रविवार, जनवरी 20, 2013

आहिस्ता आहिस्ता!!

past

सफ़हा दर सफ़हा

लम्हा दर लम्हा

बरस दर बरस

दर्ज होता रहा

किताब में मेरे दिल की

तुम्हारे मेरे साथ की

यादों का सफर

और मैं

अपने दायित्वों का निर्वहन करता

चलता रहा इस जीवन डगर पर

लादे उस किताब को अपनी पुश्त पर...

कि कभी फुरसत में

मुस्करा लूँगा फिर

पढ़ कर उन यादों को

किश्त दर किश्त

आहिस्ता आहिस्ता!!

-समीर लाल ’समीर’

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51 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

इसी का नाम दिनचर्चा है मित्रवर!

विष्णु बैरागी ने कहा…

सफर उम्‍मीदों भरा और साथ, जगमगाती, राहें रोशन करती यादों का। आराम से ही नहीं, उमंग और उत्‍साह से कटता है सफर।

आज की सुबह में अतिरिक्‍त ताजगी घोल दी इन पंक्तियों ने।

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

वाह समीर भाई वाह आते ही छा गये

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

शब्दों का साथ और सहेजी गयीं यादें ...... मुस्कुराहटें देंगीं ही.....

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार ने कहा…




कभी फुरसत में मुस्करा लूँगा
फिर पढ़ कर उन यादों को
किश्त दर किश्त
आहिस्ता आहिस्ता!!


वाऽह !

क्या बात है समीर जी !




प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

कौन कहता है, ये जीवन दौड़ है,
कौन कहता है, समय की होड़ है,
हम तो रमते थे स्वयं में,
आँख मूँदे तन्द्र मन में,
आपका आना औ जाना,
याद करने के व्यसन में,
तनिक समझो और जानो,
नहीं यह कोई कार्य है,
काल के हाथों विवशता,
मन्दगति स्वीकार्य है।

Satish Saxena ने कहा…

कट जाए यह सफ़र भी आहिस्ता अहिस्ता ....

Khushdeep Sehgal ने कहा…

गली के मोड़ पे सूना सा एक दरवाजा,
तरसती आंखों से रस्ता किसी का देखेगा,
निगाह दूर तलक जा के लौट आएगी,

करोगे याद तो हर बात याद आएगी,
गुज़रते वक्त की हर मौज ठहर जाएगी,

करोगे याद तो...

Suman ने कहा…

कि कभी फुरसत में

मुस्करा लूँगा फिर

पढ़ कर उन यादों को

किश्त दर किश्त

आहिस्ता आहिस्ता!!

सुन्दर रचना है ....सच में थोडा सुकून दे ही जाती है यादे !

ओंकारनाथ मिश्र ने कहा…

सुन्दर रचना..यादों से सच्चा साथी कौन.

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

एक निश्चित सफ़र के बाद यही कुछ विकल्प तो बाकी रह जाते है !

Arvind Mishra ने कहा…

किश्त दर किश्त शुभकामनाएं भी ले लीजिये हुजूर उन अनुभवों के लिए!

mridula pradhan ने कहा…

कि कभी फुरसत में
मुस्करा लूँगा फिर
पढ़ कर उन यादों को
किश्त दर किश्त......wah....badi khoobsurat linen hain.....

दिगम्बर नासवा ने कहा…

जिन यादों को जिया हो साथ साथ उन्हें फिर कुआ जीना ... नई यादें नहीं बनानी हैं क्या ...

Saras ने कहा…

बस उसी फुर्सत के इंतज़ार में सारी ज़िन्दगी बीत जाती है ......दायित्व ख़त्म नहीं होते ....और मुस्कुराने की ख्वाइश यूहीं दबी रह जाती है ......

Arshad Ali ने कहा…

माँ कहती है हमेशा ...
हर पल ज़िन्दगी का एक पन्ना है ...
संभल कर जियो हर पल ...
हर पल से एक इतिहास बनना है ...

कल सुकून की ज़रूरत पड़ेगी दवा के साथ ...
तब याद करना कोई पुरानी बात ...
कई बार पुराने ख्यालों में सबको रहना है ...
भविष्य को खुद के बनाए इतिहास में हीं बहना है ...
माँ कहती है हमेशा ...
माँ कहती है हमेशा ...

बहुत खूब सर ... दिल को छू गया!

राजेंद्र अवस्थी. ने कहा…

बहुत खूब ..अहिस्ता अहिस्ता

राजेंद्र अवस्थी. ने कहा…

बहुत खूब ..अहिस्ता अहिस्ता

राजेंद्र अवस्थी. ने कहा…

बहुत खूब ..अहिस्ता अहिस्ता

Shalini kaushik ने कहा…

सुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति कलम आज भी उन्हीं की जय बोलेगी ...... आप भी जाने कई ब्लोगर्स भी फंस सकते हैं मानहानि में .......

