बुधवार, जुलाई 14, 2010

अंतिम फैसला: एक लघु कथा

सामने टीवी पर लॉफ्टर चैलेंज आ रहा है. वो सोफे पर बैठा है और नजरें एकटक टी वी को घूर रही हैं, लेकिन वो टीवी का प्रोग्राम देख नहीं रहा है.

उसके कान से दो हाथ दूर रेडियो पर गाना बज रहा है

’जिन्दगी कितनी खूबसूरत हैssssss!'

साथ में पत्नी गुनगुनाते हुए खाना बना रही है. उसके कान में न रेडियो का स्वर और न ही पत्नी की गुनगुनाहट, दोनों ही नहीं जा रही हैं.

एकाएक वो सोफे से उठता है और अपने कमरे में चला जाता है.

रेडियो पर अब समाचार आ रहे हैं: ’न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेन्ज ७०० पाईंट गिरा’

Suicide

कमरे से गोली चलने की आवाज आती है.

पत्नी कमरे की तरफ भागती है. उसका शरीर खून से लथपथ जमीन पर पड़ा है, उसने खुद को गोली मार ली.

रेडियो पर समाचार जारी हैं कि ७०० पाईंट की गिरावट मानवीय भूलवश हुई है अतः उस बीच हुई सभी ट्रेड रद्द की जाती है.

वो मर चुका है.

-समीर लाल ’समीर’

नोट:  कुछ दिनों पूर्व महावीर जी के ब्लॉग मंथन  पर प्रकाशित

Indli - Hindi News, Blogs, Links

93 टिप्‍पणियां:

Sunil Kumar ने कहा…

रचना के बारे में क्या लिखूं समझ में नहीं आ रहा है क्योंकि मैं स्तव्भ हूँ बधाई

Sadhana Vaid ने कहा…

किसीकी मानवीय भूल ने एक खूबसूरत ज़िंदगी को बदसूरत कर दिया ! यदि यह भूल टी वी पर प्रसारित होने से पहले ही चेक कर ली जाती तो एक संभावनाओं से भरपूर जीवन का यों अंत तो ना होता और उस परिवार का वर्तमान और भविष्य इस तरह बर्बाद तो न होते ! इसकी भरपाई कौन करेगा ? हृदयविदारक कथा !

Amrendra Nath Tripathi ने कहा…

लघुकथा के नाम पर जो कचरा कर रहे हैं वे इस लघुकथा से सीखें तो बेहतर ! इतने कम में सटीक बात ! आभार !

अजय कुमार ने कहा…

अमीर और बहुत अमीर बनने की चाह में अपना सबकुछ दांव पर लगा देना ,इन सब का कारण है ।

Apanatva ने कहा…

jaldee dhanvan banne ke ye raste kitne galat hai ....share me to extra money hai to hee invest karna hota hai vo bhee short term bebefit nahee dekhana hota hai.........aisa palayan paristhitiyo se.................bhaya jitnee chadar utna hee pav pasaaro me vishvas karne wale hai par ye laghu katha bahut
kuch sikha gayee.........
jaldbazee kitnee ghatak hotee hai.........
aabhar.......

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" ने कहा…

बढ़िया आँखें खोलने वाली कहानी ... पैसा कितना भी महत्वपूर्ण हो पर जीवन से बढ़कर नहीं है ...

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

इसलिए कहा गया है-
बिना विचारे जो करे सो पाछे पछताए
काम बिगारे आपनो जग में हो हंसाए।

जल्दी का काम शैतान का,
जल्दी के दुष्परिणाम जल्दी सामने आते हैं।
एक संदेश है लघुकथा में।

आभार

Arun sathi ने कहा…

मौत ईतनी ही आसान है और जिन्दगी उतनी ही मुश्किल.

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…

समीरजी, पूर्व में पढ़ ली थी यह लघुकथा। मैं भी त्रिपाठी जी से सहमत हूँ कि आजकल लोग लघुकथा के सांचे को जाने बिना ही लघुकथा लिख रहे हैं और एक उत्तम विधा का अन्‍त करने पर तुले हैं।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

पहले पढ़ चुका हूँ पर पुनः पढ़ने में उतने ही भाव उमड़े।

रंजन ने कहा…

ये लो ब्रेकिंग न्यूज का कबाडा...

