सोमवार, अक्तूबर 08, 2007

पुनः वापसी : एक विचार

५ तारीख की शाम एक कवि सम्मेलन में शिरकत करने मांट्रियल जाना पड़ा. उम्मीद थी कि ६ को लौट आयेंगे. मगर वाह रे मित्र!! ऐसे कैसे लौट आते जबकि सोमवार को भी दफ्तर बंद है थैक्स गिविंग के लॉग वीक एंड के लिये. बस रुकना पड़ गया. न लेपटॉप साथ में और इतने मित्र. बस एक कमरे में, ढ़ेरों बातें, दिन भर चाय के दौर, पुरानी पुरानी यादें. शाम बीतते तक ताश की गड्डियां और कुछ हल्के फुल्के शौकिन जाम के दौर.वाह. खूब सोये, खूब गपियाये..और चार दिन लगा मानो सारा जीवन जी लिया हो स्वर्ग में. एक नैसर्गीक आनन्द.

लगा कि एक दुनिया इन्टरनेट के बाहर अभी भी बसती है और वो भी कितनी सुन्दर है. वाह!! बस देर है, उसे जीने की.

बार बार मन ब्लॉग की तरफ भागे मगर इन्तेजामात ऐसे किये गये कि उस तक हम न पहुँच पायें. न ईमेल और न इन्टरनेट.

मुझे आज लगा कि ऐसा कभी कभी हो जाना चाहिये. सब कुछ दूसरा.एकदम रोज से अलग.

माफी चाहूँगा उन सभी मित्रों से, जिन के ब्लॉग पर मैं इस दौरान पहुँच नहीं पाया और अपने कमेंट नहीं दे पाया.

पढ़ जरुर लूँगा और अगर बहुत आवश्यक हुआ तो कमेंट भी कर दूँगा. मगर नया एकाऊन्ट आज से शुरु समझा जाये. :)

कल से मेरी पोस्ट भी पूर्ववत आने लगेंगी. और आपकी पोस्टें भी पूर्ववत पढ़ी जाने लगेंगी.

मेरी गल्ती कि मुझे बता कर जाना था, मगर मैने इसे उतना गंभीरता से नहीं लिया,

लगता है विश्वकर्मा जी की गल्ती है. :) Indli - Hindi News, Blogs, Links

26 टिप्‍पणियां:

नूर की बात, रौशनी की बात ने कहा…

कैफे काफी डे में अपनी संगिनी के साथ बैठा आर्य पुत्र बिलख रहा था
हे देवि, दोपहर के तीन बज गये, अभी तक समीर भैय्या की टिप्पणी नहीं आई.
संगिनी दिलासा दे रही थी, हे आर्य पुत्र, धीरज रखो, नेट् की लाइन खराब हो गयीं होंगीं.
हे देवि, भैय्या आर्यावर्त मे नहीं रहते, उस लोक में पुरुष तो अपनी संगिनी से संबन्ध विच्छेद कर सकते है पर नेट अपने कप्यूटर से नहीं.
आर्य पुत्र बिलखे ही जा रहा था.

ब्लागवाणी के प्रथम पृष्ठ की सबसे नीचे वाली प्रविष्टि ने सबसे ऊपर धसने जारही नई नवेली पृविष्टि से कहा
हे सुमुखि, पल भर ठहर, जरा एक टिप्पणी तो आ जाने दे.
नई नवेली बोली
सखि, समीर आज अन्तर्जाल से विलग हैं, अब तू अनन्त इन्टरनेट में समा जा, मैं कब तक प्रतीक्षारत रहूं
पुरानी प्रविष्टि ने गुनगुनाया
सखि, यदि वे कह कर के जाते
और भग्नाशा के साथ दूसरे पृष्ठ पर सरक गयी.

Yunus Khan ने कहा…

बड्डे तुम आराम से लोटो और लौटो । हम तो जे चले जबलईपुर । एक हफ्ता के लिए ।
अब लोकगीत को इंतजाम भी हो जेहे और मौज मजा भी । अच्‍छा जै राम जी की ।

पंकज बेंगाणी ने कहा…

कभी कभी ऐसी छुट्टीयाँ मनाना "ढलती" सेहत के लिए अच्छा होता है. खूब मनाया किजीए. क्या कहें! चिंता लगी रहती है. :)

संजय बेंगाणी ने कहा…

स्वर्ग से पूनः 'काँ-काँय' वाली दुनिया में आपका स्वागत है.


