रविवार, अक्तूबर 17, 2010

गुलाब का महकना...

आज यहाँ रविवार है. भारत के लिए निकलने से पहले ऐसे तीन रविवार ही मिलेंगे अतः व्यस्तता चरम पर है. आज कविता पढ़िये:

gulab
*

 

जब कुछ लिखने का
मन नहीं होता
तब खोलता हूँ
नम आँखों से
डायरी का वो पन्ना
जहाँ छिपा रखा है
गुलाब का एक सूखा फूल
जो दिया था तुमने मुझे
और
भर कर अपनी सांसो में
उसकी गंध
बिखेर देता हूँ
एक कागज पर...

-लोग उसे कविता कहते हैं!!!

-समीर लाल ’समीर’

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105 टिप्‍पणियां:

संजय भास्‍कर ने कहा…

आदरणीय समीर जी
"ला-जवाब" जबर्दस्त!!
शब्दों को चुन-चुन कर तराशा है आपने ...प्रशंसनीय रचना।

संजय भास्‍कर ने कहा…

कमाल की प्रस्तुति ....जितनी तारीफ़ करो मुझे तो कम ही लगेगी

संजय भास्‍कर ने कहा…

गुलाब सी शीतल ताजगी का अहसास करा गई आपकी रचना।

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

सही कहा डायरी के पन्ने कह जाते हैं बीते वक्त की कहानी और कभी खोल जातें हैं कुछ छिपे राज की परतें जो कभी गुदगुदाते हैं और कभी टीस दे जातें हैं...

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

बीते हुए कल की यादें किताब में दबे हुए सूखे गुलाब की मानिंद जेहन में रहती हैं। पता नहीं कब हवा के एक झोंके से किताब का वह पन्ना खुल जाता है और यादें बाहर आ जाती हैं।

सुन्दर कविता भाई साहब
आभार

अजय कुमार ने कहा…

बहुत रोमांटिक रचना ,बधाई ।

Sunil Kumar ने कहा…

सृजन का एक कारण यह भी है सुंदर रचना बधाई

रतन चंद 'रत्नेश' ने कहा…

लाजवाब गुलाब...

डॉ टी एस दराल ने कहा…

खुशबू भी पुराने गुलाबों में ही मिलती है । नए गुलाब तो खुशबू विहीन हो गए हैं ।
गुलाब के फूल पर छपी पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगी ।

कडुवासच ने कहा…

... bahut badhiyaa ... behatreen !!!

राजभाषा हिंदी ने कहा…

इस फूल की गंध को आप अपनी सांसों में बार-बार भरे और उसकी गंध को बार-बार कगज़ पर बिखेरे। बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
बेटी .......प्यारी सी धुन

Mansoor ali Hashmi ने कहा…

सहेजी हुई यादो के फूल सूख कर भी मुअत्तर रहते है. खूबसूरत अभिव्यक्ति.

''फूल के रुख़ पर नमी सी है जो उनके रु-ब-रु,
है निदामत* का अरक़, शादाबी-ए-शबनम* नही।''

*[पश्चाताप, **ओंस की ताज़गी]
http://mansooralihashmi.blogspot.com/search/label/story

में qoute किया हुआ शेर.

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" ने कहा…

Simply Mindblowing!

बेनामी ने कहा…

डायरी का वो पन्ना
जहाँ छिपा रखा है
गुलाब का एक सूखा फूल
जो दिया था तुमने मुझे

बहुत ही ख़ूबसूरत भाव ... आभार

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

समीर बाबू! भगवान करे यह ख़ुसबू आपके जीवन को सदा सुवासित करती रहे और हमें नित नूतन कविता का आनंद प्राप्त होता रहे!!

seema gupta ने कहा…

जब कुछ लिखने का
मन नहीं होता
तब खोलता हूँ
नम आँखों से
डायरी का वो पन्ना
" मन को छु गयी ये अभिव्यक्ति.."

regards

वाणी गीत ने कहा…

सूखे फूल जिस तरह किताबों में मिले ...
इस तरह उसकी यादों के सिलसिले ...
सुन्दर कविता ...!

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

आपकी कविता का यही स्वरूप भाता है।

abhi ने कहा…

डायरी में तो ऐसे नायब चीज़ कभी मिल ही जाते है जो कुछ ऐसे लम्हे याद दिला देते हैं जो कागज़ पे एक कविता का शक्ल ले लेती है...

