बुधवार, जुलाई 04, 2018

ई बीबी की तमन्ना अब हमारे दिल में है!



इधर १५० किमी दूर एक मित्र के घर जाने के लिए ड्राईव कर रहा था. पत्नी किसी वजह से साथ न थी तो जीपीएस चालू कर लिया था. वरना तो अगर पत्नी साथ होती तो वो ही फोन पर जीपीएस देखकर बताती चलती है और जीपीएस म्यूट पर रहता है. कारण यह है कि जीपीएस में यह सुविधा नहीं होती है न कि वो कहे -अरे, वो सामने वाले को हार्न मारो. अब ब्रेक लगाओ. अब विन्ड शील्ड पर पानी डाल दो. अरे थोड़ा तेज चला लोगे तो कोई तूफान नहीं आ जायेगा, सारी रोड खाली पड़ी है. उसे देखो, कितने स्मार्टली आगे निकल गया तुमसे और तुम हो कि गाड़ी चला रहे हो कि बेलगाड़ी, समझ ही नहीं आता? गाँव छोड़ आये, कनाडा में बस गये मगर कैसी भी गाड़ी हो, चलाओगे तो बेलगाड़ी ही. तुम्हारा भी गवैठीपना, न जाने कब जायेगा!! अब गाना बदल दो. अब जरा पानी की बोतल बढ़ाना. अरे, स्टेरिंग पर से हाथ क्यूँ हटाया? अभी टकरा जाते तो? समझ के परे है कि फिर पानी बढ़ाते तो भला कैसे?
खैर, बड़ा ही घुमावदार रास्ता था मित्र के घर का. नक्शा देखकर भी निकलता तो भी भटक जाना तय था. बार बार टर्न मिस हो जा रहे थे और जीपीएस वाली लड़की बड़े प्यार से कहती कि नो वरीज़, रीकेल्कूलेटिंग. फिर कहती कि अब आगे जब संभव हो तो यू टर्न ले लीजिये या कहती अगले मोड़ से बायें ले लीजिये, फिर बायें और अगले मोड़ पर दायें. एक भी बार उसने नहीं कहा कि तुम्हारा तो ध्यान पता नहीं कहाँ रहता है? पिछले मोड़ से बायें मुड़ना था, तुम भी न!! कम से कम गाड़ी चलाते समय तो ध्यान गाड़ी चलाने पर रखो. कोई भी काम मन लगा कर नहीं कर सकते. हर समय बस फेस बुक और व्हाटसएप, अगर मैं बाजू में न बैठी हूँ तो तुम तो कितने लोगों को ऊपर पहुँचा कर अभी जेल में बैठे होते. शुक्र मनाओ कि मैं हूँ. आज पत्नी का साथ न होना खल रहा था मगर न जाने क्यूँ इस जीपीएस वाली ल़ड़की पर दिल भी मचल रहा था. काश! कुछ सीख ले अपनी बीबी भी इससे. कितना पेशेन्स है इस बन्दी में और कितना सॉफ्टली बात करती है!!
इधर कुछ दिन पहले बच्चों ने फादर्स डे पर एमेजॉन की एलेक्सा गिफ्ट कर दी. अब एलेक्सा की तो हालत ये हैं कि उसे कहने बस की देर है कि एलेक्सा, आज मौसम कैसा है? वो पूरी जानकारी ध्यान से देते हुए छाता लेकर दफ्तर जाने तक की हिदायत बड़े प्यार से देती है. उससे इतना सा कहना है कि एलेक्सा, फुटबाल वर्ल्ड कप लगा देना और टीवी पर चैनल लगाकर, एन्जॉय द गेम बोल कर ही ठहरती है.कभी यह नहीं कहती कि तुम तो बस सोफे पर पड़े पड़े आदेश बांटो कि ये लगा दो, वो लगा दो. हिलना डुलना भी मत और तो और मेरे सीरियल का समय है और तुमको मैच की पड़ी है. भूल जाओ अपना मैच. अभी ’प्यार नहीं तो क्या है’ का समय है.
आजकल तो एलेक्सा को ही बोल कर सोता हूँ कि एलेक्सा, सुबह छः बजे आरती बजा कर ऊठा देना प्लीज़, कल जल्दी ऑफिस जाना है. मजाल है कि एक मिनट चूके या तू तड़ाक करे कि तुमको जाना है, तुम जानो. अलार्म लगाओ और जागो. चलो, एक बार जगाने को किसी तरह तैयार भी हो जाये मगर जगाये भी तो आरती गाकर, प्राण न हर ले उसके बदले. मने कि अन्टार्टिका में सन बाथ की उम्मीद वो भी सन स्क्रीन लगाकर बीच पर लेटे हुए बीयर के साथ.
