मंगलवार, नवंबर 11, 2008

कुछ न कुछ तो होता ही है.....

आज की बात:


सुसंस्कृत हैं अतः बेवकूफ को भोला कहते हैं. यही वक्त का तकाजा है.

ऐसे ही सुसंस्कृत प्राणी कल टकरा गये. मोटा कहना ठीक न लगा होगा तो कह उठे कि ’आपकी बॉडी में काफी स्वेलिंग (सूजन) सी लग रही है. तबीयत तो ठीक है न?’

सुसंस्कृत हम भी कम नहीं अतः जबाब में बस इतना ही कहा ’ भाई साहब, जरा एलर्जी है.’

वो पूछने लगे कि ’काहे से एलर्जी है भाई’

हमने भी थोड़ा लजाते हुए बता दिया कि ’एक्सर्साइज (व्यायाम) करने से एलर्जी है’


क्या चल रहा है:

भारत निकलने की तैयारी, पैकिंग, भाग दौड़-मानो मिनट भर का समय निकलना भी मुश्किल सा हो रहा है. न कोई ब्लॉग पढ़ पाया कल सारा दिन और न ही कहीं कमेंट. कल कोशिश करुँगा कि कुछ तो देख ही लूँ.


अभी की सोच:

सोचा है अब से अपने पाठकों से जो टिप्पणी करते हैं, उनसे हफ्ते में एक बार बात की जाये और उनके प्रश्नों का जबाब दिया जाये. इस हेतु, भारत पहुँच कर यह साप्ताहिक स्तंभ शुरु करने की योजना है जिसमें कुछ टिप्पणियों द्वारा व्यक्त शंका का समाधान किया जायेगा.


नया क्या है:

नई पोस्ट तो क्या लिखता. बस, दफ्तर आते जाते ट्रेन में चिन्दियों पर की गई कलम घसीटी में से कुछ को आज फिर समेटा और बस, पेश कर दिया. न जाने कब, कौन सा ख्याल आता जाता रहता है और कागजों पर उतर कर ऑफिस बैग के किसी कोने में फंसा रह जाता है. आपस में कोई तारतम्य नहीं, न कोई संपादन-जैसा उतरा वैसा की अनगढ़ सा पेश कर दिया..शायद कहीं कुछ कहता सा प्रतीत हो तो बताईयेगा.


-१-

आज का ताजा अखबार
और
आज की ताजा खबरें!!

मोटे मोटे काले हर्फों में
लाल लाल खून की
जिन्दा तस्वीरें!

ये
इंसानी खून भी
कितनी जल्दी सूख जाता है
लाल ताजा खून
काले हर्फों में बदलता है

और

कुछ पलों में
इंसान उन्हे भूल जाता है!!


-२-

अब आंख नहीं
बस
दिल रोता है

मगर

उसके आंसू
किसी क नहीं दिखते!!

आदमी,
इत्मिनान से
सोता है.


-३-

रात का तीसरा पहर
कागज, कलम , दवात
सब हैं मेरे साथ

जुगनू
ठिठक ठिठक कर
रोशनी देता गया...

और

मैं सिसक सिसक कर
दिल की बात कहता गया....


-४-

फोन की घंटी से
मेरी तंद्रा टूटती है

मैं उसकी
खुशनुमा यादों की
दुनिया से बाहर
आ जाता हूँ

फोन पर
झुंझलाया सा
अनमने ठंग से बात कर
फोन काट देता हूँ..

और फिर
कोशिश करता हूँ
उन्हीं यादों की दुनिया मे
वापस जाने की......

ख्याल झंकझोरता है....

ये फोन
तो
उसी का था!!!


-५-

सुनता हूँ....

घड़ी मेरी
सुबह कहती है..

देखता हूँ....

खिड़की के बाहर
उजाला भी है....

सोचता हूँ...

फिर
आखिर ये रात
जाती क्यूँ नहीं.

-६-




देखता था कभी
कुछ कांटों भरे तार
जो निर्धारित कर रहे थे...

