गुरुवार, अप्रैल 01, 2010

समेटना बिखरे भावों का- भाग २

अभी १० दिन पहले ही इसका भाग १ प्रस्तुत किया था. देखता हूँ तो पाता हूँ कि अपने भावों को इतना बिखेर चुका हूँ यहाँ वहाँ कि समेटने में भी समय लगेगा. कुछ और समेट लाये बिखरे भावों को और प्रस्तुत है आपके लिए.

चुप रहना भी कोई, मेरी मजबूरी तो नहीं,
हर बात जुबां से बोलूँ, कोई जरुरी तो नहीं.

*


जिन्दगी यूँ ही तो, भटक नहीं जाती..
उसकी गली को हर सड़क नहीं जाती..

*


अपने जख्मों पर कुछ यूँ भी मुस्कराता हूँ मैं..
याद वो आ जाये तो खुद को भूल जाता हूँ मैं..

-मुस्कराने की खातिर, एक जख्म कुरेदा है अभी.

*


वो अपनी हरकतों से बाज नहीं आयेगा
बिना खिलाफत राम राज नहीं आयेगा.
नाकामियों से अपनी निराश मत होना,
बिना कोशिशों के ये ताज नहीं आयेगा.

*


petals

जानता हूँ ये जिन्दगी आगे है,
पीछे छूटी वो सिर्फ कहानी है...

न जाने क्यूँ फिर भी,
मुड़ मुड़ के देखता हूँ मैं!!

*


मेरे पीने से परेशाँ लोगों,
तुमसे एक गुजारिश है
परेशाँ होने का गर ऐसा शौक है
तो मेरे पीन की वजह खोजो!

जिसे तलाशता हूँ मैं!!

*


इस दुनियाँ की चमक में,
मैं बहक न जाऊँ कहीं..

-चश्मा शायद रंग बदले!!

*


ओह!! कितना विस्तार
है इस सागर का...
सौम्य और शान्त

जाने कितना गहरा होगा
उतरुँ
तो जानूँ...

*


गुलाब की चाह
और
कांटो से गुरेज..

जरुर, कोई मनचला होगा!!

*


सांप पालने का शौक है
तो
सांप पालने के
गुर भी जानता हूँगा!!

ये कोई शिगूफा तो नहीं!!

*


तलाशता हूँ
कुछ रंग
अपने चेहरे के लिए
-दुनिया की भीड़ में
गुम हो जाना चाहता हूँ...

*


खुश होने की ख्वाहिश लिए
मन फिर से उदास है बहुत...

-कहीं कोई ख्वाब टूटा है अभी

*

बाकी फिर कभी!!

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93 टिप्‍पणियां:

M VERMA ने कहा…

वो अपनी हरकतों से बाज नहीं आयेगा
बिना खिलाफत राम राज नहीं आयेगा.

बेहतरीन और दिलकश और गहराई युक्त

जाने कितना गहरा होगा
उतरुँ
तो जानूँ...

प्रवीण त्रिवेदी ने कहा…

हर बात जुबां से बोलूँ, कोई जरुरी तो नहीं.

बेहतरीन!!

वाणी गीत ने कहा…

अपने जख्मों पर कुछ यूँ भी मुस्कराता हूँ मैं..
याद वो आ जाये तो खुद को भूल जाता हूँ मैं..

-मुस्कराने की खातिर, एक जख्म कुरेदा है अभी....

कुछ ऐसा ही ना कि ...

अपने ही हाथों फिर कोई जख्म उघाडा मैंने

आज फिर डायरी का एक पन्ना फाड़ा मैंने ...

वाणी गीत ने कहा…

@ वो अपनी हरकतों से बाज नहीं आएगा ....
बिना खिलाफत राम राज नहीं आएगा ...
क्या खूब ...
@ गहरे उतरून तो जानूं
अक्सर लोग किनारे बैठ कर ही गहराई की बाते किया करते हैं ..आपकी ईमानदारी है जो कहती है गहरे उतरु तो जानूं .

वाणी गीत ने कहा…

@ चुप रहना भी कोई, मेरी मजबूरी तो नहीं,
हर बात जुबां से बोलूँ, कोई जरुरी तो नहीं.......
वाह ....!!

मनोज कुमार ने कहा…

खुश होने की ख्वाहिश लिए
मन फिर से उदास है बहुत...

