tag:blogger.com,1999:blog-23257105.post2624582229992943610..comments2024-03-04T07:12:33.254-05:00Comments on उड़न तश्तरी ....: आज तुमने फिर बहुत सुन्दर लिखा है!!Udan Tashtarihttp://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comBlogger67125tag:blogger.com,1999:blog-23257105.post-29122237967186227262007-10-23T12:34:00.000-04:002007-10-23T12:34:00.000-04:00आज कुछ लोगों के लिये किसी की मौत सदमा नहीं होती। आ...आज कुछ लोगों के लिये किसी की मौत सदमा नहीं होती। आपके लेख में लिखा है की 'दुर्घटना थोड़ी देर बाद होती…' यदि उस दुर्घटना में कहने वाले सज्जन या दुर्जन का रिश्तेदार होता तब उसकी टिप्पणी शायद देखने वाली होती। खैर आपने मह्सूस करके अपने आपको संयमित रखा। यही 'मेरा भारत महान' की अवधाराणा है।Atul Chauhanhttps://www.blogger.com/profile/13418818413795828946noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-23257105.post-73463398364049944552007-10-20T23:14:00.000-04:002007-10-20T23:14:00.000-04:00आप ही की तरह हृदयस्पर्शी आप की पोस्ट..आप ही की तरह हृदयस्पर्शी आप की पोस्ट..अभय तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/05954884020242766837noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-23257105.post-91934823968876567012007-09-28T23:34:00.000-04:002007-09-28T23:34:00.000-04:00समीर भाई, बहुत सहज शैली में लिखी यह पोस्ट भावुक भी...समीर भाई, बहुत सहज शैली में लिखी यह पोस्ट भावुक भी है और कई-कई सद्_वाक्यों से अलंकृत है। नोस्टाल्जिया टाईप भी है, भावातिरेक से परिपूर्ण भी।<BR/><BR/>कुछ विशिष्ट बातें इस लेख में लगीँ - घटनाक्रम का चित्रण, अपने और अन्य व्यक्तियों के मनोभावों का सटीक विवरण, दार्शनिकता का परिलक्षण और अंत में सहज तरीके से विज्ञान के सिद्धांतों की व्याख्या! समय की सापेक्षता के सिद्धांत को आईंस्टीन ने भी तो एक सरल उदाहरण से समझाया था।Rajeev (राजीव)https://www.blogger.com/profile/04166822013817540220noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-23257105.post-33185857661445909952007-09-28T13:37:00.000-04:002007-09-28T13:37:00.000-04:00...सुबह से मेकअप में छिपे चहेरों की रंगत धीरे धीरे......सुबह से मेकअप में छिपे चहेरों की रंगत धीरे धीरे उड़ती जा रही थी. वो हरे टॉप वाली लड़की सुबह बहुत सुन्दर दिख रही थी. अब दो घंटे के इन्तजार के बाद कम सुन्दर हो गई थी. मैं सोचने लगा कि कितनी टाईमबाउन्ड सुन्दरता है. कहीं तीन चार घंटे और इन्तजार करवा दिया तो एक नया ही रुप न सामने आ जाये.....<BR/><BR/>.जरा देर हो गयी...टिप्पणी करने मे इतनी संजीदा पोस्ट पर...बाबू जी के लिये लिखे भावों पर आखें नम सी हो गयीं...वाकई बेहद सुन्दर लिखा है आपने..नवम्बर मे आपका इंतजार रहेगा.<BR/>आपकी ही.विजेंद्र एस विजhttps://www.blogger.com/profile/06872410000507685320noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-23257105.post-86639400526876141282007-09-28T06:35:00.000-04:002007-09-28T06:35:00.000-04:00नमस्कार समीर जी, लेख वाकई बहतरीन हैं, वैसे भी आप ल...