मैं तो ऐसा सोच रहा था..
"बाद में पता चला पिस्टल में 'भूल वश' नकली गोली डाल दी थी..... और जमींन पर लाल निशान् टोमेटो सोस के थे... वो बच गया.. सोच रहा था अगर गोली असली होती तो? :)"

रंजन ने कहा…

ये लो ब्रेकिंग न्यूज का कबाडा...

मैं तो ऐसा सोच रहा था..
"बाद में पता चला पिस्टल में 'भूल वश' नकली गोली डाल दी थी..... और जमींन पर लाल निशान् टोमेटो सोस के थे... वो बच गया.. सोच रहा था अगर गोली असली होती तो? :)"

रंजन ने कहा…

ये लो ब्रेकिंग न्यूज का कबाडा...

मैं तो ऐसा सोच रहा था..
"बाद में पता चला पिस्टल में 'भूल वश' नकली गोली डाल दी थी..... और जमींन पर लाल निशान् टोमेटो सोस के थे... वो बच गया.. सोच रहा था अगर गोली असली होती तो? :)"

Bhavesh (भावेश ) ने कहा…

समझ नहीं आता कि ये अपनी मुसीबत से निजात पा गए या अपने परिवार वालो के लिए मुसीबत का भरा पूरा सैलाब पीछे छोड़ गए.
शायद इसलिये कहा गया है "उतने पावं पसारिये जितनी चादर होए" ताकि इस तरह की भूल हो भी जाए तो उसे हजम कर सको.
आज के समय में अगर मनुष्य को अपनी जिंदगी ऐसी दूभर नहीं बनानी हो तो महापुरुषों जैसे संत कबीर के दोहों को पढ़े, मनन करे और अपने जीवन में उतारे. शायद इसी में जीवन का सार है.

संजय @ मो सम कौन... ने कहा…

पैसा कमाने की अंधी दौड़ में हम सब विवेक का इस्तेमाल करना भूल गये हैं। खानी वही दो रोटी ही होती हैं, लेकिन और ज्यादा, और ज्यादा की लालसा हमें कहीं का नहीं छोड़ती।

शशांक शुक्ला ने कहा…

समीर जी...क्या ये सत्य कथा पर आधारित है...वैसे ये लघु कथा अच्छी है...पर मुझे कहानी में कुछ औऱ लाइनें चाहिए थी...

वाणी गीत ने कहा…

dukhad ...

शोभना चौरे ने कहा…

वो भी एक मानवीय भूल ,ये भी एक मानवीय भूल |
dono akshmy

honesty project democracy ने कहा…

बहुत ही सार्थक लघुकथा और पैसा ही आज सब कुछ है ,किस तरह इन्सान बिना मेहनत के अमीर बनने की चाह में मौत को गले लगाता है तथा ठगी का दूसरा नाम शेयर बाजार है ,कुछ ऐसे मुद्दों पर सोचने को प्रेरित करती पोस्ट के लिए आपका धन्यवाद ...वास्तव में जिन्दगी के मायने ही बदल गए हैं जो पूरी इंसानियत के लिए खतरनाक है ...

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

जिंदगी का एक क्रूर सच, और जल्दबाजी इतनी कि सोचने-विचारने तक का समय नहीं किसी के पास।
आरजू चाँद सी निखर जाए।
ज़िदगी रौशनी से भर जाए।
बारिशें हो वहाँ पे खुशियों की
जिस तरफ आपकी नज़र जाए।

जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ।
--------
पॉल बाबा की जादुई शक्ति के राज़।
सावधान, आपकी प्रोफाइल आपके कमेंट्स खा रही है।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत मार्मिक लघु कथा....ऐसे सच को उजागर करती हुई कि कठिनाइयों का सामना धैर्य से करना चाहिए...जल्दबाजी में नहीं...

स्वप्निल तिवारी ने कहा…

solid solid..solid.... ek dum solid....ek film thi "dus kahaniyaan " usme ek kahani hai ....high on highway....thik waisa hi natkiya ant hai ....bahut achhi kahani ..

रंजू भाटिया ने कहा…

आज के वक़्त की सुन्दर लघु कथा ...सच तो यही है आज के वक़्त का ..उदास कर गयी और ..

Akshitaa (Pakhi) ने कहा…

अभी सोच रही हूँ...क्या लिखूं.

