रविवार, जून 06, 2010

बेवजह की शोध: फिजूल खर्ची!!

एक समाचार पढ़ता था...अब आ गई सिगरेट छुड़ाने वाली मशीन

दिल्ली के दो सरकारी अस्पतालों और इनके तंबाकू से निजात दिलाने वाली क्लिनिकों में कंपनयुक्त एक्यूप्रेशर तकनीकी की जल्द ही शुरुआत हो सकती है। जर्मन निर्मित बायो-रेसोरेंस [कंपन चिकित्सा] उपकरण, शरीर के अंदर के विद्युतीय तरंगों के साथ मिल कर आपमें निकोटीन लेने की इच्छा को कम करता है।

राज्य सरकार द्वारा संचालित इंस्टिट्यूट ऑफ ह्यूमन बिहैवियर एंड अलाइड साइंस के निदेशक डाक्टर नीमेश देसाई ने बताया कि बायो रेसोरेंस यंत्र पहली सिगरेट पीने के बाद आपमें अगली सिगरेट पीने की इच्छा को समाप्त कर देता है। सिगरेट छुड़ाने का यह उपचार न तो नुकसानदायक है और न ही पीड़ादायक है। इस चिकित्सा पद्धति में किसी प्रकार की कोई दवा भी नहीं लेनी पड़ती।

जर्मन निर्मित!! हम्म!! न जाने कितने की खरीदी होगी. न जाने कितने रिसर्च किए होंगे इसको बनाने वालों ने. बरसों के अथक परिश्रम और न जाने कितने पैसे खर्च के बाद आखिरकार सफलता पा ही ली. ८०% सफलता का तो दावा होगा ही कि तम्बाखू पीने की इच्छा जड़ से समाप्त हो जायेगी. इसके पहले भी न जाने कितनी शोध की गई और न जाने क्या क्या प्रोडक्ट बाजार में लाये गये मसलन निकोटीन पैच, च्यूईन्गम, प्लास्टिक पाइप आदि. सभी के सफलता के रेट ५० से ८०% तक आंके गये.

फिर इनके साईड अफेक्ट?? कहते हैं इस मशीन के कोई साईड अफेक्ट नहीं है. लेकिन यह मशीन बस सिगरेट पीना छुड़ाती है और एक बार आपकी सिगरेट पीना छूट गई, तो यह मशीन आपके लिए किसी काम की नहीं. और फिर सिगरेट के अलावा बाकी की लतों के लिए क्या अलग अलग मशीन खरीदनी पड़ेगी?

एक कहानी गुरुदेव ने सुनाई थी कि एक कवि के पास उनके मित्र आये और बोले कि क्या दिन भर बैठे कविता करते रहते हो, कुछ काम क्यूँ नहीं करते? कविवर ने पूछा कि काम करने से क्या होगा? मित्र ने कहा कि उससे पैसा आयेगा. कवि जी ने कहा फिर? मित्र बोले कि फिर और काम करोगे, तो और पैसा..धीरे धीरे कुछ सालों में पैसा ही पैसा हो जायेगा. कवि बोले, फिर? मित्र ने कहा, फिर क्या, फिर रिटायर होकर आराम से बैठना और कविता करना. कवि मुस्कराने लगे कि सो तो मैं अभी ही आराम से बैठा कविता कर रहा हूँ फिर इसके लिए इतनी मशक्कत क्यूँ??

हमारे साथ यही समस्या है जो चीज हमारे पास फ्री में ईश्वरीय देन के रुप में उपलब्ध है, उसे छोड़ कर हम शोध में जुट जाते हैं और घूम फिर कर ऐसे परिणाम निकाल कर मुग्ध हो बैठ जाते हैं, जो बिना शोध के यूँ भी दीगर व्यवस्थाओं से उपलब्ध थे.

अब देखिये, हमें न तो यह मशीन खरीदना पड़ी और न सिगरेट छूट जाने के बाद मशीन बेकार हुई. मिर्जापुर से लाये थे बकायदा शादी करके. मशीन ऐसी कि न जाने कितने ऐब छुड़ा दे, सिगरेट तो बड़ी मामूली चीज है. दारु से लेकर ताश खेलने तक सब एक झटके में छुड़ाने की काबिलियत. बना सकता है कोई ऐसी मशीन लाख शोध करके भी जो आपकी बरसों की आवारागर्दी की आदत एक दिन में छुड़ा दे??