बेनामी ने कहा…

diary ka har ek panaa ek khubsurat ateet hai..
bahut khub..

कुमार राधारमण ने कहा…

चंद तथ्य विकीपीडिया से-
"गुलाब ने अपनी गन्ध और रंग से विश्व काव्य को अपना माधुर्य और सौन्दर्य प्रदान किया है। रोम के प्राचीन कवि वर्जिल ने अपनी कविता में वसन्त में खिलने वाले सीरिया देश के गुलाब की चर्चा की है। अंगरेज़ी साहित्य के कवि टामस हूड ने गुलाब को समय के प्रतिमान के रुप में प्रस्तुत किया है। कवि मैथ्यू आरनाल्ड ने गुलाब को प्रकृति का अनोखा वरदान कहा है। टेनिसन ने अपनी कविता में नारी को गुलाब से उपमित किया है। हिन्दी के श्रृंगारी कवि ने गुलाब को रसिक पुष्प के रुप में चित्रित किया है ‘फूल्यौ रहे गंवई गाँव में गुलाब’। कवि देव ने अपनी कविता में बालक बसन्त का स्वागत गुलाब द्वारा किए जाने का चित्रण किया है। कवि श्री निराला ने गुलाब को पूंजीवादी और शोषक के रुप में अंकित किया है। रामवृक्ष बेनीपुरी ने इसे संस्कृति का प्रतीक कहा है।"

S.M.Masoom ने कहा…

तब खोलता हूँ
नम आँखों से
डायरी का वो पन्ना
जहाँ छिपा रखा है
गुलाब का एक सूखा फूल
जो दिया था तुमने मुझे
समीर जी आप की इन पंक्तिओं ने मुझे ३० साल पहले की यादों मैं जाने को मजबूर कर दिया.
धन्यवाद्

vandana gupta ने कहा…

बेहद खूबसूरत नज़्म्…………सारे भाव उमड आये हैं।

PN Subramanian ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति.

G Vishwanath ने कहा…

और मैं?

जब कुछ लिखने का मन करता है
तब खोलता हूँ
बडी अपेक्षा से
ब्लॉग साइट का वो पन्ना
जहाँ छिपा रखा है
आपके विचार
जो किसी गुलाब के फ़ूल से कम नहीं
सूँघ सूँघ कर
उसकी गंध
बिखेर देता हूँ अपने विचार
कीबोर्ड पर...

-लोग उसे टिप्प्णी कहते हैं!!!

जी विश्व्नाथ

aarya ने कहा…

समीर जी !
सादर वन्दे,
आपने किसी सुसुप्त ज्वालामुखी की तरह शब्दों को आजाद कर दिया है, ये सिर्फ एक कविता नहीं पूरी की पूरी कहानी है ........
रत्नेश

Majaal ने कहा…

यादों के नाप तोल के पैमाने अलग मजाल,
सूखे फूल को नज़र लगे, तो खिल जातें है ...

बहुत कमाल की कविता जनाब... लिखते रहिये... और अपने हुनर का राज़ यूँ सारें आम न करें तो बेहतर ... !

ashish ने कहा…

बहुत बढ़िया सर , ऐसे ही झांकते रहिये डायरी के पन्नो के पीछे .

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' ने कहा…

भर कर अपनी सांसो में
उसकी गंध
बिखेर देता हूँ
एक कागज पर...
बहुत उम्दा.
विजय दशमी की हार्दिक शुभकामनाएं.

mukti ने कहा…

मुझे लगता है कि सबके पास किसी किताब में रखा एक सूखा गुलाब का फूल होता है. उसे देखकर कोई आह भरता है, कोई आँसू बहाता है, कोई किसी को याद करता है तो कोई कविता लिखता है.

Parul kanani ने कहा…

ultimate ..sir ji :)

उस्ताद जी ने कहा…

3/10


साधारण

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

अब समझ में आया आपकी रचनाओं का रहस्य.

फ़िरदौस ख़ान ने कहा…

डायरी का वो पन्ना
जहाँ छिपा रखा है
गुलाब का एक सूखा फूल
जो दिया था तुमने मुझे

मन को छू लेने वाली कविता...