_____________________
'पाखी की दुनिया' के एक साल पूरे

माधव( Madhav) ने कहा…

कहानी तो बहुत भावनापूर्ण है पर समझ में नहीं आया उसने खुद को गोली क्यों मारी . सेयर बाजार तो गिरते उठते रहते है

shikha varshney ने कहा…

ओह्श....लघु कथा में बड़ी बात..

PAWAN VIJAY ने कहा…

क्या आपकी कहानी से कोई सीख लेगा? लोगो में अभी पैसे के उथलेपन कि जानकारी नहीं है. जिस दिन पैसा मूल्यों पर कमाया जाएगा उस दिन से ऐसी घटनाएं नहीं होगी

Rashmi Swaroop ने कहा…

Laghukatha... awesome hai..!
badhai.

Zindagi ki koi value hi nahi hai logo ko ! ajeeb hai...

:(

soni garg goyal ने कहा…

धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होए
माली सीचे सौ घड़ा, ऋतू आए फल होए !!!!!!

Parul kanani ने कहा…

sir shbd chitra bade sajeev lage!

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर ने कहा…

सुन्दर
(लघुकथा के लिए लघु टिप्पणी)

पश्यंती शुक्ला. ने कहा…

कितनी बार ऐसा होता है..लेकिन जो बीत गया सो बीत गया...मुझे अपनी लिखी एक पोस्ट याद आ गई...काश जिंदगी में ctrl+z होता. http://pashyantishukla.blogspot.com/2010/04/ctrlz.html
कुछ दिन पहले अपनी दादी की याद में लिखा था. आपने फिर से वही याद दिला दिया और मेरा दिल फिर कह रहा है काश जिंदगी में ctrl+z होता.

अरुणेश मिश्र ने कहा…

असावधानी का अच्छा शब्दांकन ।

anoop joshi ने कहा…

kya kahe?painse ki maya.......

राज भाटिय़ा ने कहा…

खेल खत्म पेसा हज्म...

Yogesh Mittal ने कहा…

upar neeche hona tou market ki policy hai,

agar aap is market ke utaar chadav se hi mout ko gale lagane lagey tou is market se dur rehna hi behtar hai

vo vyakti is market ke layak hi nahi tha

Yogesh Mittal ने कहा…

jab uska dhyan radio par tha hi nahi tou uski aatmhatya ka karan kya raha hoga?

P.N. Subramanian ने कहा…

नान्वीय भूल की त्रासदी में ही जीवन गुजर रहा है.

मनोज कुमार ने कहा…

यह लघु कथा आधुनिक विकास के द्वन्द्व एवं पाखण्ड को उजागर करती है।

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून ने कहा…

सट्टाबाज़ारी की जय हो.

Vinay ने कहा…

वाह जी

Arvind Mishra ने कहा…

जीवन के फैसले इतनी हडबडी में ? बिना विचारे जो करे ...यहाँ तो पछताने का भी मौका नहीं .....

डॉ टी एस दराल ने कहा…

कथा में कुछ गड़बड़ लग रही है ।
टी वी पर लाफ्टर चैलेन्ज , रेडियो पर गाना , पत्नी का गुनगुनाना , फिर उसका उठके चले जाना । उसे पता कैसे चला कि स्टॉक मार्केट ७०० प्वाइंट्स गिर गया है ? रेडियो में खबर तो बाद में आई।

वैसे बिजनेस में ऐसा ही होता है । पल में माशा , पल में तोला ।

Udan Tashtari ने कहा…

॒ दराल साहब

घाटा तो दोपहर तीन बजे ही लग चुका था..समाचार तो शाम क्या..दो दिन तक आते रहे रेडियो में.

Amit Sharma ने कहा…

जीवन एक उपहार है, इसे अंगीकार करो।
जीवन एक जुनौती है ,इसे स्वीकार करो।
जीवन एक संघर्ष है, इसका मुकाबवा करो।
जीवन एक लक्ष्य है, इसे प्राप्त करो।
जीवन एक ज्योति है, इसे प्रज्जवलित करो।

http://mybestbooks1.blogspot.com ----- से साभार

girish pankaj ने कहा…

dil dahalaa dene vali laghukathaa. magar sachchai ko bayaan karati hui.

