बुधवार, जून 01, 2011

एक कविता, बताना कैसी लगी???? और एक आशीष

 

paper-bowl 

जमा किये हैं
थाली भर शब्द
छाँट बीन कर
करीने से लगा
चढ़ा देता हूँ
विरह की मंदी आँच पर भूनने
मिला के दो चुटकी
मन के भाव....
आधा कप
सम सामायिक समस्या के
छोटे छोटे बारीक कटे टुकड़े....
एक कटोरी
पुरानी गांव की यादें...
कुछ बूँद ताजा निचोड़ा
प्रेम रस...
एक चम्मच सामाजिक सारोकार...
और फिर
साहित्यिकता का
तड़का लगाकर...

एक लज़ीज
कविता
परोसता हूँ...
सजाकर
कागज के कटोरे में
आपको......

बताना कैसी लगी????

-समीर लाल ’समीर’

 

अब एक आशीर्वाद

पुस्तक- देख लूँ तो चलूँ; लेखक: समीर लाल ’समीर’ प्र.संस्करण-२०११

श्री समीर लाल ’समीर’ ने इस पुस्तक में जबलपुर-भारत से कनाडा तक की यात्रा पाठकों को तो करवा दी प्रारम्भ से अन्त तक उनकी आत्मा भारत में ही रची बसी दिखाई देती रही. भारत की माटी की सुगन्ध से वे सुवासित हैं और देश की संस्कृति तथा परम्परा से पूर्ण रुप से जुड़े हुए. भारत और कनाडा की समस्याओं को बड़े ही व्यंग्यात्मक ढंग से प्रस्तुत किया गया है. मित्र के गृह प्रवेश की पूजा में सम्मलित होने के लिए अकेले कार में निकलते हैं और रास्ते भर विचार श्रृंखला में कनाडा और भारत घूमते रहते हैं. देश छोड़ने की व्यथा, अमरीकी नीतियाँ, चाइल्ड लेबर, समलैंगिगकता, पश्चिमी प्रेम-प्रदरन चुम्बन प्रक्रिया, भारतीय माता पिता का कनाडा में सदुपयोग और मृत्यु तथा जीवन की दार्शनिकता के चित्र, उसके मन-मस्तिष्क में घूमते रहते हैं.

प्रवासी भारतीय गृहप्रवेश की पूजा भारत की तरह ही करते हैं. ’विदेश में घर खरीदा है तो क्या हुआ, हैं तो भारतीय ही. भगवान की तस्वीरों से लेकर, समस्त पूजन सामग्री इकट्ठी की जाती है, आरती होती है, हवन भी होता है, उसमें बस रुपये की जगह डालर डाले जाते हैं जिसे पंडित जी उसी उत्साह के साथ कलटी कर ले जाते हैं जैसे कि भारत में.’ (पृष्ठ १५)

चाइल्ड लेबर को लेकर बड़ा तीखा व्यंग्य समीर जी ने किया है. ’टिम हार्टिन्स’ और ’मैक डोनल्डस’ में ८ वीं ९ वीं के बच्चे स्कूल के बाद पार्ट टाइम काम करते हैं. बरतन धोने, काफी बनाने, टोस्ट बनाने के लिए उन्हें ६ से ७ डालर प्रति घन्टा मिल जाता है. भारत में जब बच्चे काम करते है तो ’यही मुल्क उसे एक्सप्लोइटेशन का नाम देते हैं. बच्चों से उनका बचपन छीन लेने की बात करते हैं.’ अमरीकी नीतियाँ केवल दूसरे देशों को शिक्षा देती हैं.’ शान्ति स्थापना के लिए बमबारी कर रहे हैं, तेल के कुओं पर कब्जा कर रहे हैं और पैसा कमा कमा कर भरे जा रहे हैं.’ (पृष्ठ ३४) प्रवासी भारतीय सब कुछ देख कर भी कुछ भी कर सकने में असमर्थ, असहाय महसूस करते हैं क्योंकि अमरीका में रहकर अमरीका से पंगा लेना न समझी होगी. लेखक को लगता है कि ’अमरीका को देश की बजाय कन्सलटेन्ट होना चाहिये. खुद की व्यवस्था हो या अर्थव्यवस्था, वो तो संभलती नहीं परन्तु दूसरों की व्यवस्था या अर्थव्यवस्था सम्भालने तुरन्त निकल पड़ते हैं. खुद के यहाँ तेल बह गया, वो समेटा नहीं जा रहा और चल पड़े दूर खाड़ी देशों में तेल समेटने" (पृष्ठ ३४)