तू पाकिस्तान है
और
मैं हिन्दुस्तान!!

वही कांटे
अब हमारे दिल में
उग आये हैं....

मैं हिन्दु हूँ
और
तू मुसलमान!!

सरहद बांटने वाले कांटे
तो फिर भी हटाये जा सकते हैं...
किन्तु
ये...............


--समीर लाल ’समीर’

बस, आज इतना ही. अब फिर से भारत जाने की तैयारी में जुटता हूँ. ४ दिन ही तो बचे हैं. Indli - Hindi News, Blogs, Links

84 टिप्‍पणियां:

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` ने कहा…

अरे इन्हेँ अनगढ ना कहेँ - सँवेदना लिये मन के उद्`गार सी सारी कविताएँ पसँद आईँ
भारत यात्रा सुखद रहे आपकी ..खूब मज़े करीयेगा और वहाँ की बातेँ बतलाइयेगा ओके ?
स्नेह,
- लावण्या

मैथिली गुप्त ने कहा…

आपकी छन्दमुक्त कवितायें पसंद आयीं.

बेनामी ने कहा…

ये
इंसानी खून भी
कितनी जल्दी सूख जाता है
लाल ताजा खून
काले हर्फों में बदलता है

और

कुछ पलों में
इंसान उन्हे भूल जाता है!!
bahut hi sahi baat kahi , sari kavita pasand aayi bahut badhiaya.

पारुल "पुखराज" ने कहा…

इन्हेँ सच में अनगढ ना कहेँ

Atmaram Sharma ने कहा…

तू पाकिस्तान है
और
मैं हिन्दुस्तान!!

वही कांटे
अब हमारे दिल में
उग आये हैं....

मैं हिन्दु हूँ
और
तू मुसलमान!!

bahut marmik hai...

बेनामी ने कहा…

jabardast

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

आप की ये कविताएँ नायाब हैं, आप की छंद वाली कविताओं से कई गुना सशक्त। ये रेल में आने जाने का वक्त जो आप को मिलता है और वहाँ के अनुभव ये आप का महत्वपूर्ण वक्त है जिसे आप अच्छी तरह उपयोग करते हैं। करते रहें।

रंजन (Ranjan) ने कहा…

समीर जी,

लाजबाब है ये अनगढ़ शब्द..

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

जुगनू
ठिठक ठिठक कर
रोशनी देता गया...



बहुत सुंदर है जी ! भारत में आपका स्वागत है ! हम भी बेसब्री से आपका इंतजार कर रहे हैं !

manvinder bhimber ने कहा…

देखता था कभी
कुछ कांटों भरे तार
जो निर्धारित कर रहे थे...

तू पाकिस्तान है
और
मैं हिन्दुस्तान!!

वही कांटे
अब हमारे दिल में
उग आये हैं....
आपकी कवितायें पसंद आयीं.

Unknown ने कहा…

कम से कम घर आते वक्त इतना संवेदनशील मत बनिये, खुशी खुशी घर आइये। स्वदेश में स्वागत है आपका!

जितेन्द़ भगत ने कहा…

मजेदार पोस्‍ट, यात्रा के लि‍ए अग्रीम शुभकामनाऍं।

बेनामी ने कहा…

आप सही मायने में दिल की बात को लिख जाते हैं.. बड़ा ही अच्छा लगता है... वरना बहुत बड़े बड़े कवि.. इतना कठिन लिख देते हैं, कि थोड़ा मुश्किल हो जाता है...

कितने दिन के लिए जा रहे हैं हिन्दुस्तान.. आपकी यात्रा सुखद और मंगलमय हो...

seema gupta ने कहा…

मोटे मोटे काले हर्फों में
लाल लाल खून की
जिन्दा तस्वीरें!

ये
इंसानी खून भी
कितनी जल्दी सूख जाता है
लाल ताजा खून
काले हर्फों में बदलता है
" sir jee aaj to kmaal kitta tusee, wonderful.."

