tag:blogger.com,1999:blog-23257105.post2455981125478438339..comments2024-03-04T07:12:33.254-05:00Comments on उड़न तश्तरी ....: मैं ही थोड़ा सा सिमट जाऊँUdan Tashtarihttp://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comBlogger36125tag:blogger.com,1999:blog-23257105.post-74377703082209367582007-07-15T08:49:00.000-04:002007-07-15T08:49:00.000-04:00बहुत बढिया लिखा है !मध्यम मार्ग ही उत्तम है अतिवाद...बहुत बढिया लिखा है !मध्यम मार्ग ही उत्तम है अतिवाद के इस दौर मॆं!Neelimahttps://www.blogger.com/profile/14606208778450390430noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-23257105.post-49741150124367225152007-07-14T05:47:00.000-04:002007-07-14T05:47:00.000-04:00मेरी गणित ज़रा कमजोर थी, सो गति और दूरी जैसे शब्द ए...मेरी गणित ज़रा कमजोर थी, सो गति और दूरी जैसे शब्द एक साथ कई बार देख कर लगा कि कहीं आप वो वाले प्रश्न तो नहीं कर रहे! :) <BR/>लेकिन हार जीत, गति-अवगति भी तो इस जीवन के अवयव हैं! यह संदेश बातों बातों में ही आ गया। अब तो आपकी तारीफ के लिए नए शब्द खोजने पड़ेंगे!! इस के लिए कोई क्लास लीजिये तो तार दीजियेगा।Waterfoxhttps://www.blogger.com/profile/04083355344717381265noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-23257105.post-90869716003571249732007-07-13T18:21:00.000-04:002007-07-13T18:21:00.000-04:00क्या कहें, अपने को तो पल्ले ही नहीं पड़ी!! कहीं मेर...क्या कहें, अपने को तो पल्ले ही नहीं पड़ी!! कहीं मेरे पर तो व्यंग्य नहीं कस रहे??!! ;) :P वैसे आप संतोष कीजिए करते हैं तो, अपने से नहीं होगा, वो लाल वाली स्विफ्ट फिर दिखी तो उसको अगली बार ज़रूर हराऊँगा!! ;)<BR/><BR/><I>अपने तो कभी 80 के उपर जाते ही नहीं. फ*ती है. :) <BR/><BR/>कभी देखता हुँ, कोई जूम्म्म्म्म्म्म करके निकल जाता है, फिर मुडकर युँ देखता है जैसे ग्रांड प्री फार्मुला 1 जीत गया है, अगले ही पल ठुका हुआ मिलता है. <BR/><BR/>क्या फायदा!! :)</I><BR/><BR/>ही ही ही!! :D<BR/><BR/><I>१२० कि.मी./घण्टा के बारे मे दिल्ली मे तो आप सोच ही नही सकते ।यहा क्लच ,ब्रेक दबा दबा कर ही घर पहुच जाते है।:)</I><BR/><BR/>अरे क्या कहती हैं डॉक्टर साहिबा, हम भी दिल्ली में ही रहते हैं और यहाँ 120 क्या 130 भी पहुँचती है। बात यूँ है कि समय-२ का, सड़क-२ का, चालक-२ का और वाहन-२ का भी फर्क होता है ना!! :)Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-23257105.post-59111895794016643102007-07-13T08:36:00.000-04:002007-07-13T08:36:00.000-04:00शेर वाकई बेजोड हैं...वैसे अगर आपके साथ चादर ’शेयर’...शेर वाकई बेजोड हैं...<BR/>वैसे अगर आपके साथ चादर ’शेयर’ करनी हो..तो सिमटने में ही समझदारी है हम जैसो के लिये...<BR/><BR/>:)Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-23257105.post-46901232970172709242007-07-13T07:15:00.000-04:002007-07-13T07:15:00.000-04:00गहरे अर्थो वाली लेखनी है आपकी। बधाई।गहरे अर्थो वाली लेखनी है आपकी। बधाई।Pankaj Oudhiahttps://www.blogger.com/profile/06607743834954038331noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-23257105.post-11609495317363081262007-07-13T06:13:00.000-04:002007-07-13T06:13:00.000-04:00अपने आप से बड़बड़ाने वाली यह आपकी शैली भी अच्छी लगी!...