शनिवार, मार्च 31, 2007

इसे कहते हैं ठीकरा फोड़ना

अब देखिये, विश्च कप से भारत शुरु में ही बाहर हो गया. पहले तो हमें लगा कि इस हार का ठीकरा हमारे सिर ही फूटेगा. लोग कहेंगे कि गलत गलत तथ्य दे देकर टोक लगा दी. वो तो भला हो सबका कि किसी नें हमारे उपर इल्जाम नहीं लगाया. हमारे बदले धरा गये ग्रेग चैपल और सारे सारे खिलाड़ी. हम तो किनारे बैठे देखते रहे उनकी भद्द उतरते.

कोई समझ ही नहीं पाया कि असल गलती किसकी है. यह ग्रेग चैपल और उनके खिलाड़ियों की किस्मत खराब थी जो धरा गये. असल हार का कारण तो किसी ने तह में जाकर देखा ही नहीं.

दरअसल, हार के जिम्मेदार जो दो लोग हैं, उनमें से एक तो वो जिनका आप कुछ बिगाड़ ही नहीं सकते. अगर बिगाड़ना है तो उपर जाना पड़ेगा. उनका नाम है स्व. श्रीमती इंदिरा गाँधी.




न वो बंगलादेश बनवाती, न उनकी कोई क्रिकेट टीम होती और न ही हम हारते.


और दूसरे वो जिनके आगे आप भारत की जीत के लिये माथा टिकाते नहीं थके. वो हैं राम भक्त हनुमान.





अगर वो लंका ठीक से जला कर आये होते, तो फिर न तो लंका होती, न लंका की टीम होती और न हम हारते.


काहे, ग्रेग चैपल और अपने खिलाड़ियों के पीछे पड़े हो भाई!! काहे हार का ठीकरा उनके सर फोड़ते हो. दोष उनका नहीं है!



ये कैसा शोर अब, फिज़ाओं में छाया है
बेवफा वो और मुझ पे इल्जाम आया है.


(आधार-एक अनजान ईमेल)

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सोमवार, मार्च 26, 2007

क्या भाई!! अकेला देख हड़काते हो?

बस क्या!!! मुक्तक महोत्सव ही रुके??

बहुते दुखी हूँ भाई!!

यह भी कोई बात हुई?

आदमी को अकेला देख हड़काते हो?

घटना इस तरह रही. एक शरीफ गीत लेखक(हांलाकि ऐसा कम ही देखने में आता है) अपने मन का, वो भी जनता की फरमाईश पर, एक छोटा सा मुक्तक-महोत्सव करता है. अब जैसा कि हर उत्सव में होता है, आम जनता को थोड़ी सी परेशानी तो होती ही है. नारद नामक सर्वजनिक स्थल पर सिर्फ गीतकार ही गीतकार नजर आने लगते हैं बाकि सब नेपथ्य में चले जाते हैं. जैसा कि हर उत्सव के दौरान होता है, चाहे वो उ.प्र. का चुनावी उत्सव ही क्यूँ न हो. भले बोर्ड की परीक्षा हो. बालक पढ़ ना पायें, मगर उत्सव तो होगा ही और खूब धूम धाम से होगा. जनता झेल पाती है कि नहीं यह तो नहीं मालूम मगर नारद पर उनका वर्चस्व जरुर नाकाबिले बर्दास्त हो जाता है. जब आदमी का बुरा वक्त आता है तो मौहल्ले का जमादार भी समझाईश का पुलिंदा थमा देता है, सो ही उड़न तश्तरी ने किया. तुरंता उड़ान भरी और टिक गई गीतकार के दरवाजे जा कर. लगे समझाने कि यह गलत है जो आप कर रह हो, सबको बराबर मौका मिलना चाहिये, ऐसा थोड़े चलेगा कि नारद पर आप ही आप हों.

जैसा कि हर उत्सव में होता है, आम जनता को थोड़ी सी परेशानी तो होती ही है. नारद नामक सर्वजनिक स्थल पर सिर्फ गीतकार ही गीतकार नजर आने लगते हैं बाकि सब नेपथ्य में चले जाते हैं. जैसा कि हर उत्सव के दौरान होता है, चाहे वो उ.प्र. का चुनावी उत्सव ही क्यूँ न हो. भले बोर्ड की परीक्षा हो. बालक पढ़ ना पायें, मगर उत्सव तो होगा ही और खूब धूम धाम से होगा.


वो तो गीतकार सज्जन व्यक्तित्व के धनी, गीतकार हो कर भी, कि मान गये और उत्सव रोक दिया. बड़ा चिंतन किये, सोचे-समझे और उत्सव रुक गया. अब लो उत्सव रुका नहीं कि ईमेल और टिप्पणियों के माध्यम से फिर लोगों ने उनसे फरमाईश रखी कि रुकना नहीं चाहिये. अब बताओ, किसकी सुनें वो. वो तो थक से गये और ऐसा थके कि चिट्ठा-चर्चा भी सस्ते में निपटा कर भाग खड़े हुऐ.

बड़ा खराब लग रहा है. इतने अच्छे गीतकार. और उससे भी ज्यादा, गीत लिखते हुऐ भी, एक अच्छे इंसान. यह सरासर नाइंसाफी है.

