बुधवार, सितंबर 09, 2009

पीढ़ी दर पीढ़ी का सिलसिला

ये पीढ़ी दर पीढ़ी का सिलसिला रहा है कि अगली पीढ़ी को देख पिछली पीढ़ी सर धुनती है कि जाने क्या दिन आने वाले हैं? कौन सी दिशा में चल पड़े है सब?

लेकिन सदियों से जहाँ यह सर धुनने का सिलसिला चल रहा है, वहीं विकास का भी. कितने अविष्कार तो चमत्कार से लगते हैं.

evolution

सोचता हूँ पहली बार अगर मैने केलक्यूलेटर ईज़ाद किया होता, तो घर में कितनी लत भंजन हुई होती कि खुद से कुछ जोड़ नहीं पाते. गणित का अभ्यास शुन्य और निकले हैं कि मशीन जोड़ देगी.

मानो. मशीन बता भी दे कि १३ सत्ते क्या होता है, जानोगे कैसे कि सही बताया है..जब खुद ही १३ का पहाडा याद नहीं? चलो, सब किनारे रखो और पढ़ाई करो. दो तीन तमाचे तो पड़ ही जाते.

लेकिन आज बिना १३ और १९ का पहाड़ा कंठस्थ किए बच्चों का काम चल ही रहा है. जो मशीन कहती है, सच मान ही रहे हैं.

समय बदलता है, सोच बदलती है. खुद की सोच तक बदल जाती है.

जब मैं छोटा था तो पिता जी के दफ्तर वाला रामभजन चपरासी बनना चाहता था. क्या झकाझक सफेद कमीज और सफेद फुलपेन्ट पहनता था. चमेली का खुशबूदार तेल लगाकर फुग्गे वाले बाल काढ़ता था और बेहतरीन सलीके से जर्दे वाला खुशबूदार पान मूँह में. चमकती एटलस साईकिल पर आता था. जाने कब जिन्दगी के मोड़ पर सोच बदल गई, मैं जान भी नहीं पाया और मैं रामभजन चपरासी बनने से वंचित रह गया.

कभी मानवता का महत्व था, कभी रिश्तों का तो कभी पैसों और रुआब का.

हमारे समय तक कहा जाता था कि उतने ही पैर पसारो, जितनी लम्बी चादर हो. याने जितना पैसा हो, उसी हिसाब से खर्च करो. आज समय बदला है. अब कहते हैं उतना ही खर्च करना, जितने की ई एम आई भर पाओ.

तब व्यक्ति कैश खत्म होने पर खर्चा रोक लेता था. आज क्रेडिट कार्ड फुल होने पर रोकना पड़ता है.

ऐसे ही किसी बदलती पीढ़ी की माँ की चिट्ठी, गज़लनुमा बेटे के नाम (कभी कुछ, कभी कुछ बदलती वक्त के साथ):

बेटा...........

बदला बहुत जमाना बेटा
घर की लाज बचाना बेटा.

नर नारी सब एक बराबर
बीबी लड़की लाना बेटा.

होटल मंहगे बहुत हुए हैं
खाना घर पर खाना बेटा.

देर लगे गर घर आने में,
मिस्ड कॉल भिजवाना बेटा.

मिलता कर्जा, लेना उतना
जितना तुम भर पाना बेटा.

क्या पाओगे पढ़ लिख कर तुम
नेता तुम बन जाना बेटा.

खेल कूद में नाम कमा कर
फिल्में भी अजमाना बेटा.

बूढ़े अम्मा बाबा से भी
मिलने को तुम आना बेटा.

पोता कितना बड़ा हुआ है
फोटो तो भिजवाना बेटा.

बच्चे तेरे इंग्लिश बोलें
हिन्दी भी सिखलाना बेटा.

कुछ सालों में तुम बच्चों को
यही मेल भिजवाना बेटा.

-समीर लाल ’समीर’

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107 टिप्‍पणियां:

Khushdeep Sehgal ने कहा…

गुरुदेव, किसी ने क्या खूब कहा है कि सुख और दुख में सिर्फ एक रुपये का फर्क होता है...अगर आप 100 रुपये कमाते हैं और 99 रुपये खर्च करते हैं तो ताउम्र सुखी रहेंगे...और अगर कमाई है 100 रुपये और खर्चा है 101 रुपये तो फिर समझो परमानेंट दुख का जुगाड़ कर लिया...