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

उफ्फ्फ्फ्फ्फ्फ्फ्फ्फ्फ्फ्फ्फ्फ्फ्फ़

लोग इतने आवेश में क्यों आ जाते है...जरा आगा-पीछा सोच लेता वो पल भर को ही तो क्या बिगड जाता ? उफ़

आप की रचना 16 जुलाई के चर्चा मंच के लिए ली जा रही है, कृप्या नीचे दिए लिंक पर आ कर अपने सुझाव देकर हमें प्रोत्साहित करें.
http://charchamanch.blogspot.com
आभार
अनामिका

डॉ टी एस दराल ने कहा…

ओह ! इसी को होनी कहते हैं ।

मेरे एक मित्र ने भी ऐसा ही किया था ।
बस उसकी किस्मत में घाटा ही घाटा था ।

अजय कुमार झा ने कहा…

लघुकथा के नाम पर जो कचरा कर रहे हैं वे इससे सीखें........हाय हाय ...हम तो यही सोच सोच
के सोच रहे हैं ...कि अब हमें भी सीखना ही है । सच में मैं भी गंभीरतापूर्वक यही महसूस कर रहा हूं ।
बहुत ही कमाल की लघुकथा है ......

मनोज भारती ने कहा…

गलत खबर ...नुकसान...असंयम...मौत ...त्रासदी ...

सुमन्त मिश्र ने कहा…

और थोडी देर बाद उसी चैनल के सामाचारों में वह समाचार बन कर प्रसारित हो रहा था।

सम्वेदना के स्वर ने कहा…

समीर बाबू! बड़े बड़े शहरोंमें छोटा छोटा मिश्टेक होता ही रहता है..

विजय गौड़ ने कहा…

bahut arthwaan laghu katha hai, badhai sweekariye. khoob likhye. jam ke likhye-esa hi.

Avinash Chandra ने कहा…

chust..har shabd kimti aur jaruri tha..
bahut badhai

शिवम् मिश्रा ने कहा…

मैनपुरी में एक बार ऐसे ही एक लड़के ने अखबार में अपना रोल नंबर ना होने के बाद यह सोच कर कि वह exam में फेल हो गया है अपना जीवन खत्म कर लिया बाद में पता चला उसने स्कूल में टॉप किया था !

राजेश स्वार्थी ने कहा…

इतने कम शब्दों में एक सशक्त कथा. बधाई.

संजय तिवारी ने कहा…

bahur shandar hila dene wali laghu katha.

sanu shukla ने कहा…

बेहतरीन लघुकथा...!!

Dev K Jha ने कहा…

अंतिम फ़ैसला!!!

पंकज मिश्रा ने कहा…

समीरजी,वाह
लघु कथा अच्छी है.
आभार

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" ने कहा…

मानवी बुद्धि के अविवेक और उसकी विचारहीनता पर चोट करती आपकी ये लघुकथा बहुत ही बढिया लगी....
धन्यवाद्!

Rohit Singh ने कहा…

क्या कहें। आजकल सब्र नहीं रहा। हर जगह से आती नकारात्मक खबरें इतनी हो गई हैं कि जरा सी बात पर अब इंसान आपा जल्दी खो देता है। मर जाता है या मारने लगता है। दोनो ही स्थिति में हताशा अपने चरम पर होती है।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

ये कैसा न्याय कैसा स्रजन
प्राकृति का कैसा खेल
धरती का कैसा धर्म ...
--
एक प्रबावी और रोचक लघुकथा!

Abhishek Ojha ने कहा…

ओह !

Khushdeep Sehgal ने कहा…

गुरुदेव,
अगर मेरी पोस्ट वाली तीसरी बोतल साथ रखता तो बेचारे का ये हश्र नहीं होता...

सही कहा है...दीवानों की ये बातें बस दीवाने जानते हैं...

जय हिंद...

कडुवासच ने कहा…

... तत्कालीन उपजी परिस्थितियों का परिणाम, भावपूर्ण लघुकथा, बधाई !!!

संगीता पुरी ने कहा…

इसी कारण तो धैर्य शब्‍द का इतना महत्‍व दिया गया है!!

kumar zahid ने कहा…

समीर जी ,
एक दम सन्न कर देने वाली लघुकथा....
....
हादसे के बाद कुछ भी कहना बेमानी है ...
ऐसा होना था ,ऐसा नहीं होना था, ऐसा करना था ,ऐसा नहीं करना था ..उससे हादसे रिवाइंड नहीं होते कि खुशहाली में बदल जाएं...

दुष्यंतकुमार त्यागी जी का एक शेर है....