Regards

Alpana Verma ने कहा…

shuru mein lagaa yahi bhi humrous poct hogi..lekin aagey padhti gayee to serious hoti gayeen kshanikayan...aap ke serious mood ko bata gayeen---

sabhi pasand aayin..

-india jaa rahey hain -abhi to chunaavi chahal pahal hogi wahan--enjoy your trip!shubhkamnayen..

pallavi trivedi ने कहा…

ये
इंसानी खून भी
कितनी जल्दी सूख जाता है
लाल ताजा खून
काले हर्फों में बदलता है

और

कुछ पलों में
इंसान उन्हे भूल जाता है!!

बेहद उम्दा....ऐसे अनगढ़ भाव रोज़ प्रस्तुत किया करें!

P.N. Subramanian ने कहा…

आपका आलेख प्यारा लगा. कविता से एलर्जी है. हमें ऐसा लग रहा था कि आप जबलपुर पहुँच गये हो. देवतल के सूर्य देवता को प्रणाम कहें फिर कुछ कहानी बना दें. उस पर आपके लेख की प्रतीक्षा रहेगी.

भूतनाथ ने कहा…

मैं उसकी
खुशनुमा यादों की
दुनिया से बाहर
आ जाता हूँ
बहुत सटीक और मार्मिक है ये रचना !

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

bharat ko apaka intazaar hai jee

कुश ने कहा…

आख़िरी क्षणिका कितनी ही गिरहे खोल के रख देती है... आपके शब्द पढ़ते हुए दिल में उतार रहे है... जबरदस्त..

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

बड़ी सभ्य सुसंस्कृत स्तरीय पर अभोली पोस्ट।

Unknown ने कहा…

यूं तो "कविता" से मेरा सम्बन्ध भैंस और बीन का है, लेकिन आपकी कविता समझ में आ गई, अब यह बीन का दोष है भैंस का? :) :) :)

संजय बेंगाणी ने कहा…

हमें तो सुसंस्कृत लोगो का वार्तालाप कमाल लगा. कोई क्रेस कोर्स हो तो बताएं :)

संगीता पुरी ने कहा…

सरहद बांटने वाले कांटे
तो फिर भी हटाये जा सकते हैं...
किन्तु
ये...............
हमारे दिल के कांटे हटने मुश्किल हैं , सचमुच में।

रंजू भाटिया ने कहा…

फोन पर
झुंझलाया सा
अनमने ठंग से बात कर
फोन काट देता हूँ..

और फिर
कोशिश करता हूँ
उन्हीं यादों की दुनिया मे
वापस जाने की......

ख्याल झंकझोरता है....

ये फोन
तो
उसी का था!!!

बहुत सुंदर लगी यह पंक्तियाँ .....

"अर्श" ने कहा…

सुसंस्कृत हम भी कम नहीं अतः जबाब में बस इतना ही कहा ’ भाई साहब, जरा एलर्जी है.’

वो पूछने लगे कि ’काहे से एलर्जी है भाई’

हमने भी थोड़ा लजाते हुए बता दिया कि ’एक्सर्साइज (व्यायाम) करने से एलर्जी है’

मोटे मोटे काले हर्फों में
लाल लाल खून की
जिन्दा तस्वीरें!

ये
इंसानी खून भी
कितनी जल्दी सूख जाता है
लाल ताजा खून
काले हर्फों में बदलता है

कहीं आपने अपने मजाकिया लहजे से आँखों में चमक लाइ तो निचे वाली पंक्ति से आँखें नम हो गई .....
बहोत ही सुन्दर बहाव भरा आपको ढेरो बधाई ....

दिगम्बर नासवा ने कहा…

समीर भाई
बहुत समय के बाद फ़िर से कनाडा की लोकल ट्रेन याद आ गई
लगा की आप सामने बैठ कर लिख रहे हो
ये कोई ऐसे वैसी बात नही कही आपने
कुछ ही शब्दों मैं तारीख लिख दी है

बहुत ही सुंदर, सटीक और यथार्त कविता

Dr. Nazar Mahmood ने कहा…

i am surprised to see that you are such a serious poet. congratulation for such a thoughtful poemssssssss
keep it up
once again congrats

Abhishek Ojha ने कहा…

मुझे तो ये बहुत अच्छी लगी:

अब आंख नहीं
बस
दिल रोता है
मगर
उसके आंसू
किसी क नहीं दिखते!!
आदमी,
इत्मिनान से
सोता है.