क्या गल्ती है उनकी. यही न, कि सिर्फ़ अपना लिखा छापते रहे. गीतकार जी, मैने आपको पहले भी कहा था कि अच्छा बुरा न परखो. चिट्ठा जगत से कुछ सिखो. अच्छा या बुरा, जैसा भी जो लिखता हो, उसे अपने बैनर के नीचे लाओ, हमें भी ले लो. अब जब गीतकार से महोत्सव मनाओगे तब एक आपकी, एक हमारी..एक एक कई बाकियों की....तो भले ही छपे गीतकार से लेकिन उसका बुरा नहीं लगाया जाता है यहाँ. यहाँ बुरा वो है जो अपने ही लिखे को दो तीन बार से ज्यादा एक दिन में प्रकाशित करे. वो अतिक्रमण कहलाया. मगर प्रकाशन करने वाला अगर गीतकार ही हो और लेखक अलग अलग हो तो फिर ठीक है फिर भले ही आप पूरा पन्ना ही घेर लो, चलता है कोई कुछ नहीं कहेगा..कभी इसकी पाती और कभी उसकी. फिर कभी इसकी कविता और कभी गद्य रुपी होते हुये भी उसकी कविता..बस, शर्त यह है कि बैनर एक होते हुये भी लेखक अलग होना चाहिये.

मगर प्रकाशन करने वाला अगर गीतकार ही हो और लेखक अलग अलग हो तो फिर ठीक है फिर भले ही आप पूरा पन्ना ही घेर लो, चलता है कोई कुछ नहीं कहेगा..कभी इसकी पाती और कभी उसकी. फिर कभी इसकी कविता और कभी गद्य रुपी होते हुये भी उसकी कविता..बस, शर्त यह है कि बैनर एक होते हुये भी लेखक अलग होना चाहिये.


फिर आजकल तो छ्द्म नामों का फैशन चला हुआ है, आप ही काहे नहीं पाँच नाम से लिखते हैं. पहले मुक्तक पर एक...बाकि चार की झूठमूठ चार टिप्पणियां जिन्हें देख दो चार और सच वाली भी आ ही जायेंगी..आपने तो देखा है, आती ही हैं. फिर अगला मुक्तक इसी बैनर में दूसरे नाम से...यह अलाउड है. शुरु करो न, गीतकार पर..मेरे मुक्तक साथी टाइप या हमारे साथी की पाती टाइप, हम भी हाथ बटायेंगे. जब हर कोई इसी तरह चल रहे हैं तो इतने खराब तो हम भी नहीं.

यही तो जमाना है भाई!! आप तो बुरा सा मान गये. इससे काम नहीं बनता. आजकल खुद की तारीफ में भी आत्म निर्भरता का सीजन है. बस यही रास्ता सुलभ और सर्व-स्विकार्य है.

अपना उत्सव जारी रखो. फर्मेट बदल दो. चिट्ठाजगत पर नजर दौडाओ..मेरी बात मानो कि फार्मेट बदल कर भी आप ही आप दिख सकते हो. लोग दिख ही रहे हैं. जब तक कि उस पर रोक नहीं लगती तब तक तो फायदा उठाओ. नैतिकता से काम नहीं बनता. नैतिकता का पालनकर्ता आज की नई दुनिया में पागल और बेवकूफ कहलाता है. जमाना बदला हुआ है, आप भी बदलो न, प्लीज!!

सुनाओ न कुछ मुक्तक!! Indli - Hindi News, Blogs, Links

“हैल्ल्लो!!! यह है तरकश हॉटलाईन!!!

“हैल्ल्लो!!! यह है तरकश हॉटलाईन!!! और मैं खुशी बोल रही हूँ..आपसे मेरा सवाल है…..” यह आवाज सुनते ही अच्छे अच्छे धुरंधर चिट्ठाकारों के माथे पर पसीने की बूँद छलक आती है और शुरु होती है-खुशी के प्रश्नों की बौछार. कभी व्यक्तिगत, फिर चटपटे और फिर रेपिड फायर राऊंड और फिर चिट्ठाकार के जीवन साथी से बातचीत. कितना कुछ घट जाता है उसी पाँच मिनट के अंतराल में और तब सभी चिट्ठाकार पॉडकास्ट के माध्यम से सुनते हैं अपने पसंदीदा चिट्ठाकार से खुशी की अंतरंग बातचीत.

बहुत मजेदार और अनोखा सिलसिला शुरु किया है तरकश टीम ने और उसकी बागडोर संभाली खुशी ने. हर नये पॉडकास्ट के साथ खुशी की आवाज में एक नया आत्मविश्वास आता जा रहा है, वहीं चिट्ठाकारों की हालत खराब होती जा रही है, वक्त पर जवाब ही नहीं बन पाता. :)

हर १५ दिन में एक नया चिट्ठाकार खड़ा होता है खुशी की अदालत में…और इस बार इसी क्रम में सुनिये अपने पसंदीदा, जिंदादिल नौजवान चिट्ठाकार साथी रवि रतलामी और उनकी पत्नी रेखा रतलामी जी को…तरकश हॉटलाईन पर-खुशी के साथ.

