रविवार, फ़रवरी 26, 2017

अब शराफत का जमाना नहीं रहा

किस्मत कुछ ऐसी रही कि जिस जमाने में हम पैदा हुए, शराफत और इमानदारी इस दुनिया से विदा हो चुके थे. ऐसा हम नहीं कह रहे हैं हमारे शहर भर के बुजुर्ग बताया करते थे. जिससे सुनो बस यही सुनते थे कि..अब शराफत का जमाना नहीं रहा. विदा तो खैर तब तक गाँधी जी भी हो चुके थे मगर उनके बारे में जान लेने के लिए और बताने के लिए इतिहास की किताबें थी और ज्ञानी लोग थे.
शराफत के विषय में किताब में जो कुछ भी दर्ज पाया या लोगों से जाना वो बड़ा कन्फ्यूज करने वाला रहा अतः कभी कोई निश्चित जबाब मिला ही नहीं. जब तक हम किसी की किसी हरकत को शराफत समझते वो उसे छोड़ने की घोषणा करता मिलता है कि बस, अब तक हम शराफत से पेश आ रहे थे तो तुमको समझ नहीं आ रहा था, अब हम बताते हैं तुमको अपनी असली औकात...
पुलिस वाला तक शराफत और इमानदारी की बात करता नजर आता है तो सारा पढ़ा लिखा पानी हो जाता है. उस दिन पुलिस वाला कहता मिला कि शराफत से पूछ रहा हूँ इमानदारी से बता दो वरना तो फिर तुम जानते हो हमें उगलवाना आता है..
लोग शराफत को कपड़ो की तरह उतारते पहनते दिखते हैं. कोई उसे कही छोड़ आता है तो कोई कहता है कि शराफत गई तेल लेने. एक सज्जन का तो तकिया कलाम ही यही मिला कि हमसे से शराफत की उम्मीद मत रखना, उधार देना जानते हैं तो ब्याज वसूलना भी जानते हैं.
एक तरफ तो बुजुर्ग बता गये कि शराफत का जमाना गया तो दूसरी तरफ ऐसे ऐसे विवादास्पद दृष्य देखकर आज तक ये ही नहीं समझ आया कि शराफत होती क्या है. ऐसे में कल को जब बच्चे पूछेंगे कि शराफत क्या होती है तो क्या जबाब देंगे?
यही सब सोच कर अब तो हम भी आजकल इतना ही कहते हैं कि अब शराफत का जमाना नहीं रहा. हालांकि उम्र के इस दौर में बच्चों के लिए हम शहर के वैसे ही बुजुर्ग है जिनका शुक्र में हमने जिक्र किया था हमारे जमाने वाले.

-समीर लाल ’समीर’
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शनिवार, फ़रवरी 25, 2017

गुगल आकाशवाणी नहीं करता....


