बुधवार, अगस्त 13, 2008

बारिशों का मौसम है...

न तो साहित्यकार हूँ और न ही कवि. एक आम अदना सा ब्लॉगर हूँ. दिन भर मौका निकाल निकाल कर बाकी ब्लॉग्स पर ताका झाँकी करता रहता हूँ, आहें भरता हूँ कि हाय हसन, यूँ हम क्यूँ न हुए?

एक से एक लिख्खाड़, एक से एक कवि, एक से एक आवाज के धनी पॉड कास्टर और उन सब से बढ़ कर एक से एक शब्दों के जादूगर गद्यकार. नाम तो खैर किसी का नहीं लेता मगर सब मिल जुल कर एक ही काम करते हैं: मेरा खून जलाते हैं और मैं सोचता रह जाता हूँ फिर वही..काश!!! हम ये क्यूँ न हुए.

यह सब तो बस सोच की बातें हैं. शायद और भी ऐसा ही सोचते हों. मुझे क्या पता.

कुछ दिन पहले महावीर जी और प्राण शर्मा जी से बात चलती थी. वो ऑन लाईन मुशायरा कर रहे थे. बड़ा भव्य आयोजन किया. मुझे जैसे कवि को भी न जाने किस सोच में आमंत्रित कर लिया और मैने अपने आपको धन्य महसूस किया. उनकी गल्ती और धन्य हम हो लिये. बड़े बड़े कवि/ कवियत्री शिरकत कर रहे थे, हम भी बीच में ठस लिये. अपनी सबसे बेहतरीन, अपनी समझ से, कविता भेज दी. तब पता चला कि लिस्ट से नाम कट जायेगा क्यूँकि बारिश पर लिखना है. समय कम, पुरानी लिखी में कोई बारिश पर लिखी नहीं..क्या करें. लगे जल्दी जल्दी लिखने. आखिर ऐसे मौके कब आ पाते हैं जब इतने बड़े नामों के साथ आप खड़े हों और इतने नामी गिरामी आय्जक आपको निमंत्रण दें. जल्दी जल्दी जो बन पड़ा, भेज दिया. आप भी पढ़ें और इन पॉड कास्टरर्स के चलते, सुनें भी:


पहले बारिश पर एक दोहा सुनें:

बारिश बरसत जात है, भीगत एक समान,
पानी को सब एक हैं, हिन्दु औ’ मुसलमान.

अब एक गीत:

barish


बारिशों का मौसम है प्रिय! तुम चले आओ..

सांस सावनी बयार, बन के कसमसाती है
प्रीत की बदरिया भी ,नित नभ पे छाती है
इस बरस तो बरखा का ,तुमहि से तकाजा है
मीत तुम चले आओ ,ज़िन्दगी बुलाती है

बारिशों का मौसम है प्रिय! तुम चले आओ..

खिल उठे हैं फूल फूल, भ्रमर गुनगुनाते हैं
रिम झिमी फुहारों की, सरगमें सुनाते हैं
उमड़ घुमड़ के घटा, भी तो यही कहती है
साज बन के आ जाओ, रागिनि बुलाती है.

बारिशों का मौसम है प्रिय! तुम चले आओ..

झूम रही है धरा ,ओढ़ के हरी ओढ़नी
किन्तु है पिपासित बस ,एक यही मोरनी
इससे पहले दामिनी ,नभ से दे उलाहने
प्रीत बन चले आओ, प्रेयसि बुलाती है

बारिशों का मौसम है प्रिय! तुम चले आओ..

--समीर लाल 'समीर'

पुनः एक बार आभार, महावीर जी का और प्राण शर्मा जी का.


यहाँ सुनिये यह कविता:

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79 टिप्‍पणियां:

Rajesh Roshan ने कहा…

बधाई.... मैं प्रिय को तो नही लेकिन बारिश मुझे बुला रही है.... मैं चला भीगने

Tarun ने कहा…

Aapne bulaya aur hum chale aaye....kavita bhi achhi hai aur doha bhi....

Reha sawal likhne ka to aapne dekha hoga jis per per jitne jyada fal (fruits) lade hote hain woh utna hi jhuka hua hota hai. ab to aap samajh hi gaye honge....ki udantashtari naamak is per (tree) per 169 fal (fruits) to me clearly gin pa reha hoon.....:)

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

बारिशों का मौसम है प्रिय! तुम चले आओ..

