रविवार, जुलाई 29, 2007

अहमक या असहमत

इस जागरुकता के दौर में, कोई भी बात ऐसी नहीं होती जिसकी तीन फाँक न हो जायें-सहमत, असहमत और उदासीन यानि तटस्थ. इस तृतीय तटस्थ श्रेणी से हमें कुछ लेना देना नहीं, इनका हिसाब तो समय करेगा, दिनकर जी ने बता दिया है:

"समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याध,
जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनके भी अपराध।"

फिर जो सहमत हैं, उनसे क्या शिकायत? कोई नहीं, वो तो हमारे साथ हैं ही. तो इनकी भी क्या बात करें. इन्हें तो बस साथ निभाने का साधुवाद दिया जा सकता. तनिक आभार टाईप.

रह गये असहमत.




असहमत बस असहमत नहीं होते हैं. इनके भी कई प्रकार होते हैं.

एक असहमत होते है अपनी विद्वता के कारण. उनका ज्ञान उन्हें आपसे सहमत होने से रोकता है. मगर ज्ञान के साथ अगर उनमें नम्रता भी हो, तो वो आप को गलत न बता कर बस अपनी बात रख देते हैं. अक्सर बात की समाप्ति इस तरह कर देते है कि यह मेरी सोच है, हो सकता है मैं गलत हूँ. मगर अपनी सोच तो बता ही जाते हैं.

इनसे कोई क्या आपत्ति करेगा. यह तो खुद ही मान रहे हैं कि हो सकता है मैं गलत हूँ. जबकि बात अर्जित ज्ञान पर आधारित है जिसकी गलत होने की संभावना भी कम है.

इसी प्रकार के असहमतों मे जिनको अपने ज्ञान पर दंभ होता है और नम्रता का बैरियर आड़े नहीं आता. वो कहते हैं कि आप गलत हैं. फलाने किताब के मुताबिक, फलानी धारा के तहत मैं कहना चाहता हूँ कि सही बात यह है. फिर अपनी ज्ञान गंगा बहाना शुरु. यह भी अक्सर सही ही होते हैं. बस, नम्रता के सुरक्षा कवच के बाहर. अति उत्साही और अति आत्म विश्वासी किस्म के ज्ञानी. इनसे बहस कुछ दूर तक की जा सकती है क्योंकि इनके पास नम्रता का कवच नहीं है मगर ज्ञान रुपी बाण इनको अच्छी सुरक्षा दे देता है.

एक असहमत ऐसे होते हैं कि आपकी हर कही बात में सिर्फ वो हिस्सा खोजते हैं जिनसे वो मानसिक और अपने संस्कारों के तहत असहमत हो सकें. इससे उन्हें अच्छा लगता है. बात बढ़ती है. वो कुछ देर बातचीत करते हैं. बात को कई भागों में बंटवा देते हैं. मुख्य मुद्दा परे हो जाता है, विवाद बाकी रह जाता है. वो थोड़ी देर तक असहमत रह कर विवाद करवा कर, गुट गठित कर अलग हो जाते हैं. इनसे थोड़ा बचना चाहिये.

अब होने को तो और भी बहुत से असहमतों के प्रकार होते है, जैसे भावनात्मक असहमत, बहुमत प्रिय असहमत यानि देखा कि बहुमत असहमती जता रहा है तो यह भी असहमत हो गये. इनका खुद का कोई स्टेंड नहीं होता. भीड़ के साथ आते हैं और उन्हीं के साथ छट जाते हैं. इनसे निश्चिंत रहें.

कुछ एक ऐसे भी देखे गये हैं जिन्हें आपके लिखे या कहे से कुछ लेना देना नहीं. उनका अपना भी कोई नज़रिया नहीं. बस नकारात्मक लिखने या कहने की आदत है तो बिना पढ़े या सुनें ही कह जाते हैं कि यह आपकी सोच हो सकती है, मेरी सोच भिन्न है. बस, इससे ज्यादा न यह कहते हैं. न ही इनकी कोई सोच है. यह किसी तरह का नुकसान नहीं पहुँचाते और न ही आपने पलट कर क्या पूछा, उससे इन्हें कोई सारोकार है. यह तो अब गये तो अगली बार ही आयेंगे, नई घटना में. यह भड़काने नहीं आये होते.