रवि रतलामी से बातचीत

तैयार रहिये-क्या पता, अगला नम्बर आपका हो!!

तरकश हॉटलाईन……खुशी के साथ….. Indli - Hindi News, Blogs, Links

गुरुवार, मार्च 22, 2007

विश्वकप-लगता तो भारत का है

आज एक ई-मेल के माध्यम से प्राप्त जानकारी से लगता तो है कि क्रिकेट विश्व कप २००७ भारत को ही मिलना चाहिये.

सारे तथ्य उसी ओर इशारा कर रहे हैं, अब इसे देखें (कल २३ तारीख के पहले देख लेना शायद उसके बाद देखने की जरुरत ही न पड़े :)) :

वर्ष १९८१:

१.प्रिंस चार्लस की शादी हुई
२.यूरोप फुटबाल चेम्पियनशिप में लिवरपुल चेम्पियन
३.आस्ट्रेलिया एशेज ट्राफी हारा
४.पोप की मृत्यु
५.१ वर्ष बाद इटली फुटबाल का विश्व विजेता
६.२ वर्ष बाद भारत विश्व क्रिकेट कप विजेता (वेस्ट इंडिज को हैट्रिक बनाने से रोका)


वर्ष २००५:

१.प्रिंस चार्लस की शादी हुई
२.यूरोप फुटबाल चेम्पियनशिप में लिवरपुल चेम्पियन
३.आस्ट्रेलिया एशेज ट्राफी हारा
४.पोप की मृत्यु
५.१ वर्ष बाद इटली फुटबाल का विश्व विजेता (२४ वर्षों बाद)
६.२ वर्ष बाद भारत विश्व क्रिकेट कप विजेता (आस्ट्रेलिया को हैट्रिक बनाने से रोका)??

बड़ा अच्छा लगा भाई पढ़कर.


सुना है मैने, इतिहास अपने को दोहराता है
तुम्हारी हालत देख, यकीं नहीं आ पाता है.
काश. कोई करिश्मा ऐसा हो जाये अब तो
दिखा दे कि विश्वास, नाहक ही डगमगाता है.


अनेकों शुभकामनायें......

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रविवार, मार्च 18, 2007

दो भाई, दोनों अलबेले

तब माँ जिंदा थी. हम भाई घर से दूर अपनी अपनी दुनियाँ में आजिविका के लिये जूझा करते थे. हमारे अपने परिवार थे. मगर हर होली और दिवाली को हम सबको घर पहुँचना होता था. पूरा परिवार इकठ्ठा होता. मामा मामी, चाचा चाची, मौसा मौसी, बुआ फूफा और उनके बच्चे. घर में एक जश्न सा माहौल होता. पकवान बनते, हँसी मजाक होता. ताश खेले जाते और न जाने क्या क्या. उन चार पाँच दिनों का हर वक्त इंतजार होता. माँ कभी एक भाई के पास रहती, कभी दूसरे के पास मगर अधिकतर वो अपने घर ही रहती. वो उसके सपनों का महल था. उसे उसने अपने पसंद से बनाया और संजोया था. वहाँ वो अपने आपको को रानी महसूस करती थी, उस सामराज्य की सत्ता उसके हाथों थी. उस तीन कमरे के मकान में उसका संसार था, उसका महल था वो, उसका आत्म सम्मान था. हम सब भी उसी महल के इर्द गिर्द अपनी जिंदगी तलाशते.

अधिकतर वो अपने घर ही रहती. वो उसके सपनों का महल था. उसे उसने अपने पसंद से बनाया और संजोया था. वहाँ वो अपने आपको को रानी महसूस करती थी, उस सामराज्य की सत्ता उसके हाथों थी. उस तीन कमरे के मकान में उसका संसार था, उसका महल था, उसका आत्म सम्मान था. हम सब भी उसी महल के इर्द गिर्द अपनी जिंदगी तलाशते.
सारे बचपन के साथी उसी महल की वजह से थे. न वो रहे- न साथी रहे. अजब खिंचाव था. फिर एक दिन खबर आती है कि माँ नहीं रही (इतना अंश मेरे अंतरंग मित्र रामेश्वर सहाय 'नितांत' की कहानी "माँ" से, जो मैने उसे लिखकर दिया था और उसने इसका आभार लिखा था नवभारत दैनिक में).....................अब इस कविता को देखें:

दो भाई:

दो भाई, दोनों अलबेले
एक ही आँगन में वो खेले
एक सा माँ ने उनको पाला
एक ही सांचे में था ढाला

साथ साथ बढ़ते जाते हैं
फिर जीवन में फंस जाते हैं
राह अलग सी हो लेती है
माँ याद करे-फिर रो लेती है.

दोनों की वो सुध लेती है
उनके सुख से सुख लेती है
फिर देखा संदेशा आता
दोनों को वो साथ रुलाता.

माँ इस जग को छोड़ चली है
दोनों से मुख मोड़ चली है
दोनों का दिल जोड़ रहा था
वो सेतु ही तोड़ चली है.

शांत हुई जो चिता जली थी
यादों की बस एक गली थी
पूजा पाठ औ' सब काम हो गये
अब जाने की बात चली थी.

