बुधवार, मई 30, 2018

बंदी है कि हरी झंड़ी है?



Published in 7th Quarterly  e-Bulletin – Gyan Vigyan Sarita:शिक्षा dt 1st April’2018
एक नया कॉलम : अंदाज ए बयां - समीर लाल ’समीर’ by renowned author in Hindi, settled at Canada.


दिल्ली के मच्छर भी अगर बस मलेरिया के कारक हों तो फिर दिल्ली में रहने का क्या फायदा? मलेरिया तो गली गली, गाँव गाँव की बात है. दिल्ली में रहने की ठसक अलग होती है. ग्रेजुएट गाँव में पटवारी बनता है और १२ वीं पास  दिल्ली में मंत्री, वो भी ऐसा वैसा नहीं- शिक्षा मंत्री. इसी सम्मान का ध्यान रखते हुए दिल्ली के मच्छर भी मलेरिया नहीं, डेंगू देकर जाते हैं.
एक फिल्म में नाना पाटेकर को कहते सुना था कि एक मच्छर आदमी को हिजड़ा बना देता है. तब ताली बजाकर मच्छर मारे जाते थे. अब एक मच्छर आदमी को घर बैठे बेडमिन्टन की प्रेक्टिस करा देता है. आजकल जिसे देखो रेकेट से मच्छर मारता दिखता है. ताली बजाने का काम अब मंच से भाषण देते हुए जनता को चिढ़ाने के लिए किया जाता है अपने आप को सफल बताने के लिए. हालांकि ताली बजाकर मच्छर ही मार रहे होते हैं, इससे बड़ा तो कोई काम दिखता नहीं जो किया हो.
दिल्ली में चाहे जो भी दे दो उसका विरोध होता ही है फिर वो चाहे आरक्षण हो या अनुदान. अतः डेंगू जैसा मच्छरों के द्वारा प्रद्दत इस समस्यायुक्त जीवन की मुक्ति का सुगम मार्ग भी विरोध का सामना करने लगा. सारे बाबा आजकल मुक्ति के सुगम मार्ग पर ही प्रवचन दे दे कर पूरे देश को लूट रहे हैं. सब को धन मोह से मुक्त करा कर अपना खजाना भर रहे हैं. उसी जीवन से मुक्ति का मार्ग जब यह बेचारे दिल्ली के मच्छर प्रद्द्त करते हैं तो उन्हें मार डालने के उपाय पर चर्चा होती है. उनके नाम पर राजनिती होती है. दिल्ली सरकार कहती है कि दिल्ली में गंदगी की जिम्मेदार नगर महापालिका है जो हमारी पार्टी की नहीं है, जिसमें यह मच्छर पैदा होते हैं. फिर हमारे अंडर में दिल्ली पुलिस भी नहीं है कि हम इन मच्छरों को गिरफ्तार कर सकें. केन्द्र सरकार इन मच्छरों को संरक्षण दे रही है ताकि हम बदनाम हो जायें.
सुझाव आया कि दिल्ली में फॉग मशीन से धुँआ करवा कर इन मच्छरों को मरवा दिया जाये. मच्छर हैं कोइ गाय तो है नहीं कि इनको मारना धर्म विरोधी बात हो जाये. मगर जो फॉग मशीन नें धुँआ छोड़ा वो दिल्ली के वातावरण में ऑलरेडी घुले गाड़ियों के धुंए से कम जहरीला सा साबित हुआ और मच्छर तो मानो खुश होकर खुली हवा में दुगनी गति से साँस लेने लगे. उन्हें इन्तजार रहने लगा कि कब फॉग वाली गाड़ी आये और उन्हें बेहतर आबो हवा मिले.
किसी ज्ञानी ने सलाह दी कि ये ऐसे न मानेंगे.इनको मार कर क्यूँ हत्या का पाप लेना सर पर.इनकी नसबंदी करा दो..जैसे जैसे मरते जायेंगे..कम होते जायेंगे और धीरे धीरे खत्म हो जायेंगे. फिर पुराने नसबंदी के आंकड़े निकाले गये. उस पर आधारित शोध पत्र को जांचा गया और पाया गया कि भारत की जनसंख्या की वृद्धि में जितना नसबंदी का योगदान रहा है, उतना तो आयुर्वेदिक शिलाजीत का भी नहीं रहा. इमरजेंसी में जबरन नसबन्दी के बाद एकाएक भारत की जनसंख्या में जो बढ़ोतरी हुई वो कई कम आबादी वाले देशों को नसबन्दी के लिए प्रेरित करने के लिए पर्याप्त है. ये ठीक वैसा ही है जैसे जब जब भी सरकार ने भ्रष्टाचार को रोकने के लिए कड़क कदम उठायें हैं, भ्रष्टाचार एकाएक बढ़ता चला जाता है. मानो कड़क कदम न हों..फर्टीलाईजर हो..कि भ्रष्टाचार की फसल लहलहा उठी.
दरअसल बंदी शब्द ही हमारे देश में कमाल करता है. नशाबंदी वाले प्रदेशों में शराब की धड़ाधड़ बिक्री, नोटबंदी के बाद हजारों करोड़ के घोटालों का आंकड़ा, नसबंदी के बाद आबादी की वृद्धि, यहाँ तक कि नाकाबंदी को धता बताकर विदेश निकल लेने की आजादी में सुलभता..मानो बंदी न हो कर हरी झंड़ी हो. बंदी का रिकार्ड देखते हुए तो लगता है कि भारत में एक बार ईमानदारी पर पाबंदी लगा कर देखना चाहिये. कौन जाने भ्रष्टाचार बंद हो ही जाये.
फिर तय पाया कि इन मच्छरों को सम्मेलन बुलाकर इनको समझाईश दी जाये कि दिल्ली की जनता तुम्हारी दुश्मन नहीं हैं. उनके साथ मिल जुल कर प्रेमपूर्वक रहो. अगर तुमको खून ही पीना है तो तुम्हारे लिए सरकार ब्लड बैंक के दरवाजे खोल देगी. वो खून तो यूँ भी जरुरतमंदों तक कभी पहुँच ही नहीं पाता और अगर पहुँच भी जाये तो पीना तो तुमको ही है. तुम लोग सीधे ही पी लेना. समझाईश देने के लिए पेशकश करने वाले बाबा श्री ने बताया कि वे मच्छरों को आर्ट ऑफ बिना काटे लिविंग सिखायेंगे और इसके लिए जमुना किनारे मच्छरों का महा सम्मेलन बुलवाया जायेगा. पिछले इंसानी सम्मेलन का कचरा अब तक वहाँ पसरा है जो मच्छरों के लिए मुफीद माहौल रहेगा.
पिछले इंसानी सम्मेलन का जिक्र आते ही सरकार सतर्क हो गई और फिर नये सिरे से बदनामी न हो जाये ऐन चुनाव के पहले, इस हेतु यह पेश्कश भी दर किनार कर दी गई.
एकाएक इस ताजी सलाह पर सरकार गंभीरता से विचार कर रही है कि इन मच्छरों को बैंकों से तगड़ा लोन दिलवा दो ..ये खुद ही विदेश भाग जायेंगे.
फिर न मच्छर रहेंगे..न डेंगू.
सरकार इन मच्छरों का पासपोर्ट केंसल कर अपने हाथ झाड़ लेगी...फिर विदेश वाले अपनी देखें.
-समीर लाल समीर    


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