गुरुवार, मई 15, 2008

अब भी संभलो

चीन में आये भूकंप के बाद मन में उठते कुछ भाव. आशा है आप सहमत होंगे:

chinaearthq

अब भी संभलो

यह धरती है
जिसे रौंदती
दुनिया बन के भीड़.

सब सहती है
चुप रहती है
मौन उदासी
सब कहती है

पेड़ कटे
आहत है छाती
किन्तु न कहती
कभी किसी से पीर

यह धरती है
जिसे रौंदती
दुनिया बन के भीड़.

नाम प्रगति का
धुँआं छाया
असमान भी दिख न पाया
सूरज, चाँद, सितारों सब पर
गहरा एक कुहासा छाया

खूब सताया
दिल तड़पाया
सिसक पड़ी जब
उस कंपन से
उजड़े कितने नीड़..

यह धरती है
जिसे रौंदती
दुनिया बन के भीड़.

दुनियावालों
संभल सको तो
अब भी संभलो
इसकी छाती
यूँ न मसलो
इस धरती का
कर्ज है तुम पर
कुछ उसकी ही
लज्जा रख लो.

धरती चीखे
बिन हरियाली
जैसे कोई प्यासा बच्चा
मांग रहा हो नीर…

यह धरती है
जिसे रौंदती
दुनिया बन के भीड़.


--समीर लाल 'समीर’ Indli - Hindi News, Blogs, Links

30 टिप्‍पणियां:

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

आप की यह भावना वक्त की जरुरत है, वरना माँ की ममतामय गोद सूख जाएगी।

राजीव रंजन प्रसाद ने कहा…

समीर जी,

यह स्थापित सत्य है कि धरती अपना बदला स्वयं लेती है, पर्यावरण की अनदेखी कहीं मनुश्यों को डाईनासोर वाली सदगति न प्रदान कर दे...

रचना बहुत अच्छी है..

***राजीव रंजन प्रसाद

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` ने कहा…

'ये धरती कितना देती है अपने प्यारे पुत्रोँ को "
सुमित्रा नँदन पँत जी ने भी यही कहा था -
भू का भार हरने आयेँगेँ नारायण कभी क्या ?
Very sensitive poem Sameer bhai !
-- लावण्या

नितिन | Nitin Vyas ने कहा…

नाम प्रगति का
धुँआं छाया
असमान भी दिख न पाया

अच्छा लगा

Unknown ने कहा…

लाख कहो तुम, लाख लिखो तुम
कोई नहीं सम्हलने वाला
दूजों के दुःख तुम क्यों सहते हो
क्यों पीते हो विष का प्याला
समय है अब भी
'प्रैक्टिकल' बन जाओ
मेरे 'लाल समीर'

Batangad ने कहा…

एकदम सहमत

ALOK PURANIK ने कहा…

मार्मिक

anuradha srivastav ने कहा…

नाम प्रगति का
धुँआं छाया
असमान भी दिख न पाया
सूरज, चाँद, सितारों सब पर
गहरा एक कुहासा छाया
चिन्ता जायज़ है। यदि अब भी ना चेते तो पता नहीं क्या -क्या रौद्र रुप देखने होंगें।

Abhishek Ojha ने कहा…

पूर्णतया सहमत !

DUSHYANT ने कहा…

waah di khush huaa...

रंजू भाटिया ने कहा…

बिल्कुल सही लिखा है .मनुष्य अपना विनाश ख़ुद ही करने पर तुला है ...

बेनामी ने कहा…

यह धरती है
जिसे रौंदती
दुनिया बन के भीड़.

satya ka aaina dikhate hui subder kavita

Ghost Buster ने कहा…

बहुत बढ़िया है. समय कम है. अगर अब भी नहीं चेते तो परिणाम महा विनाशकारी होंगे.

संजय बेंगाणी ने कहा…

प्रकृति संतुलन साधती है...

अवाम ने कहा…

apki kavita bhut achhi hai sir. dharati par vakayi bojh bhut badh gya hai. apne mere blog par akar mujhe saraha. mujhe comment dia. mai chahta hu ki aap aage bhi mere blog par apne comment dekar mara magrdarshan kare sir. or ydi ho sake to mera link bhi apne blog par de.

मीनाक्षी ने कहा…

सब सहती है
चुप रहती है --------- लेकिन जब कहती है बिन बोले तो दिल दहला देती है.
धरती से जुड़ी कविता दिल में उतर गई.

कंचन सिंह चौहान ने कहा…

satya satya aur satya se purna kavita

राकेश खंडेलवाल ने कहा…

कटरीना हो अमरीका में, माइनमार में सायक्लोन हो
सूनामी की बात उठायें, या भूकंप चीन में आये
पूर्व सूचना ही तो हैं ये सब ही आने वाले कल की
जो निश्चित, आ ही जायेगा, अगर अभी भी संभल न पाये

विजयशंकर चतुर्वेदी ने कहा…

'धरती चीखे
बिन हरियाली
जैसे कोई प्यासा बच्चा
मांग रहा हो नीर…'

बहुत ख़ूब समीर जी!

समयचक्र ने कहा…

वाह बहुत सुंदर प्रेरक समय की मांग के अनुरूप आपकी कविता बहुत ही सराहनीय है .धन्यवाद आभार

अजय कुमार झा ने कहा…

udantashtaree jee,
kamaal hai ki antrish ke praanee ho kar bhee aapko dhartee kee itnee chintaa. aaj kavitaa ke roop mein nayaa andaaz pasand aayaa.

बवाल ने कहा…

Sahi likha o likhne vaale,
tumne vayez bankar !
ik na ik to sambhlega hee,
baat tumhari sunkar !!

Manish Kumar ने कहा…

खूब सताया
दिल तड़पाया
सिसक पड़ी जब
उस कंपन से
उजड़े कितने नीड़..

यह धरती है
जिसे रौंदती
दुनिया बन के भीड़.

बहुत सही पंक्तियाँ ! चेतने का वक्त आ गया है अगर अब भी नहीं सावधान हुए तो कितने और जलजले देखने पड़ेंगे ये मालूम नहीं...

Neeraj Badhwar ने कहा…

बेहद उम्दा समीर जी। आपकी चिंता एकदम जायज़ है। खूबसूरत ख़्याल की बेहद खूबसूरत अदायगी। हास्य-व्यंग्य जैसी सहजता आपके काव्य में भी है।

इतेफाक ये कि इसी विषय पर आज एक लेख प्रकाशित हुआ है। कल ब्लॉग पर डालूंगा।

Kavita Vachaknavee ने कहा…

आह!

Reetesh Gupta ने कहा…

क्या बात है !!...मन में उठ रहे भावों की सपाट एवं सरल प्रस्तुति...सुंदर ...बधाई

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

संभलना - चेतना - यही तो रेयर कमॉडिटी है।

डॉ .अनुराग ने कहा…

सौ फीसदी सहमति....

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर ने कहा…

अहुत खूब लिखा आपने. क्या कहा जाये बस देखते है और परेशान होते है. प्रक्रिति से खेलने का येही अन्जाम होना है.

Unknown ने कहा…

sir
i am comletely agreed with you
I Till remember the moments fo the GUJRAT earthquake as a studant of geography i got a chance to visit same area after five year and i see that ki destroy is so easy to be setteled
aaj bhi mere kai dost hai jo janury 2000 ko yaad nahin karna chahte hai beacause they loss only.
so it is my opinion that treat earth like as mother not as girl friend
reason you know maa ko manan asaan hai baispat girl friend
bhai after all life ka mamla hai
be carefull in bothe case
scam24inhindi.blogspot.com