दोनों फिर निकले-जाते हैं,
फिर जीवन में फंस जाते हैं.
रहा नहीं अब रोने वाला
देखो, कब फिर मिल पाते हैं.

--समीर लाल 'समीर' Indli - Hindi News, Blogs, Links

बुधवार, मार्च 14, 2007

आमंत्रण अमेरिका से: एक सुनहरा मौका


बात सुर में चली है, चले आईए
महफिल अबकी जमीं है, चले आईए
झूमती है निशा, गीत की ताल पर
आपकी बस कमी है, चले आईए.


आईये, सुनिये और बात करिये:

भारत से पधारे जाने-माने कविगण:

डॉ. सोम ठाकुर
डॉ. कुँवर बैचेन
श्री सुरेन्द्र सुकुमार
डॉ.अनिता सोनी

हम अमेरिका (न्यूयार्क) के समय के अनुसार बुधवार दिनांक १४ मार्च, २००७ की रात के ८ बजे से याहू मैसेन्जर पर इन कवियों से बात करेंगे । उस समय भारत में गुरुवार को सुबह के ५:३० बजे होंगे । हम करीब ३ घंटे तक उपलब्ध रहेंगे । हम चारों कवियों से उन की कविताएं सुनेंगे और बात भी करेंगे । आप उन्हें सुन पायेंगे और देख भी पायेंगे । याहू मैसेन्जर (Yahoo Messenger) पर आप anoop_bhargava@yahoo.com को जोड़ लें । पूरा वायदा तो नहीं कर सकते कि कामयाब होंगे लेकिन एक सार्थक कोशिश ज़रूर होगी । अमेरिका और कनाड़ा से अगर आप फोन के माध्यम से कांन्फ्रेंस में जुड़ना चाहें तो आप उन्हें 605-990-0001 PIN 156678 पर भी सुन सकेंगे । तकनीकी सहायता के लिये 609-275-1113 पर बात करें या अनूप भार्गव जी को anoop_bhargava@yahoo.com पर लिखें ।

नोट:

१.बहुत अल्प सूचनावधि देने हेतु क्षमा चाहूँगा.

२. यह क्षमा-वमा बाद में करते रहना, अभी तो इतने बड़े बड़े कवियों को सुन लो, ऐसे मौके बार बार नहीं आते. :)

लौट कर:

इस पोस्ट पर राकेश खंडेलवाल जी की टिप्पणी के द्वारा कवि परिचय:

डॉ.अनिता सोनी

सोहनी की कहानी को इतिहास गाता रहा
आज इतिहास यहां गाने लगी सोहिनी
वाणी में विहाग लिये और अनुराग लिये
स्वर को सजाने लगी आज मनमोहिनी
आपके समक्ष आके मंच से जो काव्य पढ़े
गीत में करे है आज गज़लों की बोहनी
सोनी है कवित्री बड़ी लोग कहें अनिता है
पर आप मानिये , ये कविता है सोहिनी


डॉ. सोम ठाकुर

चन्दन की शाखों से गा कर नाग पाश के बंध हटाये
भैया को रसभरी खीर, भाभी को खट्टी अमिया लाये
शपथ दिला कर याद प्रीत को न्यौता सुबह शाम भिजवाये
शत शत नमन करूँ भारत को, पल पल सोम मंच से गाये

श्री सुरेन्द्र सुकुमार

ज़िन्दगी है चार दिन की जानते हैं सभी हम
इसीलिये ज़िन्दगी में प्यार होना चाहिये
बात जो भी कोई कहे साफ़ साफ़ कही जाये
नौ नकद,तेरह न उधार होना चाहिये
स्वर्ण के आभूषणोंकी कामना हो आपको तो
गढ़ने को एक फिर सुनार्होनाचाहिये
शिष्ट हास्य सुनना जो चाहें अगर आप सब
मंच पर कवि सुकुमात होना चाहिये

डॉ. कुँवर बैचेन

एडीसन जायें आप इडली खायें,डोसा खायें
साथ साथ भेलपूरी खायें ये जरूरी है
आपकी पसन्द वाला गीत कोई गुनगुनाये
साथ साथ आप उसके गायें ये जरूरी है
जर्सी में जायें आप कविता के नाम पर तो
भार्गवजी चाय भी पिलायें ये जरूरी है
और जब बेचैन कुँअर जी गीत गायें
आप झूमें तालियां बजायें ये जरूरी है. Indli - Hindi News, Blogs, Links

रविवार, मार्च 11, 2007

कबीरा चला साइलेंटली

कबीरा चला साइलेंटली, मौज में करता सैर
राह बीच दंगल घिरे, नहीं किसी की खैर...
नहीं किसी की खैर, महौल तो रहा बिगड़ता
गाली पे गाली चली, आपस में गुत्थम गुत्था.
कहे समीर कवि कि हमें न तुक है बनता
लोग लगे हैं पूछने कि काहे को चुप हैं संता.


--अब जब कबीरा साइलेंट है तो हमारी क्या औकात कि हम कुछ बोलें. वैसे तो मेरा मानना है कि प्रश्न को किस अर्थ में किया गया और उसे किस अर्थ में लिया गया, वह ही ब्रह्म है.