आपका जवाब नही ! बस गद गद हूँ !
सुंदर से भी सुन्दरतम !!!

राजीव रंजन प्रसाद ने कहा…

बाहर झमाझम बारिश हो रही है..उस पर आपकी यह पोस्ट...आनंद आ गया!!


***राजीव रंजन प्रसाद

Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी ने कहा…

अभी आप का ये पोस्ट पढ़ा नहीं है, पढ़ूंगी (हाँ कविता ज़रूर सुनी), सोचा जल्दी टिप्पणी दे दूँ, वरना तो टिप्पणियों के भीड़ में मेरी टिप्पणी तो गुम हो जायेगी...१०७ टिप्पणियाँ? क्या रहस्य है?

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

बधाई! सुंदर अभिव्यक्ति के लिए।

ALOK PURANIK ने कहा…

अहा हा क्या बात है जी।

रंजू भाटिया ने कहा…

खिल उठे हैं फूल फूल, भ्रमर गुनगुनाते हैं
रिम झिमी फुहारों की, सरगमें सुनाते हैं
उमड़ घुमड़ के घटा, भी तो यही कहती है
साज बन के आ जाओ, रागिनि बुलाती है.

बारिशों का मौसम है प्रिय! तुम चले आओ..

सुनना और पढ़ना दोनों ही दिल को भा गए ...गाना याद आ गया एक ""सावन के झूले पड़े तुम चले आओ .....:)""

कुश ने कहा…

आपकी आवाज़ में गीत सुनकर आनंद आ गया.. बहुत बधाई

Anil Pusadkar ने कहा…

pani ke liye sab ek hain,hindu aau musalmaan... kyaa baaaaat hai Sameer jee,kash aapki ye baat har koi samajh pata, to aapki baarish jammu ko sulagne hi nahi deti,ishwar kare har taraf aapke shabdo ki baarsaat ho.badhai

vineeta ने कहा…

वाह क्या सुंदर रचना है...मज़ा आ गया. आप किस बात का अफ़सोस कर रहे है उड़ान भाई.... आपसे अच्छा तो कोई लिख ही नही सकता. हम तो आपके मुरीद हो गये.

seema gupta ने कहा…

झूम रही है धरा ,ओढ़ के हरी ओढ़नी
किन्तु है पिपासित बस ,एक यही मोरनी
इससे पहले दामिनी ,नभ से दे उलाहने
प्रीत बन चले आओ, प्रेयसि बुलाती है
"wah wah smeer jee, kmal kr diya, aapkse aisse umeed kum hee thee lgta hai aap ne bhee hum subka dil jlane kee than lee hai, magar bhut acchee lgee, lajvab, ek dam different mood kee poetry likhe hai aapne, congrates"

Regards

रंजन गोरखपुरी ने कहा…

अति उत्तम साहब!!
यहां इस वक्त ज़बरदस्त बारिश हो रही है... और ऎसे में अपके कविता पाठ ने यकीन मानिए समा बांध दिया!! इस मन मोहक कविता और उसके मधुरतम पाठ के लिए हर्दिक बधाई!!

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी ने कहा…

सुन्दर...अति सुन्दर..

Mohinder56 ने कहा…

समीर जी

आपकी कविता जितनी मधुर और कर्णप्रिय है.. यह बरसात का मौसम उतना ही भयानक...सडकों पर खड्डे, सडकें नहर सी, गाडियों की लम्बी कतारें... रोज दफ़तर को लेट..

बस एक छुट्टी और प्रेयसी का साथ ही बरसात के मौसम को रंगीन बना सकता है

Hari Joshi ने कहा…

प्रेयसी के बारे में तो नहीं कह सकता लेकिन दोहा लाजबाव है.
बारिश बरसत जात है, भीगत एक समान,
पानी को सब एक हैं, हिन्दु औ’ मुसलमान.

संजय बेंगाणी ने कहा…

काश!!! हम समीरलाल क्यूँ न हुए.