भड़काने वाले बमचक असहमत होते हैं जो बिना अपना कोई मत रखे आपके कहे को ललकारते हैं कि आप ऐसा नहीं कह सकते. आप अपने ख्याल लोगों पर लाद रहे हैं, इसके परिणाम आपको भुगतना होंगे आदि आदि. भड़काने के बाद अगर आग ठीक से लग गई. दो गुट बनकर झगड़ने लगे. तो बीच बीच में यह ऐसे ही बयान जारी करते रहेंगे कि अभी भी वक्त है, सुधर जाओ. माफी मांगो. अपना कहा वापस लो, वरना ठीक नहीं होगा आदि. फिर यह नया ठिया तलाशते है, नई आग लगाने के लिये. धीरे धीरे लोग इन्हें पहचान जाते हैं और तवज्जो के आभाव में यह तड़पते नजर आते हैं. बस, इतना ही धन्य है कि इनका अपना कोई मत नहीं होता. अपनी कोई राय नहीं आपकी बात पर कि अगर वो गलत है तो सही क्या है. इसका जिम्मा यह झगड़ने वालों पर डाले रहते हैं. इनकी परिकल्पना आप कुछ कुछ चियर गर्लस टाईप से कर सकते हैं.

अव्वल दर्जे के असहमत वो होते हैं जिन्हें अगर आप अहमक के नाम से भी पुकारें तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी.

इनका काम बस असहमत होना है. आप जो भी कह कर देख लें, यह असहमत हो जायेंगे. इन्हें विवाद करने से आत्म संतुष्टी मिलती है. मानो विवाद विवाद नहीं, कब्जियत के निराकरण की दवा हो.सब झगड़ते रहें, गाली गलौज करें, टी आर पी यानि हिटस बढ़ती रहें, लोग इन्हें जानने लगें, बस इनका काम हो गया. तभी यह इत्मिनान से सो पाते हैं. इन्हें इससे कोई मतलब नहीं कि आप सही कह रहें हैं या गलत. बस इन्हें यह मालूम चलना चाहिये कि आप कुछ कह रहे हैं और यह असहमत हो जायेंगे. आप जो भी कह लें, आप उनसे सहमत हो लें, वह फिर भी वो आपसे असहमत हो जायेंगे.

परसाई जी का एक उदाहरण इस तरह के लोगों के वार्तालाप का पेश करता हूँ:

वो कहता है कि , 'भ्रष्टाचार बहुत फैला है'.

मैं कहता हूं, 'हाँ, बहुत फैला है.'

वो कहता है, 'लोग हो हल्ला बहुत मचाते हैं. इतना भ्रष्टाचार नहीं है. यहां तो सब सियार हैं. एक ने कहा भ्रष्टाचार! तो सब कोरस में चिल्लाने लगे भ्रष्टाचार.'

मैं कहता हूँ,'मुझे भी लगता है, लोग भ्रष्टाचार का हल्ला ज्यादा उड़ाते हैं.'

वो कहता है कि, 'मगर बिना कारण लोग हल्ला नहीं मचाएंगे जी? होगा तभी तो हल्ला करते हैं. लोग पागल थोड़े ही हैं.'

मैने कहा, 'हां, सरकारी कर्मचारी भ्रष्ट तो हैं.'

वो कहते है कि, 'सरकारी कर्मचारी को क्यों दोष देते हो? उन्हें तो हम-तुम ही भ्रष्ट करते हैं.'

मैं बोल उठा, 'हां, जनता खुद घूस देती है तो वे लेते हैं.'