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

बहुत दिनों बाद आप आये...
जिन्दगी की किताब है ये... यूं ही पढ़ी जायेगी.

आर्यावर्त डेस्क ने कहा…

प्रभावशाली ,
जारी रहें।

शुभकामना !!!

आर्यावर्त (समृद्ध भारत की आवाज़)
आर्यावर्त में समाचार और आलेख प्रकाशन के लिए सीधे संपादक को editor.aaryaavart@gmail.com पर मेल करें।

shikha varshney ने कहा…

यूँ ही कट जाता है सफर, अहिस्ता अहिस्ता.
बहुत खूब .

Rajesh Kumari ने कहा…

आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार 22/1/13 को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका वहां स्वागत है

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

वाह बहुत गजब लिखा, शायद यही जिंदगी है.

रामराम.

डॉ टी एस दराल ने कहा…

सुहानी यादें --- यादों में और भी सुहानी लगती हैं।

डॉ टी एस दराल ने कहा…

सुहानी यादें --- यादों में और भी सुहानी लगती हैं।

Ramakant Singh ने कहा…

और मैं

अपने दायित्वों का निर्वहन करता

चलता रहा इस जीवन डगर पर

लादे उस किताब को अपनी पुश्त पर...

कि कभी फुरसत में

मुस्करा लूँगा फिर

पढ़ कर उन यादों को

किश्त दर किश्त

आहिस्ता आहिस्ता!!

यादें जिसे भुलाना मुश्किल

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

फुर्सत ही तो नहीं मिलती ..... बहुत सुंदर भावों से रची सुंदर रचना

Madan Mohan Saxena ने कहा…

बहुत सुन्दर .सार्थक रचना.

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' ने कहा…

लाजवाब प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...

alka mishra ने कहा…

कि कभी फुरसत में

मुस्करा लूँगा फिर

Rohit Singh ने कहा…

फुरसत में पढ़ लेंगे ये सोच कर कई बार हम इतनी देर कर देते हैं कि बाद में पछताव होता है कि देर क्यों कर दी।

Arun sathi ने कहा…

साधू साधू

Vinay ने कहा…

अति उत्तम
---
अग्नि मिसाइल: बढ़ती पोस्ट चोरियाँ और घटती संवेदनशीलता, आपकी राय?

रश्मि प्रभा... ने कहा…

सोचकर तो यूँ ही चलते हैं
पर आँखों का क्या भरोसा - पिघलकर बरसने लगते हैं

Kailash Sharma ने कहा…

कि कभी फुरसत में

मुस्करा लूँगा फिर

पढ़ कर उन यादों को

किश्त दर किश्त

आहिस्ता आहिस्ता!!

....बहुत खूब! लाज़वाब प्रस्तुति..

abhi ने कहा…

बड़े दिन बाद आज इत्मिनान से सबके ब्लॉग पढ़ रहा हूँ...आपका ब्लॉग तो शायद एक दो महीने से नहीं पढ़ा था...बड़ा अच्छा लग रहा है आपको फिर से पढना चचा!

रचना दीक्षित ने कहा…

सुंदर यादों का सफर और रोजमर्रा जीवन की आपाधापी. सुंदर प्रस्तुति.

गणतंत्र दिवस की आप सभी को बधाइयाँ और शुभकामनायें.

Asha Joglekar ने कहा…

फिर पढ कर उन यादों को किश्त दर किश्त,सफहा दर सफहा लफ्ज़ दर लफ्ज़ । फुरसत ही तो नही मिल रही । थोडी भागम भाग कम करनी होगी ।

कविता रावत ने कहा…

कि कभी फुरसत में

मुस्करा लूँगा फिर
पढ़ कर उन यादों को
किश्त दर किश्त
आहिस्ता आहिस्ता!!

...सच कुछ अच्छे से बीतें पलों को फुर्सत में किश्तों में याद करना मन को अच्छा लगता है ..
बहुत बढ़िया रचना

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर सृजन!

Anita ने कहा…

और वे फुर्सत के क्षण कभी मिलते ही नहीं...सुंदर प्रस्तुति..

अजय कुमार ने कहा…

यादों की गठरी

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

बहुत सार्थक रचना !

Ankur Jain ने कहा…

सुंदर, सार्थक रचना।

Manav Mehta 'मन' ने कहा…

waah sameer ji ..bahut sunder

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

आदरणीय भाई समीर जी बहुत ही सुन्दर कविता |

रेखा श्रीवास्तव ने कहा…

यही जिन्दगी है और इसमें सोच कर फुरसत मिला नहीं करती की और ऐसे पलों के लिए कभी नहीं।

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

फ़ुरसत मिले तो घर आना ज़रूर तुम
बरसों हुए हैं यार से मशवरा किये हुए

समयचक्र ने कहा…

बहुत सुन्दर ...