राजीव तनेजा ने कहा…

बहुत ही ज़बरदस्त...

आप कम शब्दों में इतनी गूढ बातें कैसे लिख लेते हैँ?....


आपकी लेखनी को सलाम

बेनामी ने कहा…

नर नारी सब एक बराबर
बीबी लड़की लाना बेटा.


ऐसा होगा, तभी तो कह पाएगी माँ
पोता कितना बड़ा हुआ है
फोटो तो भिजवाना बेटा.


चिट्ठी में वेदना झलकती है
नि:संदेह मान्यताएँ तो बदली हुई दिखती भी हैं।

बी एस पाबला

Gyan Darpan ने कहा…

" कभी मानवता का महत्व था, कभी रिश्तों का तो कभी पैसों और रुआब का. "
@ लेकिन अब तो सिर्फ पैसों का ही महत्व रह गया है !

कविता बहुत सामयिक व लाजवाब है !

अनूप शुक्ल ने कहा…

बढ़िया। कुछ पुण्य कम रहे होंगे कि बचपने की इच्छायें पूरी न हुई! इंशाअल्लाह अगले जनम में पूरी हों इसके लिये दुआ करते हैं!

विवेक रस्तोगी ने कहा…

चपरासी वाली बात तो खूब है हम भी वही बनना चाहते थे क्योंकि जब हमारे दादाजी टूर पर जाते थे तो वो उनका ब्रीफ़केस उठाकर उनके साथ जाता था, और झकाझक कपड़े पहनता था। पर सब बचपन की यादें रह कर हो गईं।

आजकल वाकई क्रेडिट कार्ड से स्थिती शोचनीय हो गई है।

संगीता पुरी ने कहा…

बेचारी मां क्‍या करे .. सबको जमाने के साथ बदलना ही पडता है .. और सब तो ठीक माना ही जा सकता है .. पर मानवता का इतना अवमूल्‍यण होते जाना अच्‍छी बात नहीं !!

Arvind Mishra ने कहा…

वाह टिपिकल समीरलाल टाईप ! समीर अगेन ! मजा आ गया !

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

शानदार, इसे दसवीं कक्षा का पाठ होना चाहिए।

Mishra Pankaj ने कहा…

खेल कूद में नाम कमा कर
फिल्में भी अजमाना बेटा.

बूढ़े अम्मा बाबा से भी
मिलने को तुम आना बेटा.

bahoot khoob sameer sahab jee

शिवम् मिश्रा ने कहा…

हमेशा की तरह सटीक |
कविता कमाल की है आजकल के परिवेश से मेल खाती हुयी |
बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाये |

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

जब मैं छोटा था तो पिता जी के दफ्तर वाला रामभजन चपरासी बनना चाहता था. क्या झकाझक सफेद कमीज और सफेद फुलपेन्ट पहनता था.

सभी बच्चों के आदर्श ये चपरासी ही क्यों होते हैं?:) ईश्वर किसी भी बच्चे की ये इच्छा पूरी नही करे.:)

रामराम.

अभय तिवारी ने कहा…

कचोट है.. जै हो!

Himanshu Pandey ने कहा…

माँ की चिट्ठी तो गजब ही है -
"नर नारी सब एक बराबर
बीबी लड़की लाना बेटा"
इतनी सहज और मारक अभिव्यक्ति । धन्य हुआ ।

कुश ने कहा…

अंतिम चार ने तो मन द्रवित कर दिया...

रवि रतलामी ने कहा…

वाह! वाह! वाह! वाह! वाह!
क्या ख़ूब ग़ज़ल कही है बेटा!!

समयचक्र ने कहा…

समय बदलने के साथ साथ काफी कुछ बदल जाता है . रचना बिंदास लगी . आभार.

रचना त्रिपाठी ने कहा…

बंदर भी यही सोचते होंगे कि हमारे बाद इस समाज का क्या होगा?...

नर नारी सब एक बराबर
बीबी लड़की लाना बेटा.
क्या खूब कही!