हर चीज हर जगह एक ही तरह से सहज नहीं कहलाती. जैसे इसे देखें कि आम के पेड़ से आम तोड़ने के लिये पत्थर मार कर तोड़ोगे तो इस सहज घटना में आपको आम की प्राप्ति हो सकती है..मगर क्या यूँ ही कमल भी तोड़ोगे. सिवाय छपके कींचड़ के छिंटों के कुछ नहीं मिलेगा. अगर कमल पर निशाना सध भी गया और वो टूट भी गया, तो तुम्हारे हिस्से तो कींचड़ ही आयेगा..कमल उसी कींचड़ मे कहाँ खो जायेगा, पता भी नहीं चलेगा. फिर दोष देते रहना उन अग्रजों को जिन्होंने निशाना साधना सिखाया था.


ह्द करते हो यार, जब कबीरा सिखाता है कि कींचड़ में पत्त्थर मारोगे तो कींचड़ ही तुम्हारे ऊपर आयेगा..तब तो नजर अंदाज कर देते हो...
और जब कींचड कपड़े खराब कर देता है तो कबीरा पर दोष देते हो कि उसने कींचड़ को रोकने में हमारा साथ नहीं दिया. कबीरा तो बहुत पहले समझा गया था मगर अभी तो बस इतना ही हुआ कि ....कबीरा चला साइलेंटली...अब इसमें भी दोष दिखे तो कबीरा क्या करे....नट डांस दिखाये.

ह्द करते हो यार, जब कबीरा सिखाता है कि कींचड़ में पत्त्थर मारोगे तो कींचड़ ही तुम्हारे ऊपर आयेगा..तब तो नजर अंदाज कर देते हो...और जब कींचड कपड़े खराब कर देता है तो कबीरा पर दोष देते हो कि उसने कींचड़ को रोकने में हमारा साथ नहीं दिया. कबीरा तो बहुत पहले समझा गया था मगर अभी तो बस इतना ही हुआ कि ....कबीरा चला साइलेंटली...अब इसमें भी दोष दिखे तो कबीरा क्या करे....नट डांस दिखाये.


मेरी बात अभी भी मान लो, फालतू के दंगों मे शहादत देने की जरुरत नहीं, आज तक कोई शहीद नहीं कहलाया इसमें. यह उन्माद भी ठीक नहीं. कोई भी वीर नहीं कहलाया है इस तरह.

अच्छा चलो एक ही प्रश्न दो जगह अलग माहौल मे पूछा जाये तो क्या होता है उसे देखो..सच घटना बताता हूँ:

आदमी बच्चा गोद में उठाये है और पार्टी में चार-पाँच महिलाये बैठी है.. और आदमी पूछता है कि यह किसका बच्चा है..माँ बहुत गर्व से कहती है कि मेरा है...वाह...और उसे गोद ले वो चूमने लगती है.!!


अब दूसरा सीन देखें.. चार -पाँच महिलाये बैठीं हैं और उनमें से एक सात माह की गर्भवती है..और एक पुरूष उसके सामने आकर पूछता है, उसके पेट की तरफ ईशारा कर...यह किसका बच्चा है...कितना मतलब बदल गया..पूछने वाला कितना पिटा...या उसकी क्या दुर्दशा हुई.... बस यही बताना चाह रहा हूँ कि माहौल समझो यार....हर बात का शाब्दिक अर्थ न निकालो.

चलो मैं ग्लानी से भर गया कि तुम्हे गलत कहा गया और मैं चुप रहा और तुम मुझे भाई साः कहते नहीं थके. अब क्या करें...वो भी बता दो... वो वाली हवा बन जायें जो आग को बढ़ावा देती है या वो वाली जो उसे बुझा देती है या वो वाली जो आती ही नहीं और सब समय के साथ अपने आप सामान्य हो जाता है, उसे किसी खास हवा की जरुरत ही नहीं....यह मेरी पसंदीदा है और मैं नहीं आऊंगा ऐसे महौल में, यही मेरी निती है. तुम मुझे गलत समझते हो तो समझो..

मैनें दूनिया देखी है..तुम्हारी उम्र की मजबूरी है कि तुमने कम देखी है मुझसे...शायद भविष्य तुम्हें समझाये या आज मेरी लेखनी..मैने सुना है युवा मुझसे ज्यादा समझता है...शायद तुम इसको सत्यापित कर सको!!!


मैनें दूनिया देखी है..तुम्हारी उम्र की मजबूरी है कि तुमने कम देखी है मुझसे...शायद भविष्य तुम्हें समझाये या आज मेरी लेखनी..मैने सुना है युवा मुझसे ज्यादा समझता है...शायद तुम इसको सत्यापित कर सको!!!


यह मेरी अंतर्भावना है और मुझे लगता है कि अधिकतर ऐसा सोचते होंगे...और मैं गलत न ठहराया जाऊँगा..और बोनस में, कम से कम संजय और पंकज बैगाणी के द्वारा.

चलो, जो भी हो, हम चलते हैं...अच्छा सोचो यही उम्मीद है.........................शुभकामनायें...

