सोमवार, अगस्त 25, 2008

कैनिडियन पंडित-विदेशी ब्राह्मण!!!

शाम दफ्तर से घर ट्रेन से वापस आ रहा हूँ था. सामने की दो कुर्सियों पर एक प्रेमी युगल आलिंगनबद्ध बैठा है. दो कुर्सियों में दो लोग और फिर भी एक की जगह बाकी?? अजब मंजर है. मन गदगद हो गया कि क्या जज्बा है जन सुविधाओं की सीमांत उपयोगिता का इनमें और एक हम हैं- शुद्ध भारतीय-एक टिकिट में दो सीट में ऐसा पसर कर बैठे हैं, कि दूसरा कोई बैठना चाहे तो एक तो उसका सिकुड़ी छाप होना जरुरी है और साथ ही बीमार भी कि खड़े रह ही नहीं सकते.

kiss

वो प्रेमी युगल बात बात में एक दूसरे को लिप टू लिप किसिंग कर रहा है. आते ही- एक किस्स, कैसी हो-एक किस्स--मैं ठीक हूँ-एक किस्स-अच्छा लगा तुम ठीक हो-एक किस्स, तुम्हारा ईमेल मिला-एक किस्स. अरे, ईमेल मिलने का किस्स देने लगें तो हमारा तो दिन १५० से कम किस्स में खतम ही न हो और उपर से वो मास फारवर्ड वाले, किस्स करने के लिए एक दो कर्मचारी रखवा कर ही मानें.

हर बात पर किस्स!! ट्रेन रुक गई-तो किस्स. ट्रेन चल दी-तो किस्स, ट्रेन चल रही है-तो किस्स, ट्रेन रुकी है-तो किस्स!! गजब है भई!!!

मेरी आँख किताब में गड़ी, कान उनकी बातों पर टिके और ट्रेन अपनी रफ्तार में दौड़ी. बीच बीच में कनखियों से उन पर नजर. सीधे भी नजर रखे रहता तो उनको कोई फर्क न पड़ता मगर मेरे हिन्दुस्तानी संस्कार आड़े आ रहे थे.

उसने कहा-मैं अपना पैक्ड खाना ले आया हूँ-एक किस्स-फ्री मिला-एक और किस्स-सो गुड-एक किस्स-तुम क्या बनाओगी अपने लिए-एक किस्स- चिकिन बेक्ड-सो डिलिसियस-एक किस्स-कीप द लेफ्ट ओवर फॉर टुमारो लंच-मेरा खाना बाहर है-एक और गहरा किस्स. किस्स किस्स किस्स!!

मन तो किया कि पूछूँ-क्यूँ भई आप ये करते करते बोर नहीं हो जाते. मगर उनका जबाब क्या होगा, यही न कि जब भी बोर होते हैं-एक किस्स!! सो नहीं पूछा.

गिनते गिनते गिनती खत्म होने को आई, मगर उनके किस्स का आदान प्रदान खत्म न हुआ. धन्य है-४५ मिनट के सफर में जितने किस्स उन्होंने किये-और हम अतीत में झांक कर देखते हैं तो हमारे और पत्नी के बीच सारे जीवन के किस्स-हम हार गये. कॉस्य पदक की तो छोड़ो-क्वालिफाई तक नहीं कर रहे. भारतीय हैं तो ओलंपिक हॉकी की भांति ही बुरा नहीं लगा. अमरीकन होते तो डूब मरते मगर हारना भी एक आदात होता है, एक सांस्कृतिक विरासत होता है जो हमें भारतीय होने की वजह से स्वतः प्राप्त है- सो चल गया. ये दीगर बात है कि महर्षि वात्सायन ने कामसूत्र हमारे मोहल्ले में बैठ कर लिखी थी- सो तो हॉकी के जादूगर ध्यान चन्द भी हमारे ही स्कूल से पढ़े थे.

हम ऐसा सोचने लगे कि ये दोनों सारा होमवर्क यहीं ट्रेन में निपटा लेंगे तो घर जाकर करेंगे क्या? लाईफ स्टाईल मैग्जीन ने ज्ञानवर्धन किया कि पति महोदय घर जाकर बियर पीते हुए सोफे पर बैठ कर टी वी पर बास्केट बॉल देखेंगे और पत्नी सिर्फ अपने लिए खाना बनाते हुए अपनी सहेली से नई रेसिपि पर फोन पर बात करेगी. फिर थक कर दोनों सो जायेगे और सुबह ५ बजे उठकर दफ्तर जाने की जद्दोजहद. कठिन जिन्दगी है!!

आत्मग्लानि आत्मविश्लेषण की जननी है-इस सिद्धांत के तहत हम आत्मविश्लेषण करने में जुट गये.

पिछले बरस भी एक ऐसा ही जोड़ा जो बात बात में या बात बेबात में चुम्बन यज्ञ मे बिला जाता था, सामने बैठा करता था. इस बरस, दोनों सामने से हट कर कुछ दूर वाली सीट पर बैठते हैं अलग अलग दिशा में मगर अपने अपने नये साथियों के साथ. क्रियायें और भंगिमाऐं प्रायः वही हैं.

निष्कर्ष स्वरुप जिस फल की प्राप्ति मैने की, वह आम से कम मीठा मगर फिर भी मीठा सा ही नजर आया.

मुझे यह कैनेडियन पंडित यानि विदेशी ब्राह्मण टाइप आईटम लगे. वो पंडित जो दिन भर मंदिर में राम राम जपते हैं मगर दिल में बस एक उम्मीद कि कोई जजमान फंसे और वो उसे लूटें. सारा जैव रस इसी लूटम लाट को निछावर. भगवान गये तेल लेने, नोट आयें तो काम बने. भगवान का नाम नोट लाने के हाईवे की तरह- बस, दौड़े चले जाओ. छल एवं दिखावा ही परम धर्म!!