जीवन तो जीवन,  अमरीका में मृत्यु भी उपहास का विषय बन चुकी है. भारत में ’मुंडा सिर’ शोक का संदेश देता है और अमरीका में ’ग्रेट कूल ड्यूड’ कहलाता है. अंतिम संस्कार का बीमा ५००० या ६००० डालर, अगर स्टेण्डर्ड का करना हो तो १०००० डालर तक का अमरीका में खर्चा आता है जिसमें मन पसंद ताबूत, ड्रेस, मेकअप, प्लाट, उसकी खुदाई, रेस्ट इन पीस का बोर्ड, ले जाने के लिए ब्लैक लिमोज़ीन और धर्म के अनुसार फूलों का चुनाव भी आप जीवित रहकर ही कर सकते हैं. जैसी पसंद वैसा बीमा. बाल बच्चों को न कुछ खर्च करना न परेशानी. लेखक का व्यंग्य बड़ा सटीक है-’ भाई अमरीका/कनाडा वालों, आप लोगों की हर बात की तरह यह बात भी है तो जरा हट के.’

प्रिय समीर जी, आपकी यह पुस्तक एक छोटा उपन्यास या एक लम्बी कहानी है पर जरा औरों से हट के. पुनः बधाई स्वीकार करें.

प्रेषिका
डॉक्टर मंजुलता सिंह

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78 टिप्‍पणियां:

Sunil Kumar ने कहा…

कविता की संरचना ऐसी ही होती है , बहुत बहुत सुंदर ,बधाई

SANDEEP PANWAR ने कहा…

बढिया जानकारी, आभार,

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

यह तो कविता नहीं, कविता की माता जी हैं।
देख लूँ तो चलूँ तो शिल्प की दृष्टि से अनूठी रचना है जो एक परदेस में बसे भारतीय के अंतर्द्वंदों को बखूबी सामने लाती है।

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

समीर जी कविता कैसे जन्म लेती है..कैसे उपजती है.. कैसे सजती है ..आपने अपनी कविता में परोस दिया है... हमारे लिए तो सूत्र-मंत्र की तरह हो गया है...आपका उपन्यास पढ़ चुका हूँ... डॉ. मंजुलता जी की समीक्षा अच्छी है...आपके अगले पुस्तक की प्रतीक्षा में... शुभकामना सहित...

Archana Chaoji ने कहा…

kavita ki hi bhasha me kahu to ---swadisht..........

Sadhana Vaid ने कहा…

कागज़ के कटोरे में परोसी गयी कविता की यह रेसीपी बहुत स्वादिष्ट लगी समीर जी ! इस पर आपके बेमिसाल अंदाज़ की क्रीमी गार्निशिंग भी बहुत मनभावन है ! अद्भुत रचना के लिये बधाई स्वीकार करें !

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

सुन्दर कविता, उत्तम कटाक्ष और अच्छा विश्लेषण.
मुझे अभी वो डांस वाला चैप्टर याद आ रहा है और आनन्द भी..

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

बहुत अच्छी लगी ....उत्कृष्ट रचना

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून ने कहा…

नि:संदेह यह भी अच्छी लगी

रश्मि प्रभा... ने कहा…

kagaj ke katore me jo parosa hai , swaad adbhut hai

Coral ने कहा…

आपने कागज के कटोरे में बहुत सुन्दर कविता परोसी है ....डॉ. मंजुलताजी की समीक्षा अच्छी लगी आभार एव बधाई

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

बढिया रचना है उम्दा भावों के साथ-आभार

भारत में सरकार ने 10 करोड़ नेटयुजर्स का मुंह बंद करने के लिए 11 अप्रेल से आई टी एक्ट में संशोधन करके संविधान प्रदत्त अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकार का गला घोंटने की कवायद शुरु कर दी है। अब तो ब्लॉगर्स को संन्यास लेना पड़ेगा। इसके लिए मदकुद्वीप से अच्छी जगह कोई दुसरी नहीं हो सकती। आईए मद्कुद्वीप में धूनी रमाएं एवं लैपटॉप-कम्पयुटर का शिवनाथ नदी में विसर्जन करें।

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

Tokri ke shabd to achchhe lage, kintu tokri men nazar nahi aaye. :)
............
प्यार की परिभाषा!
ब्लॉग समीक्षा का 17वां एपीसोड--

रूप ने कहा…

Tadka bhi laga dete Sameer jee. Recipe zaykedar hai. Lage rahiye...Kudos !

