihttps://www.blogger.com/profile/11988701220844256208noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-23257105.post-59418643254482228212007-10-19T16:28:00.000-04:002007-10-19T16:28:00.000-04:00इतने सारी टिप्पणियों के बाद मेरी क्या टिप्पणी ?पर ...इतने सारी टिप्पणियों के बाद मेरी क्या टिप्पणी ?<BR/>पर रहा नही गया । अब तो ऐसा ही हो रहा है । हर बार भारत लौटने पर लगता है कहीं कुछ और टूट गया है जिससे अपनी पहचान जुडी थी ।<BR/><BR/>आपको हौसला अफजाई के लिये बहुत बहुत धन्यवाद । ऐसेही हौसला बढाते रहें ।Asha Joglekarhttps://www.blogger.com/profile/05351082141819705264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-23257105.post-63898706417374744562007-10-19T14:20:00.000-04:002007-10-19T14:20:00.000-04:00ग्रामीण परिवेश को उजाडकर ही,आज शहर बसाये जा रहे हॆ...ग्रामीण परिवेश को उजाडकर ही,आज शहर बसाये जा रहे हॆ.ऎसा प्रतीत होता हॆ आज के इस पदार्थवादी युग में,मानवीय मूल्यों का अकाल पड गया हॆ.समीर जी, सुन्दर रचना के लिए साधुवाद.विनोद पाराशरhttps://www.blogger.com/profile/16819797286803397393noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-23257105.post-29866500044115917192007-10-19T12:52:00.000-04:002007-10-19T12:52:00.000-04:00और जी अपनी पोस्ट डालने के एक मिनट बाद जो उड़न तश्तर...और जी अपनी पोस्ट डालने के एक मिनट बाद जो उड़न तश्तरी पर सर नवा जाएगा उसके सफ़लता के कित्ते चानस है जी।॥…॥:)<BR/><BR/>मीर जैसा …कविता बहुत अच्छी है जी, ऐसी बुढ़ियांए आज जहाँ तहाँ मर रही है, पर लोगों को क्या वो तो और कारे खरीदेगे एक लाख में, ठंडे में सगींत का मजा लेते हुए सब्जी खरीदेंगे। सच लाल सरकारे भी सफ़ेद हो गयी, हंसिया छोड़ भीख का कटोरा जो हाथ में थाम लिया। भीख का सिर्फ़ आश्वास्न ही मिला वो भी कितना कुछ लुटा कर्।Anita kumarhttps://www.blogger.com/profile/02829772451053595246noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-23257105.post-78858246628917790552007-10-19T12:39:00.000-04:002007-10-19T12:39:00.000-04:00राजमार्ग पर जब चलता हूँ, रहता डरा डरा सहमाहर चौराह...राजमार्ग पर जब चलता हूँ, रहता डरा डरा सहमा<BR/>हर चौराहे पर दिखती है गलियों वाली बूढ़ी मांराकेश खंडेलवालhttps://www.blogger.com/profile/08112419047015083219noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-23257105.post-79701079592068607412007-10-19T12:00:00.000-04:002007-10-19T12:00:00.000-04:00हमारे यहा भी एक चुकी भुवा तली हुई नलियाँ बेचा करत...हमारे यहा भी एक चुकी भुवा तली हुई नलियाँ बेचा करती थी, जिसे उंगली में पहन कर खाते थे हम। सन 1980 मे उनके बड़े कर्जदार थे, उस जमाने में भुवा ने हमें पैंतीस पैसे का उधार दिया था और हम कई सालों तक उसे चुका नहीं पाये। और जब चुकाने के समर्थ हुए और चुकाने के लिये गये भी तब तक...........<BR/><BR/>बरगद का वह पेड़ कट चुका था।Sagar Chand Naharhttps://www.blogger.com/profile/13049124481931256980noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-23257105.post-36722762513117886342007-10-19T11:56:00.000-04:002007-10-19T11:56:00.000-04:00किसी अश्वनी कुमार को पकड़ा जाए क्या.....किसी अश्वनी कुमार को पकड़ा जाए क्या.....बोधिसत्वhttps://www.blogger.com/profile/06738378219860270662noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-23257105.post-3792376932071929562007-10-19T09:54:00.000-04:002007-10-19T09:54:00.000-04:00काकेश मित्रआपकी ही बात कही है रचना में. मीर की गज़ल...<B>काकेश मित्र</B><BR/><BR/>आपकी ही बात कही है रचना में. मीर की गज़ल उम्र हासिल करती है बदलते समय के साथ, होती जवान ही है. जैसे कि मैं हूँ जवान ही, मगर इन सब घटना क्रमों को देखकर लगने लगा है कि एक उम्र हासिल कर ली है.(जैसे बूढ़े हासिल करते हैं) :)Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-23257105.post-41532747437916341392007-10-19T09:03:00.000-04:002007-10-19T09:03:00.000-04:00सुबह टिपियाया था कहीं खो गया.अभी तो सिर्फ यही कहना...सुबह टिपियाया था कहीं खो गया.<BR/><BR/>अभी तो सिर्फ यही कहना है मीर की गजल कभी बूढ़ी नहीं होती. <BR/><BR/>फिर आप अच्छा लिख गये. धन्यवाद.काकेशhttps://www.blogger.com/profile/12211852020131151179noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-23257105.post-66358075412410745022007-10-19T07:47:00.000-04:002007-10-19T07:47:00.000-04:00सच में उड़न तश्तरी का जवाब नहीं. अति सुंदर कविता. ए...सच में उड़न तश्तरी का जवाब नहीं. अति सुंदर कविता. एक कड़वे सच को बाखूबी दर्शाती कविता.बालकिशनhttps://www.blogger.com/profile/18245891263227015744noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-23257105.post-48969908200382347582007-10-19T06:27:00.000-04:002007-10-19T06:27:00.000-04:00यह क्यों होता है की विकास का शिकार मानवीय संवेदना...