और ऐसा भी नहीं कि आदत छुड़ाई और मशीन बेकार. आजीवन साथ रहती है. खाना खिलाने से लेकर कायदे का जीवन जीने के लिए सदैव उपयोगी. मार्फत उसके ही आप पापा बनकर इठलाते हैं.

कम्पलीट मल्टी परपज पैकेज डील है फ्री में और जिन जगहों पर दहेज का प्रचलन हो, वहाँ तो समझो पौ बारह-मानो सरकारी सोलर कुकर इस्तेमाल कर रहे हो कि सोलर कुकर भी ले आओ और सरकार से इसे लाने के प्रोत्साहन स्वरुप अनुदान राशि भी प्राप्त करो. (वैसे तो दहेज रुपी अनुदान राशि घूस के भेष में जर्मन मशीनों की खरीद में भी प्रचलन के अनुरुप आई ही होगी, ऐसा माना जा सकता है). आजकल तो अधिकतर पत्नियाँ नौकरी पेशा हैं तो मन्थली रिकरिंग स्बसीडी की व्यवस्था ही जानो. (इसे चाहें तो मशीनों के एनुअल मेन्टेनेन्स कांट्रेक्ट में से मिलने वाले कट के समकक्ष रखना आपकी सोच पर निर्भर करता है, मैं क्या कहूँ)

हाँ, साईड अफेक्ट तो हैं मगर उनका जिक्र करना गैर जरुरी है क्यूँकि ये हर व्यक्ति के लिए अलग अलग टाईप के हैं जिसे शुद्ध हिन्दी की फिल्मी भाषा में केमिकल लोचा कहा गया है और जो बात ही लोचा हो उस पर किसने सोचा तो खामखां मैं ही क्यूँ सोचूँ.

वैसे सक्सेस रेट इधर भी ७०-८०% ही है. कई पुरुष बहुत अख्खड़ होते हैं जिन पर यह मशीन भी काम नहीं करती. मगर ये ठीक वैसा ही मामला ही कि स्क्रूड्राईवर का काम है स्क्रू को घुमाना किन्तु यदि स्क्रू की मुंडी ही सपाट हो जाये या वो जंग खाकर टेढ़िया जाये, तो स्क्रूड्राईवर की क्या गलती और वो क्या कर लेगा. ये सब अपवाद ही कहलाये.

और फिर अपवादों को गिनने लग गये तब तो हो चुके शोध और चल चुकी दुनिया.

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90 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

आपकी उङन तस्तरी ने इस लेख पर कमाल का शोध किया है । आप 70% तक कामयाब हुऐ ।
hindi-blog.feedcluster.com

सतीश पंचम ने कहा…

हा हा हा.....बेलन की तस्वीर सब कुछ कह देती है.....एकदम सटीक।

मजेदार पोस्ट।

संजय भास्‍कर ने कहा…

यकीन मानिए युवाओं को सिगरेट पीना बहुत पसंद हैं। बात उनकी हो रही है जो सिगरेट पीते हैं या पीने की चाह रखते हैं। मगर यह तो सिगरेट पीने वाला ही बता सकता है कि वह इससे कितना संतुष्‍ट है। इससे दिल को सूकुन मिले या न मिले मगर चंद रुपयों की उधारी जरूर मिल जाती है।

एक बेहद साधारण पाठक ने कहा…

कौन समझाए ???

अच्छी पोस्ट

Gyan Darpan ने कहा…

वैसे सक्सेस रेट इधर भी ७०-८०% ही है. कई पुरुष बहुत अख्खड़ होते हैं जिन पर यह मशीन भी काम नहीं करती

@ ये तो बेलन की साइज़ पर निर्भर होता है :)

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

V.Nice

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

"अब देखिये, हमें न तो यह मशीन खरीदना पड़ी और न सिगरेट छूट जाने के बाद मशीन बेकार हुई. मिर्जापुर से लाये थे बकायदा शादी करके. मशीन ऐसी कि न जाने कितने ऐब छुड़ा दे, सिगरेट तो बड़ी मामूली चीज है. दारु से लेकर ताश खेलने तक सब एक झटके में छुड़ाने की काबिलियत. बना सकता है"

Ha-ha-ha-ha... bhabhi ji kaa e-mail Id milega ?