-कहीं कोई ख्वाब टूटा है अभी
बहुत अच्छी प्रस्तुति। सादर अभिवादन।

स्वप्न मञ्जूषा ने कहा…

गुलाब की चाह
और
कांटो से गुरेज.. जरुर, कोई मनचला होगा!!
बहुत खूब..

ओह!! कितना विस्तार
है इस सागर का...
सौम्य और शान्त जाने कितना गहरा होगा
उतरुँ
तो जानूँ...
वाह ..
क्या बात कह दी..बिना उतरे गहराई नापने वाले तो बहुत हैं..

डॉ टी एस दराल ने कहा…

अपने जख्मों पर कुछ यूँ भी मुस्कराता हूँ मैं..
याद वो आ जाये तो खुद को भूल जाता हूँ मैं.. -मुस्कराने की खातिर, एक जख्म कुरेदा है अभी. *

बहुत खूब।

जानता हूँ ये जिन्दगी आगे है,
पीछे छूटी वो सिर्फ कहानी है... न जाने क्यूँ फिर भी,
मुड़ मुड़ के देखता हूँ मैं!! *

दिल है कि मानता ही नहीं।
एक कशिश लिए सुन्दर भाव।

संजय भास्‍कर ने कहा…

ग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है .

संजय भास्‍कर ने कहा…

-कहीं कोई ख्वाब टूटा है अभी
बहुत अच्छी प्रस्तुति। सादर अभिवादन।

संजय भास्‍कर ने कहा…

-कहीं कोई ख्वाब टूटा है अभी
बहुत अच्छी प्रस्तुति। सादर अभिवादन।

Kulwant Happy ने कहा…

सब के सब एक से बढ़कर एक हैं।

अमिताभ मीत ने कहा…

क्या बात है समीर भाई ! यूं ही समेटते रहिये बिखरे भावों को. बहुत बढ़िया !!

संगीता पुरी ने कहा…

सुंदर रचनाएं .. सुंदर प्रस्‍तुति !!

Akanksha Yadav ने कहा…

चुप रहना भी कोई, मेरी मजबूरी तो नहीं,
हर बात जुबां से बोलूँ, कोई जरुरी तो नहीं.
...बड़ी दूर की बात कह दी आपने..बधाई.

__________
"शब्द-शिखर" पर सुप्रीम कोर्ट में भी महिलाओं के लिए आरक्षण

abhi ने कहा…

अपने जख्मों पर कुछ यूँ भी मुस्कराता हूँ मैं..
याद वो आ जाये तो खुद को भूल जाता हूँ मैं..

-मुस्कराने की खातिर, एक जख्म कुरेदा है अभी.


बहुत ही सुन्दर.....बहुत बहुत अच्छा..

Arvind Mishra ने कहा…

हर बात जुबां से बोलूँ, कोई जरुरी तो नहीं. *
बस इसी पर ये बात कौंधी -
बोलेगें चिल्लायेगें तब भी उधर असर अब नहीं होगा -चयन ही गलत था
और कहीं देखो ?
राह में कोई मोड़ हैं कोई आएगा कोई जायेगा ! उसकी फ़िक्र क्यूं ?

गिरिजेश राव, Girijesh Rao ने कहा…

@ वो अपनी हरकतों से बाज नहीं आयेगा
बिना खिलाफत राम राज नहीं आयेगा.

क्या कह दिया आप ने !

गिरिजेश राव, Girijesh Rao ने कहा…

@ हर बात जुबां से बोलूँ, कोई जरुरी तो नहीं.

हिन्दी में विशिष्ट लेखन का आपका योगदान सराहनीय है. आपको साधुवाद!!

लेखन के साथ साथ प्रतिभा प्रोत्साहन हेतु टिप्पणी करना आपका कर्तव्य है एवं भाषा के प्रचार प्रसार हेतु अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें. यह एक निवेदन मात्र है.

अनेक शुभकामनाएँ.

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

ओह!! कितना विस्तार
है इस सागर का...
सौम्य और शान्त

जाने कितना गहरा होगा
उतरुँ
तो जानूँ...


बहुत सु्दर- बहुत सुंदर
थाह लेना भी जरुरी है।
नही तो वह युं ही अथाह बना रहेगा

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

चुप रहना भी कोई, मेरी मजबूरी तो नहीं,
हर बात जुबां से बोलूँ, कोई जरुरी तो नहीं.

वर्षों मैंने, मौन संदेशे, भेजे उनको, सुन वो लें,
दो कानों के मालिक मेरे मन की भाषा कब समझेंगे ?