का प्रोग्राम भी ठेल देते कब कहाँ जाना है... बीच में हम भी कहीं मिल लेते. मुंबई-पुणे की तरफ़ कभी भी रुख हो तो एक बार घंटी जरूर बजाइयेगा, बाकी हम संभाल लेंगे: 9011090535

Unknown ने कहा…

BAHUT ACHCHI KAVITA HAI,BHARAT YATRA SUKHAD-MANGMAY HO AAPKE..

कंचन सिंह चौहान ने कहा…

क्या बात है....! जल्दी आइये हम प्रतीक्षारत हैं..!

रंजीत/ Ranjit ने कहा…

तू पाकिस्तान है
और
मैं हिन्दुस्तान!!

वही कांटे
अब हमारे दिल में
उग आये हैं....

मैं हिन्दु हूँ
और
तू मुसलमान!!

wahh
jo mam
wahi
mametar bhee
lekin
koi samjhe to

ranjit

सौरभ कुदेशिया ने कहा…

bahut khoob likhaa hai aapne..hire ke tukdoo ko kam se kam chindio ka naam to na dijiye..

मोहन वशिष्‍ठ ने कहा…

ये
इंसानी खून भी
कितनी जल्दी सूख जाता है
लाल ताजा खून
काले हर्फों में बदलता है

और

कुछ पलों में
इंसान उन्हे भूल जाता है!!


समीर जी अच्‍छी लगी आपकी छन्‍द कविताएं बाकी ये कोई नयी बात नहीं है हमारे लिए क्‍योंकि आपकी कोई भी पोस्‍ट हो बिना पढे रह नहीं सकते अब आप ही हिसाब लालो कि कितना क्रेज है आपकी पोस्‍ट का

आशीष "अंशुमाली" ने कहा…

शब्‍द उखड़े-उखड़े से हैं, मगर उतने ही पैने और धारदार..बधाई स्‍वीकारें।

मीत ने कहा…

sunder....!!!

सचिन मिश्रा ने कहा…

Bahut badiya.

Ghost Buster ने कहा…

नए स्तम्भ का विचार बढ़िया लग रहा है और कवितायें बेहद सशक्त हैं.

शुभ यात्रा और स्वागत हमारे देश में.

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } ने कहा…

क्या हो गया है आपको दिन पर दिन सर्वोतम रचनाये. माँ सरस्वती साक्षात् आप पर क्रपा बरसा रही है . हर शब्द हर कविता पहले से अधिक लाजबाब .
आपका भारत में स्वागत है .

मयंक ने कहा…

कभी कभी तो अविश्वास होता है की एक आदमी इतना कैसे लिख सकता है......ज़बरदस्त लेखन ....मतलब कलम न हुई कतरनी हो गई की चलती जाती है और कलेजा काटती जाती है !

पूरे भारत की तो नही कहता पर कम से कम पूरे भारत के ब्लॉगर आपके मार्ग में पलक पावडे बिछा कर आपका स्वागत और प्रतीक्षा कर रहे हैं
ये बताएं कब आ रहे हैं
मुझे बताएं अवश्य ......
mailmayanksaxena@gmail.com

यदि दिल्ली आयें तो अवश्य मिलें !
प्रतीक्षा रत
पूरे भारत के ब्लोगिये !

ALOK PURANIK ने कहा…

क्या केने क्या केने। अब इत्ते भी सीरियस ना होईये।

Shastri JC Philip ने कहा…

"एक्सर्साइज (व्यायाम) करने से एलर्जी है" अब समझ में आय कि किस चक्की का आटा खाते हैं पूछें तो कोई फायदा न होगा!!