ये वो साधु संत हैं, जो यह बताने के लिए लाखों रुपये बतौर फीस लेते हैं कि धन की जीवन में कोई महत्ता नहीं-धन त्यागो और बैकुंठ का फ्री पास लो. रोज सुबह टीवी पर दाढ़ी खुजाते उज्जवल सफला वस्त्र धारण किए और अपने नाम के साथ महाराज या बापू जोड़े गाँधी जी को गाली बकते सबको ब्रह्मचर्य का पाठ पढ़ाते और अपने बेटे पर कोई कंट्रोल बिन हवा में पिचकारी चलाते सभी प्रकार के धतकर्मों में लीन ये बाबा, बिल्कुल ऐसे ही नजर आते हैं.

वो सारा जीवन रस जो हम पति पत्नी अपने रिश्तों क दीर्घजीवी बनाये रखने के लिए सरेस की तरह बचाये रखते हैं, उसे ये किसिंग में लुटाये दे रहे हैं. यह पंडितों की तरह मंत्रोच्चार के दिखावे के बिलिवर हैं और हम एक आम भक्त जो दिल में श्रृद्धा को जगह देता है, मौन रहता है और परम पिता परमेश्वर से प्रार्थना करता है कि हमारा वैवाहिक जीवन सुखमय बीते की तरह. भले हम बास्केट बॉल न देख पायें, मगर जो भी रुखी सूखी मिले, मिल बांट कर खायें. आधा तुम, आधा हम.

साधु संत तुम्हें मुबारक-हमें हमारी मुक्ति का मार्ग मालूम है. परिवार बंधा रहे-बच्चे लोन मुक्त पढ़कर परिवार के साथ यथा संभव रहते रहें, अपने परिवारिक दायित्व समझें और उन दायित्वों के प्रति सजग रहें और हम उन पर भरसंभव बोझ न बन मार्गदर्शक बनें रहें, इसे ही हम मुक्ति का मार्ग समझते हैं और हम इससे खुश हैं.

आपको आपकी कनैडियन पंडिताई और संतई मुबारक...एन्जॉव्य किजिये. हेव फन!!! हेव एनदर किस्स!!

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नोट:कनाडा में कम उपलब्ध गरमियाँ चल रही हैं. शायद एक दो हफ्ते के और मजे. फिर वही ठंड और सब घर में पैक. अतः सप्ताहंत घूमने फिरने और बाह्य कार्यक्रमों में उपयोग किये जा रहे हैं. अभी राजधानी ऑटवा से तीन दिन बाद वापस आया हूँ, अतः पिछले तीन दिन से कोई टीप नहीं कर पाया अब कोशिश कर कुछ देखता हूँ कल!!! अगला सप्ताहंत भी लॉस वेगस (विश्व की जुआ राजधानी) का कार्यक्रम है.

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101 टिप्‍पणियां:

राकेश खंडेलवाल ने कहा…

वो अधरों से लिखे जा रहे थे अधरों पर एक कहानी
दुनिया भर को पता नहीं क्यों होती जाती थी हैरानी
वे तो हुए बेसुधे दुनिया से अपने में ही थे सीमित
यही बात बतलाते सबको कोऊ नृप होऊ हमें का हानी

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

वाह, वाह, पोस्ट बढ़िया है - एक किस। ऐसी रोज लिखें - एक और किस।
बड़ी किसकिसी पोस्ट है!!!:)

Tarun ने कहा…

हिस्स क्या किस्स है, हमें तो लगा जैसे रिविजन चल रहा है, अरे हमारी नही बल्कि उस ट्रैन के सफर में अक्सर दिखने वाले वृतांत का, जिससे हम भी दो चार होते रहते हैं।

सिर्फ और सिर्फ जीतने पर इस बात पर ध्यान दें - अगर जीत जायें तो थोड़े डॉलर इधर सरका दीजियेगा, इंडिया के टिकिट के काम आयेंगे ;)

राजीव रंजन प्रसाद ने कहा…

:) समीर जी आपकी यात्रा का नखशिख वर्णन रोचक है। :)

Arvind Mishra ने कहा…

आप हल्की फुल्की बात से शुरू कर एक गंभीर विमर्श छेडने में सिद्धहस्त हैं -पर मैं अपनी बात हलके फुल्के वाले भाग पर ही सीमित रखूंगा -आपने अखंड 'किसों' का जो ये किस्सा सुनाया उससे मुझे आईनस्टीन की ला आफ रिलाटिविती की एक व्याख्या सीधे श्रीमुख से ही याद आ गयी .उन्होंने युवाओं के एक समूह को सापेक्षता सिद्धांत को समझाते हुए कहा था कि अगर आप किसी प्रेमी/प्रेयसी के साथ है तो समय जल्दी बीतेगा मगर किसी कोयला की भठी के निकट तो वहाँ रहना दूभर हो जायेगा .बस यही तो है सापेक्षता का सिद्धांत .
तो समीर जी अपने भी इस सिद्धांत को पूरे ४५ मिनट देखा समझा .बधाई या ?

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

गुरुदेव परणाम ! आज तो सुबह सुबह चुम्बन यज्ञ
का आँखों देखा हाल पढ़वा दिया ! लगता है दिन
बेहतरीन गुजरेगा ! आपने आज सबको आशीष
दे ही दिया और पुरी कनाडाई तकनीक भी बता दी ! अब लोगो को कारण ढुन्ढने की दिक्कत नही पड़ेगी ! वरना ससुरा कारण ही नही मिलता था ! :)

-हमें हमारी मुक्ति का मार्ग मालूम है.
परिवार बंधा रहे-बच्चे लोन मुक्त पढ़कर परिवार के
साथ यथा संभव रहते रहें, अपने परिवारिक दायित्व समझें और उन दायित्वों के प्रति सजग रहें और हम उन पर भरसंभव बोझ न बन मार्गदर्शक बनें रहें, इसे ही हम मुक्ति का मार्ग समझते हैं
और हम इससे खुश हैं.


