सोमवार, मई 25, 2015

आखिर ये अच्छे दिन हैं क्या? : फील गुड फेक्टर

अच्छे दिन आने वाले है! अच्छे दिन आने वाले हैं!

वो रोज रोज सुनता तो था मगर दिन था कि वैसे ही निकलता जैसे पहले निकलता था. कई बार तो वो सुबह जल्दी जाग जाता कि कहीं अच्छे दिन आकर लौट न जायें और उसकी मुलाकात ही न हो पाये. मगर अच्छे दिन का कुछ अता पता न चला और देखते सुनते इन्तजार करते पूरा बरस निकल गया.

achchedin

थक कर उसने सोचा कि आज स्कूल में मास्साब से पूछेगा. क्या पता शायद अच्छे दिन आये हों और वो पहचान ही न पाया हो. अच्छा परखने का भी तो कोई न कोई गुर तो होता ही होगा.

मास्साब! ये अच्छा क्या होता है? ८ वीं कक्षा को वो नादान बालक अपने मास्साब से पूछ रहा है.

बेटा!! अच्छा वो होता है जो अच्छा होता है, समझे? मास्साब समझा रहे हैं.

लेकिन मास्साब, वही तो मैं भी पूछ रहा हूँ कि अच्छा होता क्या है?

मास्साब तो मास्साब!! जैसी कि मास्साब लोगों की आदत होती है वो तुरंत ही नाराज हो गये कि एक तो पढ़ाई लिखाई में तुम्हारा मन नहीं लगता उस पर से बहस करते हो. छोटी छोटी बात समझ नहीं आती. चलो, इसको ऐसे समझो कि अच्छा वो होता है जो बुरा नहीं होता है.

याने कि जो बुरा नहीं है वो अच्छा होता है. तो मास्साब, बुरा क्या होता है? बालक की बाल सुलभ जिज्ञासा तो मानो मँहगाई हो गई हो कि हर हाल में बढ़ती ही जा रही थी.

और मास्साब का गुस्सा अब और उबाल पर था मगर एक मर्यादा और एक कर्तव्य कि बच्चों की जिज्ञासा का निराकरण का जिम्मा उन पर है, उन्हें अपने असली रुप में आने से रोके हुए था. उन्हें किसी ज्ञानी का ब्रह्म वाक्य भी याद आ गया कि अगर आप किसी को कुछ समझा नहीं पा रहे हैं तो उसे कन्फ्यूज कर दिजिये. बस इसी ज्ञान के तिनके को थामे उन्होंने फिर ज्ञान वितरण के अथाह सागर में छलाँग मारी और लगे तैरने..

देखो बालक, इतनी सरल सी बात तुम्हें समझ में नहीं आ रही है..इसे ऐसे समझो कि अच्छा वो होता है जो बुरा नहीं होता और बुरा वो होता है जो अच्छा नहीं होता. समझे?

बालक मुँह बाये एक आम आदमी की मुद्रा में, बिना पलक झपकाये मास्साब को देख रहा था और मास्साब गुस्से के साथ साथ उसकी मन्द बुद्दि पर तरस खाते हुए आगे बोले..

वैसे एक बात तुमको बताऊँ कि अगर कुछ अच्छा है न..तो बताना नहीं पड़ता ..वो खुद ही समझ में आ जाता है और अगर बुरा है तो भी उसकी बुराई खुद ही उजागर हो जाती है... उदाहरण के लिए जैसे सोचो.. मिठाई...वो अच्छी होती है इसमें बताना कैसा और गोबर, वो बुरा होता है..खुद ही समझ में आ जाता है न!! अब तो तुमको पक्का समझ आ गया होगा..

मास्साब अपने समझाने की कला पर मुग्द्ध बिहारी की नायिका की आत्म मुग्द्धता के मोड में चले गये मुस्कराते हुए.

लेकिन बालक तो मानो डॉलर की कीमत हुआ हो..हाथ आने को तैयार ही नहीं..

मास्साब!! मेरे दादा जी को शुगर की बीमारी है और अम्मा कहती है कि उनके लिए मिठाई बुरी है और फिर गोबर से तो हमारा आंगन रोज लीपा जाता है..दादी कहती हैं इससे स्वच्छता का वास होता है और स्वास्थय के लिए बहुत लाभकारी होता है. हमारा परिवार तो इसे स्वच्छता अभियान का हिस्सा मानता है.