एक मित्र का फेस बुक पर स्टेटस अपडेट:
यात्रा पर जाने का कार्यक्रम रद्द..
कल दिन में तेज दर्द के कारण इन्जेक्शन लगवाना पडा था।
आज अल्ट्रा साउन्ड  कराया तो दोनों गुर्दों में पत्थरी निकली।
दाये में ६ से ७ एमएम और बायें में ९ से १० एमएम की दो पत्थरी है।
किसी भाई के पास सटीक इलाज हो या ठिकाना पता हो तो अवश्य बताये।
सरकारी डाक्टर ने नीरी व सिसटोन बतायी है।
-छः पंक्तियों में सारा निचोड़ बता कर सलाह मांगी गई है.....वो भी सलाहकारों के ऐसे देश में जो पान की दुकान में खड़ा होकर सचिन को वर्ल्ड कप में कैसे शॉट मारना चाहिये था की सलाह देने में नहीं हिचकिचाता भले खुद आज तक मोहल्ले की टीम से भी न खेले हों. वो तो हिलेरी तक को जितवा देते अगर उनकी सलाह मान लेती. ट्रम्प कहीं लग्गे न लगता. अभी चुप हैं वो ...काहे कि उनके मूँह में पान भरा है...११ मार्च को थूकने के बाद बोलेंगे कि देखा न!! कैसे यूपी हार गये...और करो मन की...न सुनो हमारी..
कई बार इन सलाहकारों से पूछा कि अगर इत्ता ही जानते हो तो खुद काहे नहीं चले गये खेलने...इत्ती सी बात पर बिफर पड़े...सीए से लेकर आईएएस तक बने लोगों को पढ़ाने वाले मास्साब कोई सीए या आईएएस होते हैं क्या? सबका अपना अपना फील्ड है...और आप बात करते हैं!!
खैर पूछा गया तो फेसबुक पर सलाह आने का दौर शुरु हुआ...
शहद से लेकर साँप के जहर तक और गरम पानी के हल्के हल्के घूँट से लेकर एक बोतल बीयर सुबह और एक बोतल बीयर शाम को पीने तक की सलाह दी गई..हर सलाह के साथ दावा १००% शार्तिया इलाज का...दिल्ली वाले डॉ अरोरा वाला..मिले शादी के पहले या शादी के बाद...
एक मित्र आयुर्वेदिक दवा मय फोटो बता गये कि हमने यही ली थी..पक्का ठीक हो जाओगे तो दूसरे होम्योपैथी बता कर निकल लिये.
एक ने बताया कि उनके गुरु जी एक पुड़िया देते हैं उससे तीन दिन में मात्र ३००० रुपये में आराम आ जायेगा तो दूसरे ने ऐसा नुस्खा बताया कि एक किलो नींबू में एक मुट्ठी कोढी पंसारी के यहाँ से लाकर धोकर मिला दो..और १५ दिन के लिए कहीं ऊँची अटारी पर धर दो ताकी हिले न..१५ दिन में कोढी पूरी घुल जायेगी तब सुबह सुबह आधा कप पी लो..फिर एक घंटे कुछ न खायें..पथरी गल कर निकल जायेगी...भाई मेरे..जब आधा कप ही पीना था तो एक किलो नींबू का रस काहे निकलवाये? और १५ दिन? तब तक तो इत्ती बड़ी बड़ी पथरी निकलने के पहले दर्द प्राण ही निकाल लेगा...
एक ने कुलथी की दाल और उसे बनाने की विस्तृत विधि बताते हुए कहा कि अगले दिन ही पथरी बाहर हो जायेगी तो दूसरे ने शंका जाहिर की कि हो सकता है पथरी हो ही न...बस, गैस का दर्द हो..अजवाईन में काला नमक मिला कर फाँक कर देखिये...शायद आराम लग जाये..कई बार डॉक्टर कमाई के चक्कर में झूठ रिपोर्ट दे देते हैं. हमारे एक दोस्त का ऑपरेशन भी कर डाला था जबकि उसको पथरी थी ही नहीं...अब इसका क्या प्रमाण कि उसको पथरी थी ही नहीं..पर उनका कहना है कि उस डॉक्टर की लैब में जो चाय देने जाता था ..उसने बताया था कि ये डॉक्टर ऐसा ही करता है.
एक ने डांटा कि हम कब से आपसे कह रहे थे कि सेहत का ख्याल रखिये..लेव...अब भुगतो..सुनना तो है ही नहीं..है न!! दूसरे ने कहा कि इस बार तो जैसे तैसे पथरी निकल जाये बस यही मनाईये..हम भी आपके लिए प्रार्थना करेंगे..मगर आगे से बैंगन, कच्ची प्याज और टमाटर बिल्कुल बंद...
एक ने अपने मित्र का खर्च बता कर ही इनको निढाल कर दिया कि उसने लेज़र से निकलवाये थे..रुपये ३००० प्रति एमएम के हिसाब से डॉक्टर ने लिए थे मानो पथरी निकाल नहीं रहा हो मार्बल लगा रहा हो ..फिर इनके तो १८ एमएम निकलना है...पल्स अस्पताल का खर्च...लाख से कम तो क्या बैठेगा..सोच कर ही पथरी तो क्या अंतड़ी ही बाहर निकल जाये...
एक मित्र ने बाला जी के मंदिर जाने की सलाह दी तो दूसरे ने लोटस टेंपल बेहतर बताया....१०१ रुपये का प्रसाद काम न करेगा अतः १००१ की सलाह दी गई क्यूँकि पथरी का साईज बड़ा है...प्रभु तो सब जानते हैं..
एक बाबा बंगाली का पता दे गये कि वो तीन दिन झाड़ देंगे तो पथरी तो क्या पूरी पहाड़ तोड़कर बहा देंगे तो एक ने झुरमुट वाले अधोरी बाबा से मिलने को कहा जो नीम की पत्ती से ऑपरेशन करते हैं...
एक घर लाकर भभुत दे गये कि इसे लगा लो..तो दूसरे स्वस्थ जीवन का सूत्र...बाबा रामदेव से किसी की लिखी किताब थमा गये..
अंत में सबसे संतोषी जीव आये और बोल गये कि गुगल करके देखिये ..शर्तिया कोई न कोई इलाज मिल जायेगा..उन्होंने अपना डाटा प्लान खर्च करना भी उचित न समझा सलाह देने हेतु..
हद ये रही कि किसी ने भी यह नहीं कहा कि जब डॉक्टर ने अल्ट्रा साउन्ड करके नीरी व सिसटोन बताई है, तो उसे ट्राई करके तो देखो..उस डॉक्टर का अनुभव और पढ़ाई दोनों इसी हेतु है...एक बार आजमाओ तो..
वही हाल आजकल नई बहुओं और बेटों का है...बच्चा पैदा होते ही माँ बाप को समझाते हैं कि गुगल ने बताया है ..इसका सिर मत थपथपाईये प्लीज,,,इससे दिमाग कमजोर हो जाता है...और अपने ही पाले बच्चों से ऐसा व्यक्तत्व सुनकर माँ बाप को सच में लगने लगता है कि गुगल सच ही कह रहा है..इसका दिमाग भी कमजोर ही हो गया है हमारे इसका सिर बचपन में थपथपाने से..
तब गुगल तो था नहीं..न ही फेसबुक कि पूछ कर देख लेते...
मगर माँ बाप को गुगल से पढ़कर समझाने वाली इस पीढ़ी को कौन समझाये कि गुगल भी हमारे जैसे ही किसी माँ बाप का अनुभव तुमको लाकर पढ़ा रहा है जिसे तुम आकाशवाणी समझ बैठे हो...