Amrendra Nath Tripathi ने कहा…

न जाने क्यूँ फिर भी,
मुड़ मुड़ के देखता हूँ मैं!!
------------- justajoo see tujhe har waqt bata kiskee hai ?

संजय बेंगाणी ने कहा…

पहली दो पंक्तियाँ ही वाह वाह करने के लिए काफी है...

sansadjee.com ने कहा…

अपने जख्मों पर कुछ यूँ भी मुस्कराता हूँ मैं..
याद वो आ जाये तो खुद को भूल जाता हूँ मैं..

अजय कुमार ने कहा…

सभी तो काबिलेतारीफ है ,शुक्रिया

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

ओह!! कितना विस्तार
है इस सागर का...
सौम्य और शान्त
जाने कितना गहरा होगा
उतरुँ
तो जानूँ... *

बहुत गहरे भाव लिए हुए...

खुश होने की ख्वाहिश लिए
मन फिर से उदास है बहुत... -कहीं कोई ख्वाब टूटा है अभी *


बहुत ही संवेदनशील लेखन....सुन्दर प्रस्तुति

"अर्श" ने कहा…

फैल करके सो सकूँ इतनी जगह मिलती नहीं
ठण्ड का बस नाम लेकर मैं सुकड़ता रह गया ..

मैं तो बस इस शे'र से आज तक नहीं निकल पाया समीर जी ...
क्या आप इसके आगे और हैं ..???

सोच में हूँ मैं भी इधर ...!!!!!!!!!!


अर्श

ghughutibasuti ने कहा…

बहुत खूब!
घुघूती बासूती

varsha ने कहा…

मुस्कराने की खातिर, एक जख्म कुरेदा है अभी.
bahut khoob kaha hai.

Anita kumar ने कहा…

सुंदर प्रस्‍तुति

जानता हूँ ये जिन्दगी आगे है,
पीछे छूटी वो सिर्फ कहानी है... न जाने क्यूँ फिर भी,
मुड़ मुड़ के देखता हूँ मैं!! *

ZEAL ने कहा…

.........चुप रहना भी कोई, मेरी मजबूरी तो नहीं, ..........

'Chup rehna', jaroori bhi nahi...majboori bhi nahi...

'Chup rehna' is an art !

I wish i can learn this art...

रश्मि प्रभा... ने कहा…

चुप रहना भी कोई, मेरी मजबूरी तो नहीं,
हर बात जुबां से बोलूँ, कोई जरुरी तो नहीं.

*कोई ज़रूरी नहीं

दिगम्बर नासवा ने कहा…

अपने जख्मों पर कुछ यूँ भी मुस्कराता हूँ मैं..
याद वो आ जाये तो खुद को भूल जाता हूँ मैं..

मुस्कराने की खातिर, एक जख्म कुरेदा है अभी.

समीर भाई ... ये त्रिवेणिया बहुत लाजवाब हैं .. नया अंदाज़ पेश किया है इस बार ..
बहुत ख़ज़ाना गाड़ा हुवा है दिमाग़ में ....

रंजना ने कहा…

बस, वाह वाह और वाह....
लाजवाब !!! सब के सब लाजवाब !!!

अनमोल मोती...पर बिखरे हुए नहीं है...ये तो ऐसे हैं कि बिखरा हुआ आदमी इनमे खुद को समेट ले...पा ले...

naresh singh ने कहा…

कलम का कमाल

Sadhana Vaid ने कहा…

खुश होने की ख्वाहिश लिए
मन फिर से उदास है बहुत...

-कहीं कोई ख्वाब टूटा है अभी

बहुत ही ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति है और बहुत ही नाज़ुक खयाल ! क्या कहने ! मन अंदर तक भिगो गयी आपकी यह क्षणिका !

अन्तर सोहिल ने कहा…

चुप रहना भी कोई, मेरी मजबूरी तो नहीं,
हर बात जुबां से बोलूँ, कोई जरुरी तो नहीं


एक से बढकर एक
ख्याल और भावों को शब्दों में समेटना कोई आपसे सीखे जी

प्रणाम स्वीकार करें

Gautam RK ने कहा…

"मुस्कराने की खातिर, एक जख्म कुरेदा है अभी"


बहुत ही लाज़वाब पोस्टिंग सर!


इन पंक्तियों ने सोचने पर विवश कर दिया!!