आपके इस वाक्य में ही सारा मर्म है ! अति ज्ञान दाई लेख !

और हाँ लास वेगास में एक आधा दांव ज़रा चेले के नाम से भी ........! :)

ALOK PURANIK ने कहा…

काला चश्मा लगाकर कैसे कैसे सीन देख रेले हैं। उड़न तश्तरीजी, अभी बेटे को फोन लगाकर बताता हूं। गुरुवर बुढ़ापे में लक्षण सही ना दीख रे हैं।

रंजू भाटिया ने कहा…

क्या टिप्पणी दे इस पर ...:)अपना भारत अच्छा है ..सब मशीनी सा लगता है वहां का पढ़ के ..आप इंजॉय करें :) और लिखते रहे

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

चौपइयां
अधर-रमण,लखति समीरा,
मनहूँ नान हो गए अधीरा !
संस्कार जब आड़े आए
तुरतई दृष्टि कहूँ और घुमाए
गिनती रीति गिनत-गिनत पुनि
किस बिन जीवन ,सोच अकुलाए
घर पहुंचे पोस्ट लिख डारी
किस किस्सा से संस्कृति हारी
तरुण माँगते तुमसे डालर
देखन दृश्य यू एस ए आकर !
दोहा:-
सरग नरक सब भूमि पर,जानो मित्र समीर
ज्ञान भाई को भा गई,तरुण भाई गंभीर

डा. अमर कुमार ने कहा…

.

ऊँउँउँ हाँ, लेयो एक हवाई किस..
ई मंत्रोच्चार पर एक और...
लिखना क्या ज़रूरी था ऎसी दाढ़ीदार किस्स,
अरे मन लगा कर एक मैगज़ीन भी नहीं पढ़ सकते...
एक और ऊँउँउँ हाँ
बड़े नटखट हो जी..ऊँउँउँ पुच्च
बस गिनते जाओ.. हमरी ये हवाहवाई किस

Sarvesh ने कहा…

ये राम नाम जपने के उमर मे आप किस्स देख रहे हैं? उम्र का लिहाज किजिए भाई जी. देख कर आंख बंद कर लिजिये. वैसे बहुत बढिया लिखा आपने. अगर उधर कोइ एजेंसी हो तो बताईगा, २० याहुग्रुप के मेंबर/मोडेरेटर हैं २०० ईमेल तो आ ही जाता है. काश! इंडिया मे भी ऐसा होता.

संजय बेंगाणी ने कहा…

बड़ी किस्सयाई पोस्ट है जी, एक बार तो लगा की लानत है भारतीय होने पर.... :)

कुश ने कहा…

अजी टिप्पणियो पर भी किस मिलने लग गये.. तो गये काम से..

पंकज बेंगाणी ने कहा…

कैसी किस्सी पोस्ट लिखते हैं महोदय आप.

इतने नयनसुख के बाद उम्मीद है आपको ऐनक की जरूरत नही रहेगी. ऑफिस की थकान के बाद ऐसी इंजोयमेंट मिले तो मजा आ जाए. बाय गॉड.

art ने कहा…

समीर भइया , आपने हास्य व्यंग्य लेखन में ऐसा घर किया है कि मुझे अब और कोई शैली पसंद ही नही आती

कामोद Kaamod ने कहा…

ha ha ha
hui na hame hairani
sunayi aapne achhi kahani..
:))

रंजन गोरखपुरी ने कहा…

"....इसे ही हम मुक्ति का मार्ग समझते हैं और हम इससे खुश हैं."

बहुत खूब कहा जनाब!!

seema gupta ने कहा…

ha ha ha ha interesting post to read, great decsription....with pic...

Regards

seema gupta ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
आशीष कुमार 'अंशु' ने कहा…

आपके किसकिसी पोस्ट को पढ़ कर अच्छा लगा.
'हिन्दुस्तानी संस्कार' वाली बात देर तक गुदगुदाता रहा.

बेनामी ने कहा…

jam kar likha ji, drushy abhibhoot kar gayaa. sochtaa hun ek chakkar lagaa aau.

डॉ .अनुराग ने कहा…

क्या कहे गुरुवर .....आप धन्य है ..जो ऐसी जगह बैठे है .....किताब भी पढ़ते है ओर आत्मज्ञान भी ले लेते है......साथ साथ आत्मविश्लेषण भी कर लेते है .....
रही ऐसे पंडितो की तो .....कही भी हो....ये अपना ज्ञान बांटते रहेगे ......ओर जिन्हें लेना है वे भी लेते रहेगे ....कैसे भी ले ..इसी बात पे ....

हेव एनदर किस्स!!

रश्मि प्रभा... ने कहा…

kya kahun,
ab to bharat bhi kam nahi.......
bahut sashakt vyangya

बेनामी ने कहा…

'किसकिसी' न 'लिसलिसी' ?

Nitish Raj ने कहा…

समीर जी पूरी पोस्ट में सिर्फ किस ही किस है। इसमें तो आप-हम क्वालिफाई भी नहीं कर सकते। लेकिन ये ही फर्क है मेरे भारत में। वैसे एक बात पूछनी थी पर बाद में पूछूंगा।

sushant jha ने कहा…

बहुत खूब...

अजित वडनेरकर ने कहा…

बढ़िया पोस्ट। आप का ध्यान हमेशा यहां वहां क्यो रहता है ?