हाँ स्वर्गस्त होते समय कह कर जाना चाहिए, वरना शंका-कुशंका होती रहती है. आपको सकुशल लौटा देख प्रसन्नता हो रही है, अपना टिप्पणीकर्ता लौट आया है. :)

मीनाक्षी ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
मीनाक्षी ने कहा…

अनुभव
सुप्रिय सभी में सत्य है यह
स्थानापन्न नहीं सारांश है यह

अनुभव हुआ सुदीप्त हैं वे
सुवचनों से समृद्ध हैं वे

अनुभव हुआ सानिध्य नहीं
फिर भी सबसे सानन्द मिलें.
"चार दिन लगा मानो सारा जीवन जी लिया हो स्वर्ग में. एक नैसर्गीक आनन्द."

सच कहा आपने . स्वागत है आपका .

Shastri JC Philip ने कहा…

स्वागत है वापस उस लोक में जहां संगणक एवं जाल के साथ सैकडों लोग नजर बिछा कर आपका इंतजार करते है -- शास्त्री जे सी फिलिप

हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है

बेनामी ने कहा…

मधुशाला के छंदो ने जब अलग थलग खुद को पाया,
पढ़ने आये कई,पर नहीं कोई जब टिपियाया,
कैसी कैसी आशंका से ये मन फिर दो चार हुआ,
मित्र समीर को पुन: देख कर यह मन फिर से हर्षाया.

अब तो फिर से खनक उठेगा वो गुंजित चर्चित प्याला
फिर से नाज दिखायेगी अब मस्त मधुर मादक हाला
फिर से आशा में समीर की राह बिछायेंगी आंखें
जय हो जय हो का घोष कर खुल जायेगी मधुशाला.

ALOK PURANIK ने कहा…

भई इत्ता लंबा ना जाया कीजिये, मन सा ना लगता है आपके बिगैर ब्लागिंग में।
बुझी हुई ब्लागिंग में आग हैं आप
उजड़े हुए ब्लागों के कमेंटनुमा सुहाग हैं आप
आप तीन दिन फरार रहें, तो क्या होगा ब्लागरों का
बाप रे बाप बाप रे बाप बाप रे बाप

अनिल रघुराज ने कहा…

सच है एक दुनिया इंटरनेट के बाहर बसती है। बल्कि वही दुनिया है, यह तो उसकी झाईं है, परछाई है।

Neeraj Rohilla ने कहा…

वो सब तो ठीक है लेकिन कवि सम्मेलन के वीडियो अथवा आडियो का लिंक कहाँ है ?

ये सब ऐसे नहीं चलेगा, जरा विस्तार से वर्णन कीजिये तब तो लगे कि किसी कवि-सम्मेलन में गये थे :-)

साभार,

PD ने कहा…

sabse pahle mafi chahunga ROMAN me likhne ke liye.. mere is computer me hindi me typr karne vala koi s/w nahi hai.. :(

aapane mere last post par pahli baar comment likha tha, tab mujhe pata chala ki aap mere blog par bhi aate hain.. aur ye bhi ummid badhi ki mere agale post par ek comment, Gyandatt ji ke sath, aapki to jaroor hogi.. par aapka comment naa aane ka karan ab samajh me aa raha hai.. :)

bahut bahut badhayi ho aapko, jo aapne net se door ki duniya me maze kiye.. nahi to net ka kida jise kaat khata hai uske liye to net hi sab kuch ho jata hai.. :)

पारुल "पुखराज" ने कहा…

nuur ji, pet me bal pad gaye hastey hastey...sameer ji ki tipadii ka to khair humney bhi bada intzaar kiya apni gazal ki post per....magar aapkaa dukh dekh sunkar apna dukh kuch kam lag raha hai...sameer jii welcome back

चंद्रभूषण ने कहा…

नेट पर किसी को धौल नहीं जमाई जा सकती, न गला पकड़ कर ट्रीट ली जा सकती है। छूटकर गालियां देने में भी कुछ संकोच सा होता है। दोस्ती के लिए यह ज्यादा से ज्यादा एक शैडो मीडियम ही है। ब्लॉगिंग से अलग रहते दोस्तों के बीच आपका वक्त मजेदार गुजरा, यह हमारे लिए भी कम मजे की बात नहीं है। बहरहाल, अब आ गए हैं तो यहां हम लोगों के साथ भी मजे करें।

आलोक कुमार ने कहा…

आपका इन्टरनेट और ब्लोग के प्रति प्रेम ने मेरा मन मोह लिया ...!!