नमस्कार समीर जी, लेख वाकई बहतरीन हैं, वैसे भी आप लिखते ही खूबसूरत है| विनोद पाराशर जी ने ठीक कहा, आप "ऒरों के ब्लाग पर जाकर टिप्पणी करने में भी आप बिल्कुल कंजूसी नहीं करते" इस बात से मैं भी सहमत हूँ| नवम्बर में दिल्ली आने पर इत्ला जरूर करीयेगा| इन्तज़ार रहेगा|संगीता मनरालhttps://www.blogger.com/profile/00008506264170362305noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-23257105.post-8507062098717242412007-09-27T23:56:00.000-04:002007-09-27T23:56:00.000-04:00बहुत सुंदर लिखा है भाईसाहब पढ़ते पढ़ते दिल भर आया,...बहुत सुंदर लिखा है भाईसाहब पढ़ते पढ़ते दिल भर आया, जब पूरा हुआ तो आंख भी भरने को आतुर बैठी थी, अगली बार जब भी बाबूजी से बात हो तो हमारा भी प्रणाम कहिएगा उनसे।अभिनवhttps://www.blogger.com/profile/09575494150015396975noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-23257105.post-73877635437971137242007-09-27T13:28:00.000-04:002007-09-27T13:28:00.000-04:00भाई समीर जी,वाकई आप बहुत अच्छा लिखते हे.ऒरों के ब्...भाई समीर जी,वाकई आप बहुत अच्छा लिखते हे.ऒरों के ब्लाग पर जाकर टिप्पणी करने में भी आप बिल्कुल कंजूसी नहीं करते.हर कलाकार लेखक की यह स्वभाविक इच्छा होती हॆ कि वह अपनी रचना के संबंध में पाठकों की प्रतिक्रिया जाने.मॆनें जब कविता लिखनी शुरू की थीं,तो लिखने के तुरंत बाद,बडी तीव्र इच्छा होती थी,कि उसे किसी को सुनाऊं.मेरे कुछ खास मित्रों को, मेरी इस कमजोरी का पता था. वे मेरी सूरत देखकर ही जान जाते थे कि कोई नई कविता लिखी हॆ.मुझसे चाय पीने के बाद ही कविता सुनने के लिए राजी होते थे.क्या करता उस समय मजबूरी थी- चाय पिलानी पडती थी.विनोद पाराशरhttps://www.blogger.com/profile/16819797286803397393noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-23257105.post-60014690359860221922007-09-27T13:09:00.000-04:002007-09-27T13:09:00.000-04:00भाई समीर जी,वाकई आप बहुत अच्छा लिखते हे.ऒरों के ब्...भाई समीर जी,वाकई आप बहुत अच्छा लिखते हे.ऒरों के ब्लाग पर जाकर टिप्पणी करने में भी आप बिल्कुल कंजूसी नहीं करते.हर कलाकार लेखक की यह स्वभाविक इच्छा होती हॆ कि वह अपनी रचना के संबंध में पाठकों की प्रतिक्रिया जाने.मॆनें जब कविता लिखनी शुरू की थीं,तो लिखने के तुरंत बाद,बडी तीव्र इच्छा होती थी,कि उसे किसी को सुनाऊं.मेरे कुछ खास मित्रों को, मेरी इस कमजोरी का पता था. वे मेरी सूरत देखकर ही जान जाते थे कि कोई नई कविता लिखी हॆ.मुझसे चाय पीने के बाद ही कविता सुनने के लिए राजी होते थे.क्या करता उस समय मजबूरी थी- चाय पिलानी पडती थी.Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-23257105.post-32159670676783421282007-09-27T08:01:00.000-04:002007-09-27T08:01:00.000-04:00सच कहूँ समीर जी, दिल भर आया पढ़कर .. अंत तक आते आते...सच कहूँ समीर जी, दिल भर आया पढ़कर .. अंत तक आते आते मुझे भी सब खाली-खाली लगने लगा । बहुत अच्छा लिखा आपने ।Dr. Seema Kumarhttps://www.blogger.com/profile/16605133497857832550noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-23257105.post-63464932730376360092007-09-27T07:48:00.000-04:002007-09-27T07:48:00.000-04:00दो प्रसंग और समय की गति.. गति का सापेक्ष अवलोकन.. ...