सर, मैंने एक और ब्लॉग बनाया है| कृपया दस्तक दें..

http://gautamdotcom.blogspot.com

Another One :

http://dhentenden.blogspot.com



"RAM KRISHNA GAUTAM"

anuradha srivastav ने कहा…

बहुत खूब.........

anuradha srivastav ने कहा…

चुप रहना भी कोई, मेरी मजबूरी तो नहीं,
हर बात जुबां से बोलूँ, कोई जरुरी तो नहीं.
बहुत खूब.............

alka mishra ने कहा…

इसमें बाक़ी की तो कोई गुंजाइश ही नहीं है
फिर कभी जो लिखेंगे वो इन भावनाओं से अछूता होगा
फिर भी हम प्रतीक्षारत रहेंगे

शारदा अरोरा ने कहा…

कहीं कोई ख्वाब टूटा है अभी
ये क्या समीर जी ,अभी अभी तो आतिफ असलम की तस्वीर लिए बैठे थे ,और ये ख़्वाब टूटने की बातें ! ये चश्मा न होता तो आपकी आँखें जरुर पढ़ पाते | चश्मा मदद कर रहा है बिखरे भावों को समेटने में ?

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

तलाशता हूँ
कुछ रंग
अपने चेहरे के लिए
-दुनिया की भीड़ में
गुम हो जाना चाहता हूँ...

आज तो बहुते लाजवाब है. शब्द ही नही आज. शुभकामनाएं.

रामराम.

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

"हर बात जुबां से बोलूँ, कोई जरुरी तो नहीं"... bahut gehri baat... duniya ki aadhi se jyada baate bina juba ke boli aur samjhi jati hai aur unka asar gehra hota hai.... aise hi baut umda bhavo ke motiyo ko ektrit kar aapne mala piro di hai... wonderful collection

rashmi ravija ने कहा…

ओह!! कितना विस्तार
है इस सागर का...
सौम्य और शान्त

जाने कितना गहरा होगा
उतरुँ
तो जानूँ...

बहुत खूबसूरत लगी ये पंक्तियाँ...बहुत ही गहरे भाव हैं...

Khushdeep Sehgal ने कहा…

कौन सुनेगा, किसको सुनाए,
इसलिए चुप रहते हैं...

जय हिंद...

बेनामी ने कहा…

कहीं कोई ख्वाब टूटा है अभी !!!
बहुत से टूटे ख्वाबों की याद दिला दी आपने !
उडन तश्तरी गोया डल झील का शिकारा हो
जहाँ भाव इठलाते हैं जिन्दगी मुस्कुराती है !

बेनामी ने कहा…

हर कहीं भटकते देखे मैंने भी आपके भावनाओं के इन नन्हे शिशुओं को,अच्छा किया कि समेट लिया .
सांप को पालने के गुर हम सभी जानते हैं
अपने ही रिश्तेदार है खूब गहरे से जानते है
कभी कभी फन उठाता ये अपने बचाव में
डंसेगा नही, अपने भीतर के नाग को पहचानते हैं .

--कोई रंग नही चाहिए कि 'उस' में घुल ना जाऊं
मालिक ऐसा रंग चढ़ा कि तुझे अलग़ नजर मैं आऊँ

--कितने टूटे?और कितने टूटेंगे ,रोज हिसाब लगा लेती हूँ
घाटे के सौदे मैं नही करती ,एक टूटे दो नये बना लेती हूँ .
' ठीक करती हूँ? तो.....आप भी करिए न .
--गुलाब की चाह और काँटों से गुरेज , नही,वो कोई मनचला नही है
इतना छला है उसकी भावना को सबने कि जमीनी इंसान हो गया है

.--इस सागर की गहराई में जो उतरा, डूबा ,पार हुआ ,
उपर चंचल लहरें,देखता रहा
गहरे उतरा तो जाना दुनिया इतनी खूबसूरत है गहराई में

--पीने से तुम्हारे नही परेशा हम हैं
क्यों डूबना चाहते हो इस मय के सागर में
क्यों छुपाते हमसे और खुद से खुद को
जानना है की इस मुस्कराते चेहरे के पीछे
सबसे छुपाया वो कौन सा गम है

अमिताभ श्रीवास्तव ने कहा…

bhaav jab bikhar jaate he aour use sametane ka pryaas hotaa he tab bhi rachna ki shaql laazvaab hoti he, agar vo manjhe hue rachnakaar ki8 kalam se nikalte ho../
kisi ek ki baat nahi kar sakta kyoki yahnaa to saare shabdo me apne arth apni mithaas he, apne dard he, khvaahishe he....

