सोमवार, अप्रैल 14, 2008

इनसे मिलिये-मेरे सहपाठी

बचपन से परिचित-हम सहपाठी थे दर्जा आठ तक.

फिर उसकी पढ़ाई की रफ्तार शनैः शनैः मद्धम पड़ गई और ११ वीं तक आते आते उसकी शिक्षा यात्रा ने उस वक्त के लिये दम तोड़ दिया.
neta
अक्सर मौहल्ले के चौराहे पर खड़ा दिखता. सदा ४-६ आवारा लड़कों के साथ. किसी ने बताया कि अब वो छोटी मोटी चोरी की वारदातों में शामिल रहने लगा है. स्वभाव से मिलनसार एवं व्यवहारकुशल.जब भी दिखता तो हाथ उठा कर अभिवादन करता और चाय के लिये जरुर पूछता. यह उसकी आदत का हिस्सा बन गया था. पूछना उसका काम होता और मना करके किसी कार्य की जल्दी बतला कर निकल जाना मेरा.

दरअसल मैं डरा करता था कि कहीं उसके साथ साथ किसी लफड़े में ही न अटक जाऊँ. वो भी शायद समझता होगा तो बस, इतना सा कह कर मुस्करा देता कि ठीक है. आगे कभी सही. मेरे लायक कोई काम हो तो बताना. यह पूछना भी उसकी आदत का ही हिस्सा था अन्यथा किसी चोर से क्या काम बतायें? यही उसकी सहृदयता की निशानी है. धार्मिक वो शुरु से रहा. मंदिर मे सुबह शाम दोनों वक्त माथा टिकाने जाता. बस, कभी कभी मौका देख कर चढ़ावे पर हाथ साफ कर लेता.

फिर सुना बड़ी चोरियों में उसकी गैंग चलने लगी. बहुत कर्मठ है. इलेक्ट्रानिक्स गुड्स की चोरी में स्पेशलाइजेशन हासिल कर लिया. शहर उपर नाम चलने लगा और वो चोर से प्रमोट होकर गुण्डा केटेगरी में आ गया. आदत वही: हाथ दिखाना, चाय और काम को पूछना. मुस्कराना और मेरा विदा हो जाना.

कहते हैं उसकी किस्मत बहुत बुलंद है और हौसला फौलादी. गुण्डागर्दी में भी वो जल्द ही ग्रेड ए का गुण्डा हो लिया. बहुत नाम कमाया. आधा काम तो उसके नाम से हो जाता. वो स्वयं सिर्फ बड़े केसेस हैंडल करने जाता जैसे मकान खाली कराना, चुनाव के दौरान नेताओं के लिये बूथ केप्चरिंग आदि. रसूकदार हो लिया और कालांतर में उच्चस्तरीय गुण्डागीरी के राजमार्ग की स्वभाविक मंजिल को हासिल करते हुए वह नेता हो गया.

शिक्षा और शिक्षा के समाज में योगदान का उसे पूरा भान था. जीजिविषा ऐसी कि ११वीं में दम तोड़ी शिक्षा यात्रा को उसने पुन: जीवित किया और अपने नाम के चलते किसी को भेजकर उसने इस बीच १२वीं और फिर बी.ए. और एल.एल.बी. की उपाधी अर्जित की.

अपनी रसूकदारी और अनेकों नेताओं पर पुराने अहसानों के चलते और भविष्य में काम का सिद्ध होने की पूर्ण प्रतिभा के कारण पार्टी टिकिट से विधायक का चुनाव लड़ा और जैसा की होना था-जीता भरपूर मार्जिन के साथ. एक बार नहीं. लगातार दो बार और आज भी तीसरे दौर में विधायकी बरकरार है.

जैसा बताया कि उसकी किस्मत बहुत बुलंद है और आदमी काम का, अतः इस बार उसे मंत्री बनाया गया.

भावुक हृदयी होने के कारण जनसमस्यायें उसे विचलित करतीं अतः अक्सर उनसे वह मूँह फेर लेता.