दो प्रसंग और समय की गति.. गति का सापेक्ष अवलोकन.. इनमें भावनाओं से भरी शब्द-भंगिमा.. लेख सहज शैली में . <BR/><BR/>जानकारी ये मिली कि आप नवम्बर में तशरीफ़ ला रहे हैं। वादे के मुताबिक़ आप ज़रूर मिलेंगे.. और बाक़ी की बातें भी याद होंगी :)नीरज दीवानhttps://www.blogger.com/profile/14728892885258578957noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-23257105.post-49624334970999208932007-09-27T04:48:00.000-04:002007-09-27T04:48:00.000-04:00वाह कमाल की रही ये पोस्ट..सब के दिलों को छूती निकल...वाह कमाल की रही ये पोस्ट..सब के दिलों को छूती निकल गई । अच्छा लगा पोस्ट के साथ साथ इतने पाठकों के भावोद्गार को पढ़ना।Manish Kumarhttps://www.blogger.com/profile/10739848141759842115noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-23257105.post-81595212171049131602007-09-27T00:59:00.000-04:002007-09-27T00:59:00.000-04:00भाई सा’ब, हम नाराज़ हैं आपसे :( ... फिर गोली दे गये...भाई सा’ब, हम नाराज़ हैं आपसे :( ... फिर गोली दे गये आप हमको। आपने कहा था कि पिताजी के साथ ही मैं भी लौटूंगा वो भी मुम्बई के रास्ते। चाचाजी को अकेले भेज दिया और अब नवम्बर की पट्टी पढ़ा रहे हो आप। अगर नवम्बर में नंबर नहीं लगा न तो फिर समझना आप... हम भी यहां से गोलियां (कंचे) फेंकने लगेंगे कनाडा की ओर मुंह करके। <BR/><BR/>फिलहाल के लिए तो बस इतना ही कहूंगा "आज आप ने फिर बहुत सुन्दर लिखा है!!"SHASHI SINGHhttps://www.blogger.com/profile/15088598374110077013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-23257105.post-50198642076996719952007-09-26T23:21:00.000-04:002007-09-26T23:21:00.000-04:00मैं पिता को लेकर हमेशा से थोड़ा भावुक रहा हूँ। उन्...मैं पिता को लेकर हमेशा से थोड़ा भावुक रहा हूँ। उन्हे याद करते ही मन उदास हो जाता है। इसी लिए पहले तो शुरू करने के बाद आपकी पोस्ट को पूरा पढ़ा ही नहीं। फिर पत्नी ने कहा कि पढ़ो बहुत ही अलग तरह की पोस्ट है। आपने तो सच में कहिहैं सब मेरे हिए तेरे हिए की बात को सार्थक कर दिया। हिंदी के या कहें कि दुनिया के लेखकों को सावधान हो जाना चाहिए ब्लॉग पर इतना अच्छा लिखा जा रहा है। सचमुच बेजोड़ लिखा है आपने ....बोधिसत्वhttps://www.blogger.com/profile/06738378219860270662noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-23257105.post-34849303966167346082007-09-26T22:54:00.000-04:002007-09-26T22:54:00.000-04:00सीधे सरल शब्दों में दिल की बात कहना कोई आपसे सीखे....सीधे सरल शब्दों में दिल की बात कहना कोई आपसे सीखे....अन्दर तक छू गयी आपकी ये सरल-सुलभ लेखनीराजीव तनेजाhttps://www.blogger.com/profile/00683488495609747573noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-23257105.post-34196589660431095912007-09-26T22:53:00.000-04:002007-09-26T22:53:00.000-04:00अजी आपको तो सुन्दर लिखने का कीड़ा है. सौन्दर्य के म...अजी आपको तो सुन्दर लिखने का कीड़ा है. सौन्दर्य के मँजे हुए खिलाड़ी हो. :)<BR/><BR/>यह तो बिना कहे ही सिद्ध है कि आपने आज फिर बहुत सुंदर लिखा है. :):)Vikashhttps://www.blogger.com/profile/01373877834398732074noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-23257105.post-41311682063937585692007-09-26T22:12:00.000-04:002007-09-26T22:12:00.000-04:00पडोसी बुलाये और हम ना आयें ऐसे तो हालात नहीआप आज ब...