सोमवार, मई 07, 2007

अरे ओ दकियानुसी!!!

समय बदलता जाता है. मान्यतायें बदलती जाती हैं. हम बदलते जाते हैं.

जब भारत में रहते थे तब कोई भी मित्र सर मुंडाये मिल तो भर जाये. हम झट से अपना मुँह तुरंत उतार लेते थे झूठमूठ और बस, पूछ बैठते थे कि भाई, कब हुआ, कैसे हुआ? क्या बीमार थे?

वो भी सर झुकाये बताता कि हाँ, पिता जी गुजर गये. कोई खास बीमार तो नहीं थे. बस, बुढ़ापा था. रात में खाना खा कर सोये और सुबह.....!!! फिर उसकी आँख भर आती. आगे का हम एकस्ट्रा समझदारी में खुद समझ जाते कि सुबह वो जागे नहीं. उसके कँधे पर हाथ धरते. ढाढस बंधाते और तैहरवीं का निमंत्रण सुनश्चित करते.

बस उसके बाद, एक तेहरवीं की दावत..खुले आम सूतमसात....डट कर भोजन....और फिर सब नार्मल. अगले गंजे का इंतजार.

कितना आराम था. मुंडा सर मतलब शोक का संदेश. न पूछना पड़े और न बताना पड़े. सब कुछ अपने आप में कहता सर. पूर्णतः चमकता सर मतलब तेहरवीं का निमंत्रण पत्र. यह होती है संस्कृति..बिना बोले सब कुछ कह जाती है. जैसे हमारे जमाने की भारतीय कन्या. बस, प्रेमाग्रह के जबाब में पैर के अंगूठे से जमीन कुरेदना और नज़रें झुका देना मात्र, स्विकारोत्ति का प्रमाण पत्र था.

समय बदल गया है. अब तो मुँह बा कर भी कन्या हाँ बोल दे तो भी शंका बनी ही रहती है कि सच में हाँ कहा है कि सिर्फ फन के लिये कि यार, मैं तुम्हारा रियेक्शन देखना चाहती थी. यू आर टू सेन्टीमेन्टल- अर्थ, बड़े दकियानुसी हो जो हाँ को हाँ समझते हो.

यहाँ मित्र मिले. सर मुंडाये हुये. हमने मुँह उतार लिया. हमारे साथ एक और यहाँ के लोकल संस्कारी मित्र थे. वो उसे देखकर तुरंत बोले-औह मैन!! शेव्ड़-लूकिंग सो कूल-वोव!!!! ग्रेट ड्यूड---हम तो भौचक. एक तो अगले के घर गमीं हो गई और यह बंदा बोल रहा है-शेव्ड़-लूकिंग सो कूल-वोव!!!! मगर यह क्या, अगला भी हंसते हुये कहने लगा कि भाई, बाल साथ नहीं दे रहे थे तो सोचा कि शेव करा लें..मे बी आगे ठीक आ जायें.

और फिर वो कूल ड्यूड मेरी ओर मुखातिब हुआ...वाटस रांग विथ यू? कोई शोक वगैरह तो नहीं हो गया घर में..आपका उतरा चेहरा देख कर लग रहा है कि घर में कोई गमीं हो गई है.

अब उसको कैसे समझाऊँ कि भईये, यह चेहरा तो तेरी खोपड़ी देखकर आदतन उतर गया था. हमारे यहाँ तो सब भला चंगा है. यह तो जमाने में ही आग लगी है जो हमारा चेहरा गड़बड़ नज़र आ रहा है. हम बहुत दकियानुसी जो हैं न!!!


नोट:
आदातानुसार बड़ा नहीं लिखे हैं तो क्षमा किया जाये. वैसे ऐसी ही विडंबना कम कपड़ों के साथ भी है जिसे कभी आभाव माना जाता था वो अब फैशन है. :) Indli - Hindi News, Blogs, Links

26 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

'जैसे हमारे जमाने की भारतीय कन्या. बस, प्रेमाग्रह के जबाब में पैर के अंगूठे से जमीन कुरेदना और नज़रें झुका देना मात्र स्विकारोत्ति का प्रमाण पत्र था.'