अभी भी हमारी सोच को जिंदा रखने वाले लोग हैं... वही झूमेंगे हमारे साथ............कुछ दिन में तो हम आदि हो ही जायेंगे..मगर जब तक चल रहा है आदर सहित चलता रहे......

और बाकि सब तो जय हो जय हो.. हरि ऊँ..............जय हो समिरानन्द की...और जय हो...........कबीरा की...............जो खड़ा है बेचारा साइलेंटली...

फिर तुम तो मेरे साथ ही हो...हो न!! Indli - Hindi News, Blogs, Links

गुरुवार, मार्च 08, 2007

जोश की जोशिली शुरुवात

सुबह आराम से बैठे धूप सेंक रहे थे कि फोन की घंटी घनघना उठी.

"हेलो,पंकज बैंगाणी बोल रहा हूँ, तुरंत ऑफिस आ जाओ."

अभी हमने पूछा ही था कि "क्या हुआ, सब ठीक ठाक तो है.कुछ काम है क्या?"

कि पंकज बाबू झल्ला गये, "क्या कोई नाच की पार्टी तो रखी जायेगी नहीं. काम ही होगा, तभी बुलाया जा रहा है. बिना बुलाये तो झांकने की फुरसत आप लोगों को है नहीं."

और उन्होंने फोन ही काट दिया.

हम भी तैयार हुये और टैक्सी करके निकल पड़े तरकश के दफ्तर की तरफ.

मन में कई विचार आ रहे थे और सोच रहा था कि आखिर पंकज "आप लोगों" कैसे बोले. हमारे सिवाय कोई भी और निष्क्रिय दिमाग में आ ही नहीं रहा था. ऐसा नहीं कि हम पूरी तरह निष्क्रिय हों. कभी कभी ईमेल से संपर्क करते रहते हैं. मगर वह उतना काफी नहीं है कि सक्रिय कहा जायें.

हमारे सिवाय और भी कोई निष्क्रिय दिमाग में आ ही नहीं रहा था. ऐसा नहीं कि हम पूरी तरह निष्क्रिय हों. कभी कभी ईमेल से संपर्क करते रहते हैं. मगर वह उतना काफी नहीं है कि सक्रिय कहा जायें.


दफ्तर पहूँचे तो काफी गहमा गहमी लग रही थी. मगर संजय भाई अपने कमरे में चुपचाप चिर परिचित मुस्कान चेहरे पर लिये बैठे थे. हमने भी सोचा कि पहले इनसे मिल लिया जाये.

बहुत गरम जोशी से मिले. कहने लगे, पहले कॉफी पी लिजिये, फिर चलते हैं मिटिंग में. हम भी सुबह से चाय नहीं पिये थे सो मान गये.

संजय भाई ने मुन्ना चपरासी को आवाज लगाई, " मुन्ना, है क्या तू". वाह, इतनी पतली और सुरीली आवाज..हमें लगने लगा कि मुन्ना न हो और ये आवाज लगाते रहें और हमें लता जी टाइप संगीत का आनन्द मिलता रहे."


"मुन्ना है तू, मेरा राजा है तू...
तू मेरी आँखों का तारा है तू...."


जो लोग संजय भाई से नहीं मिले हैं या आज तक बात करने से वंचित रहे हैं, उनकी जानकारी को बता दूँ कि इनकी कलम जितनी तीखी और पैनी है, आवाज उतनी ही मधुर और सुरीली.

खैर, कुछ देर बाद मुन्ना आये. मगर सुनने नहीं, सुनाने. आ कर बता गये कि "फालतू काम के लिये समय नहीं है, पंकज साहब का जरुरी काम कर रहा हूँ."

संजय भाई शर्मिंदा होते, इसके पहले ही हमने उनसे कहा कि चलिये नीचे चल कर पी आते हैं. वो भी तुरंत तैयार हो गये जैसे हमने उनके मन की बात कर दी हो.

जब तक हम लोग कॉफी पीकर लौटे, तरकश मिटिंग शुरु हो गई थी और मुन्ना बाहर ही मिल गया कि पंकज साहब आप दोनों को कब से बुलवा रहे हैं.

संजय भाई तेज तेज चले और हम पीछे पीछे. मिटिंग रुम में पहूँचे. चार पाँच २० से २७ साल के युवाओं को पंकज साहब कुछ बड़े जोशिले अंदाज में समझा रहे थे. हम दोनों को देखकर मूँह बनाया और बोले, "अब खड़े ही रहेंगे कि बैठेंगे भी"

सारी कुर्सियों पर तो यह युवा बैठे थे. हम लोग कहाँ बैठेते. पंकज साहब की घूमने वाली कुर्सी के बाजू में एक बैंच पड़ी थी, उसी ओर पंकज जी इशारा कर के फिर बातों में मशगुल हो गये.

हम और संजय भाई उसी बैंच पर बैठ गये. ३/४ पर हम और १/४ पर संजय भाई और तीन लोगों वाली पूरी बैंच हम दो से भर गई.

सचिव ने घोषणा की कि अब सभापति जी का भाषाण होगा.

हम बस उठने वाले ही थे कि पंकज साहब मुस्कराकर खड़े हो गये माईक के सामने. हम आधे उठे से फिर बैठ गये.