Shah Nawaz ने कहा…

हालाँकि कविताओं की जयादा समझ तो नहीं है, बस भाव को देखकर ही हमेशा टिप्पणी करता हूँ... और इस लिहाज़ से यह एक बहुत ही बेहतरीन भाव लिए हुए कविता है.

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

bahut alag aapki nayi rachna eakdam sidhi saadi par man men utar jaane vaali..

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

आप जो भी बना दें, स्वादिष्ट होता है, हृदय का मसाला हर कोई नहीं डाल पाता है। पुस्तक तो दमदार है, अगली कब तक आयेगी।

Urmi ने कहा…

आधा कप
सम सामायिक समस्या के
छोटे छोटे बारीक कटे टुकड़े....
एक कटोरी
पुरानी गांव की यादें...
कुछ बूँद ताजा निचोड़ा
प्रेम रस...
बहुत बहुत सुन्दर रचना! इस शानदार पोस्ट के लिए बधाई!

संजय कुमार चौरसिया ने कहा…

बहुत अच्छी लगी ....उत्कृष्ट रचना

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

hame bhi seekhna hoga..ye lajij kavita ki reciepe ko.............sach me bahut pyari si rachna...!!
aur fir aap to ho hi aashirwad ke kabil...!!

www.navincchaturvedi.blogspot.com ने कहा…

भाई यही है रचना प्रक्रिया, आप ने कह भी दिया है|

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

वाह आपने तो मुरब्बा बनाने की सारी जानकारी प्रस्तुत कर दी .अब यह बनानेवाले के हाथ में है किसी का टिक जाता है किसी का चलताऊ!
किताब की जानकारी बहुत मिली ,बहुतेरे आश्वासनों के बाद भी किताब अलभ्य रही .खरीदूँगी जाकर ,फिर कुछ कहूँगी .

Khushdeep Sehgal ने कहा…

गुरुदेव,
ये कोका-कोला से भी ज़्यादा सीक्रेट 'समीर रेसिपी' का फॉर्मूला क्यों सार्वजनिक कर दिया...

जय हिंद...

संगीता पुरी ने कहा…

एक लज़ीज
कविता
परोसता हूँ...
सजाकर
कागज के कटोरे में
आपको......

सिर्फ आज ही नहीं ..हमेशा अच्‍छी लगती है !!

Satish Chandra Satyarthi ने कहा…

आपके हाथ की बनी कविता हमेशा स्वादिष्ट होती है... अब आपने रेसिपी दे दी है तो कभी हम भी ट्राई करेंगे :)

Patali-The-Village ने कहा…

कागज़ के कटोरे में परोसी गयी कविता की यह रेसीपी बहुत स्वादिष्ट लगी| आभार|

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....


चुने हुए चिट्ठे ..आपके लिए नज़राना

मीनाक्षी ने कहा…

काग़ज़ के कटोरे में.. :( मिट्टी के कसोरे में परोसी होती तो उसकी सोंधी खुशबू से महकी होती .... खैर
डॉ सिंह की समीक्षा बहुत पसन्द आई...सोच में हैं कि पुस्तक पढने को कहाँ से मिले...

मनोज कुमार ने कहा…

आपकी इस कविता के नामाकरण से लेकर उसकी अंतर्वस्तु में निहित रेसिपी तक कविता को एक नया संस्कार देते हैं, जिसमें कथ्य और संवेदना का सहकार है और जिसका मकसद इस संसार को व्यवस्थित और प्रेममय देखने की आकांक्षा है।

सदा ने कहा…

वाह ...बहुत खूब शब्‍दों के अनुपम भाव हैं इस अभिव्‍यक्ति में ।

अमिताभ मीत ने कहा…

हम्म .... गोया कि ख़ुद आप को पता ही नहीं है ... कि कैसी है !!
अच्छी है .... बहुत अच्छी है !!

ज्ञानचंद मर्मज्ञ ने कहा…

नए अंदाज़ में कविता को उकेरा है ! शब्द विन्यास और भाव पक्ष दोनों ही प्रभावपूर्ण हैं !

दिगम्बर नासवा ने कहा…

कविता की बुनावट तो लाजवाब है ... देखने में भी सुंदर है .... और क्या कहूँ समीर भाई ... सही मिश्रण है कविता में ...
और समीक्षा तो उम्दा है ही ... जब किताब उम्दा तो समीक्षा तो उम्दा होनी ही है ...

shikha varshney ने कहा…

कविता की रेसिपी अच्छी है तो पकी हुई कविता भी अच्छी ही होनी है :)
मंजुलता जी ने सटीक समीक्षा की है.आभार.