कुन्नू सिंह ने कहा…

बहुत बढीया कविता है। एक दम झकास।

"जुगनू" ये तो मेरा ही नाम है। पर जब छोटा था तब ये नाम था।

योगेन्द्र मौदगिल ने कहा…

सुस्वागतम्

Manish Kumar ने कहा…

बेहतरीन क्षणिकाएँ हैं। मन प्रसन्न कर दिया आपने आज। आपकी यात्रा मंगलमय हो !

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत खुब , शुभ यात्रा की कामनाये.

Anita kumar ने कहा…

office bag mein rakhi yeh chindiyan bahut badhiya hain aur tippanikaaron se baat karne ka irada bahut uttam hai

महावीर ने कहा…

अनगढ़ भावों में ही सत्य सामने आता है। मर्म को छू गई आपकी यह कविताएं। भारत यात्रा मंगलमय हो।

Dr. Ashok Kumar Mishra ने कहा…

bahut prakhar abhivyakti

दीपक ने कहा…

कविता नं ४ पढकर लगा जैसे मेरी ही बात चल रही है !!बहुत अच्छे विचार !!मन प्रसन्न हो गया !!

साडडा इंडिया जा रहे है समीर जी इसके लिये शुभ यात्रा और शुभ लैंडिंग !!

बेनामी ने कहा…

छोटी पंक्तियां गहरे भाव लिये बहुत अच्छी लगी/आपकी भारत यात्रा सुखद और खट्टे-मिठे अनुभवों से भरपुर हो/

बेनामी ने कहा…

बड़ी क्यूट सी पोस्ट है। एकदम आपकी तरह! सवाल-जबाब सत्र का इंतजार रहेगा।

सतीश पंचम ने कहा…

मजेदार पोस्‍ट, यात्रा के लि‍ए अपनी कागज कलम संभालकर जरूर रख लिजिएगा, इंतजार है भारत वर्णन का।

बेनामी ने कहा…

थोडे में अपनी बात सम्‍पूर्णता से कही है आपने । एक 'घातक' परामर्श देने से अपने आप को रोक नहीं पा रहा हूं - आप और कुछ मत कीजिए, बस, लिखते रहिए, लिखते रहिए । अपने लिए नहीं, बाकी सबके लिए ।

Vinay ने कहा…

बहुत सार्थक बात कही है आपने, भारत आ रहे हैं, यह ख़ुशी की ख़बर है, शुभ यात्रा!

गौतम राजऋषि ने कहा…

इन बेतरतीब अस्त-पस्त बिखरे शब्दों को इतनी खुबसुरती से,सरकार,बस आप ही सजा सकते हो.
महज कहने के लिये नहीं कह रहा,सचमुच एक अद्बभुत रचना है आपका आज का ये पोस्ट...

समयचक्र ने कहा…

ये
इंसानी खून भी
कितनी जल्दी सूख जाता है
लाल ताजा खून
काले हर्फों में बदलता है
बहुत सच्ची अभिव्यक्ति . आज के समय में इंसानी खून की कीमत नही रह गई है . लोग जाति पति के नाम पर लोगो का खून बहा रहे है और आपस में मर मिटने को अमादा है .
आपकी भारत यात्रा मंगलमय हो .
शुभकामनाओ के साथ.

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर ने कहा…

sab ne bahut kuchh kah diya ab kuchh bacha hee nahin, fir bhee aaya hun to kuchh kahana hee hai. to janab aap bas likhate rahen,uska aanand ham uthate rahen.
narayan narayan

डॉ .अनुराग ने कहा…

देर से आने के लिए मुआफी समीर भाई ,मुझसे पहले वाले भी कह चुके है ओर आप भी ...रंग बिरंगे पर्दों में झांक कर इशारो इशारो में कई बात कर चुके है........तो अब आये तो इस बार साथ बैठ ही ले........

बवाल ने कहा…

कोई जवाब नहीं आपका लाल साहेब, छोटी छोटी चित्कियां कैसी संजीदा लग पड़ीं हैं अहा.