भई वाह वाह

ALOK PURANIK ने कहा…

वाह, वाह,दूर की उड़ान लाये हैं।
आलोक पुराणि

Arun Arora ने कहा…

"कोई आया तो जसूटन,जायेगा तो तेरहवी पक्क्की"
समीर भाई हर जगह खाने के सपने देखना छोड दो
,अब लोग मन्दिर मे बुला कर तीसरे दिन ही जरा सा (एक चम्मच)गुलदाना या हलवा बाट कर निपटा देते है अब लिफ़ाफ़ा कुछ कहता है मजनून कुछ निकलता है
और ये कपडो पर तो कुछ कहना ही मत गांधी वाद बस अब यही रह गया है मल्लिका केवल दो रुमालो मे जीवन गुजार रही है वो भी महिलाओ वाले

पंकज बेंगाणी ने कहा…

ई का हजूर!!


बस्स्स... इत्ता सा... हमें लगा था कि आप फुरसतियाजी से प्रेरित हो चुके हो और लम्बे लम्बे छापने के उस्ताद हो गए हो.

पर आपने तो गागर मे सागर भर दी. बहुत थोडे में ही मौज ले ली. अब फुरसती चाचु को प्रेरित होना चाहिए. हा हा हा हा....

मस्त लिखें है हजूर.

अंत में मेरी चार लाइना:


देखें गंजे बजार में,

मनमौजी मन नाचा,
उपरी उपरी शौक सन्देशा,

तेरहवीं की है आशा,


तेरहवीं की है आशा,

कि होगा भोज सत्कार,

हम तो मौज में हैं भैया,

चाहे रोज मरे यह संसार!

Arun Arora ने कहा…

समीर भाई अब अगर तुमने ये सेंसर नही हटाया टिपियाने से तो हम तुम्हे अच्छी अच्छी लोकल गालियो से परिचित करायेगे (गा गाकर)बहुत सारे लोग जो कही नही गरिया पाते उन्हे तुम्हारा ठिया ठिकाना दिखायेगे ताकी तुम भी सेंसर का पूरा मजा ले सको

संजय बेंगाणी ने कहा…

हा हा ही ही हु हु...
यह हँसी हास्य दिवस के असर से थी.
बाकि लेख तो....मस्त. लम्बाई भी सही रखी है, न कम न ज्यादा.

रंजू भाटिया ने कहा…

sach mein samaya bahut badal gaya hai ....achha laga aapke lafzo mein is ko padhna

काकेश ने कहा…

इस बात से एक बात याद आ गयी . हॉस्टल में थे तो ऎसे ही 'कूल' लगने का शौक हो गया .. घर में जब पूछा ( उस समय सारे काम घर में पूछ कर ही करते थे ) तो वो डाँट पड़ी कि दोबारा 'कूल' बनने का नहीं सोचा गया.

अच्छा लगा आपका व्यंग्य.

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

बहुत बढिया व्यंग है। आशा है और भी पढनें को मिलता रहेगा।

बेनामी ने कहा…

अब क्या लिखें? यहाँ हास परिहास है तो साथ में फाँस भी है। आपने बड़ा नहीं लिखा है परंतु भाव तो बहुत बड़ा है।

Rajesh Kumar ने कहा…

बहुत बढिया। पर ये कहने पर ही मेरी टाँग नहीं खींचियेगा- कोई गंजा हो गया और ये कहता है बहुत बढिया।
राजेश कुमार

Sanjeet Tripathi ने कहा…

गुरुदेव इब इहां के रस्मो-रिवाज़ को उहां तलाशोगे तो यही न होगा।
मस्त लिखे हो।
देखा कि आपने कुछ लिखा है तो सोचा कि पहले दुसरे चिट्ठों पर घुम-टिपिया आएं, नए चिठेरों का स्वागत कर लें फ़िर आराम से बैठकर आपका लिखा पड़ेंगे, इस चक्कर में कंप्यूटर पर आने के एक घंटे बाद आपकी पोस्ट पढ़ सका।

Mohinder56 ने कहा…

समीर लाल जी

आप ने शोक में से भी हास्य का पुट निकाल लिया... यही आप की लेखनी और बालों की बिशेषता है...वैसे आज कल आप हास्त पर कुछ ज्यादा ही जोर दे रहे हैं, आप को नहीं लगता....ही ही...