Suman ने कहा…

बहुत सुंदर जायकेदार बनी है कविता की रेसिपी !

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत सुंदर रचना

वाणी गीत ने कहा…

कुक तो आप बढ़िया है ही , कविता को तो अच्छा पकना ही था ...

arbuda ने कहा…

कविता बहुत अच्छी बनाई है। गुज़ारिश फिल्म का गाना,... सौ ग्राम ज़िंदगी है..., याद आ गया।
'देख लूँ तो चलूँ' के लिए बधाई। डा. मंजुलता की समीक्षा के बाद तो अब इसे पढ़ने की इच्छा है।
पुनः बधाई।

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

प्रिय समीर जी,बारम्बार बधाई स्वीकार करें.

Unknown ने कहा…

सुन्दर कविता के लिए बधाई स्वीकार करें
बहुत ही बढ़िया !
मेरी नयी पोस्ट पर भी आपका स्वागत है : Blind Devotion - अज्ञान

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति ने कहा…

आपकी कविता का यह पकवान बेहद लजीज लगा ,,, बहुत सुन्दर कविता ओर डॉ मंजुलता जी का आपकी पुस्तक पर समीक्षा बहुत सही है... सच है कि पुस्तक इतनी सुरुचिपूर्ण तरीके से लिखी गयी है कि पाठक को पुस्तक को पूरी पढ़े बगैर उठ नहीं सकता ... सादर

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

बिल्कुल फूल की सुगंध की तरह, जिसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है।

बेनामी ने कहा…

agar iis main jiwan ke kushi kee chasni bhee dal datey to sawaad kauch aur hee jata, "sukh dukh jis main rahtey dono, jiwan hai wo gaon, kabhi dhopp kabhi chaoon"

eik pata hum ko mial us ka shukriya

an Indian In KSA

virendra sharma ने कहा…

कविता की रेसिपी अच्छी लगी !आखिरी गीत मोहब्बत का सूना लूं तो चलूँ ....हाँ आपकी पुस्तक के प्रथम संस्करण की ही बात कर रहा हूँ ,समीक्षा सटीक थी बिलकुल उड़न तश्तरी जैसी जिसका भेद आज तक कोई नहीं पा सका .

डॉ टी एस दराल ने कहा…

अच्छी लगी ये कॉकटेल । और समीक्षा भी ।

Rahul Singh ने कहा…

स्‍वादिष्‍ट, रसमयी.

Dr. Shailja Saksena ने कहा…

bahut badhiya lagi sameer ji...kavita ki thaali meinkuch nahi jaali hai...aur saare swadon ko lekar kavita prabhavkari hai..

pustak ke liye badhai...jab dekh loongi to kuch aur adhik kahti chaloongi..

Shailja

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

एक कविता की सिंपल रेसिपी... बस किसकी कितनी मात्रा मिलानी है यही निर्णय करता है कि स्वाद कैसा होगा और वही कवि कवि का भेद निर्धारित करता है!!

PRAN SHARMA ने कहा…

VAKAEE LAZEEZ KAVITA BANEE .
KHOOB ZAAEEKA HAI .AAP BHEE
CHAKH KAR DEKHIYE .

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी ने कहा…

उत्तम स्वाद। सुपाच्य व्यंजन।
सुबह-सुबह और क्या चाहिए...!

बाबुषा ने कहा…

क्यों न आप की कविता को खा लिया जाए ..स्वादिष्ट है !

नीरज गोस्वामी ने कहा…

कागज़ के कटोरे में परोसी गयी कविता अत्यंत लज़ीज़ है....:-) बेहतरीन रचना.

नीरज

बेनामी ने कहा…

कविता की यह recipe अद्भुत है. सुन्दर रचना. पूरा का पूरा जीवन दर्शन, सार रूप में प्रस्तुत कर दिया.

Manoj Kumar ने कहा…

बहुत सुंदर...... !!!

Vivek Jain ने कहा…

कविता पर कविता, भई वाह,
डॉ. मंजुलताजी की समीक्षा अच्छी लगी
शुभकामना सहित विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

जब कोई अपनी भावनाओं को कागज़ की कटोरी में परोसता है तो चखनेवाला मस्त हो ही जाता है। सुंदर कविता के लिए बधाई। आपकी पुस्तक देखी तो नहीम पर देखने वाले भी अभी निश्चय नहीं कर पाये कि यह लघु उपन्यास है या लम्बी कहानी :)

drsatyajitsahu.blogspot.in ने कहा…

kavita acchi lagi

pallavi trivedi ने कहा…

बहुत अच्छी लगी...