-समीर लाल समीर
आज के सुबह सबेरे भोपाल में प्रकाशित:
http://epaper.subahsavere.news/c/17124710
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बुधवार, फ़रवरी 22, 2017

गधों का गधा संसार

इधर भी गधे हैं, उधर भी गधे हैं
जिधर देखता हूं, गधे ही गधे हैं

गधे हँस रहे, आदमी रो रहा है
हिन्दोस्तां में ये क्या हो रहा है

जो खेतों में दीखे वो फसली गधा है
जो माइक पे चीखे वो असली गधा है

इन पंक्तियों के रचयिता ओम प्रकाश आदित्य तो अब रहे नहीं..मगर कविता कालजयी है..


आज की उत्तर प्रदेश में हुई चुनावी बयानबाजी ने इन पंक्तियों की याद ताजा की जब उसमें गधो का जिक्र आया..गधों के बीच भी जब तक गधों का जिक्र न आये तब तक गधा गधा नहीं होता..इन्सान सा नजर आता है..

बताते चलें कि यह गधों का स्वभाव नहीं...इन्सानों का स्वभाव है.

गधों की भी कई नस्लें होती हैं..उनमें से एक नस्ल होती है जिसे जुमेराती कहते हैं...मात्र इस नस्ल को लेकर भगवान और खुदा दोनों एकमत हुए होंगे शायद कभी..और तब दोनों ने मिल कर सिर्फ इस नस्ल को यह वरदान दिया होगा कि वो शोहरत और बेईज्जती के बीच के अंतर को न समझ पायें..जूते और फूल माला सब उनके लिए एक समान हों....

अतः ये वाली सारी नस्ल अपनी मोटी चमड़ी और मोटी बुद्धि के साथ संसद के दोनों सदनों और विधानसभाओं से लेकर अनेकों स्थानों पर विराजमान है..इन्हें इन्सानों से अलग पहचान देने हेतु नेता पुकारा गया है..दिखने में इन्सान सा दिखने का वरदान भी मिल कर ही दिया है भगवान और खुदा ने..इसके बाद भगवान और खुदा फिर कभी न मिले..ऐसा शास्त्र बताते हैं..एक दूसरे को अलविदा कह गये...अतः बाकी के सारे गधे धोबी के साथ साथ घाट घाट घूम रहे हैं...और इन्सान तो हर घट का पानी पिये अपने जुमेराती गधा हो पाने के मातम में डूबा ही है..

बस आज आगह करने को मन किया कि अगर ईश्वर कभी आपको गधा बनाये तो प्रार्थना करना...जुमेराती बनाये..इत्ती च्वाईस तो मिलती ही है जब पुनर्जन्म होता है...पुनर्जन्म में तो हर मजहब भरोसा धरता है..अतः इस वयक्तव्य में सेक्यूलरवाद की महक न आयेगी किसी को.. मगर लोगों को पता नहीं होता...अतः वो बस मायूस हो कर कह देते हैं कि अब गधा बना ही रहे हो तो कोई सा भी बना दो..