यह क्यों होता है की विकास का शिकार मानवीय संवेदनाएं हो जाती हैं? क्या माल और माई का एक साथ चलना सम्भव नहीं.एक मर्मस्पर्शी रचना के लिए बधाई .Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-23257105.post-12752561616675909592007-10-19T06:09:00.000-04:002007-10-19T06:09:00.000-04:00नव उदारीकरण के दौर में भावनाएं ऐसे ही मरती जा रही ...नव उदारीकरण के दौर में भावनाएं ऐसे ही मरती जा रही हैं<BR/>अतुलManas Pathhttps://www.blogger.com/profile/17662104942306989873noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-23257105.post-67965639310415380122007-10-19T06:03:00.000-04:002007-10-19T06:03:00.000-04:00नव उदारीकरण के साथ ऐसे ही भावनाएं मर रहीं हैंअतुलनव उदारीकरण के साथ ऐसे ही भावनाएं मर रहीं हैं<BR/>अतुलManas Pathhttps://www.blogger.com/profile/17662104942306989873noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-23257105.post-56089194719604634502007-10-19T05:38:00.000-04:002007-10-19T05:38:00.000-04:00अब बहुत भावपूर्ण लिख्ने लगे हैं। दीपक भारतदीपअब बहुत भावपूर्ण लिख्ने लगे हैं। <BR/>दीपक भारतदीपdpkrajhttps://www.blogger.com/profile/11143597361838609566noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-23257105.post-73291334532398078522007-10-19T05:20:00.000-04:002007-10-19T05:20:00.000-04:00रचना दिल...रचना दिल को छू गई समीरजी। अब भारत में कहां रहे वो पेड़ और प्यार से खिलाने वाली माई। अब तो कमर्शियलाइजेशन का दौर है। पैसा फेंको और तमाशा देखो। झूठी चमक-दमक में प्यार कहीं खो गया गया है।नीलिमा सुखीजा अरोड़ाhttps://www.blogger.com/profile/14754898614595529685noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-23257105.post-19255343962355618252007-10-19T03:52:00.000-04:002007-10-19T03:52:00.000-04:00bahut achi lagi sahab. badhaai gaanv ki yaad kabhi...bahut achi lagi sahab. badhaai gaanv ki yaad kabhi kabhi aisi lagti hai jaise maa baap ki pooja kar lee ho. main to bada aanand paataa hoon gaanv ki gali gali kalpana men nihaar letaa hoon kai saare gaanv ke log tab jo kuch nahi the aaj hamare liye door se hi bahut kuch hain.योगेश समदर्शीhttps://www.blogger.com/profile/05774430361051230942noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-23257105.post-19360303352287033402007-10-19T03:39:00.000-04:002007-10-19T03:39:00.000-04:00बहुत खूब....दरख्त बूढ़े नहीं होते, घने होते हैं। घ...बहुत खूब....<BR/><BR/>दरख्त बूढ़े नहीं होते, <BR/>घने होते हैं। <BR/>घनत्व होता है छाया का,<BR/>स्नेह की माया का, अनुभव का, <BR/>दृष्टि का।<BR/>इसी में <BR/>भला है <BR/>हमारी सृष्टि का...<BR/>माई भी एक दरख्त थी..<BR/><BR/>बहुत अच्छा लिखा समीर जी। शुक्रिया...अजित वडनेरकरhttps://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-23257105.post-8229212150048258112007-10-19T03:32:00.000-04:002007-10-19T03:32:00.000-04:00सब खोते जा रहे हैं हम!!अपने बचपन के मोहल्ले में जब...सब खोते जा रहे हैं हम!!<BR/><BR/>अपने बचपन के मोहल्ले में जब भी जाता हूं एक पीपल पेड़ के नीचे बिज़ली खंबे के पास बैठने वाली एक बुढ़िया माई की याद ज़रुर आती है जो बच्चों के लिए चना, आमरस आदि लेकर बैठा करती थी, अब वहां आसपास पक्की दुकानें हैं, और वो बुढ़िया माई कहां है कोई खबर नही!!Sanjeet Tripathihttps://www.blogger.com/profile/18362995980060168287noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-23257105.post-48664600170252310732007-10-19T03:23:00.000-04:002007-10-19T03:23:00.000-04:00कहते है परिवर्तन समय की मांग है , परन्तु मैं ये पू...कहते है परिवर्तन समय की मांग है , परन्तु मैं ये पूछता हू की ये कैसा परिवर्तन है जहा मानव समवेदनायें धीरे धीरे ख़त्म होती जा रही है, कभी सुनने मे आता है कि फलाने ने पैसू के लिए उसका खून कर दिया, बीवी ने अपने पति और पति ने बीवी का खून कर दिया, बेटे ने माँ बाप को घर से निकाल दिया या उनको दोलत के लिए मार दिया. <BR/><BR/>कौन समझे उस बरगद के पेड के आत्म पीड़ा को, क्यौकी समवेदना तो हमारी ..............Suvicharhttps://www.blogger.com/profile/16711640058971514851noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-23257105.post-61353443332301907462007-10-19T03:16:00.001-04:002007-10-19T03:16:00.001-04:00शब्द कम हों भाव गहरेदेते हैं सदा अर्थ सुनहरेशब्द कम हों भाव गहरे<BR/>देते हैं सदा अर्थ सुनहरेअविनाश वाचस्पतिhttps://www.blogger.com/profile/05081322291051590431noreply@blogger.com