कुछ दिनों पहले पुनः दिखा. मानो पद प्रतिष्ठा का घमंड उसे छू तक न सका. वही तरीका: हाथ दिखाना, चाय और काम को पूछना. मुस्कराना-इस बार लाल बत्ती की कार को किनारे रोक कर उसने यह रसम अदायगी की अतः स्वभाविक रुप से हमेशा की तरह मैं मना नहीं कर पाया और उसके साथ वहीं चाय पी.

बड़ा दबदबा. पीछे पीछे पुलिस की गाड़ी. हालांकि उसे कुछ भी नया नहीं लगता होगा. पहले भी उसके पीछे पुलिस की गाड़ी रहती ही थी. मगर तब जनता की उससे सुरक्षा की वजह से. आज जनता से उसकी सुरक्षा की वजह से. बस, इतना सा ही तो अंतर पड़ जाता है गुण्डे से नेता की यात्रा तय कर लेने में. आज जब उसकी चुनाव बाद शोभा यात्रा निकलती है तो भी वह बीच में, चारों ओर पुलिस और समर्थक टाईप आवारा बालक. बहुत पहले भी कई बार उसकी ऐसी ही यात्रायें पुलिस ने निकाली हैं मौहल्ले में मगर तब वो शिनाख्ती परेड की शक्ल में होती थीं और वो कुछ इसी अन्दाज में तब भी मुस्करा कर ही पुलिस को बताया करता था कि फलानी जगह से यह चुराया और फलानी जगह से वो. साथ साथ बहुतेरे आवारा लड़कों की भीड़ भी ऐसे ही चलती थी कुतहलवश.

वह यारों का यार है. पहचान वालों से पैसा लेकर काम करना उसे गवारा नहीं और बिना पैसे लिये कोई काम आज तक उसने करवाया नहीं. अतः उसकी पहचानवालों का उसके माध्यम से कोई कार्य नहीं होता किन्तु किसी को उसने कभी नहीं भी नहीं कहा. एक सकारात्मक सोच का धनी-हमेशा हाँ में ही जबाब देता.

चाहे वो मंत्री हो गया हो किन्तु जमीन से उसका जुड़ाव वन्दनीय है. वह जमीनी नेता के तौर पर जाना जाता है. जमीन से लगाव ऐसा कि क्षेत्र की सारी कभी विवादित जमीनों पर आज उसका मालिकाना हक है और सारे कागजात उसके नाम. शहर के बीचों बीच एकड़ों का मालिक.

समाज में उनके सराहनीय कार्यों एवं क्षेत्र विकास को समर्पित जीवनशैली को देखते हुए विश्व विद्यालय शीघ्र ही उन्हें मानद डाक्टरेट देने पर विचार कर रही है. सारे जुगाड़ सेट हो चुके हैं.

आज उसका मौहल्ले में सम्मान समारोह है. मुझे मंत्री जी का परिचय देने के लिये मंच से बोलना है. अतः, सोच रहा हूँ इसी में से बोल्ड किये हुए मुख्य मुख्य अंश निकाल कर पढ़ दूंगा. अब कहाँ समय मिलेगा फिर से नया लिखने का?

चल जायेगा क्या?

वैसे इस आलेख का कॉपी राईट नहीं है. कभी आपको अपने क्षेत्र के नेता के बारे में बोलना हो, तो बेफिक्र होकर इस्तेमाल करें. बिल्कुल फिट बैठेगा.


नोट: आज ही ५ दिनों की लखनऊ/कानपुर की यात्रा से लौटा हूँ. शायद कनाडा वापसी के लिये २२ को बम्बई जाने से पहले की इस दौर की अंतिम शहर के बाहर की यात्रा. Indli - Hindi News, Blogs, Links

39 टिप्‍पणियां:

Yunus Khan ने कहा…

इसका मतलब जे हुआ कि अपन दोनों एकई जगह पढ़े हैं । क्‍योंकि जे तो अपने भी सहपाठी का ब्‍यौरा है भैया ।

अनूप शुक्ल ने कहा…

फिट तो है। धांसू भी। लेकिन ई पता कर लिया जाये कि किसी की जिंदगी के बारे में उससे पूछे बिना लिखना कापी राइट का उल्लंघन तो नहीं है। आजकल ई कापीराइट बहुत बड़ा लफ़ड़ा है भाई। बच के रहना वर्ना कल को कोई आपके भी किस्से लिखेगा। :)

विजय गौड़ ने कहा…

yatraa kI khabar or yatra ke doran ki gayi gadbadiyon ki khabar to fursatiya ji ke blog se mil gayi abhi to बचपन से सहपाठी ke baare mai or khabar de.