Sanjeet Tripathi ने कहा…

कृपया लौटती डाक से जानकारी भेजे इस तरह थोक के भाव में किस्स किस रूट की किस ट्रेन में किस तरह उपलब्ध होते हैं, मैं वीजा के लिए आवेदन भेज रहा हूं और फ़ौरन अपना सामान पैक कर रहा हूं आने के लिए ;)

विक्रांत बेशर्मा ने कहा…

आपकी पोस्ट ने सारा वातावरण किसमय कर दिया :)

shivam ने कहा…

जय हो कैनेडियन पंडित जी उर्फ़ उड़नतश्तरी जी.
आप हमेशा उम्मीद से ज्यादा हर बार दे जाते हैं और हास्य फुहार से नहला जाते हैं.
इस बार तो इस बार हास्य के साथ चुम्बनों की बारिश.
सूक्ष्म चित्रण,एक बार फ़िर से शुभकामनायें.

travel30 ने कहा…

Kitne kiss Sameer ji? aapne to pura kiss Puran hi likh dala :-) mazedar lekh

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मेरी पहली कविता...... अधूरा प्रयास

Deepak Gautam ने कहा…

आप का लिखना देखकर बस याद आता
है की आप की टिप्णियों से हमें तो लिखने का हौसला मिलता है और आप का क्या कहना मई पड़ता तो था बस जवाब कभी नही दिया आज आपका चुम्बन पुराण पड़कर रहा नही गया क्या लिखा है किस के किस्से को क्या बढिया तरीके से गंभीर बनाया है

बेनामी ने कहा…

आप का लिखना देखकर बस याद आता
है की आप की टिप्णियों से हमें तो लिखने का हौसला मिलता है और आप का क्या कहना मई पड़ता तो था बस जवाब कभी नही दिया आज आपका चुम्बन पुराण पड़कर रहा नही गया क्या लिखा है किस के किस्से को क्या बढिया तरीके से गंभीर बनाया है

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

हमारा जीवन वर्षों चलता है। वहाँ क्षण भंगुर। इसी लिए पूरा जीवन एक ट्रेन यात्रा में ही जी लेना चाहते हैं लोग। फिर अवसर मिले न मिले।

PREETI BARTHWAL ने कहा…

पूरी ट्रेन में किस्स के अलावा कुछ नही देखा आपने जरा बाहर का नज़ारा भी देखा कीजिए।

नीरज गोस्वामी ने कहा…

समीर जी
आप के ब्लॉग को मैंने सब्स्क्रईब कर रखा है लेकिन मुझे सूचना मिले तब तक देखता हूँ की ३०-३५ टिप्पणियां पहले से ही पोस्ट पर जडी हुए होती हैं...लगता है लोग टिप्पणी पहले लिख कर आप की पोस्ट का इन्तेजार करते हैं...
हम तीन बार कनाडा हो आए हैं लेकिन एक बार भी ऐसे दृश्य दिखाई नहीं दिए...अबकी बार आप के साथ भ्रमण का कार्यक्रम बनाया जाएगा...किस्सा ऐ किस को पढ़ कर आप के लेखन की दाद देनी पढ़ती है...आप कितनी सरलता से हाय वे पर दौड़ते हुए अचानक पगडंडियों की सैर करने आ जाते हैं, विषय परिवर्तन इतना सरल भी हो सकता है देख हैरानी होती है...
लॉस वेगास में अपनी जेब संभाल के जाईयेगा, हमने वहां लोगों को लुटते पिटते ही देखा है...दस बीस डालर हार कर हम ये ज्ञान प्राप्त कर लिए था की वहां जो मजा देखने में है वो खेलने में नहीं...
नीरज

बेनामी ने कहा…

यह किस्स कार्यक्रम मैंने भी लाइव देखा था कई बार जब जून में बुडापेस्त गया था। वहाँ तो लोग ट्रॉम/मेट्रो से स्टाप पर, ट्रॉम/मेट्रो के अंदर, सड़क पर चलते-२ रुक कर, हर जगह आनंद ले रहे थे। :) शुरु के १-२ दिन असहजता महसूस हुई अपनी भारतीय परिवेश की परवरिश के कारण लेकिन फिर वहीं के लोगों की भांति इसको नॉर्मली लेना शुरु कर दिया, कोई कर रहा है तो करे, हमे क्या। :)


अगला सप्ताहंत भी लॉस वेगस (विश्व की जुआ राजधानी) का कार्यक्रम है.

बढ़िया है, रेगिस्तान में बसे स्वर्ग का कार्यक्रम है आपका! ;) वैसे मैंने कहीं पढ़ा था कि विश्व की जुआ राजधानी मॉन्टेकार्लो है। अब हम क्या कह सकते हैं, अपने को दोनों में से किसी जगह का कोई आईडिया नहीं है, कभी गए तो बताएँगे! :)

अवाम ने कहा…

आपने बिल्कुल सही कहा श्रीमान हम भले ही पिछड़े है, अनपढ़ है और गंवार है, पर इतना तो है कि हम अपनी परम्पराओं को तब भी नहीं छोड़ते जब हम विदेशों में होते है. हम अपने शर्म और लिहाज़ का दामन कभी नहीं छोड़ते. इसका मुख्य कारण हमारी संस्कृति, हमारे परिवार और हमारी मान्यताये ही तो है. आपको एक बात बतानी थी कि मैंने आपने ब्लॉग का नाम और युआरएल बदल दिया है जो ये है- "आवाम : WE : THE PEOPLE " और इसका एड्रेस है www.aawaam.blogspot.com. आशा है कि आपका साथ बना रहेगा और आप मुझे ऐसे ही प्रोत्साहित करते रहेंगे.