वाणी गीत ने कहा…

कोम्प्लित पॅकेज डील की तस्वीर ही पूरी कहानी बयान कर रही है ...
इस बेलन के आगे तो क्या ऐब ना छूट जाए ..

Neeraj Rohilla ने कहा…

काहे हमें डरा रहे हैं कम्पलीट पैकेज रूपी बेलन दिखाकर,

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

अच्छी पोस्ट है, बस भाभी को मशीन बताना अखरा। बेलन से डर नहीं लगा?

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत ही बढ़िया जानकारी के साथ आपने आज की पोस्ट प्रस्तुत की है!
--
अब तो आपको विल्स की सिगरेटों से छुटकारा मिल ही जायेगा!
--
आशा करता हूँ कि भारत में भी यह उपचार-प्रणाली शीघ्र ही आ जायेगी!
-
पोस्ट में एक स्थान पर इच्छा की बजाय "च्च्छा" टाइप हो गया है!
इसे सुधार देंगे तो बहुत ही अच्छा होगा!

Dr Parveen Chopra ने कहा…

कल इस मशीन के बारे में पढ़ कर माथा मेरा भी ठनका था ....बहरहाल, बहुत ही बढ़िया ढंग से आप ने इसे रियल लाईफ के साथ जोड़ते हुये पाठकों को बहुत ही बातों का आभास दिला दिया ---आप ने सही फरमाया कि अब हर आदत को छोड़ने के लिये क्या नई मशीन खरीदोगे?
आप बहुत अच्छा लिखते हैं!!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

NICE POST.

गिरिजेश राव, Girijesh Rao ने कहा…

नहीं छोड़नी है न छोड़िए, शोध कार्यों पर नस्तर काहे चला रहे हैं ?

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…

आपका खानदानी फार्मूला भी बेहद खर्चीला है। लेकिन है एकदम दुरस्‍त। पहले बोतल में से जिन्‍न निकलता था तो कहता था कि जो हुकम मेरे आका लेकिन अब जिनी निकलती है और कहती है कि मेरे गुलाम यह कर। और वह गुलाम खुशी-
खुशी सब कुछ करता है। बेहद बढिया पोस्‍ट।

Mansoor ali Hashmi ने कहा…

ग़ज़ब है आपका sense of humor जादूगर की तरह अपनी थेली में से क्या-क्या अचरज भरी बाते निकल लाते है आप!

Arvind Mishra ने कहा…

हा हा ..मिर्जापुरियन मशीने -मिजाजपुर्सी भी और आदत सुधराई भी ...एक अपुन के पास भी है ....
कासे कहूं पीर जिया की माई रे ....आज आप मिल गए हैं तो हालाते दिल भी बयां करेगें आहिस्ता आहिस्ता ....
मिलेगें कभी तो गलबहियां डाल कर रो भी लेगें -दुखवा सुखवा बाँट लेगें !
सीनियर मशीन को नमन -पूरा नतमस्तक होकर !

संजय भास्‍कर ने कहा…

-आप ने सही फरमाया कि अब हर आदत को छोड़ने के लिये क्या नई मशीन खरीदोगे?

डॉ टी एस दराल ने कहा…

कम्प्लीट पैकेज डील तो है लेकिन फ्री में नहीं ।
इसकी मेंटेनेंस पर तो बहुत खर्च करना पड़ता है जी ।

डॉ निमेश देसाई से तो मिलना जुलना होता रहता है ।

रंजन ने कहा…

अगर मशीन भी उसी आदत से ग्रस्त हो तो? :)


मजा आया..

अविनाश वाचस्पति ने कहा…

सिगरेट बनाने वाली कंपनियों और सरकार इनसे जो राजस्‍व प्राप्‍त करती है - उन दोनों के तो रोने के दिन आ गए समझो। इस मशीन पर टैक्‍स लगाकर सरकार तो अपना नुकसान पूरा कर लेगी परंतु ....