पंकज सुबीर ने कहा…

किसी कवि ने कहा भी तो है
कैसे कैसे ऐसे ऐसे हो गए
ऐसे ऐसे कैसे कैसे हो गए
चिन्‍ता न करें सहपाठी की किस्‍मत में देश सेवा लिखी थी सो कर रहा है । हम तो भई बदकिस्‍मत लोग हैं जो अपने देश की और देशवासियों की सेवा करने का भी समय नहीं है । आपको बधाई अच्‍छे धारदार व्‍यंग्‍य की ।

समयचक्र ने कहा…

सचमुच मे आपकी पोस्ट इस शहर के बारे मे बहुत कुछ बयान कर रही है और मुझे याद आ गया बुजुर्ग बताया करते है कि जबलपुर शहर के बारे मे नेहरू जी ने कहा था कि यह शहर गुंडों का शहर है . आज कई गुंडे लुच्चे लफंगे मंत्री-संत्री बने बैठे है जिनके पास कुछ नही था आज वे करोड़पति है . आज के समय मे राजनीति सिर्फ़ बाहुबली या पैसे वाले ही कर सकते है और राजनीति आज के समय मे आम आदमी के बस मे नही रह गई है .

पारुल "पुखराज" ने कहा…

इस बार लाल बत्ती की कार को किनारे रोक कर उसने यह रसम अदायगी की अतः स्वभाविक रुप से हमेशा की तरह मैं मना नहीं कर पाया और उसके साथ वहीं चाय पी.
.aap bhii prabhaav me aa hi gaye...

Arun Arora ने कहा…

कई बडे लोग आपसे अपनी जीवन यात्रा का वर्णन लिखवाने को राजी किये थे (नाम आपका ही होता पर लिख हम भी देते),पर आपका लेख पढकर सारे मना कर गये अच्छे खासे धन्धे पर आपने लात मार दी,किसी भी महान आदमी के पिछले हिस्से मे झाक कर नही देखा जाता,वहा बदबू के सिवा कभी कुछ मिल ही नही सकता ये शाश्वत सत्य है पर केवल अच्छा अच्छा लिखा जाता है,आप कभी किसी नेता की जीवनी मे ऐसा कही कुछ देखे है क्या..? नही ना ..? तो जो नेता कहे वही सत्य है जो वो करे वो नही :)इस लेख तो तुरंत प्रभाव से वापस ले खेद प्रकाशित करे हो सके तो किसी नदी नाले के नहा ले,उन्हे चाय पर आमंत्रित भी करले तभी आपको इस नेतालांछन पाप से मुक्ती मिलेगी :)और जाने से पहले बाबा फ़रीदी के आश्रम मे धौक लगाना ना भूले

mamta ने कहा…

यही तो , ऐसे ही है हमारे देश के कर्णधार ।

Sanjeet Tripathi ने कहा…

बहुतै सटीक!!

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

अरे बाप रे। आपके तो बड़े बड़े लोगों से कॉण्टेक्ट हैं!

Abhishek Ojha ने कहा…

ये तो शोले में जय और मौसी की बात की तरह हो गया... कुछ भी हो अपने दोस्त के लिए आपके मुंह से अच्छा ही निकलता है :-) पर नेताओं का इससे अच्छा चित्रण क्या हो सकता है...

कुश ने कहा…

भावुक हृदयी होने के कारण जनसमस्यायें उसे विचलित करतीं अतः अक्सर उनसे वह मूँह फेर लेता.
बहुत ही बढ़िया व्यंग्य... मन आनंदित हो गया..