मास्साब की झुंझलाहट और गुस्से की लगाम अब लगभग छूटने की कागार पर थी मगर फिर भी..एक कोशिश और करते हुए वो बोले..देखो बच्चे, सब मौके मौके की बात है, कभी वो ही बात किसी के लिए अच्छी होती है तो वो ही बात किसी और के लिए बुरी हो जाती है..अगर तुम सब कुछ बुरा बुरा महसूस करने की ठान लो जैसा तुम दिल्ली प्रदेश की सरकार की तकरार में देख रहे हो..तो अच्छा भी बुरा ही लगेगा और इसके इतर अगर अच्छा अच्छा सा महसूस करने की आदत डाल लो तो बुराई में भी अच्छाई का वास महसूस करोगे..

बालक के मुँह में जुबान न जाने कैसे फिसल गई कि ’याने अच्छा बुरा अगर हमारे महसूस करने की कला का ही नाम है तो कोई सरकार क्या अच्छा लाने की बात करती है..और पहले के किस बुरे को बदलने की बात करती है? और...’

बालक अभी अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाया था कि मास्साब के सब्र का बाँध टूट पड़ा और उसके साथ ही वो अपनी बेंत लिए टूट पड़े उस बालक पर...और कुटाई के साथ साथ एक ही प्रश्न बार बार...बोल, समझ आया कि नहीं कि और समझाऊँ?

बालक भौचक्का सा..पूर्णतः भ्रमित...बस कुटाई से बचने के लिए..कहता रहा कि मास्साब!! समझ आ गया!

तभी दूर कहीं कलेक्टरेट के मैदान से लाऊड स्पीकर पर किसी बहुत बड़े नेता की आवाज सुनाई दी:

’मितरों, एक बरस में अच्छे दिन आ गये हैं, है कि नहीं?’

समवेद स्वर गूँजे ..आ गये!!

मितरों!! बुरे दिन चले गये कि नहीं?

समवेद स्वर गूँजे ..चले गये!!

मितरों!! जो बुरा काम करते हैं मैने उनके लिए अच्छे दिन की गारंटी नहीं दी थी कभी!!

और इधर ये बालक अपनी बेंत से हुई कुटाई के दर्द को सहलाते हुए सोच रहा था कि शायद उसने मास्साब से पूछ कर बुरा काम कर दिया इसलिए उसकी अच्छे दिनों से मुलाकात नहीं हो पा रही है..

आगे से ध्यान रखेगा और अच्छा अच्छा महसूसस करेगा..

शायद उसमें ही फील गुड फेक्टर मिसिंग है!!

-समीर लाल ’समीर’

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21 टिप्‍पणियां:

सूर्यकान्त गुप्ता ने कहा…

क्या करारा व्यंग्य है...
समझ किसी मे है नही, चलें भेड़ की चाल.
कुर्सी खातिर फेंकते, बुन सपनों का जाल...

Devi Nangrani ने कहा…

Bura kaam Karne se bachav ke saadhan garantee ke saath mil jay to.....

Vaanbhatt ने कहा…

ताज़ा खबर...अभी कल ही पता चला...अच्छे दिन आ चुके हैं...हम सभी को मुबारक़...

Vaanbhatt ने कहा…

ताज़ा खबर...अभी कल ही पता चला...अच्छे दिन आ चुके हैं...हम सभी को मुबारक़...

निर्मला कपिला ने कहा…

अगर आप किसी को कुछ समझा नहीं पा रहे हैं तो उसे कन्फ्यूज कर दिजिये1 वाह समीरर्जी लाजवाब सटीक व्यंग 1

निर्मला कपिला ने कहा…

अगर आप किसी को कुछ समझा नहीं पा रहे हैं तो उसे कन्फ्यूज कर दिजिये1 वाह क्या बात कही समीर जी1 लाजवाब व्यंग 1

M VERMA ने कहा…

अच्छे दिन आने वाले है! ? ?

shipraak ने कहा…

साधुवाद....जबरदस्त व्यंग्य है.