Udan Tashtari ने कहा…

आभार शास्त्री जी, ठीक कर लिया है.

सम्वेदना के स्वर ने कहा…

छुटती नहीं है काफिर ये मुँह की लगी हुई... इसी लिए हम ऐसे वैसे को मुँह नहीं लगाते… हमारे स्वर्गीय पिताजी ने हम पर यह पाबंदी आयद कर दी थी कि पहली सिगरेट हमारे सामने पिओगे या हमें बताकर. अब इतने ओछे संस्कार तो उन्होंने दिए नहीं थे हमें, लिहाजा कम्बख़्त को चूमने की ख़वाहिश दिल ही में रह गई… और उस सफेद हाथी की ज़रूरत भी नहीं हमें!! मज़ा आ गया, कविता होती इसके साथ तो मज़ा दुगुना हो जाता.

राम त्यागी ने कहा…

content ke saath saath photo bhi mast hai ....

Madhu chaurasia, journalist ने कहा…

किसी भी आदत को छोड़ने के लिए मन को समझाना जरूरी है...मशीन कब तक किसी का साथा दे भला?

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

....मजा आया पढ़कर. लेकिन मशीन पर पूरी तरह से निर्भर रहन ठीक नहीं...कहीं बिगड़ गई तो पूरी तरह अपंग हो जाएंगे. दुखद पहलू यह भी कि नई का आर्डर भी नहीं दे सकते..!

कडुवासच ने कहा…

...प्रसंशनीय पोस्ट!!!

विनोद कुमार पांडेय ने कहा…

मुझे इस बारे में ज़्यादा पता नही मगर अगर कोई अनुभवी व्यक्ति इस बारे में कह रहा है तो सच ही होगा...आज़माने वाले लोगों की शोध है तब तो बहुत बढ़िया हैं.....मजेदार प्रसंग...धन्यवाद समीर जी

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

और ऐसा भी नहीं कि आदत छुड़ाई और मशीन बेकार. आजीवन साथ रहती है. खाना खिलाने से लेकर कायदे का जीवन जीने के लिए सदैव उपयोगी. मार्फत उसके ही आप पापा बनकर इठलाते हैं.

बात तो बिलकुल पते की कही है... :) :) पर जंग लगे स्क्रू का क्या किया जाये ? इस पर तो शोध होना चाहिए.. हा हा हा

बहुत बढ़िया प्रस्तुतिकरण

Mansoor ali Hashmi ने कहा…

% ऑफ़ बेलन होल्डर शोचनीय है [टिप्पणी कर्ताओं में ] ओनली ३.४४% [ २९ में से १ मात्र] , अपनी ख़ैर मनाईये समीरजी.

sanu shukla ने कहा…

बहुत सुंदर पोस्ट है भाईसाहब....:-)

वो एक कवि बलि कहानी भी काफ़ी अच्छी है

शिवम् मिश्रा ने कहा…

कम से कम एक चेतावनी तो लगा दी होती कि "कमजोर दिल वाले ज़रा संभल कर !"
एक दम अचानक से 'बेलन' ....................जान ही निकल गयी थी एक बार को |

honesty project democracy ने कहा…

सार्थक प्रस्तुती और प्रेरक जानकारी पर चर्चा करती पोस्ट ,जो समझे उसका भी भला जो ना समझे उसका भी भला !

संजीव द्विवेदी ने कहा…

शुरुवात मे खयाल आया कि काम की मशीन है,लेकिन "कम्पलीट मल्टी परपज पैकेज डील" वाले पैरा मे पहुँचने पर नई मशीन की व्यर्थता समझ मे आ गई ।

अन्तर सोहिल ने कहा…

पहले तो ये लोग (जर्मन वाले) राज भाटिया जी के कहने से उल्टे सीधे उत्पाद बनाते रहते हैं। फिर भारत वाले भी तुरंत मंगवाने की जुगत भिडाने लगते हैं। :)
सही कहा आपने
"बेवजह की शोध:फिजूल खर्ची"

सबके पास अपनी-2 मशीन है, जो सिगरेट तो क्या माता-पिता, बहन-भाई तक छुडा देती है। फिर भी?