Satish Saxena ने कहा…

वाकई लाजबाव भाई जी ! गहरे भाव सोचने को मजबूर करते हैं ! शुभकामनायें

नीरज गोस्वामी ने कहा…

एक और धाँसू पोस्ट...क्या ग़ज़ब लिखते हो भाई...कसम से...जान ले लेते हो...
नीरज

दिनेश शर्मा ने कहा…

चुप रहना भी कोई, मेरी मजबूरी तो नहीं,
हर बात जुबां से बोलूँ, कोई जरुरी तो नहीं.
वाह!वाह!वाह!क्या बात है ..

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

अतीत की यादों को सम्भालना कोई आपसे सीखे!
ये बिखरे भाव नही अमूल्य रत्न हैं!

विनोद कुमार पांडेय ने कहा…

तलाशता हूँ
कुछ रंग
अपने चेहरे के लिए
-दुनिया की भीड़ में
गुम हो जाना चाहता हूँ.

समीर जी..भाव व्यक्त करना भी एक कला जैसा लगाने लगा आज से...क्या भाव पिरोए हैं आपने ...लाज़वाब...

shama ने कहा…

चुप रहना भी कोई, मेरी मजबूरी तो नहीं,
हर बात जुबां से बोलूँ, कोई जरुरी तो नहीं.
Aisahi haal kuchh apna hai.aapke likhe kya comment kiya ja sakta hai,to khamosh rahna behtar hai..

वीनस केसरी ने कहा…

हमको तो ये सबसे ज्यादा जमा

वो अपनी हरकतों से बाज नहीं आयेगा
बिना खिलाफत राम राज नहीं आयेगा.
नाकामियों से अपनी निराश मत होना,
बिना कोशिशों के ये ताज नहीं आयेगा.

बिना खिलाफत राम राज नहीं आयेगा
वाह

वैसे एक शंका भी है "शब्दों के सफर" में खिलाफत का अर्थ किसी के मार्ग का अनुयायी होना बताया गया है और ये खलीफा के अनुयायी शब्द से बना है
और आपने यहाँ इसका प्रयोग बगावत के अर्थ में किया है :)

शब्दों का सफर भी क्या ब्लॉग है पढ़ कर मजा आ जाता है :)

आप तो जानते हैं थोड़ा शंकालू प्रवित्ति का हूँ

हा हा हा

मनोज भारती ने कहा…

हर बात जुबां से बोलूँ, कोई जरुरी तो नहीं. *
जिन्दगी यूँ ही तो, भटक नहीं जाती..
उसकी गली को हर सड़क नहीं जाती..

बहुत खूबसूरत भाव हैं...सुंदर !!!

Abhishek Neel ने कहा…

खुश होने की ख्वाहिश लिए
मन फिर से उदास है बहुत...

-कहीं कोई ख्वाब टूटा है अभी

क्या सही फ़रमाया है समीर जी आपने ..

जितेन्द़ भगत ने कहा…

दि‍ल को छू गई ये पंक्‍ति‍यॉं-
चुप रहना भी कोई, मेरी मजबूरी तो नहीं,
हर बात जुबां से बोलूँ, कोई जरुरी तो नहीं.

कडुवासच ने कहा…

अपने जख्मों पर कुछ यूँ भी मुस्कराता हूँ मैं..
याद वो आ जाये तो खुद को भूल जाता हूँ मैं..
...बहुत खूब,लाजबाव,बेहतरीन "शेर" मारा है,समीर भाई!!!

कविता रावत ने कहा…

अपने जख्मों पर कुछ यूँ भी मुस्कराता हूँ मैं..
याद वो आ जाये तो खुद को भूल जाता हूँ मैं..

Bahut gahare bhavon ki abhivyakti.....
Puri rachna kaabile taarif...

Parul kanani ने कहा…

sir alfaaz aapke kuch yun bikharte hai..ki logo ke dilon ki khamoshi ko bharte hai ...superb sir!

nilesh mathur ने कहा…

बिखरे हुए भाव जब ऐसे हैं तो सहेज कर रखे हुए कैसे होंगे?
खुश होने की ख्वाहिश लिए
मन फिर से उदास है बहुत...
-कहीं कोई ख्वाब टूटा है अभी
वाह!