भाषाण शुरु भी हो गया:


"मेरे युवा साथियों,

मुझे नाज है आप लोगों के जोश पर. आपके जोश के चलते आज से हम तरकश पर नया कॉलम शुरु कर रहे हैं "जोश".

अनुभवी लोगों का कमाल हम सब देख चुके हैं. अगर हम अब भी अनुभवी लोगों की तरफ ही ताकते रहे, तो तरकश भी कुछ दिनों में भारतीय संसद हो जायेगा.

आज जरुरत है युवाओं को आगे आने की. अपना जोश दिखाने की. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप अंग्रेजी में अपने विचार लिखें या रोमन में या फिर देवनागरी में. फरक पड़ता है तो लिखने से.

इन दोनों महारथियों को देखिये, हिन्दी हिन्दी चिल्लाते रहते हैं और लिखते कुछ नहीं. पिछले कितने समय का तरकश उठा कर देख लें कि इन दोनों ने कितना लिखा है. बहुत हुई इनकी रहनुमाई. यह जरुर है कि बाजार में इनकी अलग साख है तो बस वही वजह भी है कि हम इन्हें तरकश में सजा कर रखे हैं मगर भरोसा आप युवाओं पर है.

आप हमारे साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलें. जोश में अपना पूरा जोश उडेल दें. फिर देखिये, हम तरकश को किन ऊँचाईयों पर ले जाते हैं."


आज जरुरत है युवाओं को आगे आने की. अपना जोश दिखाने की. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप अंग्रेजी में अपने विचार लिखें या रोमन में या फिर देवनागरी में. फरक पड़ता है तो लिखने से. इन दोनों महारथियों को देखिये, हिन्दी हिन्दी चिल्लाते रहते हैं और लिखते कुछ नहीं. पिछले कितने समय का तरकश उठा कर देख लें कि इन दोनों ने कितना लिखा है.


मिटिंग रुम युवाओं की जोशिली तालियों की गूँज से गूँजायमान हो उठा. ताली हमने और संजय भाई ने भी हल्के से बजायी. मगर सर झुकाये झुकाये ही.

सभापति महोदय का भाषाण खत्म हुआ. सब चले गये. हम और संजय भाई वहीं बैंच पर बैठे रहे जबकि सारी कुर्सियाँ अब खाली हो गई थी.

हम और संजय भाई ने एक दूसरे को इस तरह देखा, मानो कह रहे हों कि " अभी भी होश में आ जाओ, तरकश के लिये फिर से सक्रियता से लिखना शुरु करो. वरना तो तरकश अपनी रफ्तार पकड़ ही लेगी इन युवाओं के साथ. हम दोनों छूट जायेंगे और अभी तो बैंच मिल भी गई. अगली मिटिंग में जमीन पर बैठना पडेगा और आगे शायद मिटिंग रुम में ही न घुस पायें."

आप भी देखे जोश की जोशिली शुरुवात और उत्साह बढ़ायें युवाओं का. आगे से हम और संजय भाई भी मेहनत करेंगे, यह मौन रहते हुये भी व्रत लिया है.






तरकश टीम को जोश की शुरुवात पर बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें. Indli - Hindi News, Blogs, Links

सोमवार, मार्च 05, 2007

होरियाये टुन्नू भेटें चिट्ठा चिट्ठा

आज होली के मौके पर हम और टुन्नू भाई बैठ कर सुबह से ही भांग छान रहे थे कि तभी उपर से आती पत्नी की आवाज सुनाई पड़ी. होली के माहौल मे गाना गाते उतर रहीं थीं, मदर इंडिया वाला, टून्नू तो सेंटी है, आँख से दो बूँद आँसूं बहा बैठा. खैर, हम भी रंग लेकर आंगन के दरवाजे के पीछे छिप गये, गीत नजदीक होता जा रहा था:


होली आई रे कन्हाई, होली आई रे....
...बरसे गुलाल रंग मोरे अंगनवा
अपने ही रंग में रंग दे मोहे सजनवा....



जैसे ही वो दरवाजे के पास आईं, हमने गैरेज पेंट होने आया नेरोलेक का काले पेंट का पूरा डब्बा उन पर उडेल दिया. मैडम का पारा सांतवे आसमान पर और आवाज डोल्बी साऊंड ट्रेक पर. 'ये क्या तरीका है, होली खेलने का!! उम्र बढ़ गई है और दिमाग वहीं का वहीं. '

हमने कहा, 'अरी भागवान, हम तो अबीर-गुलाल ही लगाने वाले थे, मगर उसमे तो काला रंग था नहीं, और तुम्हीं तो गा गा कर डिमांड कर रही थी " अपने ही रंग में रंग दे मोहे सजनवा...." तो क्या करते, तुम्हीं बताओ. होली के शुभ दिन पर भी तुम्हारी बात न रखें.

खैर, हम सफाई देते और करते रहे. टुन्नू टुन्नी में ही घबरा कर भाग गया, चिल्लाते हुये: बुरा न मानो, होली है. सब चिट्ठाकारों से होली भेंटने. उनके दरवाजे पहूँचा तो सबकी नेमप्लेट (चिट्ठों की टैग लाईन) देखकर उसके मन में अजब अजब विचार आये. आप भी देखें कि क्या सोचता है टुन्नू भांग के नशे में:





गीत कलश , राकेश खंडेलवाल

काव्य का व्याकरण मैने जाना नहीं छंद आकर स्वयं ही संवरते गये

टुन्नू-अगर स्वयं ही संवरते हैं तो हम क्या पाप किये हैं, हमारे काहे नहीं संवरते??