Dr. Ravi Srivastava ने कहा…

...बहुत अच्छा लिखा है। आशा है हमें और अच्छी -अच्छी रचनाएं पढ़ने को मिलेंगे
बधाई स्वीकारें।
“उसकी आंखो मे बंद रहना अच्छा लगता है
उसकी यादो मे आना जाना अच्छा लगता है
सब कहते है ये ख्वाब है तेरा लेकिन
ख्वाब मे मुझको रहना अच्छा लगता है.”
आप मेरे ब्लॉग पर आए, शुक्रिया.
मुझे आप के अमूल्य सुझावों की ज़रूरत पड़ती रहेगी.
Really i like it and desirous to get your all new creations.

...रवि
http://meri-awaj.blogspot.com/
http://mere-khwabon-me.blogspot.com/

डा. अमर कुमार ने कहा…

.

बारिशों का मौसम है
रिरियायो मत प्रिय,
बस आया ही समझो
धोती थोड़ी और सूख तो जाये
रिरियायो मत प्रिय,
बस आया ही समझो
ज्ञानफेर को बुला लो
जो छ्प्पर चू रहा हो
रिरियायो मत प्रिय,
बस आया ही समझो
लकड़ियाँ सील गयी हैं,
तो मैं क्या करूँ
बारिशों का मौसम है...

पैरोडी नहीं बना रहा, प्रभु
कविता स्वःस्फूर्त होती होगी..सो बन ही गयी, क्या करें
बस जरा माडरेटर से पास करा दीजियेगा

Sir,wait a moment, sure to oblige you, but..
they are busy sorting out their priorities.

नीरज गोस्वामी ने कहा…

समीर जी...इसे कहते हैं सोने में सुहागा...आप की लेखनी और आपकी आवाज दोनों एक साथ एक जगह...और क्या चाहिए...जिस खूबसूरती से आपने लिखा है उसी खूबसूरती से इसे आपने गाया भी है...अब कोई ऐसे बुलाये तो भला कौन रुक पायेगा?
नीरज

PREETI BARTHWAL ने कहा…

आपकी की कविता बहुत सुन्दर है। मन बारिश में भीगने का करने लगा है। समीर जी आप तो छुपे रुस्तम निकले।

बेनामी ने कहा…

sun kar jyadaa maja aya

but calling was without inner touch in voice.

good written

some sound & rithm should take arround you while writting geet or poem

tak tak dhak dhak bansuri.......
horse steps........
rail rithm......
air-plane zoom sound.....etc
it will definately bring you in film song some day

डॉ .अनुराग ने कहा…

ओह बारिश
हाय हाय बारिश
कैसी ये बारिश
ऊपर भी बारिश
नीचे भी बारिश
भारत में बारिश
कनाडा में बारिश
ब्लॉग में बारिश .....बारिश ही बारिश

खुदा कसम ये तस्वीर बड़ी सेक्सी लगा रखी है आपने ....अपनी ...

Smart Indian ने कहा…

वाह वाह!
कविता, गायन, संगीत - मज़ा आ गया!

मथुरा कलौनी ने कहा…

विनम्रता पर आपकी भूमिका पढ़कर मजा आ गया। विश्‍वास हो चला कि आप जैसे दिग्‍गज कलम-कीबोर्ड के धनी साहित्‍यकारों के बीच में ठसने लगे तो कई अपने को साहित्‍यकार लगानेवाले छिटक कर दूर जा गिरेंगे। बहरहाल, भूमिका के बाद कविता पढ़ी। अनुमानानुसार रही। ऐसी रससिक्‍त कविताऍं पोस्‍ट करते रहिये। बहुत बहुत बधाई।

संगीता पुरी ने कहा…

एक आम अदना सा ब्लॉगर हूँ.......क्या मजाक कर रहें हैं। हिन्दी ब्लागिंग को रोशनी देनेवालों में आपका नाम भी शुमार है । वाह क्या कविता है............ बारिशों का मौसम है प्रिय! तुम चले आओ।

Ila's world, in and out ने कहा…

अति सुन्दर.दोहा भी, कविता भी.इस कविता को पढते वक्त दिल्ली में झमाझम बारिश हो रही है,कविता का मज़ा दुगुना हो गया.

Batangad ने कहा…

बारिश बरसत जात है, भीगत एक समान,
पानी को सब एक हैं, हिन्दु औ’ मुसलमान.

सर बहुत शानदार है। वैसे बारिश क्या पूरी प्रकृति के लिए सब एक समान होते हैं। लेकिन, क्या कहें ...