PD ने कहा…

:D

Ghost Buster ने कहा…

आपकी दूरदृष्टि पर बड़ा सा प्रश्न-चिन्ह लगाती है ये पोस्ट. साब जी हमेशा चाय को पूछते रहे और आप आग्रह ठुकराते ही रहे. वैसे आपमें उन्होंने कुछ तो देखा ही होगा जो ये सम्मान दिया.

व्यंग्य में सच्चाई भी भरपूर है. हम भी वाकिफ हैं ऐसे एक सज्जन से. विद्यालय में हमसे दो जमात आगे थे, डील-डौल में दो गुने. शुरू-शुरू में छोटी-मोटी वारदातें करते थे. कभी किसी से नयी गेंद (लेदर की गेंद तब भी चालीसेक रुपये की आती थी) छीन ली, कभी किसी को दो हाथ जमा कर समोसे आदि के लिए पैसे झपट लिए. तेजी से तरक्की करते गए. हम तो स्कूल छूटने के बाद लोकल अखबारों से ही उनके कारनामे जानते रहे. कोई बड़ा लड़ाई झगडा, फसाद उनका नाम लिए बिना सम्पूर्ण नहीं समझा गया. फिलहाल पार्षद हैं और विधायक होने वाले हैं. अपनी पार्टी के यूथ विंग के प्रदेश महा मंत्री हैं. (राष्ट्रीय पार्टी है कोई छोटी-मोटी नहीं). भविष्य बड़ा ही उज्जवल दिखता है. और हाँ Ph. D. तो कई वर्ष पहले ही कर ली थी, तो गर्व से डॉ. भी लिखते हैं.

Manjit Thakur ने कहा…

है वो असली नेता, मन भर खाकर जो डकार न लेता

Neeraj Badhwar ने कहा…

effortless way of writing. बहुत अच्छा है।
समीर जी, मैं भी थोड़ा-बहुत हास्य-व्यंग्य लिखता हूं। ब्लॉग पर आ कुछ मार्गदर्शन कीजिए। आप ही के शब्दों में 'आपकी टिप्पणी से हमें लिखने का हौसला मिलता है।'

राकेश खंडेलवाल ने कहा…

क्या संगत का है असर, और कोई क्या बात
बिल्कुल मिलते देखिये हम सब के ख्यालात

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` ने कहा…

" हम लायेँ हैँ तूफान से कश्ती निकाल के
इस देश को रखना ,
" भारतजन ", सम्हाल के ! "
- बहुत अच्छा लिखा है ,
हमेशा की तरह समीर भाई :)
स्नेह्,
- लावण्या

Manas Path ने कहा…

अपने देश में तो अक्सर नेता ऐसे ही हैं.

Unknown ने कहा…

ज़मीनी !! - ऐसे दो सहपाठी चेहरे, खट जवान हो गए - बिल्कुल ऐसे जैसे आपने लिखे - बस उन्होंने बीच के अंतरे में ठेकेदारी की - चोरी चकारी की जगह - बहुत ही पैना और बहता लिखा है - वाह - मज़ा आ गया - मनीष

दीपक ने कहा…

हसबैंड आफ़ हिस ब्लोग जी !!गजब का चरित्र चित्रण है !! वाह मियाफ़िल्मिया सत्य ""

हवाला घोटाला किया करुँगा ,देश कभी ना आऊँगा "
मुझे टिकट का आर्डर दे दो मै गाँधी बन जाउँगा "

Rajeev (राजीव) ने कहा…

यह लेख कहाँ? यह तो टेम्पलेट कहें या कि पूर्व-मुद्रित प्रपत्र (pre-printed format) है। अनेकों की कहाने इसमें बिल्कुल फिट बैठेगी।

राज भाटिय़ा ने कहा…

मेरा भारत देश महान,नेता गण महान,समीर जी आप की उडन तश्तरी २२ को कहां कहा उडती हुई जाये गी,जरुर बातये, भाई आप तो नेताओ के लगोटिये यार हे,कभी कुछ काम धाम पड तो आप के चरण ही पकडे गे

बेनामी ने कहा…

सच की टीस.... कहीं ना कहीं इस चिठ्ठे ने एक दुखती नस पर हाथ रखा है....