याद रखना इस मायूसी का अंजाम...फिर वही धोबी मिलता है...घाट घाट घुमाने को..संसद के सपने न देखना..

इस हेतु यह लिखा कि जान जाओ :)


-समीर लाल ’समीर’
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रविवार, फ़रवरी 19, 2017

जोगी रा सा रा रा रा

आज के जमाने के ७ वीं कक्षा के बच्चे की कॉपी में होली पर निबंध पढ़ने का मौका लगा.

कुछ अंश:

होली के दिन स्कूल की छुट्टी होती है. इस दिन हम मम्मी, पापा और उनके खूब सारे दोस्तों के साथ मिल कर पिकनिक पर जाते है. सब एक दूसरे से गले मिलते हैं और हैप्पी होली बोलते हैं. बच्चे दिन भर खूब खेलते हैं. पापा मम्मी और उनके दोस्त बीयर पीते है. केटरर खूब सारा खाना बनता है. डी जे वाला गाना बजाता है. सब लोग नाचते हैं. देर शाम को सब थक कर घर वापस आ कर सो जाते हैं...

ऐसा होली का बदला स्वरुप देखकर लगता है आने वाले दस पंन्द्रह सालों में गुजिया, सलोनी, टेसू के रंग, पिचकारी, अबीर गुलाल, काली स्याही, सिल्वर कलर आदि तो होली के नाम का साथ पूरी तरह से छोड़ देंगे. गुजिया, सलोनी की जगह बरफी, काजू कतली ने ले ली, भांग की जगह बीयर, रम, व्हिस्की ने ले ली और घर में पकते पकवानों की जगह केटरर की केटरिंग ने ले ली और जोगी रा सा रा रा के बदले डीजे गाना बजाने लगा और मोहल्ले सड़को पर नाचते गाते घूमते रंगों में सारोबार टोलियों की जगह पिकनिक और पिकनिक पर डीजे की धुन पर थिरकते लोगों ने ले ली है.

अब ये सब फिल्मों और टीवी के लिए बनते फिल्मी कार्यक्रमों में होली में दिख जाता है और एक एलिट वर्ग उसे ही घर में बैठ कर टीवी पर देखकर होली मना लेता है.

जोगिया को गुम हुए तो यूं भी एक अरसा बीता. यदा कदा व्यंग्य वाणों के तौर पर इसका इस्तेमाल होते दिख जाता है बस्स!!

उसी को याद करते जोगिया सी कुछ व्यंग्यात्मक कोशिश:

बाथरुम में झाँक के बोले अपनी ये सरकार
रेनकोट में नल के नीचे, बैठे हैं  सरदार
जोगी रा सा रा रा रा, जोगी रा सा रा रा रा

खोद रहे थे चला कुदाली, इत्ता बड़ा पहाड़
निकली चुहिया नाच के बोले, पकड़ा गई मक्कार.....
जोगी रा सा रा रा रा, जोगी रा सा रा रा रा

वेलेन्टाईन की शाम को उनको, चढ़ा प्रेम खुमार
रात गुजारी साथ साथ में, सुबह हुई तकरार..
जोगी रा सा रा रा रा, जोगी रा सा रा रा रा

दूध पिये भगवन की मूरत, भूखे मरते लोग
क्या अंधों का देश है, या अंधे भक्तो का लोक...
जोगी रा सा रा रा रा, जोगी रा सा रा रा रा

सच को झूठ बताने वाले, जीत रहे हैं जंग
सीएनएन को रोज झिड़कते, राष्ट्रपति जी ट्रम्प..
जोगी रा सा रा रा रा, जोगी रा सा रा रा रा

-समीर लाल ’समीर’