प्रणाम स्वीकार करें

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

yah jo aujaar hai ye kai kaam aata hai...
iska patent kara lijiye...

rashmi ravija ने कहा…

हा... हा...मैं तो बड़ी गंभीरता से पढ़ रही थी...पता नहीं कितनी ज्ञान की बातें लिख डालीं...पर बात तो बेलन में ख़त्म हो गयी....सिर्फ तस्वीर ही काफी है..:)

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

Are vaha aaj ki post ke kaya kahne bahut khub!!

दिगम्बर नासवा ने कहा…

गुरुदेव .. ये शोध किया है या ... भाभी ने प्रयोग किया है ... पर दारू तो नही छूटी ... क्या और भी कुछ आदत थी जो छूटी है ...

Urmi ने कहा…

बेलन वाली तस्वीर तो कमाल का है! वैसे बुरी आदत को छोड़ना हर इंसान पर निर्भर करता है कि उनमें कितना आत्मविश्वास है! चाहे दारु पीना हो या धुम्रपान ये किसीके कहने से नहीं छूटता बल्कि प्रण लेना चाहिए क्यूंकि न तो ये केवल हानिकारक है बल्कि फ़िज़ूल ख़र्च है जिसे बचाने से अन्य ज़रूरी काम के लिए ये पैसे खर्च किया जा सकता है!

Sulabh Jaiswal "सुलभ" ने कहा…

ह्म्म्म !

शोध जारी रहे... उन पर जहाँ जंग लग जाते हैं...!

मीनाक्षी ने कहा…

यदि स्क्रू की मुंडी ही सपाट हो जाये या वो जंग खाकर टेढ़िया जाये, तो ----- ऐसे अपवाद अधिक अखरते हैं उस बारे मे भी कुछ उपाय सुझाइएगा...

Parul kanani ने कहा…

sir....sirrrrrrr...aapka jawab nahi :))

Pramendra Pratap Singh ने कहा…

आपकी पोस्‍ट आज के लिये उत्तम रचना है, आज के दौर के युवा ज्‍यादा तर युवा और बच्‍चे इसके शिकार है, पता नही मशीन कितनी कारगर होगी काश हम ही इसे छोड़ पाते।

vandana gupta ने कहा…

belan ke aage to kafi kuch chhoot jataa hai phir ye cigareette kyaa hai...........hahahaha.

ज्योति सिंह ने कहा…

aapki khoj bhi kam jabardast nahi .tambaakoo se joori jaankari aham rahi

ज्योत्स्ना पाण्डेय ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति....

शुभकामनाएँ....

दिनेश शर्मा ने कहा…

समीर जी ,मान गए क्या शोध किया है?

anoop joshi ने कहा…

good sir

seema gupta ने कहा…

हा हा हा हा हा अब इस मशीन की सफलता पर ही निर्भर करता है.....सुन्दर आलेख
regards

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

समीर जी, जिस मशीन की आपने बात की है इसके रख रखाव मे खर्चा बहुत ज्यादा पड़ता है..;))

बढिया पोस्ट है। बधाई।

shikha varshney ने कहा…

कम्प्लीट पैकेज कम्प्लीट है जी ..बस..

कविता रावत ने कहा…

फिर इनके साईड अफेक्ट?? और फिर सिगरेट के अलावा बाकी की लतों के लिए क्या अलग अलग मशीन खरीदनी पड़ेगी?
कमाल का शोध ...
बढ़िया प्रस्तुतिकरण,,,,,,,,,

P.N. Subramanian ने कहा…

बेहद मनोरंजक.

नीरज गोस्वामी ने कहा…

लगता है आपका कमर दर्द गायब हो गया है तभी ऐसी पोस्ट लिख पा रहे हो...भाभी ने पढ़ ली तो कमर दर्द के साथ साथ सर दर्द की गारंटी अपन से ले लो...जो चित्र में दिखाया है ही वो सीधा सर पर लैंड होगा...भगवान् आपकी रक्षा करे...( ये महज़ दिल रखने को कह रहा हूँ वर्ना कब भगवान् ने किसी की रक्षा की है...की होती तो पिटने वाले पतियों की तादाद ना पिटने वालों से कई गुना अधिक नहीं होती...)

