शनिवार, फ़रवरी 03, 2018

कित्ता प्रीमियम लेकर बचाओगे अपनी सत्ता


जीवन को छोड़कर अन्य चीजों के नुकसान की भरपाई किश्तों मे पैसा लेकर करने का वादा करना जनरल बीमा कम्पनियों का काम है. अंग्रेजी में मिशन स्टेटमेंट. ‘भरपाई करने’ के बदले इसे ‘भरपाई करने का वादा’ दो वजह से कहा.- एक तो जब तक नुकसान न हो जाये, तब तक यह वादा ही तो है और दूसरा, जब नुकसान हो जायेगा तो वादे को जुमला ठहरा देने की पूरी पूरी कोशिश होगी कि भरपाई न करनी पड़ जाये.
शहर के नामी व्यापारी के पूरे कारखाने में आग लग गई. बंदे का व्यापार धुँआ हो गया. हासिल आई राख. बैंक और कर्जदार लोन वापस लेने सीना ताने आँखें तरेरे खड़े हैं. लुटा हुआ व्यापारी हाथ जोड़े बीमा कम्पनी के साहबों के सामने खड़ा है. सर्वेअर फोटों खींच रहे हैं, खाना सूत रहे हैं. बैंक के खाते चैक कर रहे हैं. होटल में ठहरे रोज दावत दारु उड़ा रहे हैं और अंत में निष्कर्ष निकाल रहे हैं कि व्यापारी ने खुद से आग लगा दी है अतः बीमा कम्पनी की कोई जिम्मेदारी नहीं बनती. क्लेम रिजेक्टेड.
पत्रकार बीमा कम्पनी से पूछ रहे हैं कि व्यापारी भला खुद के व्यापार में आग क्यूँ लगायेगा?
बीमा कम्पनी से पैसा उगाहने के लिए..बीमा कम्पनी ने राज खोला.
मगर जब सब बढ़िया चल रहा है. व्यापार में मुनाफा हो रहा है तो फिर उगाही करके फायदा क्या है? व्यापारी भी जानता है कि पूरा व्यापार बैठ जायेगा और जो बीमा कम्पनी पैसा देगी, उसके बाद भी लोन बचा ही रह जायेगा..फिर भी आप सोचते हैं कि उसने आग लगाई होगी अपने व्यापार में? ये कैसी सोच है?
अरे, आप इन व्यापारी लोगों को नहीं जानते. ये ऐसा ही करते हैं. इनका उद्देश्य ही हमें बदनाम करना होता है. हम तो इसी धंधे में अरसों से हैं, हम तो देखते ही समझ जाते हैं..बीमा कम्पनी ने बताया.
हार कर व्यापारी ने खुदकुशी कर ली. बीमा कम्पनी ने बताया कि चोरी पकड़ी गई अतः शर्मीन्दगी में आत्म हत्या कर ली. बात आई गई हो गई और बीमा कम्पनी अगले बीमे के जुगाड़ मे निकल गई.
पता नहीं बीमा कम्पनी है कि सरकार? वैसे ही वादे, वैसे ही जुमले, वैसे ही मुकर जाना, वैसे ही गरीब किसान का आत्म हत्या कर लेना..वैसे ही उसे अपने खिलाफ षणयंत्र बता देना. फिर वैसे ही इनका नया जुमला उछाल देना..एकदम डिट्टो....सेम पिंच की बनती है. चोर चोर मौसरे भाई की तर्ज पर..
हमारी दादी ज़िंदा होती तो इनको कहती - झुट्ठे कहिंके!!
                                                                                                                                                          