L.Goswami ने कहा…

एक ही पोस्ट में शेर भी कविता भी.वाह !!

Sanjeet Tripathi ने कहा…

वाह क्या बात है!
इधर बारिशाना मौसम और उपर से आपकी यह रचना, मजा आ गया।

Manish Kumar ने कहा…

bhai kavita to pyari lagi . Par podcast karte samay jis barish ki masti ki ummeed kar rahe the usmein thodi kami dikhi.Aap jaise zindadil vyaktitwa se ummed thodi jyada hai.

रश्मि प्रभा... ने कहा…

rimjhim baarish ke saath bahut kuch.....
bahut achhi

शोभा ने कहा…

बारिश बरसत जात है, भीगत एक समान,
पानी को सब एक हैं, हिन्दु औ’ मुसलमान.बहुत अच्छा लिखा है। बधाई

Ashok Pandey ने कहा…

खिल उठे हैं फूल फूल, भ्रमर गुनगुनाते हैं
रिम झिमी फुहारों की, सरगमें सुनाते हैं
उमड़ घुमड़ के घटा, भी तो यही कहती है
साज बन के आ जाओ, रागिनि बुलाती है।

अति सुंदर।
संजय बेंगाणी जी से सहमत - काश!!! हम समीरलाल क्यूँ न हुए :)

admin ने कहा…

इससे पहले दामिनी ,नभ से दे उलाहने
प्रीत बन चले आओ, प्रेयसि बुलाती है

Marmik pukar hai.

जितेन्द़ भगत ने कहा…

मन भीगा भीगा है मेरा.........
सुना है आपके शहर में कहीं बरसा है पानी

Arun Arora ने कहा…

बारिशों का मौसम है प्रिय! तुम चले आओ..
हर मोड पर गाडी अटकती है
आकर धक्का लगाओ
प्रिय तुम चले आओ
तेरे जरा से घुमडने से
खड्डे भी तालाब बन गये है
हम उन मे डूब रहे है
कहा हो तुम जरा फ़रमाओ
बारिशों का मौसम है प्रिय! तुम चले आओ..:)

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` ने कहा…

समीर भाई
,बहुत अच्छा लिखा है आपने और कविता, कवि के स्वर से सुनने का आनँद ही निराला है !
आपने पूरा न्याय किया है -
बधाई जी ..
इसी तरह ,
हर रँग मेँ लिखते रहीये ..
- लावण्या

Arun Arora ने कहा…

आप अब हमारा भी गाना सुनियेगा कल :)

Harshad Jangla ने कहा…

Sameerbhai

It was a pleasure to listen to your poem in your own voice.

Thanx & Rgds.
-Harshad Jangla
Atlanta, USA

राज भाटिय़ा ने कहा…

कुछ ज्यादा ही भीगी भीगी कविता पढी, मजा आ गया लेकिन सुन नही पा रहा हु, पता नही क्यो, शायद उस मे भी कुछ सीलन आ गई हे,धन्यवाद अति सुन्दरम कविता के लिये.

पारुल "पुखराज" ने कहा…

मु्शायरे मे पढ़ी थी- आज और भी अच्छी लगी- और भी सुनाइये

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

शीतल, मंद, सुगंधित समीर ने सचमुच ब्लोगिया दिया।
बहुत सुंदर ।

बेनामी ने कहा…

वाह पहली बार मेरा कमरा आपकी आवाज़ से परिचित हुआ

लेकिन अफ़सोस इस बात का है कि इसका गवाह केवल मैं और खिड़की वाला मूषक है।

जो भी हो सुनने के समय मूषक बार बार मुझे निहार रहा था शायद सोच रहा होगा कि सूखे चेहरे से बारिश की बू कहाँ से आ रही है
:)
और जादूगर गद्यकारों को लेकर खून न जलाइये,कम से कम मुझे तो चूसने का तो मौका दीजिये। :)

"बारिशों का मौसम है प्रिय! तुम चले आओ.."