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` ने कहा…

समीरभाई,
आपकी कमी थी .....
"ओटावा" मेँ ,
आपका सम्भाषण था क्या ?
चित्र मेँ ऐसा दीखा
इसलिये पूछ रही हूँ -
ये आलेख पढकर भी सहमत हूँ -
हम भारतीय,
सँस्कारोँ की
गाढी चादर ओढे ही
विदेश की गलियोँ से गुजरते हैँ ..
यहाँ की प्रजा के लिये,
"दीखावा" कोई मायने नहीँ रखता !
- जैसे भाव आते हैँ वही प्रगट - "स्व" केन्द्रीत आत्मनुभूतियोँ को केन्द्रीत रखकर ही जीते हैँ सब!
लास वेगास मेँ घूमेँ ,
उसके चित्र अवश्य लाइयेगा ~~
- लावण्या

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

चढ़ी हुई नदी को गुरू ने एक युवती को कंधों पर बैठा पार करा दिया तो शिष्य को यह बात अखर गयी कि गुरू ने इतने ज्ञानी होने के बावजूद नारी को छू कैसे लिया। बाद मे उलाहना देते हुए उसने यही बात कही तो गुरु ने आश्चर्यचकित हो कहा कि वत्स मैं तो उसे नदी पार करा वहीं छोड आया था, तुम अभी तक कांधे पर टांगे घूम रहे हो।
आप का अगला सप्ताहंत और एहसास दिलाने वाला हो---------------- या खुदा हम ना हुए।

मोहन वशिष्‍ठ ने कहा…

समीर जी आपकी लेखनी के तो जवाब ही नहीं जो लिखते हो माशा अल्‍लाह अच्‍छा अच्‍छा राईटर भी कायल हो जाए फिर हम तो चीज ही क्‍या हैं वाकई बहुत सुंदर लिखा और साथ में फोटो तो सोन पे सुहागा बधाई हो समीर जी आपको

महेन्द्र मिश्र ने कहा…

मन गदगद हो गया. बहुत खूब......?
(pachapan me bachapan)

प्रदीप मानोरिया ने कहा…

lovely incedent written in nice manner thanks visit me if u have a little time manoria.blog.co.in and kanjiswami.blog.co.in

Anwar Qureshi ने कहा…

बहुत खूब सर जी ..शानदार पोस्ट है ..एक बार तो आप की फोटो को देख मुझे लगा क्या मैं विजय माल्या के ब्लॉग में हूँ ..आप की तस्वीरें भी अच्छी है ...

Arun Arora ने कहा…

बुरी बात है इस प्रकार की हरकतो को देखना और सोचना वो भी इस उमर मे , दिल की धडकने बढ जायेगी , ये उमर वान प्रस्थ की है ,चुपचाप आश्र्म मे आ जाईये , इस प्रकार की तमाम क्रियाओ को बाबा के लिये छोड दो; कल्याण होगा बच्चा :)

Poonam Misra ने कहा…

किसने किस को किस किया,
किसने मिस को किस किया
किसने किस को मिस किया
किस किस्स के किस्से हैं
सब समीरजी की ज़बानी

सचिन मिश्रा ने कहा…

Bahut Khub sir ji

राज भाटिय़ा ने कहा…

अरे समीर जी, इन लोगो को देख कर अगर हम भी ऎसी किस करने लग जाये तो ... हर दुसरे महीने मिस भी बदलनी पडेगी , मुझे तो याद ही नही कभी अपनी मिस को गलती से भी कभी किस किया हो.. लेकिन हमारी रेल गाडी बिना किस के २० साल से चल रही हे,इन गोरो की किस की रफ़्तार तेज हे , रेल गाडी हर स्टेशन पर अपने डिब्बे तो कभी इंजन बदलती हे, भईया हम जेसे भी हे बिना किस के मिस संग खुश हे
लेकिन आप का किस पुराण बहुत प्यारा लगा, देखते तो हम भी रोजाना हे, लेकिन इतने गोर से नही देखा.
धन्यवाद

श्रीकांत पाराशर ने कहा…

sameer saheb, maza aa gaya aapke vyangya par. kya dhoya hai aapne hum bhartiyon ki mansikata ko. vah bhai vah, aap sabki post padhte bhi hain aur likhne ke liye bhi samay nikal lete hain. dusaron ko protsahit karna aur khud ki srijanatmkta ko banaye rakhna koi aapse sikhe.

श्रीकांत पाराशर ने कहा…

sameer saheb, bahut badhiya. sharad joshiji ki yaad diladi. bahut achha vyangya.kya dhoya hai aapne hum bhartiyon ki mansikta ko. badhai. aap dusaron ki post padhkar unhen protsahit karte hain aur khud ke lekhan ke liye bhi samay nikal lete hain,aapko salaam.

कुन्नू सिंह ने कहा…

आप तो फोटो भी ले लीये हैं। अब अगर वो आपका ब्लोग देखेंके तो एक किस फीर आपको ईमेल करेंगे एक किस
ईमेल मे आपको भी एक किस

मसिजीवी ने कहा…

क्‍या वो श्रीमान हर बार नई किस कर रहे थे... आपने अपने ब्‍लॉगर ज्ञान से इतना तो ज्ञानवर्णन कर ही देना था कि भलेमानस..एक किस्‍स कंट्रोल सी करे और बाद में किए जाए कंट्रोल वी... काीे हर बार पूरा टाईप कर रहा है :))

Abhishek Ojha ने कहा…

किस-किसाई पोस्ट में... किस गिनने लगे आप... अवधि का भी तो ध्यान रखते... कोई छोटा अवधि का किस्सी तो कोई बड़ा सा किस्सा (अपने यहाँ भी तो चुम्मा, चुम्मी होता है).

लगता है संस्कार कुछ ज्यादा ही हावी थे और आप बस गिनने में ही लगे रहे.