Shishir Shah ने कहा…

wah...wah...sandesh dena ho to kuchh is tarah se...shuru mein to socha hi nahin tha itna gehra msg bhi hoga is post mein...

par ant mein aap ne ek baar fir dil jeet liya...

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) ने कहा…

समीर भाई कभी-कभी अनगढ़ चीजें तराशी हुईं वस्तुओं से ज्यादा मज़ा देती है....ऐसी-सी ही हैं आपकी रचनाये....और कमेन्ट...ब्लॉग पर लिखे गए भी....और हम सबों पर कसे गए भी....सच...!!

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

समीर जी,
नमस्कार
"कुछ न कुछ तो होता ही है....."
एक एक मोती हैं जिन्हें आपने
सलीके से पिरो कर एक कीमती
हार बना दिया जो सबको पसंद आएगा ही.
और पसंद आएँगी, आपके साथ मिलबैठ कर
की जाने वाली गोष्ठियां
इंतज़ार में.......

आपका
विजय तिवारी " किसलय "

प्रदीप मानोरिया ने कहा…

ये
इंसानी खून भी
कितनी जल्दी सूख जाता है
लाल ताजा खून
काले हर्फों में बदलता है
बेहद सटीक और सार्थक ब्लॉग जगत से लंबे समय तक गायब रहने के लिए माफी चाहता हूँ अब वापिस उसी कलम के साथ मौजूद हूँ .

कुन्नू सिंह ने कहा…

Aapke blog se he to maine udghatan kiya tha :)

mobile se comment kar raha hun, hindi likhne me bahut pareshane ho rahe hai

राजीव करूणानिधि ने कहा…

ek baat bataiye itni achchi lekhi aap likhte kaise hain

स्वाति ने कहा…

सरहद बांटने वाले कांटे
तो फिर भी हटाये जा सकते हैं...
किन्तु
ये...............
हमारे दिल के कांटे हटने मुश्किल हैं ,
ye anghad shabdo ka hi to jaadu hai, jo seedhe dil tak pahuchte hai.bahut bhadiya.bharat yatra mangalmay ho.
swati

Pawan Kumar ने कहा…

समीर जी
भारत में आपका स्वागत है.कनाडा से हिन्दी ब्लॉग का परचम आप जिस तरह फहरा रहे हैं वो लाज़बाब है. आप पर गर्व है हमें.

RADHIKA ने कहा…

बहुत ज्यादा संवेदना पूर्ण और मानवीय भावनाओ से ओत प्रोत कविताये,बहुत ही सुंदर कविताये ,बधाई

sandhyagupta ने कहा…

Bahut achche

Himanshu Pandey ने कहा…

कितना खूबसूरत है दृश्य और अनुभूति का वार्तालाप इस कविता में -
"सुनता हूँ....

घड़ी मेरी
सुबह कहती है..

देखता हूँ....

खिड़की के बाहर
उजाला भी है....

सोचता हूँ...

फिर
आखिर ये रात
जाती क्यूँ नहीं."
अभी कुछ दिन पहले से पढ़ रहा हूँ आपको. इन्हे देख कर लगता है, जैसे कोई गुमसुम सी संवेदना अनुभूति की चादर में छुप गयी थी. अभिव्यक्ति की रोशनी में अनुभूति की आँखे नचा-नचा कर कितना कुछ लिख देते हैं आप. जो बाहर है वो भीतर से इतना निर्विकार क्यों है?
आप भारत आ रहे हैं . पलकें बिछीं हैं . आप की उड़न तश्तरी भारत में उतर रही है - ठीक उसी तरह जैसे औचक उतर आती है मेरे ब्लॉग पर . किसी तरह इंटरनेट का जुगाड़ कर ब्लॉग की पोस्ट लिखता हूँ . आप के कमेन्ट ने निरंतरता दी है. एक ब्लोगर को बचा लिया आपने. पुनः स्वागतम.

समीर सृज़न ने कहा…

achha laga..bhawnao ko aapne jis tarah net ke panno par ukera hai ..wakai ye kabiletarif hain...likhte rahiye...

बेनामी ने कहा…

मोटे होने के कुछ फायदे भी हैं..