संजय बेंगाणी ने कहा…

भई हम तो शब्दों को चुरा सकते है, अतः चुराए शब्दों में कहें तो गुलाब सी शीतल ताजगी का अहसास करा गई आपकी रचना।

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

भागदौड है तो पसीने की बूंदे आना लाज़मी है :) भारत में आप का स्वागत है॥

sanu shukla ने कहा…

बेहतरीन कविता ...!!

shikha varshney ने कहा…

गज़ब....लाजबाब ...और गुलाब का फूल भी ढूंढ कर लगया है.बहुत ही खूबसूरत.

रेखा श्रीवास्तव ने कहा…

गुलाब तो होता ही प्रेम के सन्देश देने वाला फिर चाहे वह सूख ही क्यों न जाए? यादों के रूप में डायरी में गुलाब ही मिलते हैं और उनकी खुशबू कभी ख़त्म नहीं होती. सुन्दरअभिव्यक्ति.

sourabh sharma ने कहा…

गुलाब का ऐसा रंग पहले कभी नहीं देखा।

वन्दना महतो ! (Bandana Mahto) ने कहा…

समीर जी आप के लेखन में जादू है..... हर बार आती हूँ और २-३ बार पढ़ लेती हूँ. यूँ कम शब्दों में अहसासों को समेटने का जादू कोई आपसे सीखे!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

जब कुछ लिखने का
मन नहीं होता
तब खोलता हूँ
नम आँखों से
डायरी का वो पन्ना ..
---
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
--
समीर जी हमने तो आज दिल की डयरी से कोई भी पन्ना अभी तक नही खोला है!

Anand Rathore ने कहा…

आपकी इस कविता के दाद में मेरी कविता की एक पंक्ति
जीवन निर्वाद सत्य है सपना नहीं है .
मैंने जो लिख दिया मेरे ज़ज्बात है
कोई रचना नहीं है.

naresh singh ने कहा…

गुलाबो सी महकती पोस्ट है |

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

शब्द जैसे ढ़ल गये हों खुद बखुद, इस तरह कविता रची है आपने।

रंजना ने कहा…

वाह.........

Coral ने कहा…

बहुत सुन्दर .....

Dorothy ने कहा…

अंतस में कैद स्मृतियों के सुवासित पल कभी बीतते नहीं और अंतस के बाहर निकलने के बाद भी बनकर खुश्बुओं के बादल सभी को अपनी महक की सौगात सौंप जाते हैं. बेहद खूबसूरती से पिरोई दिल को छू जाने वाली रचना. आभार.
सादर
डोरोथी.

रचना दीक्षित ने कहा…

सुंदर रचना

गुलाब की गंध
डायरी में बंद !!!!
हमें भी लेने दे आनंद

नीरज गोस्वामी ने कहा…

कविता की इस से बेहतर परिभाषा शायद ही कहीं पढ़ी हो...कमाल किया है आपने...ये ऐसा कमाल है जो सिर्फ और सिर्फ आप ही कर सकते हैं....वाह.

नीरज

VIJAY KUMAR VERMA ने कहा…

लाजवाब गुलाब...

कमाल की प्रस्तुति
swagat ke sath vijayanama.blogspot.com

सुज्ञ ने कहा…

लाजवाब अनुभुति

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

फूलों की तरह दिल में बसा के रखा है ,
यादों के चरागों को जला के रखा है !

राजेश उत्‍साही ने कहा…

खुशबू हम तक पहुंच गई।

Dr Xitija Singh ने कहा…

आदरणीय समीर जी
बहुत सुंदर रचना ... आपने शब्दों को बहुत ख़ूबसूरती से पिरोया है ... शुभकामनाएं

Arvind Mishra ने कहा…

वाह ,भावना या शब्द क्या कहूँ क्या जबरदस्त है !

समयचक्र ने कहा…

भर कर अपनी सांसो में
उसकी गंध
बिखेर देता हूँ
एक कागज पर...
-लोग उसे कविता कहते हैं !!!

बहुत सुन्दर रचना हमेशा की तरह ...दशहरा पर्व पर हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं ... आभार

विष्णु बैरागी ने कहा…

श्री सुर्यभानु गुप्‍त का एक शेर आपकी बात को इस तरह कह रहा है -

यादों की इक किताब में कुछ खत दबे मिले
सूखे हुए दरख्‍त का चेहरा हरा हुआ

Rajeev ने कहा…

bahut hi utkrisht rachna...

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

bahut mahkta hua sa ehsaas..