कनाडा की गर्मियों में ऐसी पोस्ट आना स्वाभाविक ही है :-)

Unknown ने कहा…

बहुत अच्छा वर्णन है, लगा जैसे सामने बैठ कर देख रहे हैं.
@हमें हमारी मुक्ति का मार्ग मालूम है. परिवार बंधा रहे-बच्चे लोन मुक्त पढ़कर परिवार के साथ यथा संभव रहते रहें, अपने परिवारिक दायित्व समझें और उन दायित्वों के प्रति सजग रहें और हम उन पर भरसंभव बोझ न बन मार्गदर्शक बनें रहें, इसे ही हम मुक्ति का मार्ग समझते हैं और हम इससे खुश हैं.
यह हुई न बात.

vipinkizindagi ने कहा…

बढ़िया पोस्ट

bhuvnesh sharma ने कहा…

ऐसे अच्‍छे दृश्‍यों को देखने की तो हम भी कामना करते हैं यहां इंडिया में....पर यहां ससुरे सब देहाती गंवार हैं...कुछ सीखे ही नहीं हैं खाली संस्‍कार की घंटी लटकाये डोलते हैं :)
आलोक पुराणिकजी को यूं खुलेआम घर के नंबर ना दिया कीजिए....सारी पोल खोल देंगे :)

Ashok Pandey ने कहा…

बहुत ही सुंदर व्‍यंग्‍य है। भारत की गौरवपूर्ण परंपरा व संस्‍कारों के उज्‍जवल पक्ष को रखते हुए धर्म के नाम पर पाखंड करनेवालों की क्‍या खूब बखिया उधेड़ी है। धर्म की मूल भावना के साथ खिलवाड़ करनेवाले इन स्‍वयंभू धर्माधिकारियों का ऐसा ही धारदार विरोध होना चाहिए। आभार।

Shiv ने कहा…

अद्भुत..मैं नीरज भइया के कमेन्ट से सहमत हूँ. कहाँ से शुरू करके कहाँ पहुँचा देते हैं, समीर भाई. बहुत शानदार!

आपकी इस पोस्ट के लिए एक फ्रेंच (या फिर कनाडियन) किस मेरी तरफ़ से....:-)

राकेश जैन ने कहा…

post ka wah hissa sashakt hai jahan , vartman ke prkarano ko ujagar kia hai,....

Manish Kumar ने कहा…

aapki post padhkar man halka ho jata hai. bhala hai us train ka jismen baithkar aap is terah ki mazedaar vishleshnatmak post thelte rahte hain.

सतीश पंचम ने कहा…

न्यूटन ने सेब गिरने के बाद गुरूत्वाकर्षण की खोज की.....कम्बख्त ने ऐसे ओठ पर ओठ गिरने की क्रिया देखी होती तो नया नियम बनाता....अधराकर्षण....और बच्चे बिना कहे पास हो जाते....स्वाध्याय के जरिये :)

बेनामी ने कहा…

किसी नें कहा था कि पश्चिम के मानव में सेक्स शरीर में बसता है और क्षणिक होता है/ किन्तु भारतीय मानस में सेक्स २४*७*३६५ दिन दिमाग में बसा ही नहीं घूमता रहता है। उनके किस्स्स्स्से का अद्वैत तो समझ आया किन्तु आप कहाँ भेदाभेद के परपंच में पड़ गये?

Toonfactory ने कहा…

Mazedaar Post Sameer Ji...

Pragya ने कहा…

यह किस्सिंग का अपना ही फंडा है. ज्यादा बचा कर रखने में ही भलाई है... लंबे समय तक काम आती हैं...
लास-वेगास का सफर बहुत सुहाना रहे. वहां अभी थोड़े दिन पहले ही जाकर आई हूँ. बहुत अच्छा और रोमांटिक अनुभव रहा :))

बेनामी ने कहा…

pahli bar udantastari ke rachna ko padh raha hu..or ate hi kiss se swagat....
vaise dhnyabad....bahot hi rochak hai....

पंकज सुबीर ने कहा…

काय भैया मोड़ा का बियाह करबे चले हो और अभी भी ई सब में ही उलझो हो । आते साल तक तो दादा ही बन जाआगे मगर मन अभी भी हुंवई उलझा है । तनिक तो शरम धरो नेक अपने लिये नईं तो मोड़ा मोडि़न के लिये ही करो नई तो मोड़ा मोड़ी कहेंगें ''का करें भैया डुकर सठिया गए हैं झां भी होते हैं उल्‍टा सीधा देखते हैं ।''

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी ने कहा…

चलती गाड़ी में मिले,दो ‘किस’-बाज चकोर।
उड़न-तश्तरी देखती, किस-पर-किस घनघोर॥

किस-पर-किस घनघोर,चेंपते औ’ बतियाते।
देखें लाल समीर, झेंपते और लजाते॥

भारतीय मर्यादा में, बन गये अनाड़ी।
एक और हिट पोस्ट, दे गयी चलती गाड़ी॥

Unknown ने कहा…

kiss kee mahima aprampaar hai. aur sara pyar aar paar hai. bani to is paar nahee to us paar koi aur intjar kar raha hai. janha tak meree samjhe hai goro ka pyaar aisa hee hota hai.

Dr. Chandra Kumar Jain ने कहा…

आपकी हर प्रस्तुति
निराली होती है.
================
डॉ.चन्द्रकुमार जैन

admin ने कहा…

"मेरी आँख किताब में गड़ी, कान उनकी बातों पर टिके और ट्रेन अपनी रफ्तार में दौड़ी. बीच बीच में कनखियों से उन पर नजर. सीधे भी नजर रखे रहता तो उनको कोई फर्क न पड़ता मगर मेरे हिन्दुस्तानी संस्कार आड़े आ रहे थे."
पढ कर होठों पर मुस्कान दौड ही गयी। लेकिन आपका निचोड पढ कर दिल मुस्करा पडा-"साधु संत तुम्हें मुबारक-हमें हमारी मुक्ति का मार्ग मालूम है. परिवार बंधा रहे-बच्चे लोन मुक्त पढ़कर परिवार के साथ यथा संभव रहते रहें, अपने परिवारिक दायित्व समझें और उन दायित्वों के प्रति सजग रहें और हम उन पर भरसंभव बोझ न बन मार्गदर्शक बनें रहें, इसे ही हम मुक्ति का मार्ग समझते हैं और हम इससे खुश हैं."