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बुधवार, फ़रवरी 15, 2017

मुख्य मंत्री का मुख

तामिलनाडू एक ऐसा राज्य है, जहाँ चुनाव नहीं हुए मगर मुख्यमंत्री स्वर्गवासी हो गईं इस हेतु मुख्यमंत्री पद संकट काल से गुजर रहा है.. राज्यपाल लाइम लाईट में हैं..सब दावेदार उनसे मिल जुल रहे हैं और वो अपना फैसला सुरक्षित रखे हैं. ऐसे कम ही मौके होते है जब लोग राज्यपाल निवास की तरफ टकटकी लगायें बैठे हों अतः जितना खींच सके की तर्ज पर खीचन का माहौल बना हुआ है.
टकटकी लगाये बैठी मुख्यमंत्री की मुख्य दावेदार एकाएक यात्रा पर निकल गईं जेल की...वो भी चार साल के लिए और उनकी दावेदारी अब दस वर्षों के लिए स्थगित रहेगी न्यायालीन फैसले के चलते. मगर दस साल का क्या है? सत्ता की चाह ऐसी शै है कि दशक मिनटों में गुजर जाते हैं? और उम्र भी कोई खास नहीं..६१ बरस..राजनीति में तो यह उम्र अभी सीख रहा हूँ...मेरा साथ दीजिये भाईयों बहनों वाली होती है...जब यात्रा से वापस आकर सन्यास पूर्ण करेंगी, ७१ वर्षीय युवा नेत्री के हाथ फिर प्रदेश की कमान होगी. ये मैं नहीं कह रहा...मेरी राजनीतिक विषयों पर विशेषज्ञ कलम कह रही है...हम तो बस निमित्त मात्र हैं...
अम्मा का स्वर्गवास विचलित करने वाला निकला...खास कर उत्तर भारतियों के लिए...उनके आशीर्वाद प्राप्त नव मुख्यमंत्री के नाम का उच्चारण करना अभी सीख ही रहे थे कि शशीकला के जेल जाने से उछले एक नये नाम को सीखने की जुगत में लगे हैं. अब दर रोज नये नये नाम बोलना सीखें कि उत्तर भारत में हो रहे चुनाव की सोचें.
सोचने की बात से एक सोच उभरी कि मृत्यु से बड़ा पाप विनाशक कोई भी नहीं. गंगा में नहा कर भी पापी पापॊ कहला सकता है मगर जीते जी भले ही जनता यान्यायालय आदि आपको पापी, दुष्ट, अपराधी घोषित कर दें किन्तु मृत्यु के भुजपाश में जाते ही आप स्वर्गवासी हो जाते हैं. आज तक नरकवासी होते किसी को नहीं सुना...एकदम खाली खाली सी..सूनसान जगह होगी..
दक्षिण से दिमाग हटे तो चार और राज्य ऐसे हैं जहाँ माहौल गरम है. मगर वहाँ मुख्यमंत्री पद का सवाल अभी उलझा नहीं है अतः राज्यपाल अभी लाइम लाईट में नहीं हैं.
अधिकतर जनता वोट डाल चुकी है या डाल रही है...जाने कौन सत्तासीन होगा और जाने कौन मुख्य मंत्री मगर नूरा कुश्ति के नतीजे के लिए इन्तजार लगा है और अनुमानों का बाजार गर्म है.
अनुमान का क्या है वो तो हम भारतवासियों का शगल है..और अनुमान भी ताल ठोक कर लगाते हैं कि बॉस, गलत निकल जाये तो आधी मूँछ मुड़ा कर शहर घूमा देना.
पनवाड़ी की दुकान पर चर्चा चल रही है कि हमसे पूछो हम बताते हैं..नोट करो.. पंजाब में झाडू आ रही है...गोवा में झाडू आई ही समझो ..थोड़ा ऊँच नीच हुई तो कांग्रेस है ही...बाहर से टेका लगा देगी तो भी चल जायेगा....उत्तराखण्ड तो सब जानते ही हैं कि क्या होना है..(ये स्टेटमेन्ट इसलिए कि कोई नहीं जानता है) ..और फिर यूपी..उसके लिए क्या कहें...
अब बताओ..इसमें पंजाब छोड़ क्या नोट करें?
चैलेन्जर सामने से बोल रहा है कि ये जो यूपी में कमल है भैय्या...कीचड़ मे खिलता है..सोच लेव!! साईकिल से जाकर हाथ से तोड़ोगे तो साईकिल भी और पंजा भी, दोनों कीचड़ में सन जायेगा...खुद से टूटा तो वहीं कीचड़ में गिर कर रह जायेगा...एक्के तरीका है कि हाथी जाये..और अपनी सूँड़ से तोड़कर लाये तो ही सुरक्षित आ सकता है...हाथी का कीचड़ में सना पाँव तो यूँ भी वेदों में पवित्र और दिव्य माना गया है...
चैलेन्जर ने दर्शन शास्त्र की बुद्धिजीवी टाईप बात कर दी है...पान की दुकान से भीड़ छट चुकी है...
सड़क पर हर तरफ पान की पीक के निशान नजर आ रहे हैं...

-समीर लाल ’समीर’
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