Sanjeet Tripathi ने कहा…

अजी कोई बात नही, यह तो बहुत सही किया आपने कि इस वर्चुअल दुनिया से दूर रहकर असल दुनिया की संगति का आनद लिया!!

उम्मीद करता हूं कि नेट से दूर रहकर भी एक रिफ़्रेश होने वाला भाव आपके मन मे होगा!!

वैसे ये नूर मोहम्मद खान साहब ने मस्ट टिप्पणी दी है!!

रवीन्द्र प्रभात ने कहा…

समीर भाई,
इन्टरनेट और ब्लोग के प्रति आपका प्रेम नि: संदेह
भावपूर्ण है,लेकिन कवि सम्मेलन का लिंक कहाँ है ?

डा.अरविन्द चतुर्वेदी Dr.Arvind Chaturvedi ने कहा…

चाहकर भी या ना चाहते हुए भी बहुत मुश्किल लगा होगा, दोनों ही ( नेट की मित्रों वाली दुनिया, और बिना नेट का स्वर्गिक आनन्द् )में से किसी एक को चुनना.

गोपाल दास नीरज की दो पंक्तियां याद आ रही हैं--
" मैने तो चाहा बहुत कि अपने घर में रहूं अकेला पर,
सुख ने दरवाजा बन्द किया,दु:ख ने दरवाजा खोल दिया"

अब क्या (किसमें )सुख और क्या (क़िसमें) दुख्,
बहुत मुश्किल है कहना.
...और हां कवि सम्मेलन की बानगी भर ही सही ...
( 12 अक्टूबर को मेरे संस्थान में भी कवि सम्मेलन है , सम्भव हुआ तो वीडियो के अंश पेश करूंगा)

बोधिसत्व ने कहा…

समीर भाई
हमने आपकी पोस्ट और आपके कमेंट दोनों की राह देखी है.....आपकी वापसी का स्वागत है

Batangad ने कहा…

समीर भाई
मुझे भी यही लग रहा था कि अपराध बोध से मुक्ति से बात आगे क्यों नहीं बढ़ रही है। आपकी पोस्ट पर आई टिप्पणियां भी आनंद देती हैं। खैर, सच्चाई तो यही है कि असली मजा तो कुछ नए में ही है। अब तो, विकल्प ज्यादा हैं, एक दुनिया से ऊबों तो, दूसरे का मजा लेना शुरू कर दो। जिंदगी में थोड़ा जान आ जाएगी।

Satyendra Prasad Srivastava ने कहा…

आप आए, बहार आई। जिंदगी जीने के लिए बधाई।पर ऐसा मत सोचिएगा कि जो लोग अभी ब्लाग पर नहीं आ पा रहे हैं (मसलन मैं खुद)वो भी अपनी जिंदगी ही जी रहे होंगे।

Manish Kumar ने कहा…

भाई कुछ कवि सम्मेलन के बारे में भी बताईए या वो कल बताएँगे। चलिए इंतज़ार कर लेते हैं।

रंजू भाटिया ने कहा…

तभी मैं कहूँ की कुछ ""मिस्सिंग'" सा क्यों है ब्लॉगर की दुनिया में :):)
राज़ अब जाना :) स्वागत है आपका :)

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

ब्लॉगिंग में लोकप्रिय होने का घाटा - सफाई देनी पड़ती है!

Mohinder56 ने कहा…

समीर जी,

रूटीन चलता है तो घर पर भी इज्जत कम हो जाती है.. कुछ दिन के लिये गायव हो जाओ तो फ़िर से अपनी अहमियत का पता चलता है... शोर्ट ब्रेकस आर वेरी यूसफ़ुल फ़ोर लाईफ़ यू नो..
मगर कोई क्लू दे के जाईयेगा ये न हो कि लोग पुलिस में गुमशुदा की रिपोर्ट लिखा दें

PD ने कहा…

आपने कहा था की आपके पोस्ट पूर्ववत आते रहेंगे.. पर अभी तक एक भी नय नहीं है.. फिर कहीं व्यस्त हो गये हैं क्या??
:)