अपने आप से बड़बड़ाने वाली यह आपकी शैली भी अच्छी लगी!!Sanjeet Tripathihttps://www.blogger.com/profile/18362995980060168287noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-23257105.post-942181658619459862007-07-13T06:04:00.000-04:002007-07-13T06:04:00.000-04:00आप गहरे आदमी हैं, थाह पाना मुश्किल है.आप गहरे आदमी हैं, थाह पाना मुश्किल है.Sanjay Tiwarihttps://www.blogger.com/profile/13133958816717392537noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-23257105.post-37584753771490664602007-07-13T05:31:00.000-04:002007-07-13T05:31:00.000-04:00भाई समीर लाल जीप्रशांत वस्ल जी के शेर अच्छे हैं. व...भाई समीर लाल जी<BR/>प्रशांत वस्ल जी के शेर अच्छे हैं. वह भावना जिसके तहत आपने यह पोस्ट लिखी है और भी अच्छी. इसका जवाब न मानें, पर एक और गजल का एक शेर पेश कर रहा हूँ :<BR/>मेरे क़द के साथ बढ़े जो <BR/>ऎसी चादर ढूँढ रहा हूँ <BR/>गजल विज्ञानव्रत की है.इष्ट देव सांकृत्यायनhttps://www.blogger.com/profile/06412773574863134437noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-23257105.post-3078485621862875712007-07-13T04:08:00.000-04:002007-07-13T04:08:00.000-04:00ठीक से देख लेते सर जी , कोई सोढीं कुडि तो नही थी :...ठीक से देख लेते सर जी , कोई सोढीं कुडि तो नही थी :) अगर तब जीते तो बेकार ही जीते :)Dr Prabhat Tandonhttps://www.blogger.com/profile/14781869148419299813noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-23257105.post-31684316840009873472007-07-13T03:40:00.000-04:002007-07-13T03:40:00.000-04:00बहुत ही गहरे अर्थ लिये हुए लिखा है लेख। शानदार :)आ...बहुत ही गहरे अर्थ लिये हुए लिखा है लेख। शानदार :)<BR/>आपके लेखन का एक अलग और नया रूप बधाई।Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-23257105.post-16607997950334390622007-07-13T03:36:00.000-04:002007-07-13T03:36:00.000-04:00भाइ बात पसंद नही आई,हम यहा आपके फ़ैलने की दुआ कर रह...भाइ बात पसंद नही आई,हम यहा आपके फ़ैलने की दुआ कर रहे है. सिमटने की बात कहा से आ गई.<BR/>अरे आप इतना फ़ैलो (गुस्से वाला फ़ैलना के अर्थ मे ना ले)कि लोग ..<BR/>जमी से आसमा तक,आसमा से जमी तक,<BR/>हवा ही हवा है...:)की जगह ये कहे<BR/>नारद से चिट्ठा जगत तक,हिंदी ब्लोग से बलोगवाणी तक, समीर ही समीर है...:)Arun Arorahttps://www.blogger.com/profile/14008981410776905608noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-23257105.post-79606544418689305912007-07-13T03:18:00.001-04:002007-07-13T03:18:00.001-04:00khud ko sametna bhee achha nahin hota- itna uthao ...khud ko sametna bhee achha nahin hota- itna uthao khudko ki asmaan rashk kare.विनय ओझा 'स्नेहिल'https://www.blogger.com/profile/10471466646292910182noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-23257105.post-23635733773375386232007-07-13T03:18:00.000-04:002007-07-13T03:18:00.000-04:00khud ko sametna bhee achha nahin hota- itna uthao ...khud ko sametna bhee achha nahin hota- itna uthao khudko ki asmaan rashk kare.विनय ओझा 'स्नेहिल'https://www.blogger.com/profile/10471466646292910182noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-23257105.post-48286216298255221032007-07-13T03:16:00.000-04:002007-07-13T03:16:00.000-04:00अन्तिम पन्क्तिया बहुत प्यारी लगी।अन्तिम पन्क्तिया बहुत प्यारी लगी।