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

अब बस दिमाग में एक ही फितूर है क्या अच्छे दिन अब किसी दिन कभी जायेंगे भी ? या जो जम गया सो जम गया ?

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

सामयिक पोस्ट ... जाने कब आयेंगे :)

PRAN SHARMA ने कहा…

Vyangya Ho to Aesa Ho ! Padh Kar Aanandit Ho Gya Hun .

gyanipadit ने कहा…

हर एक की नजर से अच्छे दिन अलग अलग होते है.Very Good Collection ......
THANKS

मन के - मनके ने कहा…

बहुत सुंदर और संपूर्ण कटाक्ष.
अब तो हमारा भी मन करता है-
कि दुबारा स्कूल में भर्ती हो जांय—
और अपनी जिग्यासा का समाधान करवाएं???
वाकई अब तो शक होने लगा है—अपनी ही समझ पर.
आंख खोलने के लिये आभार.

Sadhana Vaid ने कहा…

ज़बरदस्त !

vandana gupta ने कहा…

लाजवाब व्यंग्य

dj ने कहा…

जबरदस्त शानदार उम्दा बहुत बढ़िया व्यंग्य जितनी तारीफ़ की जाये आपके लेखन की उतना कम है

राकेश खंडेलवाल ने कहा…

प्यास सुलगती, घिरा अंधेरा
बस कुछ पल हैं इनका डेरा
सावन यहाँ अभी घिरता है
और दीप जलने वाले हैं
नगर ढिंढोरा पीट, शाम को तानसेन गाने वाले हैं
रे मन धीरज रख ले कुछ पल, अच्छे दिन आने वाले हैं

बँधी महाजन की बहियों में उलझी हुई जन्म कुंडलियाँ
होंगी मुक्त, व्यूह को इनके अभिमन्यु आकर तोड़ेगा
पनघट पर मिट्टी पीतल के कलशों में जो खिंची दरारें
समदर्शी धारा का रेला, आज इन्हें फ़िर से जोड़ेगा

सूनी एकाकी गलियों में
विकच गंधहीना कलियों में
भरने गन्ध, चूमने पग से
होड़ मचेगी अब अलियों में
बीत चुका वनवास, शीघ्र ही राम अवध आने वाले हैं
रे मन धीरज रख ले कुछ पल, अच्छे दिन आने वाले हैं

फिर से होंगी पूज्य नारियाँ,रमें देवता आकर भू पर
लोलुपता के बाँध नहीं फिर तोड़ेगा कोई दुर्योधन
एकलव्य के दायें कर का नहीं अँगूठा पुन: कटेगा
राजा और प्रजा में होगा सबन्धों का मृदु संयोजन

लगा जागने सोया गुरुकुल
दिखते हैं शुभ सारे संकुल
मन के आंगन से बिछुड़ेगा
संतापों का पूरा ही कुल
फूल गुलाबों के जीवन की गलियाँ महकाने वाले हैं
रे मन धीरज रख ले कुछ पल, अच्छे दिन आने वाले हैं

अर्थहीन हो चुके शब्द ये, आश्वासन में ढलते ढलते
बदल गई पीढ़ी इक पूरी, इन सपनों के फ़ीकेपन में
सुखद कोई अनुभूति आज तक द्वारे पर आकर न ठहरी
भटका किया निरंतर जन गण, जयघोषों के सूने पन में

आ कोई परिवर्तन छू रे
बरसों में बदले हैं घूरे
यहाँ फूल की क्यारी में भी
उगते आये सिर्फ़ धतूरे
हमें पता हैं यह सब नारे, मन को बहकाने वाले हैं
राहें बन्द हो चुकी सारी अच्छे दिन आने वाले हैं ?

--
राकेश खंडेलवाल

दिगम्बर नासवा ने कहा…

लेखनी का कमाल ब्लॉग पर वापस आने लगा है आपका समीर भाई ... नाजा आ गया इस धार में ...

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

lajavab!

कहकशां खान ने कहा…

बहुत ही अच्‍छी रचना प्रस्‍तुत की है आपने।

अनुराग पाठक ने कहा…

सर आप तो हिंदी लेखन के जादूगर हैं| की कमाल लिखते हो सर. सेलूट है सर