अविनाश वाचस्पति ने कहा…

गेहूं को घर में लाना बेटा
आटा भी पिसवाना बेटा

मोटा नाज मिलवाना बेटा
बेटा बेटा मेरा अच्‍छा बेटा

Unknown ने कहा…

17, 18 और 19 का पहाड़ा याद करने में तो अपनी भी नानी मरती थी।

पापा ने अपने बच्चे को झापड़ मार दिया। बच्चा रोने लग गया, फिर अचानक रोना छोड़ कर अपने पापा से पूछा, "पापा, जब आप छोटे थे तो क्या आपको भी आपके पापा मारते थे?" पापा ने कहा, "हाँ बेटे, जब हम शरारत करते थे तो हमारे पापा हमें भी मारते थे।" अब बेटे ने पूछा, "और आप के पापा को भी उनके पापा मारते थे?" पापा ने फिर कहा, "हाँ उनको भी शरारत करने पर मार पड़ती थी।" बेटे ने फिर पूछा, "क्या आपके पापा के पापा के पापा को भी उनके पापा मारते थे?" अब पापा ने भन्ना कर कहा, "अबे, तू ये सब पूछ क्यों रहा है?" बेटे मासूमियत से कहा, "मैं जानना चाहता हूँ कि आखिर ये खानदानी अत्याचार कितनी पीढ़ियों से चलता चला आ रहा है।"

seema gupta ने कहा…

बूढ़े अम्मा बाबा से भी
मिलने को तुम आना बेटा.

पोता कितना बड़ा हुआ है
फोटो तो भिजवाना बेटा.

बेहद सुन्दर आलेख ये पंक्तियाँ भावुक कर गयी.....
regards

Divya Narmada ने कहा…

हिन्दुस्तानी बाना बेटा.
कर जो मन में ठाना बेटा..

भोग अतिथि को सदा लगाना.
स्वयं बाद में खाना बेटा..

पाँच साल के बाद मिले तो
नेता को हरवाना बेटा..

मेहनत से जी नहीं चुराना.
हँसकर स्वेद बहाना बेटा.

उड़नतश्तरी बनकर सारी
दुनिया पर छा जाना बेटा..

सत-शिव-सुन्दर सदा चाहना
सत-छत-आनंद पाना बेटा..

हिंद और हिंदी की जय हो
ऐसा कुछ कर जाना बेटा..

नेह नर्मदा नित्य नहाना
सबको गले लगाना बेटा..

सलिल-साधना सदा सफल हो
प्रभु से यही मानना बेटा..

****************************
दिव्यनर्मदा.ब्लॉगस्पॉट.कॉम

आपकी रचना पढ़कर मन में हुई प्रतिक्रिया आपको ही समर्पित है. आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा है.

जितेन्द़ भगत ने कहा…

ये वेदना पीढ़ी दर पीढी तो स्‍थानांतरि‍त होती ही रहेगी-
कुछ सालों में तुम बच्चों को
यही मेल भिजवाना बेटा.

डॉ टी एस दराल ने कहा…

समीर भाई, आप में कम से कम इतनी बुद्धि तो थी की सोच लिया ली आप को क्या बनना है. हम तो डॉक्टर बनेंगे, ये हमें तब पता चला जब ९वी क्लास में दुसरे टोपर्स को देखते हुए हमने भी बायोलोजी लेली. तब हमें पता चला की हम तो डॉक्टर बनेंगे. शायद यही फर्क होता है नयी और पुरानी पीढी में.
कविता बड़ी शानदार और जानदार रही.

संजय बेंगाणी ने कहा…

कविता की नकल उतार ली है. बाद में भेजने के काम आएगी.

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

नर नारी सब एक बराबर
बीबी लड़की लाना बेटा.

होटल मंहगे बहुत हुए हैं
खाना घर पर खाना बेटा.

देर लगे गर घर आने में,
मिस्ड कॉल भिजवाना बेटा.

वाह ! श्रीमान आपका नाम समीर और आपका निक नेम उड़नतश्तरी का शाब्दिक अर्थ तो लगभग एक ही है मगर समीर की बजाये आपको उड़नतश्तरी नाम ज्यादा सूट करता !
एक सुन्दर कविता एक सुन्दर लेख के साथ !