इन पक्तियों से काहे विपत्ति का आह्वान कर रहे हैं बड़ी मुश्किल से जान छुड़ाई है :( :(

वैसे देख और सुन के तो मन प्रसन्न हो गया। इतना प्रसन्न हो गया कि खुद दुकान जाकर आप वाली मिठाई खा ली। खाते ही दिल बाग बाग हो गया। :)
खाते समय मज़ा आ रहा था लेकिन आते समय …… :( :(
जेब खाली हो गयी :(

खैर जो भी हो लगता है आपसे गीत भी सीख जायेंगे :)

अभिन्न ने कहा…

आप के ब्लॉग में बिना पासपोर्ट बिना विज़ा घूमते हुए बड़ा आनद आया है समीर साहेब जी, धर्मवीर भारती जी के धर्मयुग के बाद आपकी उड़न तस्तरी पर कुछ हट कर एक स्तरीय कार्य देखने को मिला, मौलिकता,परिपक्वता,और साहित्यिकता पाकर बहुत अच्छा लगा,आप ने मेरे ब्लॉग पर आकर दो अनमोल शब्दों में जो हौसला बढाया है,उसके लिए अनेकानेक धन्यवाद.

Anwar Qureshi ने कहा…

आप को आज़ादी की शुभकामनाएं ...

राज भाटिय़ा ने कहा…

स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाऐं ओर बहुत बधाई आप सब को

Unknown ने कहा…

वाह गुरुदेव ..खूब फुहारों की सरगमें..बजती रहें - साभार - मनीष

योगेन्द्र मौदगिल ने कहा…

शुभकामनाएं पूरे देश और दुनिया को
उनको भी इनको भी आपको भी दोस्तों

स्वतन्त्रता दिवस मुबारक हो

barsaat ne panipat ko pani-pani kar rakha hai aajkal
sameer g apun to aapka geet sare padosiyon ko suna kar unka pani kum karne ka prayas kar rahe hain.

Shishir Shah ने कहा…

vaise sach kahun to 'shuddh hindi' vali rachnaon ko samajna itna aasan nahin...fir bhi ye jo romani andaz hai aap ka...maza aa gaya...

समयचक्र ने कहा…

सुंदर अभिव्यक्ति के लिए बधाई.

Pragya ने कहा…

अरे आप तो अकेले सब पर भारी पड़ते हैं और ऊपर से कहते हैं कि बीच में ठस लिए!!!!
वह भाई वह...
दोहा बहुत बहुत अच्छा है... और कविता भी!!

समयचक्र ने कहा…

बारिश के मौसम में अपने खुशनुमा फुहार छोड़ी है बहुत ही उम्दा . काश आप जबलपुर में होते तो उम्दा जोरदार बारिश का सामना करना पड़ता और यह रचना आपको पढ़कर और सुनाने में बेहद आनंद आता . धन्यवाद

सतीश पंचम ने कहा…

सुन्दर, बहूत उम्दा कविता।

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

बड़ी विनम्रता से यह उम्दा पोस्ट लिखी है।
काश हममें भी इतनी विनम्रता होती।

सुनीता शानू ने कहा…

जय-हिन्द! जय-हिन्द! जय-हिन्द!
भाभी जी कहाँ है? और आप ये किये बुला रहे है?

श्रद्धा जैन ने कहा…

hahaha aap bhi na
aise majak ke saath shuru karte hain post ko
itni pyaara geet hai maine mahvir ji ke blog par bhi padha tha

aur aaj to sawar badh hokar amar ho gaya

bhaut bahut badhayi

شہروز ने कहा…

बारिश बरसत जात है, भीगत एक समान,
पानी को सब एक हैं, हिन्दु औ’ मुसलमान.
kya kahna hi janab.
aap nisandeh amar shabd shilpi parsai ji ki parampara ko aage le ja rahe hain.
bhai jabhi to kahte hain jabalpur yaan sanskar dhaani.

Unknown ने कहा…

sundar...bahut sundar...

घनश्याम दास ने कहा…

बारिश के इस मौसम में आपका सुंदर गीत पढकर मन झूम उठा । एक और सुंदर रचना के लिए बहुत-बहुत बधाई और धन्यवाद ।

Dr. Chandra Kumar Jain ने कहा…

प्राणों की पुकार भरी
प्राणों में प्राण भरती
प्रेम से गरजती-बरसती
पावस की भीगी-सी सुंदर रचना
=========================
आभार
डॉ.चन्द्रकुमार जैन

कुन्नू सिंह ने कहा…

स्वतंत्रता दिवस की बहुत बधाईयां।
थोडी देर से जागा।

बहुत अच्छा लगा सून कर(कविता)

मन मे ऎसा एहसास हूवा की जैसे सच मे बारीस हो रही है।

Asha Joglekar ने कहा…

क्या बात है समीरजी आपको भी बारिश ने रोमान्टिक कर दिया । क्या भाभीजी मायके गईं हैं ?