Kavi Kulwant ने कहा…

When do you plan to be in Mumbai. Please call me whenever you reach here.
with love
K singh
022-25595378 (O)
09819173477 (R)

Puja Upadhyay ने कहा…

itna ghoomne firne ke baad bhi itna likhne ka time kaise nikal lete hain aap?shayad udan tashtari hain isliye :)
aapke ye sahpathi blog to nahin padhte na?

डॉ .अनुराग ने कहा…

वो तो हमे मालूम ही चल गया था की आप भारत भ्रमण पे निकले है ....आपके सहपाठी के बारे मे जानकर अति हर्ष हुआ ,जब शक्ल बदल जाती है तब यारो ऐ मिलना कैसा लगता है ,अभी इसका पुरा अनुभव नही हुआ है .....पर अहमद फराज साहेब का एक शेर याद आता है....
हमको तो उम्र खा गई खैर हमे गिला नही
देखा तो क्या से क्या हुए यार के खादोखाल भी "

रवीन्द्र प्रभात ने कहा…

कैसे-कैसे लोगों से आपका संपर्क है समीर भाई? आपको बधाई अच्‍छे धारदार व्‍यंग्‍य के लिए !

Dr. Chandra Kumar Jain ने कहा…

चलेगा क्यों, दौड़ेगा साहब !
आपने तो उन्हें अपनी कलम से ही
सारा सम्मान दे दिया है .
सचमुच बहुत धारदार लेखनी के धनी हैं आप.
पढ़ता रहूँगा .....निरंतर .

साधुवाद!

बेनामी ने कहा…

mast sameer ji sach me badhiya vyang

बेनामी ने कहा…

वाह-२, खूब लिखे हैं, बेचारे की पूरी बखिया उधेड़ के रख दी, मीठे शब्दों से क्या सुताई की है बंदे की!! ;) बोल्ड अक्षर तो उनकी तारीफ़ में बोल ही दीजिएगा परन्तु यह लेख न पढ़वा दीजिएगा उनको नहीं तो अगली बार चाय के लिए नहीं पूछेंगे!! ;)

Unknown ने कहा…

अब बताइये भला क्या नहीं था आपके सहपाठी के पास - मिलनसारिता, व्यवहारकुशलता, सहृदयता, धार्मिकता, कर्मठता, अच्छी किस्मत, साहस .........

उसके गुणों ने उसे रसूकदार बना दिया तो किसी को ऐतराज क्यों है?

Admin ने कहा…

मतलब, हम नहीं सुधरेंगे

बेनामी ने कहा…

भाई साहब,
आपकी स्मृति में बने रहने और सबकी चर्चा का विषय बनने के लिए आपके सहपाठी ने जो किया वह थोड़ा ही है. ऐसा कलेजा न हो, तो देश कौन चलाएगा? अपने किसी शरीफ पढाकू सहपाठी के बारे में लिख कर देखिये, शब्दों के लाले पड़ जायेंगे और पाठकों का अकाल भी. यह प्रजाति तो सबको कुछ न कुछ दे ही रही है.
आपसे काफ़ी सीखने को मिल रहा है. धन्यवाद.

samagam rangmandal ने कहा…

जबलपुर और व्यंग का चोली दामन का साथ लगता है। गोया व्यंग देश, काल से उपर, सार्वभौम हो चला है।जय जबलपुर!जय परसाई! जय उडनतश्तरी!

pallavi trivedi ने कहा…

वाह....बहुत बढ़िया. मखमल में छड़ी लपेट कर आपने प्रहार किया है!

रश्मि शर्मा ने कहा…

kafi dilchasp laga ise padhna.shuru me laga ki waki apke sahpathi ki kahani hai magar ye to......BAHUT BADHIYA

Kirtish Bhatt ने कहा…

बहुत बढ़िया. वैसे आपके सहपाठी जैसे भौत सारे हैं इस देश में. इंडिया आये हैं तो जरा पता करवाइए क्लास के बाकि बच्चे किधर गुल खिला रहे हैं :)

Awadhesh Singh Chouhan ने कहा…

BAHOOT HI SUNDER LIKHA HAI, KINTU JARA BACHKAR RAHNE KI JARURAT HAI APNE MITRA SE.