Ashok Pandey ने कहा…

ब्‍लॉगिंग से दूर होने की वजह से मैं इस लाजवाब शायरी को पढ़ने से भी वंचित था। आभार।

Ashok Pandey ने कहा…

ब्‍लॉगिंग से दूर होने की वजह से मैं इस लाजवाब शायरी को पढ़ने से भी वंचित था। आभार।

सुशीला पुरी ने कहा…

खुश होने की ख्वाहिश लिए
मन फिर से उदास है बहुत...

-कहीं कोई ख्वाब टूटा है अभी.

KK Yadav ने कहा…

चुप रहना भी कोई, मेरी मजबूरी तो नहीं,
हर बात जुबां से बोलूँ, कोई जरुरी तो नहीं.

...अब समझ में आया कि आप खूब पोस्ट क्यों लिखते हैं और क्यों खूब कमेन्ट भी लिखते हैं...बधाई.

_____________

Prem Farukhabadi ने कहा…

Bahut sundar Bhai.Badhai!!

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" ने कहा…

ओह!! कितना विस्तार
है इस सागर का...
सौम्य और शान्त

जाने कितना गहरा होगा
उतरुँ
तो जानूँ...

वाह्! बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ....

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

यह लाइने बताती हैं कि यह लिखने वाला जितना दिखता है, उससे कहीं अधिक संजीदा जीव है।
I like him. Because I like people like me!

डॉ. मनोज मिश्र ने कहा…

चुप रहना भी कोई, मेरी मजबूरी तो नहीं,
हर बात जुबां से बोलूँ, कोई जरुरी तो नहीं.

*..वाह सर जी, गजब.

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

अपने जख्मों पर कुछ यूँ भी मुस्कराता हूँ मैं..
याद वो आ जाये तो खुद को भूल जाता हूँ मैं.. -मुस्कराने की खातिर, एक जख्म कुरेदा है अभी. *
जानता हूँ ये जिन्दगी आगे है,
पीछे छूटी वो सिर्फ कहानी है...
न जाने क्यूँ फिर भी,
मुड़ मुड़ के देखता हूँ मैं!! *

बहुत सुन्दर................

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत ही सुंदर भाव लिये है आप की यह रचना
धन्यवाद

Rohit Singh ने कहा…

वाह हर शब्द नए अंदाज में है...भाव को समेटना काफी मुशिकल होता है....वो तो मौका मिलते ही अनंत अकाश की सैर को निकले पड़ते हैं.....और प्रेयसी की गली तो कई बार हमेशा के लिए गुम हो जाती है....ढ़ूढे नहीं मिलती..फिर लगता जैसे कि कोई भी सड़क या गली अब उसके घर की तरफ नहीं जाती...

विधुल्लता ने कहा…

-मुस्कराने की खातिर, एक जख्म कुरेदा है अभी....बेहद सटीक ...तरह से शुमार किया है आपने भावों को ...दिलचस्प ..बधाई

दिलीप कवठेकर ने कहा…

बेहद सुलझी हुई मार्मिक क्षणिकायें, मन की गहराई में उतर गयी.

सांप पालने के गुरु या गुर?

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

ब्लाग की एक खासियत जबरदस्त है, अगर यह न होता तो मैं निश्चित ही आपकी रचनाओं से महरूम रहता जो एक घाटा होता मेरे लिये. ब्लाग को धन्यवाद. इसके सृजनकर्ता को भी..

पूनम श्रीवास्तव ने कहा…

अपने जख्मों पर कुछ यूँ भी मुस्कराता हूँ मैं..
याद वो आ जाये तो खुद को भूल जाता हूँ मैं.. -मुस्कराने की खातिर, एक जख्म कुरेदा है अभी. *

बहुत खूब।

जानता हूँ ये जिन्दगी आगे है,
पीछे छूटी वो सिर्फ कहानी है... न जाने क्यूँ फिर भी,
मुड़ मुड़ के देखता हूँ मैं!! *
bahut hi badhiyan post behhtreenabhvykti

दिलीप ने कहा…

Sameer ji....blogs par abhi bas bachpan ki shuruaat hui hai meri...aur aapke protsahan se abhibhut hai.....rahi is rachna ka sawaal, adbhut aur bahut sundar prastuti...sadhuvaad...