समयचक्र ने कहा…

खेद का विषय है मेरा सर्वाधिक प्रिय ब्लॉग हिन्दी ब्लॉग समय चक्र तकनीकी कारणों से नष्ट हो गया है जिसका मुझे मानसिक रूप से बहुत खेद है आज मेरी वर्षो की मेहनत पर पानी फ़िर गया है यानि की समझ लीजिये वह दफ़न हो गया है न उसकी यूं आर एल भी मिल नही रही है एसा लगता है की आज समयचक्र पर ग्रहण की कलि चाय पड़ गई है ..आज से नई यूं आर एल में ब्लॉग समयचक्र फ़िर से आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहा हूँ . मेरा इ. मेल भी अब बदल गया है कृपया इस पर टीप प्रेषित करने की कृपा करे.

महेंद्र मिश्रा
जबलपुर मध्यप्रदेश .

बालकिशन ने कहा…

इतनी अच्छी कविता लिख रहे और फ़िर बात कर रहे है :)
आपकी विनम्रता को सलाम.

Demo Blog ने कहा…

हिन्दी भाषा में उपलब्ध सूचनाओं व सेवाओं की जानकारी :

हिन्दी इन्टरनेट
http://hindiinternet.blogspot.com/

Amit Pachauri (अमित पचौरी) ने कहा…

"बारिश बरसत जात है, भीगत एक समान,
पानी को सब एक हैं, हिन्दु औ’ मुसलमान.
"
... बहुत अच्छा

मोहन वशिष्‍ठ ने कहा…

झूम रही है धरा ,ओढ़ के हरी ओढ़नी
किन्तु है पिपासित बस ,एक यही मोरनी
इससे पहले दामिनी ,नभ से दे उलाहने
प्रीत बन चले आओ, प्रेयसि बुलाती है


बहुत ही सुंदर दिल मेरा भी बारिश में भीगने को किया लेकिन क्‍या करूं ना ही तो किसी ने बुलाया और ना ही बारिश हुई
बहुत अच्‍छी बधाइ

Unknown ने कहा…

भई कमाल है. ६० से अधिक टिप्पणियां और आप कहते हैं कि आप कवि नहीं हैं. किसी ने सही कहा है, हीरा अपनी कदर ख़ुद नहीं जानता.

बेनामी ने कहा…

बहुत सुन्दर समीर जी। कवित बहुत पसन्द आई।

Abhishek Ojha ने कहा…

काश!!! हम ये क्यूँ न हुए.

अपनी छोड़ बाकी सब के दिल की बात कहानी हो तो आपका जवाब नहीं ! पहले ही ठोक के लिख दिया ताकि कोई ये टिपण्णी न कर सके. लेकिन हम भी कम थोड़े हैं... आप से ही सिख रहे हैं.

कविता तो कमाल है ही.

वर्षा ने कहा…

बारिश की तान पर शब्द झूम रहे थे, गा रहे थे

pallavi trivedi ने कहा…

अरे वाह...आप तो गीत भी बड़े सुन्दर लिखते हैं....

Waterfox ने कहा…

सही! रोमांटिक हो रहे हो दद्दा। और शादी.कॉम का विज्ञापन भी लगा रखा है... इरादे नेक तो हैं न, कि भाभी को खबरदार करें ;)

Advocate Rashmi saurana ने कहा…

Sameer ji kavita bhut badhiya lagi.

मेनका ने कहा…

baarish par aapki pankatiyaan achhi lagi.

रंजन राजन ने कहा…

आपके ब्लॉग पर आना अच्छा लगा। साथ में बारिश में भीगने का मजा और भी आनन्द दे गया। आपकी सक्रियता भी प्रेरित करती है।बधाई।

neelima garg ने कहा…

nice poem.....such a scientific blogname....reason....??

Dr Prabhat Tandon ने कहा…

बहुत ही सुन्दर !