वो उखड़ पड़े, 'जनता क्या जबरदस्ती उनके गले में नोट ठूंसती है? वो भ्रष्ट न हों तो जनता क्यों दे?'


याने कि किसी तरह बस सहमत ही नहीं होना है.

यह असहमतों की जमात एकाएक बहुत तेजी से पनप रही है. सब देख रहे हैं. इनसे सावधान और सतर्क रहने की जरुरत है. इन्हें रोकने का एक मात्र साधन यह नहीं है कि इनसे सहमत हो जायें क्योंकि यह पलट जायेंगे. तब कैसे उन्हें रोका जाये?

मुझे लगता है कि इन अहमक दर्जे के असहमतों के लिये उन्हें अनदेखा करना ही इलाज है. वो कभी सहमत तो हो ही नहीं सकते. विवाद उनका शौक है और गाली गलौज उनका खुली बातचीत का नजरिया-प्रगतिशीलता.

मित्रों, आज इनसे सतर्क रहने की आवश्यक्ता है.

यह समाज के विकास में रोड़ा हैं. इनसे बचें तो विकास की बात करें.

इन्हें नजर अंदाज कर दें तो यह अपनी मौत खुद मर जाते है, तो चलो, नजर अंदाज करें न!!

हरी ओह्म!!!!

मिले नहीं जब शब्द तुम्हारे, कैसे गीत सजाऊँ मैं
तुम्हीं नहीं जब पास हमारे, कैसी गज़ल सुनाऊँ मैं
यूँ तो नादानों से कहना, कुछ भी अब बेमानी होगा
आग लगी है इस दुनिया में, कैसे चुप रह जाऊँ मैं.
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28 टिप्‍पणियां:

Arun Arora ने कहा…

इससे पहले की हम आपके इस अव्वल दर्जे के असहमत वो होते हैं जिन्हें अगर आप अहमक के नाम से भी पुकारें तो कोई अतिश्योक्ति नही होगी.
वाक्य से सहमत हो आप फटाफट हमरे सारे लेखो पर सहमती का टिप्पणी कर आये..:)

अनूप शुक्ल ने कहा…

सही है। लेकिन आपके इस लेख के प्रस्तुत करने के तरीक से मैं अपनी विनम्र असहमति व्यक्त करना चाहता हूं। आशा आप अन्यथा न लेंगे लेकिन मेरा स्पष्ट मत है कि आप इन सभी वर्गों के असहमत लोगों के कुछ उदाहरण अपने ब्लाग जगत से दे देते तो लेख और समझ में आ जाता। आशा है कि मेरी इस टिप्पणी को आप अहमकपना न मानेंगे।:)

सुनीता शानू ने कहा…

"अव्वल दर्जे के असहमत वो होते हैं जिन्हें अगर आप अहमक के नाम से भी पुकारें तो कोई अतिश्योक्ति नही होगी" बहुत सुन्दर और बिल्कुल सही मै तो सहमत हूँ आपकी बात से...जो बिना सोचे समझे असहमत हो वो मूर्ख और जो भेड़ चाल चले एक को देख कर दूसरा भी सहमती जाहिर करे
वो भी मूर्ख...

शानू

Sanjay Tiwari ने कहा…

मैं तो आपसे असहम कतई नहीं हूं. बमचक असहमत तो हो ही नहीं सकता.
अच्छे विचार.

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

आप ने जो लेख मे लिखा ।शायद आप के विचार ठीक ही हो।

पंकज बेंगाणी ने कहा…

अजीब सी गुत्थी है यह तो. अब असहमत हुआ जाए कि अहमक!