बताते हैं कि ये बीमा वाले नुकसान की भरपाई करते हैं..गाड़ी का जबरदस्त एक्सीडेन्ट हो जाये तो दूसरी गाड़ी वैसी की वैसी ही नई वाली दे देते हैं. भूकम्प घर गिरा दे तो फिर से वैसा ही बनवा कर देते हैं.
कई लोग सोचने लगे कि यह बीबी का भी इन्श्यूरेन्स करते होते तो बढ़िया रहता..मगर फिर से वैसे की वैसी ही बीबी चाहोगे क्या? पूछने पर मुकर गये.
इन्सान अच्छा ही सोचता है मगर बुरे के सिग्नल रिसीव करना भी उसका स्वभाव है. अक्सर देखा गया है कि मेडीकल इन्शयूरेन्स लेने के एक साल के भीतर बन्दा एकाएक ऐसा बीमार पड़ता है कि अगर इन्श्यूरेन्स न लेता तो निश्चित ऐसे इलाज के आभाव में मर ही जाता..ऐसा प्रतीत होता है अस्पताल का बिल देख कर..यह दीगर बात है कि अस्पताल का बिल आया ही है इतना बड़ा इसलिए क्यूँकि उन्हें पता है कि पैसा बीमा वाले देने वाले हैं. वरना तो मर्ज अजवाईन चबा लेने से भी चला जाता..बेवजह बाई पास करवाई.
बस सुनते ही उनको लगा कि अपनी नुकसान की भरपाई की बातचीत की जाये. कौन जाने मान ही जायें. जैसा कि पहले कहा कि अहसास हो जाता है इन्सान को कि यह नुकसान होने वाला है तब वह भागता है बीमा करवाने ..वरना जवानी में तो हर कोई अजर अमर होता है. अतः जैसे ही अहसास हुआ कि अब सत्ता हाथ से खिसक सकती है तो चिन्ता सताई..चिन्ता सताई तो कैसे सुनिश्चित करें कि इस नुकसान की भरपाई हो..समाधान हेतु बीमा याद आया.
सारी बीमा कम्पनियों से अलग अलग बात की गई कि कित्ता प्रिमियम लेकर यह सुनिश्चित करोगे कि सत्ता हमारे हाथ से ना जाये?
बीमा कम्पनीयाँ सकपका गई..कहने लगी कि हम किसी का मरना नहीं रोकते..हम ईवीएम नहीं हैं..की हारे को जिता दें ..हम जीवनदान नहीं देते...हम सिर्फ नुकसान की भरपाई करते हैं पैसों से...
ऊफ्फ...लगा कि एक अकेली कम्पनी की तो यह औकात ही नहीं कि वह हमारी सत्ता का बीमा कर सके..ट्रक के बदले ट्रक लौटा दे...बस उतनी सी औकात है इनकी ..सत्ता के बदले सत्ता..इनसे अकेले न हो पायेगा...
तय पाया कि इनको मिला दो साथ में...पाँच अलग अलग ऊँगलियों को बना दो मुट्ठी..साथ आ जायेंगे तो ताकत आ जायेगी.
यही सोचते हुये, आज बजट के दौरान सुना कि तीन जनरल इन्श्यूरेंस कम्पनी मिला कर अब एक कर दी जायेगी. स्टॉक एक्सचेंज पर अपना परचम लहरायेगी. शायद मुट्ठी बन कर इत्ती ताकत पा जायें की सत्ता का बीमा भी कर पायें...
बस!! चिन्ता वही कि वैसे ही न प्रूव हो जाये आग लगना फिर से और नई एकीकृत बीमा कम्पनी मीडिया को बता रही हो कि इनने खुद अपने हाथों से आग लगाई है अपनी सत्ता में...नोटबंदी और जीएसटी जैसी दियासलाई से....इसलिये कैसा बीमा और काहे की भरपाई?
वैसे अबकी पहली बार बीमा कम्पनी सच बोल रही होंगी!!
मगर भक्त तब इन्हें कहेंगे..झुट्ठे कहिंके!!
-समीर लाल समीर
भोपाल के दैनिक सुबह सवेरे में रविवार ४ फरवरी, २०१८ के अंक में:

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