नीरज

दीपक 'मशाल' ने कहा…

बहुत ही कमाल का लेख/आलेख/व्यंग्य.. क्योंकि ये सबकुछ है.. पर एक छोटी सी कहानी जोड़ना चाहता हूँ..
एक पहुंचे हुए महात्मा के पास एक हताश-निराश व्यक्ति पहुँचता है और उनसे कहता है कि 'महात्मा जी, मैं बहुत परेशानी में हूँ.. कई सालों से सिगरेट पीने की बुरी लत लगी हुई है.. वैसे मुझे इसके सारे दुष्प्रभावों के बारे में पाता है और कई बार इसे छुड़ाने की बहुत कोशिश की पर ये आदत है कि मुझे छोडती ही नहीं.'
कह कर वो खामोश हो गया और महात्मा जी की तरफ बड़ी उम्मीद से देखने लगा.
महात्मा बहुत सिद्ध पुरुष थे और बड़ी से बड़ी समस्या का हल चुटकियों में निकाल देते थे लेकिन उन्होंने धैर्य पूर्वक बात सुनने के बाद उस व्यक्ति से सुबह ५ बजे उनके पास आने के लिए कहा..
वो व्यक्ति कुछ समझा नहीं लेकिन जैसा कि महात्मा जी ने कहा था वैसे ही अगले दिन सुबह ५ बजे उनके समक्ष उपस्थित हो गया.
महात्मा जी ने कहा कि 'भाई सुबह का वक़्त है चलो नज़दीक के बगीचे में टहल कर आते हैं..'
अब उन सज्जन को अपनी समस्या का हल जो चाहिए था तो जैसे महात्मा जी ने कहा वैसे वो करते गए..
बगीचे में दोनों काफी देर तक चुपचाप टहलते रहे.. जब वापस लौटने का वक़्त हुआ तो अचानक महात्मा जी ने एक पेड़ की डाल को जोर से पकड़ लिया और लगे चिल्लाने कि 'बचाओ.. बचाओ..'
अब वो व्यक्ति देख परेशान हो गया मगर फिर भी उनके हाथ पकड़ कर डाल को छुड़ाने लगा..
व्यक्ति जितनी छुडाने की कोशिश करता महात्मा जी उतनी ही जोर से डाल को और कस के पकड़ लेते..
जब काफी देर हो गई तो उस व्यक्ति ने कोशिश करनी बंद कर दी और महात्मा जी पर झल्लाते हुए बोला, 'अजीब आदमी हैं आप खुद तो डाल छोड़ नहीं रहे और दुनिया भर का शोर मचा रहे हैं.. भला ये डाल भी किसी को पकड़ सकती है क्या?'
महात्मा जी ने मुस्कुराते हुए तुरंत डाल को छोड़ दिया और कहा, ' यही बात तो मेरे समझ में नहीं आ रही कि सिगरेट किसी को कैसे पकड़ सकती है.. ये सिगरेट तुम्हें नहीं छोड़ना चाहती या तुम सिगरेट को?'
कहने की जरूरत नहीं कि दृढ निश्चय से कुछ ही दिन में उन महाशय की सिगरेट की लत छूट गई.

स्वप्निल तिवारी ने कहा…

blogjagat par der se aaya hun ..apr jab se aaya aur aap ko jitna padha ..unme sabse sabse sabse achhi post mujhe yahi lagi aap ki .. kitni pyaari baate hain ..ek muskurahat aa gayi chehre par badi der se tnsn me tha... :)thanku soo muchhhh

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" ने कहा…

ये तो बताया ही नही कि आप वो मशीन कैसे लाए...रोकडा खर्च करके या सरकारी अनुदान पे :)

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर ने कहा…

सर जी देखिएगा आप मिर्जापुरी महिला को मशीन बता रहे हैं!!!!!!!!!!!!!! ध्यान दीजिये महिला को मशीन.............?????????????
समझ गए होंगे..... ऐसे ज्वाला भड़काने वाले शब्द लिखकर महिला मुक्ति मोर्चा से पंगा........ अब पता नहीं और क्या-क्या छूटेगा आपका.....???
जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड

Rakesh Singh - राकेश सिंह ने कहा…

समीर जी आप जिस मशीन और उनके गुणों की बात कर रहे हैं वो भारत निर्मित हो तभी इतने सारे गुण मिलेंगे | कम से कम इस मशीन के मामले में भारत का मशीन विदेशों से अव्वल है |

जिन्हें मेरी बात का भरोषा नहीं वो विदेशी मशीन को आजमा कर देख लें |

इस देशी मशीन की महिमा अपरम्पार है !!!