आप तो मेल का जवाब नही दे रहे तो लगा बीजी होंगे. :) फिर आपकी पोस्ट देखकर खुद से ही असहमत हुआ जा रहा हुँ, बहुत ही अहमक हुँ. क्या किया जाए. :)

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

अरे वाह! क्या टैलीपैथी है? हमने भी आज लैम्पूनर्स को ले कर पोस्ट घसीटी है. हम तो आपसे अव्वल दर्जे के सहमत हैं.
बल्कि आगे हमारी टिप्पणियां समीरात्मक होने लगेंगी - उत्तरोत्तर :)

संजय बेंगाणी ने कहा…

घोर असहमती है, आपके इस लेख से. बात समझमें नहीं आयी किसके लिए लिखा है. आयी भी तो आपने सही तरिके से नहीं लिखा. लिखा भी है तो प्रगतिशील नहीं है. है भी तो हमें क्या?

एक विनम्र अहसमतिमय टिप्पणी :)

Shiv ने कहा…

Poore lekh se main 'sahmat' huun..

Asahamat hone ke peechhe apni maujoodagi darj karaane ki laalsa jyaada aur thos baatein na kah paane ki vivasata bhee hai..

Parsai ji ne hi likha tha.."Hain phoohad aur khud ko bataate hain fakkad...Vishwas ke saath, ki saamne waala unhein fakkad hi samajh raha hota hai...."

डा.अरविन्द चतुर्वेदी Dr.Arvind Chaturvedi ने कहा…

पहले तो यह कि मैं पूरी विनम्रता के साथ आपसे असहमत हूं.( हो सकता है कि मैं गलत होऊं)

अहमक तरह के व्यक्ति दूसरे को नीचा दिखाकर खुद बडा होना चाहते हैं.

वसीम बरेलवी ने ऐसे ही लोगों के लिये लिखा है :

" अपने हर हर लफ्ज़ का मैं आईना हो जाऊंगा,
उसको छोटा कहके मैं कैसे बडा हो जाऊंगा ?"



दूसरा यह कि आपको अलग से एक्स्क्लूसिव बधाई देना था, अत: देर से सही "आपको जन्मदिन की बधाई एवं ढेरों शुभकामनायें".

ग़ुल्ज़ार के शब्दों में; " वो उम्र कम कर रहा था मेरी, मैं साल अपने बढा रहा था"

भारतीयम्

आलोक ने कहा…

मनोविज्ञान ने इस प्रकार के व्यवहार का विश्लेषण किया है। यदि आपने एरिक बर्न की गेम्स पीपल प्ले या थॉमस हॅरिस की आय्म ओके, यूर ओके न पढ़ी हो तो ज़रूर पढ़ें।

आपके द्वारा वर्णित व्यवहार इस श्रेणी में आता है - क्यों नहीं - हाँ, लेकिन
उदाहरण -

शादी को सात साल हो गए हैं, पति दोस्तों के साथ कैरम खेलने चला गया है, पत्नी अपनी सहेलियों के साथ बैठी है -

प्रथम: "परेशान हूँ मैं - समझ नहीं आ रहा कि अपने पति के साथ कैसे जियूँ। कभी सुनता ही नहीं मेरी बात। बात बात पर ग़ायब हो जाता है"

द्वितीय: "तो तुम दोनो बैठ के बात क्यों नहीं करते?"

प्रथम: "हाँ, लेकिन वह तो चैन से बैठ ही नहीं सकता।"

तृतीय: "शायद तुम्हें घर में एक साथ रहने से थोड़ी खीझ हो रही है। कुछ दिन के लिए अलग अलग घूमने क्यों नहीं चले जाते?"

प्रथम: "हाँ, लेकिन वह तो बहुत महँगा होगा न।"

चतुर्थ: "अच्छा तो तलाक ही क्यों नहीं कर लेते?"

प्रथम: "हाँ, लेकिन बच्चों का क्या होगा?"

