बुधवार, अक्तूबर 02, 2013

कुछ वाँ की.. तो कुछ याँ की...

एक नये तरह का प्रयोग किया है...देखें जरा...कैसी गज़ल निकली है:

BORDER

कब परिंदो को पता था, आंगनों में भेद का

एक दाना वाँ चुगा था, एक दाना याँ चुगा...

सरहदों से जा के पूछो, कौन किसका खून है

एक कतरा वाँ गिरा था, एक कतरा याँ गिरा..

राज इतना जान लो, तब हर अँधेरा दूर हो

एक दीपक वाँ जला था, एक दीपक याँ जला

आसमां को कब पता था, कौन मांगे है दुआ

एक तारा वाँ गिरा था, एक तारा याँ गिरा

है जमाना लाख बदला, पर न बदला है ’समीर’

दिल तुम्हारा वाँ छुआ था, दिल तुम्हारा याँ छुआ..

 

-समीर लाल ’समीर’

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40 टिप्‍पणियां:

Madhuresh ने कहा…

वाकई छू गयी रचना!
सच! भावनाओं और संवेदनाओं को भला कौन सी सरहद बाँध पाती है!
सादर
मधुरेश

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

सुंदर ग़ज़ल।

नुक्‍कड़ ने कहा…

जाने कैसे सब कुछ छुंआ छुंआ हो गया
गजल से मानस में धुंआ धुंआ यूं हो गया

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

बहुत बढ़िया..............
प्रयोग सफल रहा...................


सादर
अनु

Satish Saxena ने कहा…

बहुत खूब , प्रखर भाव है ग़ज़ल में ! बधाई

वाणी गीत ने कहा…

आसमाँ को कब पता था , किसने की दुआ !!
वाह !

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

काश इस रचना की शतांश संवेदना नायकों में होती, विश्व महक जाता।

शिव मिश्रा Shive Mishra ने कहा…

बहुत सुंदर

शिव मिश्रा Shive Mishra ने कहा…

बहुत सुंदर

PRAN SHARMA ने कहा…

आपकी इस ग़ज़ल ने मन मोह लिया है। हर शेर में नवीनता है।

आप वाकई प्रयोग कर्मी हैं। अगर मैं यह कहूँ तो कोई

अतिश्योक्ति नहीं है -

है ज़माना लाख बदला पर न बदले तुम `समीर`

दिल हमारा वां छुआ है दिल हमारा यां छुआ

दिगम्बर नासवा ने कहा…

सरहदों से जा के पूछो, कौन किसका खून है
एक कतरा वाँ गिरा था, एक कतरा याँ गिरा...

बहुत लाजवाब प्रयोग है समीर भई ... हर शेर अलग अंदाज़ लिए है ...
खून तो खून ही है ... खून किसी का भी गिरे ... माएं तो दोनों पार की रोती होंगी ...

रेखा श्रीवास्तव ने कहा…

बहुत सुन्दर ग़ज़ल , बस सहज शब्दों में रच डाली। लेकिन मन को छू गयी।

sehba jafri ने कहा…

kamaal!

संजय भास्‍कर ने कहा…

सरहदों से जा के पूछो, कौन किसका खून है
एक कतरा वाँ गिरा था, एक कतरा याँ गिरा...

बहुत लाजवाब

Mansoor ali Hashmi ने कहा…

बहुत खूब समीर साहब।

"कर दिया 'फ़ैलाऊ' को कितना 'सीमित' तुमने 'समीर'
एक मिसरा वाँ जड़ा तो एक मिसरा याँ जड़ा
http://mansooralihashmi.blogspot.in

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

बहुत खूब..सुंदर प्रयोग।

Vaanbhatt ने कहा…

बेहतरीन शैली की ग़ज़ल...प्रयोग बहुत ही निराला लगा...मुबारकां...

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति ने कहा…

bahut sundar .......

Asha Joglekar ने कहा…

बादलों को कब पता था सरहदों की हद कहाँ
एक बादल वां था बरसा एक बरसा है यां ।

वाँ और याँ बहुत सुंदर गज़ल, और नया प्रयोग भी

बेनामी ने कहा…


http://farhorizons.org/wp-content/uploads/2013/06/sitemap.xml

Priyesh Beohar ने कहा…

वाँ साहब वाँ

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

वाह वाह, लाजवाब.

रामराम.

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

कुछ वां की, कुछ याँ की, कुछ याँ -वाँ की :)

Dr ajay yadav ने कहा…

आपकी लेखनी ,का जवाब नही |

बहुत ही लाजवाब ....यह रचना मेरे दिल के बहुत करीब हैं |

Ramakant Singh ने कहा…

है जमाना लाख बदला, पर न बदला है ’समीर’

दिल तुम्हारा वाँ छुआ था, दिल तुम्हारा याँ छुआ..

nihshabd man hua BEHATARIN

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

कल 06/10/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद!

anilpandey ने कहा…

kafi din hua jb mai likha karta tha aur aap hme protsahit kiya karte the,kya aap isliye ab mujh tk nhi pahunch pate ki mai ek purana bloggar ho gya hu .

Ravikant yadav ने कहा…

pls read n follow me i will

Ravikant yadav ने कहा…

good , read and follow me also

मन के - मनके ने कहा…



समीर जी,देरी के लिये क्षमा चाहिती हूं.
देर आये,सबेर आये.
वाह!!! एक दिल यां छुआ,एक दिल वां छुआ--

मन के - मनके ने कहा…



समीर जी,देरी के लिये क्षमा चाहिती हूं.
देर आये,सबेर आये.
वाह!!! एक दिल यां छुआ,एक दिल वां छुआ--

Laxman Bishnoi Lakshya ने कहा…

बहुत ही बेहतरीन गजल। दिल हमारा याँ छुआ दिल हमारा वाँ छुआ

vasudev ने कहा…

बेहद खूबसूरत। लेकिन समीर जी, इस रचना को "गजल" न कहें। गजल की परिभाषा रदीफ़,काफिये और मक्ता-मतला से जुड़ी है। इसे कविता ही कहें।

Bloggy ने कहा…

अतिसुन्दर रचना

http://vidrohibhikshuk.blogspot.co.uk/2007/02/blog-post_26.html

सुप्रेम त्रिवेदी "विद्रोही " ने कहा…

अतिसुन्दर रचना

http://vidrohibhikshuk.blogspot.co.uk/2007/02/blog-post_26.html

Saras ने कहा…

वाह समीरजी बहुत ही प्यारी ग़ज़ल

Madan Mohan Saxena ने कहा…

बहुत ही सुन्दर रचना.बहुत बधाई आपको . कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |

http://madan-saxena.blogspot.in/
http://mmsaxena.blogspot.in/
http://madanmohansaxena.blogspot.in/
http://mmsaxena69.blogspot.in/

Dr.NISHA MAHARANA ने कहा…

touching .....

SKT ने कहा…

वाह आपकी ग़ज़ल का जवाब नहीं। वाँ, याँ का सुंदर प्रयोग....!

हिंदी साहित्य मार्गदर्शन ने कहा…

आसमां को कब पता था, कौन मांगे है दुआ

एक तारा वाँ गिरा था, एक तारा याँ गिरा...

Behatarin lines...