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

गुलाब की पेशानी पर लिखी चंद पंक्तियाँ ही काफी थी ....
एक पूरी ज़िन्दगी की सीख दे गयीं ये पंक्तियाँ .....
महकना आसान नहीं होता .....
वाह.....!!

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून ने कहा…

वाह बहुत सुंदर. आपकी कविता पढ़कर कज़लवाश साहब की एक बहुत पहले पढ़ी ग़ज़ल याद आ गई ...

Abhishek Ojha ने कहा…

ओहो तो भारत जाने की तैयारी है. बढ़िया.

राज भाटिय़ा ने कहा…

अति सुन्दर प्रस्तुति . धन्यवाद
आप का हिसाब तो मेरे लिये भी सही बेठता हे जी

मनोज कुमार ने कहा…

गुलाब का यह फूल कभी मुरझाने न पाए। हमेशा सुगंध बिखेरता रहे।

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

बहुत रोमांटिक रचना !बधाई ।

Bharat Bhushan ने कहा…

उत्कृष्ट सृजन. वाह.

mridula pradhan ने कहा…

wah.

प्रमोद चतुर्वेदी "शैल" ने कहा…

बहुत सुंदर कबिता. सुंदर प्रस्तुति.

प्रमोद चतुर्वेदी "शैल" ने कहा…

बहुत सुंदर कबिता. सुंदर प्रस्तुति.

ASHOK BAJAJ ने कहा…

"लाजवाब प्रस्तुति "

Archana Chaoji ने कहा…

...और जब कुछ लिखने का मन होता है
बन्द करता हूँ आँखों को
पलकों की कोर से भी
कुछ नहीं देखता
तुम हर ओर नजर आती हो
कलम अनायास ही चल पड़ती है
कागज पर उकेरने शब्द
एक लम्बी आह लेकर
और उभर आता है तुम्हारा अक्स
लोग उसे भी कविता कहते हैं.....

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" ने कहा…

आज तो चिट्ठा पूरी तरह से गुलाब की खुश्बू से महक रहा है :)

रानीविशाल ने कहा…

गुलाब ही की तरह अहसासों के सुर्ख रंग से सजी कोमल, महकती कविता .....आभार !

M VERMA ने कहा…

जी हाँ! उस गन्ध को पहचान कर; उस गन्ध को महसूस कर जो कुछ लिखा जायेगा वह कविता ही होगी. (लोग कहें या न कहें)

राम त्यागी ने कहा…

bahut badhiya ...

हास्यफुहार ने कहा…

आपने इस गुलाब को बड़े जतन से संभाल कर रखा है, तभी तो यह अभी तक खुश्बू बिखेर रहा है, वरना आजकल तो लोग इसे .....!

Dr.Aditya Kumar ने कहा…

स्मृतियों का गुलाब कभी नहीं मुरझाता वरन जीने की उमंग उत्पन्न करता है ...सुन्दर रचना

रश्मि प्रभा... ने कहा…

aksar ye phul kuch shabd de jate hain

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

उस गुलाब को हमेशा महफूज़ रखना.

भावभीनी रचना.

Anita kumar ने कहा…

waah

पंकज मिश्रा ने कहा…

महकना यूं भी आसान नहीं होता। वाकई, बिल्कुल सही बात है। सही बात क्या बल्कि बहुत गहरी बात है, पता नहीं क्यों चार लाइनों में ही होठों पर मुस्कुराहट तैर गई।
क्या कहूं? बस इतना ही कि शानदार।

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

जिन यादों को संजोने के लिए.... पन्नो में फूल रखे जाते हैं... उनसे तो ऐसी सुंदर रचना ही उपजती है....

POOJA... ने कहा…

sookhe gulaab ki khushboo kuchh khas hoti hi hai... awesome...

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

आज मैं भी रख दूं एक गुलाब किताब में। शायद साल भर बाद उसे सूंघ कर कवि बन जाऊं।

झिझकता हूं - शायद न भी बनूं। तब एक गुलाब बेकार होगा।

Akanksha Yadav ने कहा…

कुछ अलग ही अंदाज और भाव...अच्छा लगा.

Shabad shabad ने कहा…

प्रशंसनीय रचना......

KK Yadav ने कहा…

भर कर अपनी सांसो में
उसकी गंध
बिखेर देता हूँ
एक कागज पर...बहुत खूबसूरत भाव...बधाई.