सभी दोस्त(सोचते हैं): "फिर तो कुछ उम्मीद ही नहीं है, कुछ नहीं हो सकता है।"

प्रथम (सोचती है): "मेरी कोई मदद कर ही नहीं सकता"

और यह निरर्थक वार्तालाप बार बार होता है। इससे "प्रथम" को यह "फ़ायदा" होता है कि यह सिद्ध हो गया कि उसकी हालत बहुत खराब है और कुछ निदान भी नहीं हो सकता है।
दोस्तों को यह "फ़ायदा" होता है कि उनके लिए यह सिद्ध हो गया कि दूसरे को नसीहत देने का कोई लाभ नहीं है।

anuradha srivastav ने कहा…

ज्यादा कुछ बोलेंगें तो आपको सकारात्मक अहमक लगेंगें ।
वर्गीकरण सुन्दर किया है।

ALOK PURANIK ने कहा…

पैसे किसमें ज्यादा मिलेंगे, अहमक होने में या असहमत होने में सो बतायें, फिर हम आगे बतायेंगे

रवि रतलामी ने कहा…

मैं पुराणिक जी से सहमत हूँ. पैसे किदर को मिलेंगे - जिदर को पैसा उदर को हम!

बेनामी ने कहा…

वाह, सही लिखे हैं समीर जी, अपन भी आपसे सहमत हैं, लेकिन लिखने का बताने का क्या लाभ? जिनको इन अहमकों के बारे में पता है वो इनको अनदेखा ही करते हैं और जिनको नहीं पता वे पहचान नहीं पाते कि अहमक कौन, आखिर अहमक भी तो नान-अहमकों को हर कहीं अहमक बताते रहते हैं ताकि उनको कोई अहमक के रूप में न पहचान ले, और कोढ़ में खाज बेचारे inferiority complex से भी ग्रसित होते हैं!! ;) हाँ, आपकी इस चेतावनी का लाभ उन लोगों को अवश्य हो सकता है जो अहमकों को पहचानते हैं लेकिन फिर भी उनको अनदेखा नहीं करते!! ;)

लेकिन जन कल्याण हेतु आपके द्वारा जारी की गई इस चेतावनी के लिए आपको साधूवाद। :)

Sanjeet Tripathi ने कहा…

अहमक होने मेरा मतलब है कि असहमत होने की कोशिश करते हुए असहमत!!

मस्त है!!

बड्डे पाल्टी कब दे रहे हो!!

ePandit ने कहा…

देखिए हम आपसे स‌हमत नहीं, अब ये मत पूछना क्यों, बस्स!

Satyendra Prasad Srivastava ने कहा…

मैं तो आपसे पूरी तरह सहमत हूं।

Divine India ने कहा…

कम-से-कम इस रचना पर तो मैं पूरी तरह से आपसे सहमत हूँ बस खुद से असहमत जान पड़ता हूँ।
बहुयामी प्रतिभा हैओ आपमें यह भी मेरी सहमती का ही भाव रखा जाए… :)

sanjay patel ने कहा…

समीर"दा" ये अहमक़ भी बडे़ कलाकार होते हैं..आप इनसे असहमत हो सकते हैं लेकिन इन्हे ख़ारिज नहीं कर सकते क्योंकि इन्हीं के होने से अक़्लमंदों (या तथाकथित अक़्लमंदों) की दुकान चलती है.

mamta ने कहा…

पूरी तरह सहमत है और मान ली आपकी बात की इन अहमक दर्जे के असहमत लोगों को नजर अंदाज करेंगे।

Shastri JC Philip ने कहा…

काफी अच्छा एवं सशक्त विश्लेषण है. साथ में व्यंग भी!

बेनामी ने कहा…

हमने बहुत कोशिश करी की सहमति की बात लिखें लेकिन टिप्पणियाँ देख कर लगा कि किसी को तटस्थ भी होना चाहिये, इसलिये हम तो भई इस बात पर तटस्थ रहेंगे ;)

Udan Tashtari ने कहा…

मित्रों

आप सभी सहमतों, असहमतों और तटस्थों का हौसला आफजाई के लिये बहुत बहुत आभार.

ऐसा ही स्नेह बनाये रहें तीनों स्थितियों में. :)

सादर

समीर लाल

Udan Tashtari ने कहा…

अरुण

कर आये सब जगह सहमती की टिप्पणी.