सदा ने कहा…

बूढ़े अम्मा बाबा से भी
मिलने को तुम आना बेटा.

पोता कितना बड़ा हुआ है
फोटो तो भिजवाना बेटा.

बहुत ही गहराई लिये हर पंक्ति, आभार.

mehek ने कहा…

नर नारी सब एक बराबर
बीबी लड़की लाना बेटा.

होटल मंहगे बहुत हुए हैं
खाना घर पर खाना बेटा.

waah ye nasihaat pidhi se alge pidhi transfer honi hi chahiye,bahut khub,vgynag bhi magar nek salah ke saath,lajawab

ओम आर्य ने कहा…

समीर जी........पीढी दर पीढी का सिलसिला को पढकर विकास की गति और क्रम दोनो अच्छे से समझ मे आ गया.....बधाई

Atmaram Sharma ने कहा…

बच्चे तेरे इंग्लिश बोलें
हिन्दी भी सिखलाना बेटा.

बहुत बढ़िया.

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

छोटी बहर में भी आपने बच्चे को बहुत कुछ सिखा दिया है। इस सार्थक गजल के लिए बधाई।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

Dr. Shreesh K. Pathak ने कहा…

उड़न तश्तरी में एक है गागर...जिसमे भरा है पूरा सागर.......वाकई...

Ghost Buster ने कहा…

बदलाव ही तो जिंदगी है.

Nitish Raj ने कहा…

बहुत ही उम्दा, फिर से दिल कह ऊठा वाह वाह, बहुत खूब। ये चिट्ठी तो सच आज की असलियत ही बताती है। बहुत ही सटीक मां का दर्द। अब तो हालात ये ही हैं कि जब पैसे खत्म होते हैं तो पेट्रोल क्रैडिट कार्ड से ही भरवाया जाता है।

डॉ .अनुराग ने कहा…

इसे कहते है रिवर्स गेयर .हम पहले फुरसतिया जो को बांच आये .फिर आपके दरवाजे पे आये .....जे बात ....अब वहां लौट के जाना पड़ेगा .....फिर आयेगे ...ज़रा मिस्टेक सुधार ले पहले

दिगम्बर नासवा ने कहा…

RISHTON KA MAHATV KHATM HOTA JAA RAHA HAI, APNO KA AASMAAN SIKUDTA JAA RAHA HAI......
AAPKE LEKH MEIN CHIPA MAN KI PEEDA KA BHAAV SAAF JHALAKTA HAI SAMEER BHAI ....

आलोक सिंह ने कहा…

जबरजस्त रचना

उतना ही खर्च करना, जितने की ई एम आई भर पाओ

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } ने कहा…

कुछ सालों में तुम बच्चों को
यही मेल भिजवाना बेटा.

सम्हाल कर रख ली है कविता .

रंजना ने कहा…

बूढ़े अम्मा बाबा से भी
मिलने को तुम आना बेटा.

पोता कितना बड़ा हुआ है
फोटो तो भिजवाना बेटा.

बच्चे तेरे इंग्लिश बोलें
हिन्दी भी सिखलाना बेटा.

कुछ सालों में तुम बच्चों को
यही मेल भिजवाना बेटा.


सार तत्व तो अंतिम पंक्तियों में निहित है......क्या कहूँ....... लाजवाब !!!सिम्पली ग्रेट !!!

पारुल "पुखराज" ने कहा…

पोता कितना बड़ा हुआ है
फोटो तो भिजवाना बेटा. yahi haal hona hai humsabka aagey..

अनिल कान्त ने कहा…

वाह ...माँ की चिट्ठी पढ़कर मजा आया

Ishwar ने कहा…

क्या खुब लिखा है
मगर मेरी सोच जरा हट कर है
इतना खर्च करो की ज्यादा कमाने की जरुरत पडे
ओर इतना कमओ की खर्च ही न कर पाओ
होन्सला अफ़जाई के लिये शुक्रिया

shama ने कहा…

Aapke likhe pe comment karnekee kabhee bhee qabiliyat nahee thee..!

http://shamasansmaran.blogspot.com

http://baagwaanee-thelightbyalonelypath.blogspot.com

http://aajtakyahantak-thelightbyalonelypath.blogspot.com

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बूढ़े अम्मा बाबा से भी
मिलने को तुम आना बेटा.