How do we knowhttps://www.blogger.com/profile/01763488475931737293noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-23257105.post-46013308766502750432007-07-13T03:15:00.000-04:002007-07-13T03:15:00.000-04:00हाँ ऐसा ही खेल मैं भी खेलती थी .दिल्ली से गुडगांव ...हाँ ऐसा ही खेल मैं भी खेलती थी .दिल्ली से गुडगांव तक का रास्ता तय करने के लिये.जब कोई तेज़ रफ़्तार से आगे निकलता मैं सोचती ,निकल लो बच्चू ट्रैफिक लाइट पर तो मिलोगे ही और आगे लाल सिग़्नल पर उसको खडा देख मैं मन ही मन जीत जाती....अपनी ही रफ्तार से चलते हुए भी.Poonam Misrahttps://www.blogger.com/profile/08526492616367277544noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-23257105.post-12771326907529192272007-07-13T02:42:00.000-04:002007-07-13T02:42:00.000-04:00होड़ से हट कर अपनी गति से अपनी राह पर चलते जाना ही...होड़ से हट कर अपनी गति से अपनी राह पर चलते जाना ही राहगीर का फर्ज़ है, आप ऐसे ही सच्चे राही हैं, केवल ड्राइविंग में ही नहीं, लेखन में भी और जीवन में भी। बहुत अच्छा लगा।<BR/><BR/>कभी मैंने इस पर कुछ यूँ लिखा था:<BR/><BR/>तुम बढ़ जाओ आगे, जहाँ तक जाना चाहते हो<BR/>आख़िर कहाँ तक जाओगे<BR/>तुमसे पहले भी बहुत लोग आगे गए हैं<BR/>तुम्हारे बाद भी बहुत लोग जाएंगे<BR/>तुम कहाँ तक पहुँच जाओगे<BR/>कोई राह सीधी रेखा में नहीं है<BR/>सारी गतियाँ वर्तुलाकार हैं<BR/>लौट कर तुम फिर-फिर वही पहुँच जाओगे<BR/>जहाँ से चले थे<BR/>चाहे जीवन भर चलते रहो<BR/>और चलते-चलते थक-चूर कर<BR/>पस्त होकर मर जाओ।Srijan Shilpihttps://www.blogger.com/profile/09572653139404767167noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-23257105.post-15236405705311280612007-07-13T02:21:00.000-04:002007-07-13T02:21:00.000-04:00कभी कहते हैं कि मोटे हो जाओ, कभी कहते हैं कि सिमट ...कभी कहते हैं कि मोटे हो जाओ, कभी कहते हैं कि सिमट जाओ. अब एक फाइनल पोस्ट लिखिये और बताइये कि क्या किया जये, फैल जायें या सिमट जायें? वाकई कनफ्यूजिया गये हैं!अनुराग श्रीवास्तवhttps://www.blogger.com/profile/03416309171765363374noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-23257105.post-26077045075676193452007-07-13T02:18:00.000-04:002007-07-13T02:18:00.000-04:00समीर जी, आप की रचना जो कहना चाहती है वही सभी की कह...समीर जी, आप की रचना जो कहना चाहती है वही सभी की कहानी है। लेकिन ज्यादातर आगे निकलने की कोशिश करने वाले ही परेशान होते हैं।आप ने बहुत ही सुन्दर ढंग से एक बात को कह दिया। साथ ही उस से बचने का रास्ता भी सुझा दिया-<BR/>मेरी चादर बढ़ सके मुमकिन नहीं <BR/>मैं ही थोड़ा सा सिमट जाऊँ तो ठीक.<BR/><BR/>रचना बहुत पसंद आई।बहुत बढिया रचना है।बधाई।परमजीत सिहँ बालीhttps://www.blogger.com/profile/01811121663402170102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-23257105.post-10540973383936183062007-07-13T02:11:00.000-04:002007-07-13T02:11:00.000-04:00ये अज़दकी नहीं खालिस समीरियत है. आपाधापी से दूर. अप...ये अज़दकी नहीं खालिस समीरियत है. आपाधापी से दूर. अपनी चाल से चलती और मुकाबले में चाहे खरगोश हो या चीता - अपनी चाल से अपनी शर्तों पर जीतती. <BR/>स्माइली लगाने की जरूरत या गुंजाइश नहीं.Gyan Dutt Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-23257105.post-68344785306762308912007-07-13T01:49:00.000-04:002007-07-13T01:49:00.000-04:00समीर जी सच कहा आपने आगे बढ़ने की सोच (उन्नति करने ...