शनिवार, मार्च 11, 2017

होली का हुड़दंग

होली हो और भांग न पी जाये तो फिर वो होली कैसी?
भांग पियें और बकैती न करें तो फिर वो भांग कैसी?
मित्र बाद में बकैती का मजाक न उडायें तो वो मित्रता कैसी?

मजाक उड़ाने के दौरान पता चली अपनी कुछ भंगेड़िया बकैतियों की बानगी:
दृश्य १
बस अब बहुत हुआ. इस साल तो पहले से भी इतना अच्छा लिखना है कि साहित्य सम्मान खुद आकर हमारे गले लटक कर धन्य हो जाये. आज के दिन हम बस तुम लोगों को बता रहे हैं, नोट कर लो..कि इस साल का साहित्य सम्मान हमको मिलकर ही रहेगा. कलम को पिचकारी मान कर शब्दों के ऐसे रंग उकेरेंगे कि हमारे रंग बिरंगे साहित्यिक व्यंग्यों के रंग में पूरा साहित्य जगत रंग जाये. लोग कह उठेंगे कि यह हीरा अब तक कहाँ था?
मुन्ना मित्र मंडली में बैठा आँख मलते हुए लल्लु से समझने की कोशिश कर रहा हैं कि क्या इसका मतलब यह हुआ कि आज तक भईया अच्छा लिखते आये थे, जो कह रहे हैं कि पहले से भी इतना अच्छा लिखना है? दूसरा हमारे रंग बिरंगे साहित्यिक व्यंग्यों के रंग सुन कर पहली बार जाना कि भईया जो लिखते हैं उसे व्यंग्य कहते हैं.. बाकिया तो समझ आया कि भगवान का वरदान श्याम वर्ण के रुप में जो भईया जी ने पाया है तो कोयला ही तो आगे चल कर हीरा बनता है..जाहिर है लोग आश्चर्य करेंगे ही कि अब तक कहाँ था? अरे साहेब, भईया जी यहीं थे मगर कोयला थे तो आप ध्यान नहीं दिये इन पर.बस्स!!
लल्लु मुन्ना को हड़का रहा है, चुप कर गुड़बक!! तुम नहीं समझोगे ये साहित्यिक बातें.
मुन्ना मूँह लटकाये बैठे हैं.
दृष्य २
हम अगले टॉपिक को सोचते हुए अगला भांग का गिलास चढ़ा रहे हैं.
सारे मित्र भांग का गिलास बनाने और निपटाने में जुटे हैं.
लल्लु मुन्ना को गले लगाये उसे हड़काने के लिए ग्लानिमग्न हुए रो रहे हैं
मुन्ना रोते हुए लल्लु से कह रहे हैं कि आप मेरे भाई हो आप को अधिकार है कि आप मुझे हड़कायें और पीटें भी.
दृश्य ३
हम घोषणा कर रहे हैं कि अब से फ्री में लिखना बंद. किसी को हमारा लिखा छापना है तो पैसे दो, वरना हम नहीं लिखेंगे. आज से ही और अभी से ही इस बात का संज्ञान लिया जाये.
मुन्ना लल्लु से पूछ रहे हैं कि भईया अब से बिल्कुले नहीं लिखेंगे क्या?
लल्लु मुन्ना को समझा रहे हैं कि हिन्दी में लिख कर ऐसे सपने देख रहे हैं इसका मतलब समझते हो?
लल्लु कहे कि नहीं समझे, इसका क्या मतलब है?
मुन्ना बता रहे हैं कि भईया को भाँग चढ़ गई है...और कोई खास बात नहीं है!!
दृश्य ४
जो मित्र नशे में नहीं है वो प्रसन्न हैं कि अब से ये नहीं लिखेंगे.
जो मित्र नशे में हैं वो रो रहे हैं कि अब से ये नहीं लिखेंगे.
खैर!! देश भी तो ऐसे ही चलता है..यही जीवन की धारा है..मुद्दा एक ही होता है जिसे लिए कोई रो रहा होता है तो कोई प्रसन्न हो रहा होता है!!
होली मुबारक!!
भांग संभल कर पीने के वैधानिक चेतावनी का ध्यान रखें!!
-समीर लाल ’समीर’

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3 टिप्‍पणियां:

vijay kumar sappatti ने कहा…

सही है दादा ! झकास !

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर ने कहा…

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ’होली के रंगों में सराबोर ब्लॉग बुलेटिन’ में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

भाँग के बहाने शिवशंभु के चिट्ठे शीर्षक से अंग्रेजी शासन पर तीखे व्यंग्य करती एक शृंखला भी निकली थी - भाँग तो शंकर को भी प्रिय है.