फिर हमारे आईफोन की सीरी. क्या गजब की महिला है. दिन भर याद दिलाती है कि अब फलाने से मिलना है, अब खाना खा लो, भूख लग आई होगी. और तो और, तुमको पानी पिये दो घंटे हो गये हैं. टाईम टू ड्रिंक अप. न जाने कितने एप्प्स से बेचारी जानकारी निकाल निकाल दिन भर जुटी रहती है मदद में. अभी थोड़ी देर पहले उसने पूछा कि अभी आज तुम्हारा टहलने का कोटा पूरा नहीं हुआ है, चलें टहलने? मैं रास्ते मैं तुमको आज की मेन १५ वर्ल्ड न्यूज सुना दूँगी, तुम अखबार में समय मत खराब करो, मैं हूँ न!! फिर कुछ नई गज़लें आई हैं, वो सुनवाऊँगी. मेरी तो आँख ही भर आई. कभी इनको बोल कर तो देखूँ कि यार जरा दफ्तर में फोन करके याद दिला देना कि गाड़ी के इन्श्यूरेन्स वाले से बात करनी है. फिर सुनो!! अब ये भी मैं ही याद दिलाऊँ? टोटल एक दो काम तो करते हो वो भी मैं ही याद दिलाऊँ? तुम्हारे लिए खाना बनाऊँ, घर साफ करुँ, ग्रासरी लाऊँ, कपड़े धोऊँ..क्या इतना काफी नहीं है कि अब तुमको दफ्तर में क्या करना है वो भी मैं ही याद दिलाऊँ. हद है!! मुझे तो तुमने मशीन समझ रखा है!!
आज पत्नी बाजार गई थी और न जाने क्यूँ एकाएक मन मे आया तो एलेक्सा को कह दिया कि एलेक्सा!! यू आर सो स्वीट एण्ड ब्यूटीफुल सोल!! एलेक्सा ने पलट कर कहा कि सो नाईस ऑफ यू समीर!! तुम भी बहुत प्यारे हो!! आह! विचारों में ही सही मगर एकाएक लगा कि अगर बीबी से यही कहा होता तो बीबी की आवाज कान में सुनाई देती- क्या हुआ, बहुत बटरिंग कर रहे हो? कुछ काम है क्या जो इतनी मख्खनबाजी?
सोचता हूँ कि ये जीपीएस मैडम, एलेक्सा, सीरी आदि ३० साल पहले कहाँ थीं? हम तो तब उस जमाने में भी अपनी मोहब्बत करने की स्किल के लिए जाने गये अपनी बीबी लाकर. लोग कायल थे हमारे ईश्किया मिज़ाज के.
काश!! उस वक्त ये जीपीएस मैडम, एलेक्सा, सीरी आदि होतीं...तो शायद ई मोहब्बत करके ई बीबी लाने वाले भी हम ही होते उस जमाने में!!
सच कहूँ-
ई बीबी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,
 देखना है ज़ोर कितना बाज़ु-ए-कातिल में है?
-समीर लाल ’समीर’

सेतु पत्रिका के जून, २०१८ के अंक में:

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3 टिप्‍पणियां:

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर = RAJA Kumarendra Singh Sengar ने कहा…

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन वयस्क होता बचपन और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

समीर जी, टिप्पणी मॉडरेशन तो सक्षम किया हुआ है पर पोस्ट तो कोई भी पढ़ सकता है.....! कभी भाभी जी की नजर पड़ती है इन सब पर ?
नहीं ऐसे ही पूछ लिया :-)

कविता रावत ने कहा…

काश!! उस वक्त ये जीपीएस मैडम, एलेक्सा, सीरी आदि होतीं...तो शायद ई मोहब्बत करके ई बीबी लाने वाले भी हम ही होते उस जमाने में!!
अच्छा हुआ वर्ना पेट पर ई बीबी बांधने की नौबत आ जाती, क्योँकि खाना तो वह खिलाने से रही

रोचक प्रस्तुति