ePandit ने कहा…

धन्य हैं गुरुवार आप तो हर चीज में हास्य ढूंढ लाते हैं।

RC Mishra ने कहा…

क्या खूब लिखा समीर जी, मजा आ गया।
पोस्ट का ये साइज अत उत्त्म लगता है मुझे तो न कम न जादा:)।

mamta ने कहा…

हमारे बडे बेटे को भी इसी तरह कूल दिखने का शौक चढा था पर बड़ी मुश्किल से माने , ये समझाने पर की अपने यहाँ इसे खराब मानते है।

राकेश खंडेलवाल ने कहा…

अपने सनदर्भों के जब जब हमने अर्थ निकाले हैं
तब तब अपनी सभी मान्यता शीशे जैसे टूटी हैं
अब जब हरी पत्तियां देखें तो सन्देह यही होता
उगी पड़ौसी के घर में ये शिवजी वाली बूटी है

Priya Sudrania ने कहा…

wah bahut maza aaya.......mere dosto mein se ek hindustani dost ne yahan aakar cool dude look ke chakar mein sir muda liya.....ab unhein jana hain hindustan, ladki pasand karne....bechare aajkal kheti hari bhari karne ka jugad bitha rahein hain........

rachana ने कहा…

//समय बदलता जाता है. मान्यतायें बदलती जाती हैं. हम बदलते जाते हैं.//

कुछ चीजे‍ नही बदलती‍..जैसे आपका दकियानूसीपन! :)

Manish Kumar ने कहा…

पोस्ट छोटी रही पर वाकया मजेदार !

Reetesh Gupta ने कहा…

वाह लालाजी बढ़िया कहे हो ..मजा आ गया...बधाई

Pramendra Pratap Singh ने कहा…

यह मेरी कमी है कि मै आपके ब्‍लाग पर काफी देर से पहुँचता हूँ। जबकि आप इतना अच्‍छा लिखते है कि सोचने पर मजबूर होना पड़ता है कि आप इतना अच्‍छा विषय कैसे खोज लेते है।

अच्छा लेख था। शुरूवात की पक्तिंयों से हस्‍य रस दिख रहा था। मजा आया।

अगले लेख की प्रतीक्षा में।

सुनीता शानू ने कहा…

वाह, समीर भाई बहुत खूब लिखते है आप, बात छोटी बडी़ पोस्ट की नही है कम शब्दो में बेहतरीन व्यंग्य रचना बन पडी़ है,..हरारे भारत में तो सदियों से ये प्रथाएँ चली आ रही है,जो कभी-कभी मज़ाक का पत्र बन जाती है,...
खैर आप अपने दिल में अपना भारत सजों कर रखिए ये आशा मत किजिए कि जो भारतवासी आपके पास रहता है वह भी पूर्ण्तः भारतीय है की नही,..
हास्य-व्यंग्य रचना बहुत ही अच्छी लगी,..बधाई

सुनीता(शानू)

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

समीर जी यहाँ अफ्रीकन ज्यादातर ऐसे ही होतें हैं बिना बालों वाले और ऊपर से चमकते हुये सिर वाले, तो पर इंडियन को शर्म महसूस नहीं होती ऐसा करने में क्योंकि जब भी किसी को किसी तरह की समस्या होती है जैसे बालों का कम होना, सफेद होना या कभी किसी ने नये पार्लर पर जाकर रोना, तो वो सब पूरे बाल ही साफ करा देते हैं क्योंकि यहाँ तो ज्यादतर ही ऐसे हैं ये तो अब फैशन हो गया पर है बड़ा अजीब सा फैशन है।
अच्छा विषय चुना और लिखा भी बहुत अच्छा है हाय रे!! ये फैशन!! बधाई।

Bea ने कहा…

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Please! Please! Please! Do a lot of research about how Mary Kay, Inc. operates before "joining" the company. On the surface it looks like the opportunity of a lifetime but in reality, it is a multi-level marketing (MLM) aka "pyramid" scheme and truly the very few who make any kind of real income are making that money at the expense of the vast majority of the "underlings" --the people that are recruited.

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For so long it was unheard of to "complain" or "question" the results and activities and business practices & ethics of the corporation and other independent consultants.

Now there is a place!

Udan Tashtari ने कहा…

आप सबका बहुत आभार .पढ़ते रहें पढ़ाते रहें. आते रहें, बुलाते रहें. धन्यवाद, मन आनन्दित है आप सबकी टिप्पणियां पाकर.