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

आपकी रचना....( कविता का मौसम ) कल मंगलवार को चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आएगी

http://charchamanch.blogspot.com/

Dev K Jha ने कहा…

सही है गुरुदेव.... बेलन दिखा के डरा दिए बस..

डॉ महेश सिन्हा ने कहा…

एक और सपाट मुंडी
हा हा हा हा हा

माधव( Madhav) ने कहा…

प्रसंशनीय पोस्ट

राज भाटिय़ा ने कहा…

अजी अगर यह मशीन खराब निकले तो? या बिगड जाये तो??

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

यही देशी मशीन ही काम आती है ।

MAHAVEER B SEMLANI ने कहा…

kiya Baat....kiya Baat....kiya Baat....


VVN

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

समीर बाबू!! ई त ठेठ हमरे ननिहाल (मिर्जापुर) का है... बाकी हम त ऊ लोग का बारे में सोच रहे हैं जिनका घर में हमरा ससुराल वाला, ठोस इस्टेनलेस इस्टील का होगा… अब आप सबको बोल मत दीजिएगा कि हम काहे नहीं “स्वेत दण्डिका” माने सिगरेट पीते हैं!!!

Khushdeep Sehgal ने कहा…

गुरुदेव,
और सब मशीनों का चलना-बंद होना आपके हाथ में होता है...

लेकिन इस मशीन से तो भगवान भी तौबा करता है...

जय हिंद...

Rohit Singh ने कहा…

ये क्या दिखा दिया बॉस। इस मशीन के दंड देने का जो अस्त्र और शस्त्र जो एकसाथ है उससे तो बडे़ बड़े सूरमा धराशाई हो गए हैं फिर काहे को बच्चों को डरा रहे हैं। भले ही मेरे पास कोई जाति तजुर्बा नहीं है. पर देख देख के सूरमाओं को धराशाई मुझे पहले ही नानी याद आई।
वैसे मैने बिना मशीन के ही सात साल पहले सिगरेट छोड़ दी थी। चार साल पहले उंचे लोग नीची पंसद वाला गुटखा भी छोड़ चुका हूं। हां बस जो लगी है आजादी की आखिरी निशानी है उसे महीने में दो तीन बार..और ज्यादा ही प्यार आया आजादी से तो हफ्ते में दो तीन बार....गले लगा लेते हैं.....आखिर बच्चन जी की कविता वहीं तो साकार होती है।
खैर बाकी कमजोर दिल वाले पहले से ही अपने दिल का बीमा करवा लें तो बेहतर होगा। अपन भी उसमें आते हैं या नहीं ये अभी अपुन को नहीं मालूम.......आगे आगे देखिए होता है क्या.....

मनोज कुमार ने कहा…

विद्यार्थी जीवन में बहुत सारे ऐब एक्स्ट्रा क्यूरिकूलर एक्टिविटी के रूप में पाल रखी थी। धीरे-धीरे सब छूटते गए माता-पिता, दोस्त रिश्तेदार के समझाने/कहने पर। पर एक ऐब धरे रखा, जिसकी चर्चा अपने की है।
जब उन्होंने (जिस मशीन की चर्चा आपने की है) कहा इसे छोड़ दो तुम्हें हमारी क़सम तो वह भी छूट गई। बेलन तक की नौबत ही नहीं आई।
बहुत मज़ेदार पोस्ट। पढकर अच्छा लगा।

स्वप्न मञ्जूषा ने कहा…

अच्छा ई कारण था...!!
अब समझे ....!!
एतना बड़ा बड़ा टांका देख कर ..हम भी परेशान थे....की का हुआ है आपको...
लगता है साधना जी ने आपको खूब साधा है...
हाँ नहीं तो..!!

arvind ने कहा…

हा हा हा........एकदम सटीक।

मजेदार पोस्ट।

बेनामी ने कहा…

Abhi tak mai samajhta tha ki ek kamyab aadmi ke peechhe ek aurat hoti hai, ab aur samajh me aiya ki ek kamyab shodhkarta ke peeche ek kamyaab aurat hoti hai, aur, us kamyab aurat ke peechhe (chhupaya hua) belan hota hai. badhai.