पडोसी बुलाये और हम ना आयें ऐसे तो हालात नही<BR/>आप आज बैठाके आये हम अगले हफ्ते बैठाकर आयेंगे, रहा सवाल लेख का तो वाकई में टिप्पणी पछाड़ पोस्ट है। हो भी क्यों ना मानवीय संवेदनायें कितनी खोखली होती जा रही हैं, इस पर लिखा जाये इतनी प्रतिक्रियायें तो बनती ही हैं। ऐसे नजारे यहाँ भी देखने को मिलते हैं, आपनी बहुत सुंदर से अपनी भावनायें और पब्लिक की रिसती संवेदनाओं का संगम बनाकर अच्छा लेख लिखा है।<BR/><BR/>हम आजकल ब्लोगजगत से दूरी बनायें हुए हैं शायद १-१ॉ२ महीने बाद ये पहली पोस्ट पढ़ी है, अभी कुछ हफ्ते ये दूरी जारी रहेगी, तब तक आप यूँ ही लिखते रहें और टिप्पणी पाते रहें।Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-23257105.post-4456844165219593242007-09-26T18:09:00.000-04:002007-09-26T18:09:00.000-04:00समय भी अजब चीज बनी है इस दुनिया में. जब हम चाहते ह...समय भी अजब चीज बनी है इस दुनिया में. जब हम चाहते हैं कि जल्दी से कट जाये तो ऐसा रुकता है कि पूछो मत और जब चाहें कि थमा रहे, तो ऐसा भगता है कि पूछो मत. बिल्कुल उलट दिमाग व्यक्तित्व है समय का.<BR/><BR/>किसी का असली रुप देखना है तो उसे गुस्से में या परेशानी में देखो. <BR/><BR/>तुमने (आपने) आज फिर बहुत सुन्दर लिखा है <BR/><BR/>बधाई...Reetesh Guptahttps://www.blogger.com/profile/12515570085939529378noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-23257105.post-57610251534697440472007-09-26T16:44:00.000-04:002007-09-26T16:44:00.000-04:00समीर भाईदिल भर आया पढ़ कर! पिता जी का थोड़े दिनों ...समीर भाई<BR/>दिल भर आया पढ़ कर! पिता जी का थोड़े दिनों का साथ, फिर विछोह और फिर आशा<BR/>की किरण - नवंबर का इंतज़ार! पिता जी के भारत लौटने का मंज़र जिस सजीवता से चित्रित किया है,पढ़ कर मख़दूम मोइनुद्दीन के कुछ शेर याद आगएः<BR/>आपकी याद आती रही रात भर।<BR/>चश्मे-नम मुस्कुराती रही रात भर।।<BR/>रात भर दर्द की शम्मा जलती रही<BR/>गम की लौ थरथराती रही रात भर।<BR/>याद के चांद दिल में उतरते रहे<BR/>चांदनी जगमगाती रही रात भर।<BR/>कोई दीवाना गलियों में फिरता रहा<BR/>कोई आवाज़ आती रही रात भर।<BR/>लेख के लिए बधाई।महावीरhttps://www.blogger.com/profile/00859697755955147456noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-23257105.post-24274127010034563902007-09-26T15:25:00.000-04:002007-09-26T15:25:00.000-04:00समीर भाई,हिन्दी ब्लोग जगत के ऐसे छोटे छोटे आलेख, प...समीर भाई,<BR/>हिन्दी ब्लोग जगत के ऐसे छोटे छोटे आलेख, पारीवारिक परिद्र्श्योँ की छवि समेटे,हमारे अन्तर्मन के भावोँ को रँग देते, महज हमारी सँस्कृति का आइना ही नहीँ <BR/>हमारी धरोहर हैँ ...जो आनेवाले समय मेँ, अगली पीढी भी बाँचेगी और,शायद आँसू से या ठँडी साम्स ले कर, अपनी अपनी जीवन यात्रा पूरी करने मेँ जुटी रहेगी.<BR/>मैँ भी मेरे बेटे और हमारी नयी बहुरानी से शदी के बाद, ५ महीने बाद मिल कर लौटी हूँ ...अब तो, सारे रिश्तोँ को, कलेजे पे पथ्थर रख कर, बस प्यार करते रहना सीख लिया है...ज़िँदगी आगे बढती जा रही है ..'जिस विध राखेँ राम गुसामी उस विध ही रह लीजै '...ये मेरे भजन के शब्द जीवन का सच बन गये हैँ<BR/> स ~~स्नेह,<BR/>-- लावण्यालावण्यम्` ~ अन्तर्मन्`https://www.blogger.com/profile/15843792169513153049noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-23257105.post-54783302602326182062007-09-26T13:04:00.000-04:002007-09-26T13:04:00.000-04:00मान्य समीर जीबहुत सुन्दर भावात्मक लेख लिखा है आपने...