समीर जी सच कहा आपने आगे बढ़ने की सोच (उन्नति करने की) सब में होनी चाहिये पर उसकी हदों को पार नहीं करना चाहिये कुछ लोग अन्धाधुन्ध बढ़े जाते हैं बिना सोचे, बिना विचारे, अखिर कहीं तो अन्त होना चाहिये। <BR/>शिक्षाप्रद आपका लेख बहुत पंसद आया उसमें छिपा यथार्थ उससे भी ज्यादा।<BR/><BR/>अपने अंदर ही सिमट जाऊँ तो ठीक<BR/>मैं हर इक रिश्ते से कट जाऊँ तो ठीक.<BR/><BR/>मेरी चादर बढ़ सके मुमकिन नहीं<BR/>मैं ही थोड़ा सा सिमट जाऊँ तो ठीक.<BR/><BR/>इन खूबसूरत पंक्तियों से काम नहीं चलने वाला हमें पूरी गज़ल पढ़ना है, जल्दी ही, इन्तज़ार में...Dr.Bhawna Kunwarhttps://www.blogger.com/profile/11668381875123135901noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-23257105.post-62104906940882080382007-07-13T01:40:00.000-04:002007-07-13T01:40:00.000-04:00ये सिमटान चौतरफा हो रहा है क्या। क्या डाइटिंग वगैर...ये सिमटान चौतरफा हो रहा है क्या। <BR/>क्या डाइटिंग वगैरह का सीन बन रहा है क्या। <BR/>शुभकामनाएंALOK PURANIKhttps://www.blogger.com/profile/09657629694844170136noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-23257105.post-2851730502202806862007-07-13T01:24:00.000-04:002007-07-13T01:24:00.000-04:00समीर जी, 120 किमी प्रति घंटा!हम तो दिल्ली में 40 भ...समीर जी, 120 किमी प्रति घंटा!<BR/>हम तो दिल्ली में 40 भी नहीं चला पाते. बस नौयडा फ्लाइवे पुल पर 80 तक घिसट लेते हैं.<BR/><BR/>आपका यह ललित निबन्ध बहुत पसन्द आया. आप जिस विधा में लिखते हैं, वही हिट.मैथिली गुप्तhttps://www.blogger.com/profile/09288072559377217280noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-23257105.post-76739913181574829752007-07-13T01:21:00.000-04:002007-07-13T01:21:00.000-04:00लाला जी,दिल खुश हो जाये जिससे वही ख्याल अच्छा हैचद...लाला जी,<BR/><BR/>दिल खुश हो जाये जिससे वही ख्याल अच्छा है<BR/>चद्दर का क्या करूं छींक के लिये रूमाल अच्छा हैMohinder56https://www.blogger.com/profile/02273041828671240448noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-23257105.post-14610087716484037902007-07-13T01:09:00.000-04:002007-07-13T01:09:00.000-04:00बहुत ही अच्छा लिखा है। पूरा दर्शन है। जिंदगी तो हा...बहुत ही अच्छा लिखा है। पूरा दर्शन है। जिंदगी तो हार जीत का ही खेल है। मेरे एक पुराने मित्र की कविता की एक लाइन याद आ रही है। उमेश सर्राफ नाम है उनका। शौकिया कवि बने थे, अभी बिजनेसमैन हैं कोलकाता में। पता नहीं अभी लिखते हैं या नहीं-पंक्तियां हैं--<BR/>हां ये सच है कि <BR/>मैं हारा हूं<BR/>लेकिन क्या ये <BR/>सच नहीं कि मैं लड़ा हूं<BR/>हारा तो अभिमन्यु भी था<BR/>तो जिंदगी यही है। जीत का जश्न मनाइए, हार से हिम्मत जुटाइए अगली लड़ाई के लिएSatyendra Prasad Srivastavahttps://www.blogger.com/profile/11602898198590454620noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-23257105.post-6765252440158495092007-07-13T00:57:00.000-04:002007-07-13T00:57:00.000-04:00मेरी चादर बढ़ सके मुमकिन नहींमैं ही थोड़ा सा सिमट जा...मेरी चादर बढ़ सके मुमकिन नहीं<BR/>मैं ही थोड़ा सा सिमट जाऊँ तो ठीक.<BR/><BR/>वस्ल जी का ये शेर दिल के आर-पार हो गया ! पूरि ग़जल ही पढ़ने का मन हो गया।Manish Kumarhttps://www.blogger.com/profile/10739848141759842115noreply@blogger.com