शनिवार, जून 17, 2017

भीतर कुछ तो गड़बड़ है जिसकी परदादारी है..


पहली ही मुलाकात में वे बड़े गर्व के साथ बता रहे हैं कि खेल ही उनका जीवन है और किरकिट में उनकी जान बसती है. रणजी से लेकर आई पी एल और वर्ल्ड चैम्पियनशीप सब खेलते हैं. उनकी नजर में कोई भी मैच छोटा बड़ा नहीं होता. वो २०-२०, डे नाईट, ५० ओवर, वन डे, ५ डे टेस्ट किरकिट को बस खेल मानते हैं. फॉर्मेट अलग हैं तो क्या, किरकिट तो किरकिट ही है न..वे बता रहे हैं. वे क्रिकेट को किरकिट कुछ इतने प्यार से कहते कि लगता कि दुलार में अपने प्यारे दुलारे बच्चे को पुकार रहे हैं.
हम भी बड़ा इम्प्रेस हुए कि बंदा, इतना बड़ा खिलाड़ी है और इतना डाउन टू अर्थ. ऐसे में संपर्क बढ़ाने की जिज्ञासा का जाग जाना स्वभाविक सी बात है. हमने उन्हें तुरंत ही सुझाया कि भाई जी, कभी फुरसत हो तो बतायें..हमारी मेहमान नवाजी स्वीकारें. घर आईये डिनर पर.. नम्बर का आदान प्रदान हो गया.
दो हफ्ते पहले उनका फोन आया और कहने लगे कि यार, आपको फोन न कर पाया. जरा ये चैम्पियन ट्राफी निपटा लूँ फिर मिलता हूँ.  हम तो नतमस्तक हो लिए कि बंदा चैम्पियन ट्राफी के बीच से समय निकाल कर फोन लगा रहा है. ऐसे होते हैं सच्चे मेहनती और जमीन से जुड़े लोग. दोस्ती निभाना जानते हैं. वरना तो आजकल के बड़े लोग, हमीं उनको चुनें, हमीं उनको बड़ा बनायें और नेता मंत्री बनते ही हमारे बीच ज़ेड स्क्यूरिटी लिए आयें.. हमीं से सौ गज की दूरी बनाकर.
पिछले हफ्ते फिर फोन आया कि पाकिस्तान से मैच है..आप भी आईये खेलने, मजा आयेगा. हम तो एकदम शरमा से गये..हमने कहा कि भाई साहब, आप तो मजाक कर रहे हैं. हम और क्रिकेट...बचपन से लेकर आजतक बल्ला गेंद सिर्फ इसलिए उठाया है कि भारतीय होने का धर्म निभाना है वरना तो इस खेल से क्या हमें तो किसी भी खेल से बचपन से कोई साबका नहीं रहा..बड़े होकर भी जरा बहुत खेले राजनीति का खेला ..वो भी बहुत रास न आ पाया..न तो चमड़ी इतनी मोटी दी प्रभु नें कि राजनीति कर पायें और न ही काया इतनी पतली कि क्रिकेट खेल पायें.
वे हँसने लगे..कहने लगे कि आप आईये तो ..गाड़ी भिजवा देंगे आपको लेने. शहर के सभी गणमान्य आवेंगे खेलने..सबसे परिचय भी हो जायेगा..चलिये आप मत खेलियेगा मगर देखने और एन्जॉय करने से कैसा परहेज...कुछ ड्रिंक, डिनर ही हो जायेगा साथ साथ..अब इससे भला कैसे इंकार करते कि भाई साहब का खेल भी देख लेंगे और साथ में वी वी आई पी महफिल में शामिल भी हो लेंगे.
गाड़ी आई लेने और पहुँचे हम ..तो माहौल देख कर दंग रह गये..शहर के सभी नामी गिरामी जमा हुए हैं..सामने बड़े स्क्रिन पर मैच चालू है..शराब और खाने की महफिल जमीं है,..वो नेता जो अपनी प्रजा के बीच जेड़ सिक्यूरिटी लिए आते हैं, यहाँ सबके बीच बिना किसी परवाह के गिलास पर गिलास चढ़ा रहे हैं और नेता से अधिकारी से व्यापारी तक सब व्यस्त हैं सट्टा खेलने में..सट्टा खिलाने वाले फोन पर बुकिंग लिए जा रहे हैं ..१ के ५ का भाव..पूरे मैच का..फेन्सी किरकिट खेलने वाले हर बाल और ओवर पर सट्टा लगा रहे हैं..करोड़ों के वारे न्यारे हो रहे हैं..भाई साहब के घर के बाहर पुलिस और सिक्यूरिटी का सख्त पहरा वैसे ही है जैसे नेता के आसपास जेड सिक्यूरिटी का होता है. जाने किसको संरक्षण मिल रहा है ..सट्टा खिलाने वालों का या खेलने वालों का..मगर जब दोनों की हमजोली इतनी उजागर हो तो दोनों को ही मिल रहा होगा.. 
मानों ये पहरा वो पिंजरा हो जिसमें शेर बंद है कि झप्पटा मार कर आपको नुकसान न पहुँचा दे और नेता समझ रहा है कि उसे जनता से सुरक्षित किया जा रहा है..
यूँ भी पुलिस और सिक्यूरिटी का पहरा अक्सर ही यह गवाही देता है कि भीतर कुछ तो गड़बड़ है जिसकी परदादारी है..

समीर लाल ’समीर’

भोपाल के दैनिक सुबह सवेरे में तारीख १८ जून, २०१७ को प्रकाशित 
http://epaper.subahsavere.news/c/19883575


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7 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (20-06-2017) को
"पिता जैसा कोई नहीं" (चर्चा अंक-2647)
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

subuhi nigar ने कहा…

>> .बचपन से लेकर आजतक बल्ला गेंद सिर्फ इसलिए उठाया है कि भारतीय होने का धर्म निभाना है

:-D :-D

Sanju ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना..... आभार
मेरे ब्लॉग की नई रचना पर आपके विचारों का इन्तजार।

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

खेल ही तो रहे हैं -परेशानी काहे की ?

Jyoti khare ने कहा…

वाह
व्यंग भी और गहरी बात भी
बहुत खूब

Satish Saxena ने कहा…

चोर, बेईमान खुद को, राष्ट्रवादी मानते,
आजकल ईमानदारी का वीराना देश में !

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

Javab nahi aapka bahut kamal ka likha hai, bahut bahut badhai.