मान्य समीर जी<BR/><BR/>बहुत सुन्दर भावात्मक लेख लिखा है आपनेAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-23257105.post-41721148871415533872007-09-26T13:03:00.000-04:002007-09-26T13:03:00.000-04:00बहती हुई धार में कब तक कहो संवर रहती परछाईंटूटे हु...बहती हुई धार में कब तक कहो संवर रहती परछाईं<BR/>टूटे हुए आईने कब कब असली अक्स दिखाया करते<BR/><BR/>लेकिन आपने अपने लेखन में यह साकार कर दिया है.<BR/><BR/>सादर<BR/><BR/>अरुणिमाAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-23257105.post-64516917447648618582007-09-26T07:47:00.000-04:002007-09-26T07:47:00.000-04:00सचमुच बहुत सुदर है। भावुक चिंतन जो ज़रूरी है रिश्त...सचमुच बहुत सुदर है। भावुक चिंतन जो ज़रूरी है रिश्तों - सामाजिकता की गरमाहट के लिएअजित वडनेरकरhttps://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-23257105.post-24058459773200359522007-09-26T02:31:00.000-04:002007-09-26T02:31:00.000-04:00I was missing good hindi (literature). idhar kuch ...I was missing good hindi (literature). idhar kuch dino se hindi bloggers ki rachnaye parh raha hoon. thori man ko shanti mil rahi hia. badhai, apke lekhan ke liye. I used to go through them (in library) when I was in IIT Roorkee. Ab to bas jindagi ki aapa-dhapi me jindagi hi bahoot peeche choot gaye, hindi ki kaun sudh le. main hindi me comment karna chahta hoon . koi mujhe sahayta karen. pkhindi@gmail.com par.<BR/><BR/>dhanyawad<BR/><BR/>pravinUnknownhttps://www.blogger.com/profile/11082097652815866942noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-23257105.post-78350802044202122712007-09-26T01:55:00.000-04:002007-09-26T01:55:00.000-04:00yakeen maniye, aapne aaj bhi bohat accha likha hai...yakeen maniye, aapne aaj bhi bohat accha likha hai... aur hum log to hain hi, tippaniyon ke liye.<BR/>likhte rahiyega, accha lagta hai.delhidreamshttps://www.blogger.com/profile/04613041484425960760noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-23257105.post-4724630649059508572007-09-25T23:22:00.000-04:002007-09-25T23:22:00.000-04:00बहुत सोचा बहुत सोचा कि मैं क्या कहूँ… लेख पढ़ते पढ़त...बहुत सोचा बहुत सोचा कि मैं क्या कहूँ… लेख पढ़ते पढ़ते दिल ना जाने कहाँ खो गया। आपकी तरह से वतन से दूर तो नहीं हूँ पर हाँ, आज करीब डेढ़ साल से अपने माता पिता से दूर जरूर हूँ आजीविका के लिये। मेरे मित्रों में से बहुत लोग अपनी पगार से कुछ घर भेजते हैं, या कुछ ने कम से कम अपनी जीवन की पहली पगार तो अपनी माँ के हाथ में रखी ही थी, पर मुझे लगा कि मैं क्या दूँ अपनी माँ को? उन्हें पैसे की तो जरूरत ही नहीं है। उनका बेटा खुद संघर्ष कर के जिन्दगी के ऊँच नीच सीख सके, सिर्फ़ इसी आशय से ही आज अपने कलेजे के टुकड़े को खुद अपने कलेजे से दूर कर के भी खुश होने का नाटक करती रहती हैं वो। उन्हें पैसों की जरूरत नहीं, पर जिस चीज की जरूरत है वो ही मैं उन्हें नहीं दे पा रहा… मेरा वक्त, मेरा साथ।<BR/>शायद यही जीवन है जिसका पाठ समझने में शायद मैं कुछ भावुक हो रहा हूँ…पुनीत ओमरhttps://www.blogger.com/profile/09917620686180796252noreply@blogger.com