Abhishek Ojha ने कहा…

स्वादिष्ट :)
मेरी प्रति तो भारतीय डाक खा गया :)

mridula pradhan ने कहा…

एक लज़ीज
कविता
परोसता हूँ...
सजाकर
कागज के कटोरे में
आपको......
बताना कैसी लगी????bahut hi swadisht lagi.....

राजेंद्र अवस्थी (कांड) ने कहा…

आपका कविता परोसना मन को भा गया, डा.मंजुलता जी को भी धन्यवाद, लाजवाब रचना..

रवि कुमार, रावतभाटा ने कहा…

अच्छी लगी...
आशीष भी...

mehhekk ने कहा…

एक कटोरी
पुरानी गांव की यादें...
कुछ बूँद ताजा निचोड़ा
प्रेम रस...
ati sunder bhav,kuch hatke kavita,pasans aayi bahut.

"देख लूँ तो चलूँ " समीर लाल समीर की पुस्तक की समीक्षा ने कहा…

हस्त लिखित समीक्षा के लिए

पूनम श्रीवास्तव ने कहा…

aadarniy sir
mujhe to pahli baar aapki asi kavita ko padhne ka soubhagy mila hai .
sach me apne charo taraf mach afra -tafri samajik samsyon me gghate badhte roop aur bhi bahut kuchh jitej katar wale kataxh jis par aapki lekhni bakhubi badi imandari ke saath chalti hai .aise kavita ko padhkar har kavi lekhak ka dil kah uthega ----
bahut sateek chitan han ! yahi ti hoti hai kavita jisme ek kavi ka man v uske inse prbhavit hokar tatha swtah hi andolit hokar kalam ki syahi bankar panne par utar aati hai .
bahut khoob .
kitni bhi prashasha karun shabd kam hi padenge.
aapkbehtreen upnyaas ke liye bhi aapko hardik badhai
sadar abhinandan
poonam

Vaanbhatt ने कहा…

बहुत ही...स्वादिष्ट...

Shikha Kaushik ने कहा…

bahut khoob .abhar

Shalini kaushik ने कहा…

bahut laziz aur bahut bhavpoorn.

Asha Joglekar ने कहा…

Kawita kee recipe itani badhiya hai to kawita to jayakedar hee hogee. Behad sunder. Aapka upnyas to nahee padha ab tak par sameeksha ne utsukta badha dee hai . Jaroor padhna chahungee.

ZEAL ने कहा…

कविता बहुत उत्कृष्ट लगी । डॉ मंजुलता जी ने बहुत सही लिखा है। दो चुटकी मन के भाव ...बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।

Laxman Bishnoi Lakshya ने कहा…

उड़न तश्तरी जी,सुन्दर कविता, जी मैं ब्लॉगर पर नया हूँ.कभी हमारे ब्लॉग तक भी उड़ आया करो.
www.bahut-kuch.blogspot.com

रचना दीक्षित ने कहा…

कविता की रेसिपी, अनूठी रचना. आभार.

उपन्यास तो वाकई बहुत ही सुंदर है. मंजू जी से पूर्ण सहमत.

रंजन (Ranjan) ने कहा…

आपने रेसिपी देदी.. अब हम भी कविता लिखने लगेंगें...

E-Guru _Rajeev_Nandan_Dwivedi ने कहा…

सरस छे.
हरी मिर्ची लम्बाई में काटकर लगानी थी.
आँख, नाक,कान से प्रेम का धुंआ निकलता.
अगली रेसिपी के लिए टिप्स दिए हैं, ध्यान से.

Richa P Madhwani ने कहा…

यह तो कविता नहीं, कविता की माता जी हैं
dialog achha hai
mere blog k liye bhi ekk kavita likh lijiye

M VERMA ने कहा…

सुन्दर रेसिपी ...
बनाकर देखते हैं

बवाल ने कहा…

कविता आपकी है तो आप ही की तरह प्यारी होगी इसमें पूछना क्या ? बहुत याद आ रही है आज क्या करूँ ?

fursat ke lamhe ने कहा…

Sameer ji aapne jo sab kuchh milakar tadka lagaya to wakai ek lazeez dish taiyar hui. Bahut badhiya.