अनूप भाई

अरे भाई, क्या इरादा है? उदाहरण दे दें तो अभी यहीं बवाल मच जायेगा..हा हा!! फिर तो समझो काम ही हो गया आगे के लिये. :)

सुनीता जी

सबको मूर्ख घोषित करके सुना आप लम्बे अवकाश पर जा रही हैं :) बहुत शुभकामनायें. हम इन्तजार करते हैं.

संजय भाई

बहुत आभार जब तक बमचक असहमत न हो जायें.

परमजीत भाई

शायद?? यह असहमती है क्या?? :)

बहुत आभार.

Udan Tashtari ने कहा…

पंकज

अहमक तो हम अपने मुँह से कैसे कहें? तुम तो कितने समझदार हो. अच्छा रहा आ गये समय से.

संजय भाई

बहुत आभार इतनी सारी असहमती के लिये. ऐसी ही असहमती पूर्ण शुभकामनायें बनाये रहें. :)

मिश्रा जी

:)

बस पहली लाईन पढ़ कर मैं खुश हो गया. बहुत आभार. स्नेह बनाये रखें.

अरविन्द भाई

आप और गलत-सवाल ही नहीं उठता. आपकी असहमती में भी इतना स्नेह झलक रहा है कि लग रहा है-काश, आप असहमत ही रहें. जन्म दिन की एक्स्क्लूसिव बधाई के लिये बहुत आभार.

आलोक भाई

पढ़ी तो नहीं, मगर अब रेक्मेन्डॆड बुक्स में नोट हो गई है. जल्द ही पढ़ ली जायेगी. उदाहरण जबरदस्त रहा. आते रहें, हौसला बना रहता है. बहुत आभार और धन्यवाद.

अनुराधा जी

अब एक बार ज्यादा बोल ही दिजिये. :)

आप आईं, अच्छा लगा. आते रहें, और अच्छा लगेगा. धन्यवाद.

Udan Tashtari ने कहा…

आलोक पुराणिक जी

पैसे तो आजकल सिर्फ अहमकी में ही हैं. बाकि तो सोशल सर्विस वाली एन जी ओ हैं. अब जैसा आप कहें. बहुत धन्यवाद. :)

रवि भाई

फिर तो स्वागत है उसी तरफ :)

आभार.


अमित भाई

सही पकड़ा, बस जन कल्याण हेतु ही जारी किया गया है, बाकिया तो चल ही रहा है. बहुत धन्यवाद ध्यान लगाकर पढ़ने का. :)


संजीत

कोशिश करते रहो, हम अहमक होने दें जब न!!

पार्टी ड्यू रही न भाई, भारत यात्रा के दौरान. पक्का. धन्यवाद आने का.

श्रीश भाई

नहीं पूछते क्यूँ. मगर असहमती के लिये साधुवाद तो दे ही सकते हैं. :)

Udan Tashtari ने कहा…

सत्येन्द्र भाई

बस आपका ही आसरा हैं. बहुत आभार. :)


दिव्याभ भाई

अरे, इतनी हौसला अफजाई. बहुत बहुत धन्यवाद. आपका आते रहना बहुत हौसला बढ़ाता है.

संजय पटेल भाई

खारिज कहां कर रहे हैं भाई. बस वर्गीकृत करके नजर अंदाज कर रहे हैं. सबको सहूलियत रहे इसलिये लिख दिया. :) बहुत आभार पधारने का.

ममता जी

बहुत आभार बात मान गई आप, और क्या चाहिये हमें. बस यूँ ही स्नेह बनाये रहें.

शास्त्री जी

आपकी नजर में आया तो हम भी सहमत हो लेते हैं कि अच्छा ही होगा. ऐसे ही स्नेहाशीष देते रहें.

तरुण भाई

फिर ओ अब आप का हिसाब किताब समय के हाथों चला गया बकौल दिनकर जी. हम तो बस साधुवाद और आभार कह सकते हैं.