पोता कितना बड़ा हुआ है
फोटो तो भिजवाना बेटा.

वाह...समीर लाल जी!
सरल शब्दों में बहुत काम की बातें कह दीं हैं,आपने तो।
फीस भी बता दो गुरू धण्टाल,
हम भी चेले बन जायेंगे।

श्रीमती अमर भारती ने कहा…

Sameer bhaiya!
seedhe saral shabdon men badi hi
prabhavshali post lagai hai.
bahut badhai.

Abhishek Ojha ने कहा…

हम तो पहले फुरसतियाजी को पढ़ आये :)
फिर भी इसे रख लेता हूँ मेल फॉरवर्ड करूँगा बच्चो को.

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" ने कहा…

बदला बहुत जमाना बेटा
घर की लाज बचाना बेटा.
नर नारी सब एक बराबर
बीबी लड़की लाना बेटा।।

बेहतरीन् कविता!!!
वाकई पीढी दर पीढी का ये सिलसिला हमेशा से यूँ ही चलता रहा है और चलता रहेगा......

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

हम तो तुलना ही कर रहे हैं - कविता यहां ज्यादा बढ़िया है या अनूप सुकुल के ब्लॉग पर! :)

स्वाति ने कहा…

सामयिक और शानदार कविता...
आपकी कविता पढ़ कर कुछ पंक्तियो ने आकार कुछ इस तरह से लिया -

"बदला बड़ा जमाना बेटा
मिलकर दोनों कमाना बेटा
पर डिंक्स ( डबल इनकम नो किड्स ) न बन जाना बेटा
चाहे एक बच्चा हो दस बरसो में ,
माँ -बाप जरूर बन जाना बेटा ...."

Rashmi Swaroop ने कहा…

wow !!! कविता तो बस !
just great sir, आपके फ़ैन हो गये हम तो ! धन्य हो !

रश्मि प्रभा... ने कहा…

काफी रोचक

Yogesh Verma Swapn ने कहा…

sameer ji, bahut khoob ,samayik vyangya.

poori rachna behatareen, aur sunder prastutikaran. badhaai.

सर्वत एम० ने कहा…

समझ में नहीं आता कि गध की तारीफ करूं या पध की. आप के मस्तिष्क में ऐसे कंटेंट कैसे आ जाते हैं. भाई, मैं भी गोरखपुर से हूँ लेकिन इतना दिमाग मेरा नहीं चल पता क्यों? आप कहोगे गोरखपुर में सिर्फ इंसान ही नहीं बसते, गधे भी होते हैं. बहरहाल, एक पंक्ति का जवाब नहीं...'बीवी लड़की लाना बेटा,' आज के दौर की एक पीडा यह भी है.

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

"चमेली का खुशबूदार तेल लगाकर फुग्गे वाले बाल काढ़ता था और बेहतरीन सलीके से जर्दे वाला खुशबूदार पान मूँह में. चमकती एटलस साईकिल पर आता था."

अब चमचमाती गाड़ी में वो एटलस साइकिल की बात कहां:)

राज भाटिय़ा ने कहा…

पोता कितना बड़ा हुआ है
फोटो तो भिजवाना बेटा.

बच्चे तेरे इंग्लिश बोलें
हिन्दी भी सिखलाना बेटा.
वाह जनाब बहुत सुंदर सुंदर बाते समझाई आप ने , लेकिन सब सच है.
धन्यवाद

डा० अमर कुमार ने कहा…


खुशदीप सहगल की टिप्पणी अपनी जगह,
आपकी बात बदलते वक़्त ौर इसके साथ बदलती सोच की कचोट है ।
भला, आपकी बात से असहमत हुआ भी जा सकता है, क्या ?