Urmi ने कहा…

बेहद ख़ूबसूरत और लाजवाब रचना! बधाई!

बेनामी ने कहा…

bahut hi pyari rachna....
laajawaab....

Mere blog par bhi sawaagat hai aapka.....

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jogeshwar garg ने कहा…

aadarneey sameerjee !
itanee saaree taareefon ke baad ab main taareef karoon yaa naa karoon koi farq naheen padataa. haathee ke pair me meraa bhee pair shaamil hai.

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

अच्छा प्रयोग है समीर जी.

उभर आई हैं

गुलाब की

पेशानी पर

पसीने की

चंद बूँदें

महकना

यूँ भी

आसां

नहीं होता

-विजय तिवारी " किसलय " जबलपुर //

हिन्दी साहित्य संगम जबलपुर

Prem ने कहा…

आपकी सरल अभिव्यक्ति हमेशा मन को भा जाती है । विजय दशमी की मंगल कामनाएं ।

Anjana Dayal de Prewitt (Gudia) ने कहा…

bahut bahut sunder...! :-)

mehek ने कहा…

awesome,khubsurat ehsaas se bhari choti si nazm pasand aayi.

swaran lata ने कहा…

आदरणीय समीर जी, बहुत बहुत धन्यवाद आप मेरे ब्लाग पर आये
व बहुमुल्य सुझाव दिये आगे भी आशा करती हु आप का सहयोग
ऎसे ही मिलता रहेगा
और आप की बहुत ही खूबसूरत सी व ताजगी से भरपूर कविता के लिये बहुत बहुत बधाई

swaran lata ने कहा…

आदरणीय समीर जी, बहुत बहुत धन्यवाद आप मेरे ब्लाग पर आये
व बहुमुल्य सुझाव दिये आगे भी आशा करती हु आप का सहयोग
ऎसे ही मिलता रहेगा
और आप की बहुत ही खूबसूरत सी व ताजगी से भरपूर कविता के लिये बहुत बहुत बधाई

swaran lata ने कहा…

आदरणीय समीर जी, बहुत बहुत धन्यवाद आप मेरे ब्लाग पर आये
व बहुमुल्य सुझाव दिये आगे भी आशा करती हु आप का सहयोग
ऎसे ही मिलता रहेगा
और आप की बहुत ही खूबसूरत सी व ताजगी से भरपूर कविता के लिये बहुत बहुत बधाई

swaranlata ने कहा…

आदरणीय समीर जी, बहुत बहुत धन्यवाद आप मेरे ब्लाग पर आये
व बहुमुल्य सुझाव दिये आगे भी आशा करती हु आप का सहयोग
ऎसे ही मिलता रहेगा
और आप की बहुत ही खूबसूरत सी व ताजगी से भरपूर कविता के लिये बहुत बहुत बधाई

swaran lata ने कहा…

आदरणीय समीर जी, बहुत बहुत धन्यवाद आप मेरे ब्लाग पर आये
व बहुमुल्य सुझाव दिये आगे भी आशा करती हु आप का सहयोग
ऎसे ही मिलता रहेगा
और आप की बहुत ही खूबसूरत सी व ताजगी से भरपूर कविता के लिये बहुत बहुत बधाई

Khushdeep Sehgal ने कहा…

और इस कविता को कहने वाले को लोग शहंशाह कहते हैं...

जय हिंद...

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

bahut hi sundar badhai

दिगम्बर नासवा ने कहा…

ऐसी प्यारी कविता तो रोज़ पढ़ने का मन करेगा समीर भाई ...
मज़ा आ गया ..

Unknown ने कहा…

जनाब समीर लाल साब ....महकना यूँ भी आसान नहीं होता ,महकना वोह भी गुलाब के पसीने के साथ जनाब एक कविता छात्र के रूप में मेरा ख्याल है एक अनूठा अनुभव है
भर कर अपनी सांसो में
उसकी गंध
बिखेर देता हूँ
एक कागज पर... -लोग उसे कविता कहते हैं
वाह जनाब क्या बात कही है .मुझे वसीम साब का शेर याद आ रहा है जो अर्ज करता चलूं
किसी गुलाब की खुशबु से हम भी महकेंगे /इसी आस में यहाँ तो मोसमे बहार गया .

बेनामी ने कहा…

I have never witnessed anyone receiving as many comments on a blog post as you do! now that i read your work, i know the reason ;)

sheer brilliance, hats off sir !


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