कनाडा में एक बंदी को सरकार ने इसलिए रिहा कर दिया कि वो इतना मोटा था कि जेल की सेल में उसको रखना मुश्किल पड़ रहा था...

बेनामी ने कहा…

वतन में स्‍वागत है आपका। ऐसे ही एक शहर में रहता हूं जहां कांटे दिलों में फलते-फूलते रहते हैं। जिस शहर में वशीर बद्र ने रहकर लिखा था-कोई हाथ भी न मिलाएगा जो गले मिलोगे तपाक से...लेकिन वशीर साहब को सलाम करते हुए स्‍वागत है आपका।
आपकी पंक्तियां दिल को छू गईं-
वही कांटे
अब हमारे दिल में
उग आये हैं....

मैं हिन्दु हूँ
और
तू मुसलमान!!

सरहद बांटने वाले कांटे
तो फिर भी हटाये जा सकते हैं...
किन्तु
ये...............

neeraj tripathi ने कहा…

फ्लाईट मिस हो गई क्या जो पाकिस्तान के रास्ते कांटे फांद कर आ रहे हैं ..स्वागत है आपका भारत में ..

बेनामी ने कहा…

chale aaiye....

vaise vichar kaafi achchhe hain...

yakin hai saakar bhi honge....

BrijmohanShrivastava ने कहा…

किंतु ये ........ में न जाने कितना कह डाला ,आपके रिक्त स्थान ,कोमा ,फुलस्टाप, डेश सब में बहुत गंभीर अर्थ छुपा होता है

Varun Kumar Jaiswal ने कहा…

नमस्कार समीर भाई एक और रोचक रचना के लिए धन्यवाद |
कभी फ़ुर्सत से फ़ुर्सत मिले तो हमारे ब्लॉग पर भी आइए |
विचार जो भी हो शिरोधार्य होंगे |
लिंक है ...................................
http://varun-jaiswal.blogspot.com
धन्यवाद

Satish Saxena ने कहा…

एक अच्छी, खट्टी मीठी पोस्ट लिखने के लिए धन्यवाद समीर भाई !

रवीन्द्र प्रभात ने कहा…

आपकी कवितायें पसंद आयीं.भारत में बेसब्री से आपका इंतजार कर रहे हैं !

ज़ाकिर हुसैन ने कहा…

ये
किस टुकड़े कि तारीफ़ करूं समझ नहीं आ रहा. सभी गंभीर और हृदय स्पर्शी. फिर भी....
ये
इंसानी खून भी
कितनी जल्दी सूख जाता है
लाल ताजा खून
काले हर्फों में बदलता है

और

कुछ पलों में
इंसान उन्हे भूल जाता है!!
और....

देखता था कभी
कुछ कांटों भरे तार
जो निर्धारित कर रहे थे...

तू पाकिस्तान है
और
मैं हिन्दुस्तान!!

वही कांटे
अब हमारे दिल में
उग आये हैं....
बे मिसाल कही जा सकती हैं

रश्मि प्रभा... ने कहा…

har kavita achhi lagi,yah vishesh.......
अब आंख नहीं
बस
दिल रोता है

मगर

उसके आंसू
किसी क नहीं दिखते!!

आदमी,
इत्मिनान से
सोता है.

बेनामी ने कहा…

अब आंख नहीं
बस
दिल रोता है

क्या कहूँ, सच ही है ये
दिल के अश्क़ किसी को नहीं दिखते

निदा फ़ाज़ली साहब का शेर याद आ रहा है

मुँह की बात सुने हर कोई, दिल के दर्द को जाने कौन
आवाज़ों के बाज़ारों में ख़ामोशी पहचाने कौन


एक बेहतरीन पोस्ट के लिये साधुवाद

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

फोन पर
झुंझलाया सा
अनमने ठंग से बात कर
फोन काट देता हूँ..

और फिर
कोशिश करता हूँ
उन्हीं यादों की दुनिया मे
वापस जाने की......
kaya bat ha bahut gahare tak utar gayi....