इस सुन्दर पोस्ट के लिए बहुत बहुत बधाई।

जाकिर अली "रजनीश"

रंजन (Ranjan) ने कहा…

समीर भाई सोचे आपको हर टिप्प्णी पर एक किस मिलें ??/

Waterfox ने कहा…

बात तो बिलकुल सही कही पर एम टीवी और चैनल वी द्वारा शिक्छित येह जेनरेशन तो अब इसी 'पब्लिक डिस्प्ले ओफ एफेक्शन' मे यकीन करती है!
फिर से अछ्छी पोस्ट :)

shama ने कहा…

Sameerji,
Aapke blogpe aatee hun to nikalna mushkil ho jaata hai!!Sooraj ko kya shama raushni dikha sakti hai??

कुन्नू सिंह ने कहा…

उडन तश्तरी जी
मैने आपके ब्लोग को अपने साईट मे डाल दीया है
बस देर ईसलीये लगा क्यो की मै आपके ब्लोग का लोगो बना रहा था।
साईट का डीस्क्रीपसन और नाम मैने डाल दीया है
पर अगर आप उनहे बदल्ना चाहते हैं तो बदल सक्ते हैं क्यो की मूझे तो कूछ साईट का डीस्क्रीपसन सूझ ही नही रहा था।

और username
Password आपको ईमेल कर दीया है। ईससे आप भी अपने ब्लोग डीस्क्रीपसन,नाम और लोगो ईडीट कर सक्ते हैं।

अपना ब्लोग Top 10 मे NO.1 पर देख सक्ते है। पता है www.hindimaja.com/toplinks

गीता पंडित ने कहा…

आपका ब्लोग बहुत सुंदर है....
अच्छा लगा यहाँ आकर.....

आभार

शुभ-कामनाएँ

स-स्नेह
गीता पंडित

बेनामी ने कहा…

नमस्ते!! मेरी कमेंट ’पन्च’ किये दे रही हूं.:)-
आप तो एकदम बॊक़्सर ब्लॊगर हुए जा है‍..विदेशी द्र्श्य दिखाने के साथ ही आप जो भारतीय समाज पर भी ’पन्च’ लगाते है‍, वो मजेदार होता है..
नो किस्स!!! एम कम्प्लीट इंडियन! ओनली केन बी अ "सिस"!!:)

नदीम अख़्तर ने कहा…

आपने बहुत करीने से तथाकथित बाबाओं और प्रवचन करने वाले ढोंगियों की इज्ज़त उतारी है. उसे कहते हैं न कि इज्ज़त भी उतर लो और कचरा भी मत होने दो. खैर मैं सहमत हूँ आपसे, ये बबनुमा चीज़ भारत की तरक्की की राह में रोड़ा हैं. कौन हटाये इन रोडों को?

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर ने कहा…

ये भी संस्कार का अन्तर है......

pallavi trivedi ने कहा…

waah ji waah...apne kiss mein bhi ek shaandaar kissa dhoondh liya....

dhany hai aapki paarkhi nazar aur dhaardaar kalam...

MEDIA GURU ने कहा…

ekdam fantasi kis me indian jhalak hai.

अनुज खरे ने कहा…

guru gajab. gajab udantastari uadae rahe ho.
sir, bahut hi sukshm kissing kissa hai. meri badhai swikaren.
anuj khare.
09829288739.

राजीव जैन ने कहा…

मैं तो यह देखने आया था कि कौन कौन मेरे ब्लॉग पर टिप्पणी करने नहीं आता है!

वर्षा ने कहा…

अच्छी किस्सागोई, हमेशा की तरह।

arun prakash ने कहा…

adharamrit se charanamrit ka safar kafi romanchkaarii hai

Asha Joglekar ने कहा…

It looks you are having fun too.

manoj ने कहा…

aapke bare me kal newspaper me padda tha bahot khushi huyi aap hindi bhasha ko nayi unchayian de rahe hai.aur dhongi panditon ke upar aapka viangya sarahniy hai

कुमार आलोक ने कहा…

ज़हर है कि प्यार है तेरा चुम्मा ... फ्री में (A) फिल्म दिखाने के लिये शुक्रिया

ज़ाकिर हुसैन ने कहा…

-हमें हमारी मुक्ति का मार्ग मालूम है.
परिवार बंधा रहे-बच्चे लोन मुक्त पढ़कर परिवार के
साथ यथा संभव रहते रहें, अपने परिवारिक दायित्व समझें और उन दायित्वों के प्रति सजग रहें और हम उन पर भरसंभव बोझ न बन मार्गदर्शक बनें रहें, इसे ही हम मुक्ति का मार्ग समझते हैं
और हम इससे खुश हैं.

शायद ये ही हमारी संस्कृति की ताक़त है जो आज भी परिवार के मोती एक माला में पिरोय रहती है. बहुत अच्छी लगी ये पोस्ट!!