फाके में जो मर गया है उसके बारे में
सभी कहते हैं कि ऐसा नहीं ऐसा हुआ होगा

Ravi Kant Sharma ने कहा…

आध्यात्मिक दृष्टिकोण....यह तो होना ही था।

rashmi ravija ने कहा…

आत्महत्या का निर्णय बस एक क्षण में होता है...वह टल गया तो बच गए...बहुत ही मार्मिक कहानी

SATYA ने कहा…

बहुत खूब शब्दांकन,
आभार...

swaran lata ने कहा…

नमस्कार,
समीरजी आप मेरे ब्लाग पर आये
और मुझे अपना सहयोग दिया उसके लिये आप
का बहुत-बहुत धन्यवाद आशा है कि मुझे आप के सुझाव ओर सहयोग हमेशा मिलते रहेगे!
बहुत ही मार्मिक कहानी है
किस तरह इन्सान बिना मेहनत के अमीर बनने की चाह में मौत को गले लगाता है!
हादसा होने के बाद ही सुझता है सुझाव
बधाई

mehhekk ने कहा…

kabhi insaan bina soche samjhe koi aisa kadam jald bazi mein utha leta hai,jisse dusron ko baad mein bahut taklif ho.dil ko chir deti katha.badhai.

समयचक्र ने कहा…

लघुकथा का अंत सोचने को विवश कर रहा है की आत्महत्या किसी समस्या का समाधान नहीं है.... बढ़िया कथा ...आभार.

समयचक्र ने कहा…

आत्महत्या किसी समस्या का समाधान नहीं है.... बढ़िया कथा ...आभार.

हास्यफुहार ने कहा…

एक संदेश है लघुकथा में।

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) ने कहा…

आदरणीय समीरजी... सादर नमस्कार.... मैं अब फ्री हो गया हूँ... थोडा... अब से रेगुलरली आऊंगा... लघुकथा ने स्तब्ध कर दिया....

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) ने कहा…

आदरणीय समीरजी... सादर नमस्कार.... मैं अब फ्री हो गया हूँ... थोडा... अब से रेगुलरली आऊंगा... लघुकथा ने स्तब्ध कर दिया....

राम त्यागी ने कहा…

आवेश हावी हो गया और बुद्धि मर गयी :(

साधवी ने कहा…

हिला दिया इस कहानी ने!

drdhabhai ने कहा…

धक्का सा लगा..... समीर जी ये क्या किया आपने.....

dweepanter ने कहा…

मार्मिक कथा प्रस्तुत की आपनें....

बेनामी ने कहा…

मार्मिक लघुकथा।
मन को हिला कर रख देने वाली।
................
नाग बाबा का कारनामा।
व्यायाम और सेक्स का आपसी सम्बंध?

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

जी इस तरह की मानवीय भूलें न जाने कितनों की जाने ले लेती होंगी .....

पर आप कमाल करने लगे हैं ......
विल्स कार्ड से होते हुए ...कहानी, संस्मरण और अब लघु कथाएँ ......

"साहित्यकार समीरलाल"

बेनामी ने कहा…

कहानी लघु पर सीख बहुत बड़ी....

nilesh mathur ने कहा…

बहुत प्रभावशाली लघुकथा है, भैया देर से आने के लिए माफ़ी, एक महीने से टूर पर था!

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

vakai sunn kar di rachna ne ! dimag aur dil dono stabdh hain !

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

मंजिल के लघु पथ कटान में जीवन के सब सार बह गए...
..अलग और बेहतरीन अंदाज..वाह!

विनोद कुमार पांडेय ने कहा…

कम शब्दों में एक बेहतरीन भाव प्रस्तुत करती सुंदर कथा...आज के समाज की सच्चाई है जल्द से जल्द फ़ैसलें लेने वालों के लिए अब बाद में तो कुछ भी नही हो सकता हैं....धन्यवाद समीर जी लघुकता अच्छी लगी..बधाई

डॅा. व्योम ने कहा…

बहुत प्रभावक तरीके से संदेश दिया गया है...... वधाई ।

Asha Joglekar ने कहा…

स्तब्ध कर देने वाली कथा ।
जब आवे संतोष धन सब धन धूरि समान ।

Smart Indian ने कहा…

fragile

kanu..... ने कहा…

aaj aapki saari kahaniyan ek sath padh rahi hu.aur saari padh rahi hu iska ek hi matlab hai ki phli kahani ne mujhe bandh liya aur ek ke baad dusri padhti ja rahi hu.
bahut hi sundar kahaniyan hai sab.