Punah: kripya helmet me invest kare, jald.

स्वाति ने कहा…

पढ़कर मजा आया ...

Nitish Raj ने कहा…

काफी पहले ही ये पैकेज मैंने ले लिया था।

"SHUBHDA" ने कहा…

your sence of humour is very nice

रंजना ने कहा…

सौ प्रतिशत सहमत.....एकदम पक्की बात कही आपने...

जानदार और मजेदार पोस्ट....आनंद आ गया पढ़कर...

शशांक शुक्ला ने कहा…

समीर जी कहानी काफी पसंद आई..

प्रिया ने कहा…

By the Way apni machine se kabhi poocha hai...ki chust durust karne mein kya khoya kya paya....Matlab jab hi sochenge to fayde ke baare mein hi :-) Nice comment bhi aur compliment bhi

Aseem ने कहा…

सब प्राइवेट कंपनियों की कारगुजारी है..पहले टो सिगरेट पिलाओ..उसमे पैसा बनाओ..फिर उसको छुडाने मे पैसा बनाओ..नशा सबसे ज्यादा पैसा खर्च कराता है साहब.
सही कहा है आपने भारतीय पत्नी तो पता नहीं क्या क्या छुडा दे..बेलन मे प्यार मिला के :)
बहुत अच्छा लिखा है आपने

साधवी ने कहा…

ही ही, आप भाभी जी डरते नहीं है क्या या फिर उन्हें पता नहीं चलता कि आप उनके बारे में क्या क्या लिखे जा रहे हैं?

मजेदार लगा.

संजय तिवारी ने कहा…

Shandaar. Ek machine mere pass bhi hai local Jabalpur made. :)

आचार्य उदय ने कहा…

आईये जानें ... सफ़लता का मूल मंत्र।

आचार्य जी

रंजू भाटिया ने कहा…

बढ़िया :) कुछ आदतें कहाँ जुदा हो पाती है ..

Rajeev Nandan Dwivedi kahdoji ने कहा…

शोध और आssssssप !!!
प्रभु काहें वैग्यानिकन के पेट पर लात.....!!
.
हा हा हा
मजेदार विश्लेषण.
फोटुआ सभी बड़ी मजेदार लगाई हैं.

Manish ने कहा…

main toh pahle hi kah raha tha....

aaj aapne khud likh diya hai...

score -> 5 - 3

.75 & .25 ka her fer hua hai...

agli baar sab baraabar ho jaayega... :) :)

कुमार राधारमण ने कहा…

Pravaas men hun,isliye yah to nahi pata ki vaayade ke mutabiq sarkar ne cigarrette packet ke liye 1 june se bhayavah tasveer jari ki ya nahi. Lekin mujhe lagta hai ye belan vali tasveer bhi packet par asardaar rahegi.

Unknown ने कहा…

bhaaiji aapke pas to sari nashebaji ko chhudane wali mashin to hai jisake pas nahi wah kya kare ? wah to in baigyniko ke mashino ya sarch se kam chala raha hai aur fir wo baigyanik hai agar wah kuchh karenge nahi to unhe baigyanik kaun bolega ?aakhir unki majaburi hai unhe bhi to kuchh karate rahana hoga .
arganik bhagyoday.blogspot.com

Unknown ने कहा…

bhaaiji aapke pas to sari nashebaji ko chhudane wali mashin to hai jisake pas nahi wah kya kare ? wah to in baigyniko ke mashino ya sarch se kam chala raha hai aur fir wo baigyanik hai agar wah kuchh karenge nahi to unhe baigyanik kaun bolega ?aakhir unki majaburi hai unhe bhi to kuchh karate rahana hoga .
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