Kulwant Happy ने कहा…

बहुत अद्भुत है आपकी रचना। वैसे भी समीर मतलब हवा..जिसके बिना हमारा जीवन शून्य है, लाल वो तो अनमोल होता है जी, आपके लेखन की तरह।

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी ने कहा…

मौज-मौज का खेल हो गया,
फुरसतिया का बाना बेटा।

उड़न तश्तरी की फितरत है,
वो ऊँचा लहराना बेटा।

भावुक होलें, हँसलें, गालें,
सबका यहाँ ठिकाना बेटा।

नकल नहीं कर सकते इसकी,
कभी नहीं अजमाना बेटा।

निर्मला कपिला ने कहा…

वाह समीर जी आजकल तो एक से एक बढ कर धमाका कर रहे हैं लाजवाब पोस्ट है कविता तो कमाल है हर एक लाईन सटीक अभिव्यक्ति है बधाई

डॉ महेश सिन्हा ने कहा…

अति सुन्दर बात और रचना दोनों

बेनामी ने कहा…

पोता कितना बड़ा हुआ है
फोटो तो भिजवाना बेटा.

वैसे बदलते वक़्त में पोती क्यूं नहीं...बदलाव अभी थोड़ा अधूरा, थोड़ा और वक़्त गुज़रे, अगली चिट्ठी में पोती की फ़ोटो भिजवाने की ही बात होगी!!!

Prabuddha ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
दिलीप कवठेकर ने कहा…

अपने बचपन में मिस्ड कॊल्स तो आते थे , मगर दूसरे अंदाज़ में...

क्या खूब लिखा है.

Mithilesh dubey ने कहा…

नर नारी सब एक बराबर
बीबी लड़की लाना बेटा.

ऐसा होगा, तभी तो कह पाएगी माँ
पोता कितना बड़ा हुआ है
फोटो तो भिजवाना बेटा.

भाई वाह क्या बात है। ज़बरदस्त रचना। बहुत-बहुत बधाई

Meenu Khare ने कहा…

बूढ़े अम्मा बाबा से भी
मिलने को तुम आना बेटा.

पोता कितना बड़ा हुआ है
फोटो तो भिजवाना बेटा.

बच्चे तेरे इंग्लिश बोलें
हिन्दी भी सिखलाना बेटा.

कुछ सालों में तुम बच्चों को
यही मेल भिजवाना बेटा.


क्या खूब लिखा है समीर जी. साथ ही सलिल जी की प्रतिक्रियात्मक कविता भी बढ़िया है.

उड़नतश्तरी बनकर सारी
दुनिया पर छा जाना बेटा..

सुशीला पुरी ने कहा…

आप बड़े सरल ढंग से इतनी बडी व व्यंजनापूर्ण बाते कह लेते हैं .........यह आपके कलम की ताकत है ,

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर ने कहा…

kya baat hai? aapki ye panktiyan sabhi ko mail karni chahiye na ki sirf bete ko........

Chandan Kumar Jha ने कहा…

सब कुछ बदल रहा है…………बदल हीं तो रहा है । सुन्दर पोस्ट ।

amit ने कहा…

सभी कुछ तो कह दिए हैं पोस्ट में, टिप्पणी करने के लिए कुछ बाकी ही नहीं रहा! जबरदस्त! :)

हेमन्त कुमार ने कहा…

ऐसा क्यों होता है
हर पीढ़ी पिछली और आने वाली पीढ़ी से आपने को ज्यादा समझदार समझती है । आभार ।

संजय तिवारी ने कहा…

लेखनी प्रभावित करती है.

naresh singh ने कहा…

वर्तमान समय के बदलाव को दिखाती यह पोस्ट बहुत सुन्दर है ।

वाणी गीत ने कहा…

वक्त बदलता है..मान्यताएं बदलती है.. भावनाएं भी बदल जाती हैं..
" कुछ सालों में तुम बच्चों को यही मेल भिजवाना बेटा"... History repeats itself ..
कविता का यह अंश बहुत अच्छा लगा..!!