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

har baat par waah kahu ye jaruri to nahi
meri maun daad ko hi samajh lije
taal thhok kar kuch tareef karu..jaruri to nahi..
sir jhukta hai aapki lekhni k aage..bas itna hi samajh lije.

kavi surendra dube ने कहा…

रोज तराजू तोलती ,जीवन की पहचान
एक तरफ आंसू भरे ,एक तरफ मुस्कान

बहुत खूब .बहुत अच्छा लिखा है आपने .
तराजू का दूसरा पलड़ा भी दिखाइये

kavi surendra dube ने कहा…

रोज तराजू तोलती ,जीवन की पहचान
एक तरफ आंसू भरे ,एक तरफ मुस्कान

बहुत खूब .बहुत अच्छा लिखा है आपने .
तराजू का दूसरा पलड़ा भी दिखाइये

kavi surendra dube ने कहा…

रोज तराजू तोलती ,जीवन की पहचान
एक तरफ आंसू भरे ,एक तरफ मुस्कान

बहुत खूब .बहुत अच्छा लिखा है आपने .
तराजू का दूसरा पलड़ा भी दिखाइये

अपूर्व ने कहा…

वाह..कुछ क्षणिकाएं त्रिवेणी सा आनंद देती हैं..और यह
चुप रहना भी कोई, मेरी मजबूरी तो नहीं,
हर बात जुबां से बोलूँ, कोई जरुरी तो नहीं.

किसी भी भावना को शब्द देना और उसे आवाज की पालकी पर बैठा कर विदा करना दरअस्ल उसे सीमा मे बाँधना भी हो जाता है..उसकी संप्रेषणीयता को सीमित कर देना..उसे सिर्फ़ एक अर्थ के दायरे मे कैद कर देना होता है..इसलिये ही मौन सबसे प्रखर भाषा होती होगी शायद...
बहुत सुंदर!

सम्वेदना के स्वर ने कहा…

ये जो आपने बिखेरा है वो वक़्त की रेत पर बिखरे वो मोती हैं जिनको समेटकर एक हीरक-मालिका बनाने में सदियाँ गुज़र जायेंगी...

Urmi ने कहा…

अपने जख्मों पर कुछ यूँ भी मुस्कराता हूँ मैं..
याद वो आ जाये तो खुद को भूल जाता हूँ मैं..
वाह बहुत ही सुन्दर और लाजवाब पंक्तियाँ! इस बेहतरीन पोस्ट के लिए बधाई!

sandhyagupta ने कहा…

खुश होने की ख्वाहिश लिए
मन फिर से उदास है बहुत...

-कहीं कोई ख्वाब टूटा है अभी

Kya khub kaha.Maan gaye.

Akshitaa (Pakhi) ने कहा…

सांप पालने का शौक है
तो
सांप पालने के
गुरु भी जानता हूँगा!!

....मुझे तो साँपों से बहुत डर लगता है. कभी साँपों से पला पड़ा तो उन्हें सबसे अच्छे वाले अंकल का आपका पता दे दूँगी.

और हाँ, आजकल आप "पाखी की दुनिया" में नहीं आते हैं, यह शिकायत है.

अर्कजेश ने कहा…

गुलाब की चाह
और
कांटो से गुरेज.. जरुर, कोई मनचला होगा!!
बहुत खूब..

बहुत सही पकडा है ...

और

चुप रहना भी कोई, मेरी मजबूरी तो नहीं,
हर बात जुबां से बोलूँ, कोई जरुरी तो नहीं.......

क्‍या बात है ।

varun jain ने कहा…

kuch b kahen aap coat me badiya jajte hai
aur aap lekhni k kya kehne

waah waah

Regards
Varun Jain

mehhekk ने कहा…

तलाशता हूँ
कुछ रंग
अपने चेहरे के लिए
-दुनिया की भीड़ में
गुम हो जाना चाहता हूँ...

waah in bhawnao ki rangon mein bahut dino baad behkar achha laga.har lafz ki ek alag bhawna hai,bhag 1 bhi bahut bhaya.bahut dino baad is nashe ke jaam mein aaj utari hun,subhan allah.

रणविजय ने कहा…

...तो मेरे पीने की वजह खोजो... जिसे तलाशता हूँ मैं!
--- वल्लाह, मिलती-जुलती तबियत ने मिलने की हसरत पैदा कर दी।

आदेश कुमार पंकज ने कहा…

चुप रहना कोई मजबूरी तो नहीं
हर बात जुबाँ से बोलूँ जरुरी तो नहीं
नायाव अति सुंदर
आपको बहुत - बहुत बधाई