कुणाल किशोर (Kunal Kishore) ने कहा…

समीर जी, आपकी लेखन शैली अच्छी है, विषय भी दिलचस्प और पढ कर मजा भी आया| पर इस मामले मे मेरा मानना है की हम भारतीय दुसरो के बेहद निजी मामले मे अपनी राय वयक्त करने से कभी नही चुकते| यहाँ पचिमी देशो मे यह बहुत ही सहज बात है और यहाँ के लोग इन वाक्यो को बिल्कुल तबज्जो नही देते पर यहाँ आने वाले देसी जन इस तरह उनको घुरना शुरु कर देते है कि पुरा माहौल बहुत असहज हो जाता है| खैर वो करे भी क्या, उनके लिये चुम्बन और आलिंगन रात मे होने वाले एक routine प्रक्रिया की जरुरत भर है| हमने देश मे महज लोक-लिहाज और संसकृती का दंभ भर कर माहैल को इतना दमघोटु बना दिया है कि अगर दो सहज प्रेमी राह चलते हुये अचानक बर्षा की बुन्द या मौसम की अंगडाई से दिल रोमांचित मह्शुश कर परस्पर प्रेम का इजहार करना भी चाहे तो भी नही कर सकते क्योकि बाकी जनता रुक कर उन्हे घुरने जो लगेगी, संस्कृती की दुहाई दी जायेगी और समाज उन्हे असभ्य कहेगा| आखिर इतना बुरा क्या है Kiss मे? हम क्यो इस पावन एहसास को चारदिवारी मे बन्द कर ही महशुश करना चाह्ते है?

Pawan Nishant ने कहा…

मैं ज्योतिषी हूं,कर्मकांडी पंडित भी और शायद इसी कारण मेरे संस्कार मुझे नहीं छोड़ रहे। आपकी जिंदादिल प्रस्तुति में जो मजा आया,शायद उस जोड़े को अपने इलम में भी नहीं आया होगा। बहुत खूब। आपका-पवन निशान्त,मेरा ब्लाग-या मेरा डर लौटेगा.ब्लागसपोट.कॉम

सुनीता शानू ने कहा…

हुजूर एक टिप्पणी लाया हूँ...:)

साँभा

महेन्द्र मिश्र ने कहा…

"गणपति बब्बा मोरिया अगले बरस फ़िर से आ"
श्री गणेश पर्व की हार्दिक शुभकामनाये .....

ATULGAUR (ASHUTOSH) ने कहा…

SIR WORD VERIFICATION KAISE HATEGA KRPAYA BATYE

Pawan Kumar ने कहा…

los vegas me kuch jeeta ki nahi. Gambling me bhi aapse desh ko kafi ummeden hai...nirash mat karna

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

गुरुदेव प्रणाम ! लास वेगास से लौटने पर आप
प्रफुल्लित हैं ! इसका मतलब साफ़ है की दांव
अच्छा बैठ गया ! चेले के हिस्से के डालर अलग
रख दीजियेगा ! हम वहा आयेंगे तब हमारे काम आयेंगे !:)

आपसे निवेदन है की आप मेरे ब्लॉग पर समय
निकाल कर मेरी समस्या का हल बताए ! सब उपाय
कर लिए ! आप एक बार देख लीजियेगा !
जब भी फुर्सत मिले ! फॉण्ट & कलर शायद डिसेबल
हो गए जैसे पहले आपने टिपणी का बताया था !
शायद वैसा ही कुछ उलटा सीधा हो गया दीखता है !
धन्यवाद !

बवाल ने कहा…

Is post per hum yadi teep deven to aisa na ho ke kanedian pandit panditain fir ek kiss kar dalain. Iseeliye do sher lal-n-bavaal.blogspot.com par de rahe hain padh lijiyega. Jay Ind.

Mansoor ali Hashmi ने कहा…

Udan-tashtari ko train mein savaar dekha, aapko 'kiss' ne pukara aur aapne kis-kis ko pukara[sambodhit kiya]....prerit ho yeh rach dala hai, ittefaq se mein abhi videsh mein hu,yahan hindi fonts uplabdh nahi aur Roman lipi mein likhte mujhe badHazmi ho jati hai,krupya ise desi libaas pehna kar apne kisi aakashiy platform se launch kar anugrahit kare,Dhanyavaad...M.Hashmi

'KISS NE PUKARA'

Kis {kiss} ka kissa bayaan kar dala
lab[lip]se dil ka bayaan kar dala
udte-udte kahan ye aa bethe,
khud ko CUPID gumaan kar dala.

baat pyaari si lag rahi thi tabhi,
aapne kya vichar kar dala?
'Tadka' morality ka dekar ke
'Meethe' ko bhee achar kar dala.

Sanskaaro kee baat kar daali,
Pandito kee khabar bhi le daali,
'chuma-chati' ke plat-pharam se,
'PATRI' hee aapne badal daali!

Khoob hai aapka mijaz E Lal
rehke pardes mein bhi deshi chaal,
'SAT' kathan bolte raho hardam,
hai dua Rab se woh karega nihaal.

-Mansoorali Hashmi
mansoor1948@gmail.com

बेनामी ने कहा…

हा हा हा हा हा हा हा हा
हे हे हे हे हे हे हे हे हे हे

मन में लड्डू फूट रहे हैं अब जल्दी ही मेरे लिये कोई वहाँ की एक लड़की देख लीजिये।

आप तो किस्स मे क्वालीफाई नही कर पाये, मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि इस क्षेत्र मे भारत को गोल्ड मेडल मैं ही दिलाउंगा…

एक रसीली पोस्ट लेकिन कम्बख्त हमें कभी ऐसा रस मिला ही नही

आशा है कि आपके समुचित प्रयासों से मेरा काम आसान हो जायेगा।

बेनामी ने कहा…

इधर कुछ पहले दिन नेट वालो से पंगा हो गया ससुरे कनेक्शन ही काट ही दिये।

आज सही हुआ सो हाज़िर हूँ
बस यही गम है कि आपकी किस्स सही समय पर नही पहुँची।

बेनामी ने कहा…

अबकी बार फिर से शतक पूरा हुआ है

कम से कम अबकी बार तो मेरी मिठाई गपक न जाइयेगा

मेल कीजिये, फैक्स कीजिये लेकिन भेजिये।

Udan Tashtari ने कहा…

ये लो भाई मनीष, तुम्हारी टिप्पणियों से यह शतक भी पूरा हो गया..अब तो तुम्हारे लिए कोई सही मैच यहाँ देखना ही पड़ेगा. :)