Dr. Amar Jyoti ने कहा…

मर्मस्पर्शी! पुरानी यादें ताज़ा हो गईं। पिता रेलवे में थे। उन्हें ढेर सारा हिसाब-किताब ज़बानी ही करते देखता आया था। पहला वेतन मिलने पर उनके लिये केल्ट्रॉन का एक कैलकुलेटर ले आया और उनसे आग्रह किया कि उससे काम करें। उन्होंने रख लिया। दो-एक दिन बाद ही देखा वे लम्बी-लम्बी गणनायें कैल्कुलेटर से करने के बाद फिर खुद करके जांच रहे हैं। मैंने कैल्कुलेटर तो नहीं पर अपना आग्रह वापस ले लिया।

बेनामी ने कहा…

बढ़िया,पढ़ कर ऐसा लगा की यह तो बहुतो की आपबीती है.आपने बहुत ही खूबसूरती से तेजी से बदलती मान्यताओ को चंद पंक्तियो में समेट लिया.

Samir ji galti se yeh comment purane post pe bheja tha. galti ke liye khed vyak karti hun. aap dubara is post ke liye dal de.

पंकज बेंगाणी ने कहा…

किसी वंचित को देख दुख होता है, स्वाभाविक भी है! आप वंचित रह गए.... :(

Urmi ने कहा…

बहुत अच्छा लगा आपका ये पोस्ट ! जानदार, शानदार और ज़बरदस्त..अत्यन्त सुंदर रचना!

Asha Joglekar ने कहा…

कुछ सालों में तुम बच्चों को
यही मेल भिजवाना बेटा.
Badhiya aalekh aur kawita to sone pe suhaga .

Aruna Kapoor ने कहा…

क्या पाओगे पढ़ लिख कर तुम
नेता तुम बन जाना बेटा.

नेताओं पर बहुत अच्छा व्यंग्य कसा है आपने! धन्यवाद!

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' ने कहा…

हर शेर लाजवाब...
सारगर्भित लेख......उम्दा ग़ज़ल....बहुत बहुत बधाई....

शोभना चौरे ने कहा…

बीबी लड़की लाना बेटा. होटल मंहगे बहुत हुए हैं
खाना घर पर खाना बेटा. देर लगे गर घर आने में,
agar ghar par khana bnega tabhi na ?
bahut steek likha hai .
kuch aise hi bhav abhivykti mere blog par bhi hai .
krpya pdhe

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` ने कहा…

बहुत बहुत बधाई ! समीर भाई ...
पीढी दर पीढी पर क्या गीत लिखा है वाह वाह --

स स्नेह,
- लावण्या

निर्झर'नीर ने कहा…

पोता कितना बड़ा हुआ है
फोटो तो भिजवाना बेटा.

बच्चे तेरे इंग्लिश बोलें
हिन्दी भी सिखलाना बेटा.

कुछ सालों में तुम बच्चों को
यही मेल भिजवाना बेटा.

sameer ji kya kataksh kiya hai aapne samay ki dhar par.
vyang or bhatkaav ki pida ka samavesh bejod raha

नदीम अख़्तर ने कहा…

लाजवाब। बहुत ही अच्छा लगा। शब्द ही कम पड़ जायें, इतनी अच्छी कल्पनाशील्ता है।
वैसे मुझे सबसे अच्छी पंक्ति यह लगी...
क्या पाओगे पढ़ लिख कर तुम
नेता तुम बन जाना बेटा.

हाहाहहाहाह बहुत लाजवाब....जगब है।

Vineeta Yashsavi ने कहा…

bahut achhi post aur kavita...

बूढ़े अम्मा बाबा से भी
मिलने को तुम आना बेटा.

पोता कितना बड़ा हुआ है
फोटो तो भिजवाना बेटा.

बच्चे तेरे इंग्लिश बोलें
हिन्दी भी सिखलाना बेटा.

कुछ सालों में तुम बच्चों को
यही मेल भिजवाना बेटा.

bahut khub...

नीरज गोस्वामी ने कहा…

नर नारी सब एक बराबर
बीबी लड़की लाना बेटा.

पोता कितना बड़ा हुआ है
फोटो तो भिजवाना बेटा.

कुछ सालों में तुम बच्चों को
यही मेल भिजवाना बेटा

लाजवाब ग़ज़ल है समीर जी...वाह...आज का सच किस अंदाज़ से बयां किया है आपने की खुद बा खुद वाह वा निकल रही है...
नीरज

Prem Farukhabadi ने कहा…

sameer bhai,

achchhi ghazal likhi hai apne.
sachchi ghazal likhi hai apne.
antarman ke bhav prabal sab
pakki ghazal likhi hai apne.

badhai!!

Nagesh's Blog ने कहा…

Nice POst..
Work From Home

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत ही ज़बरदस्त...

आप कम शब्दों में इतनी गूढ बातें कैसे लिख लेते हैँ?....

विजय प्रकाश सिंह ने कहा…

बहुत ही सुन्दर कविता, एक व्यंग के साथ दिल को छूने की भावना भी । कई बार पढ़ा । साधुवाद ।

KK Yadav ने कहा…

Jabardast likha apne...kam shabdon men baadi bat.

दरभंगिया ने कहा…

सत्य वचन स्वामी. समय बदल गया. जमाना हो गया किसी को दो इकम दो पढ़ते नहीं सुना.

एक वाकया याद आता है. जब मैं सी ए के यहाँ काम करता था तो एक "ध्रुव जी" कर के एकाउंटेन्ट आया करते थे. १० पन्नों का ट्रॉयल बैलेन्स एक साँस में जोड़ देना और फिर कहना कि गलत होगा तो काम छोड़ दूँगा. वह आत्मविश्वास अब नहीं दिखता.

Satya Vyas ने कहा…

नर नारी सब एक बराबर
बीबी लड़की लाना बेटा.

bahut khooob samir ji yeh line mujhey isliye jyada pasand aayi ki meri behin ki yehi vchinta hai i hamare jamane me to maa baap shadi kiya karte the
ab uska beta to manega nahi ........ so gujarish ye hi hai ki kam s kam ladki hi lana.
dhanyawad
samir ji

Publisher ने कहा…

नर नारी सब एक बराबर
बीबी लड़की लाना बेटा.

क्या खूब कही समीर जी। हंसी का फंव्वारा छूट गया। :) :) :)

ALOK PURANIK ने कहा…

बीबी लड़की लाना बेटा का जवाब नहीं है जी।

M VERMA ने कहा…

नर नारी सब एक बराबर
बीबी लड़की लाना बेटा.
गहरी वेदना और चिंता झलक रही है आपकी पूरी रचना मे.

SACCHAI ने कहा…

" bahut khub guru , kya baat hai ...mazza aagaya ..kum alfaz jyaada baat karna koi aase sikhe guruji ."

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साधवी ने कहा…

बहुत अच्छा विषय लिया और बहुत अच्छा लिखा.

राजेश स्वार्थी ने कहा…

sundar lekhan ke liye badhai.

Vaibhav ने कहा…

नकद १०१ वीं टिप्पणी लिख रहा हूँ,

कविता बहुत शानदार है :)

Udan Tashtari ने कहा…

'बदला बहुत ज़माना बेटा' पर प्रतिक्रिया.
अतिसुंदर रचना. छोटे मुखड़े के साथ बड़ी अभिव्यक्तियाँ लिए खूबसूरत ग़ज़ल. कौन सा शेअर उद्धृत करुँ, सभी उत्कृष्ठ हैं. चलिए, मैं भी कुछ शेअर जोड़ देता हूँ---

इतनी अच्छी रचना पढ़ कर,
कहीं भूल मत जाना बेटा.
खुद पढ़ना फिर अपने सब,
मित्रों को भी पढ़वाना बेटा.
-हेमन्त 'स्नेही'

विजयप्रकाश ने कहा…

सीधी मन को लगी, दो पंक्तियां मेरी ओर से
-छोड़ पुराना सीख नया तू
माटी अपनी भूल ना बेटा-
धन्यवाद समीर जी
विजयप्रकाश

Pushpendra Paliwal ने कहा…

नर नारी सब एक बराबर
बीबी लड़की लाना बेटा.

वाह समीर जी नयी पीढी की नयी कविता(क्योंकि पुराने लोग तो इस लाइन का मर्म समझ ही नहीं पाएंगे)

बवाल ने कहा…

बहुत सुन्दर बात बड़े ज़बरदस्त अंदाज़ में।

दीपक "तिवारी साहब" ने कहा…

bahut lajavab

मियां जी..जरा सुनो! ने कहा…

बहुत सुंदर कविता ।

मियां जी..जरा सुनो! ने कहा…

बहुत अच्छी पोस्ट.