उन्मुक्त

भारत के एक कसबे से, एक आम भारतीय।

टुन्नू-बाकि सब क्या खास भारतीय हैं??

ई-पंडित, श्रीश शर्मा

ई-पंडित की ई-पोथी

टुन्नू-अच्छा बता दिये कि ई-पोथी है, नहीं तो हम तो कागजी समझते!!! वैसे जो लोग किताबें निकालते हैं, वो क्यूँ नहीं कहते, कागज की किताब. :)

गिरिराज जोशी "कविराज"

एक खण्डहर जो अब साहित्यिक ईंटो से पूर्ननिर्मित हो रहा है...

टुन्नू-पूर्ननिर्मित?? काहे फिर से मेहनत कर रहे हो, इसे पुरात्तव विभाग को दे देते हैं...वहीं ठीक रहेगा!! क्या सोचते हो??

पूनम मिश्रा

कुछ खट्टी ,क़ुछ मीठी ,कुछ आम सी दिनच्रर्या,क़भी कुछ खास पल ...इन सबका नाम है ज़िन्दगी .और उसी का निचोड है यह फलसफा .

टुन्नू-खट्टा मीठा तो ठीक है..मगर निचोड से फलसफा निकले तो रस कहाँ गया??

प्रत्यक्षा

कई बार कल्पनायें पँख पसारती हैं.....शब्द जो टँगे हैं हवाओं में, आ जाते हैं गिरफ्त में....कोई आकार, कोई रंग ले लेते हैं खुद बखुद.... और ..कोई रेशमी सपना फिसल जाता है आँखों के भीतर....अचानक , ऐसे ही

टुन्नू-हवा में टंगे शब्द को पकड़ने का हुनर हमऊ के सिखाये दो, ठकुराईन!!

अनूप शुक्ला

उम्र: २५० साल
(चाहो तो यहाँ क्लिक करके प्रोफाईल पर देख लो)

टुन्नू-हम पहिले ही समझ गये थे कि यह वैदिक कालिन हैं, २५० साल पुराने!! वरना इतनी कम उम्र में लेखन की इतनी ऊँचाईयां...वाह वाह!!

फुरसतिया

हम तो जबरिया लिखबे यार हमार कोई का करिहै

टुन्नू-जब तक जबरिया ना पढ़वाओ तब तक कोई कछू न करिहे!! काहे परेशान हो??

जोगलिखी

संजय बेंगाणी द्वारा कम शब्दों में खरी-खरी बात

टुन्नू- शब्द थोड़े ज्यादा भी हों तो भी चलेगा मगर खरी खरी बात न सुनाओ, दिल दहल जाता है, भाई!!! (भाई, बम्बई वाले), थोड़ा लाग लपेट कर सुनाओगे क्या?

मंतव्य

पंकज बेंगानी का हिन्दी चिट्ठा बेबाक सोच : बेबाक लेखन : बेबाक मंतव्य

टुन्नू-अच्छा किया बता दिया कि पंकज बेंगानी का हिन्दी चिट्ठा --वरना हम तो सोचते ही रह जाते कि कौन सी भाषा में लिखा है???

शुऐब

हिन्दी हैं हम .....................

टुन्नू-हिन्दी हैं हम...!! और संस्कृत, अंग्रेजी और उर्दू नहीं हो??

Divyabh Aryan

The Only Thing I Know About Myself Is That I Know Nothing... :

टुन्नू-ऐसा लगता तो नहीं, आपको पढ़कर?? अंग्रेजी भी लिख लेते हो. :)

मेरा पन्ना

चौकस निगाह,पैनी कलम और हास्य व्यंग के साथ भारत के राजनीतिक माहौल,देश की समस्याओ और राष्ट्रीय विषयो पर मेरी बेबाक राय ……… जगह नयी….पर.कलम वही

टुन्नू-चौकस निगाह......कहाँ कहाँ लगी हैं यह निगाह......हमें भी तो बताओ!! चौधरी जी महराज!! और यह जगह नयी कब तक रहेगी??

मनीषा

अच्छी चीजों का हिन्दी ब्लाग

टुन्नू-नहीं बतातीं तो हम समझते कि खराब चीजों का अंग्रेजी ब्लाग!!! :)

निठल्ला चिंतन

थोड़ी मस्ती थोड़ा चिंतन

टुन्नू- यार भाई, हर पोस्ट पर लिख दिया करो टैग के साथ कि कौन सी वाली मस्ती है और कौन सी चिंतन-बड़ा मुश्किल होता है छांटने बीनने में!!!

दस्तक, सागर चन्द नाहर

गिरते हैं शहसवार ही मैदाने जंग में वो तिफ़्ल क्या गिरेंगे जो घुटनों के बल चलते हैं

टुन्नू-आप तो सबसे बड़े शहसवार हैं, कितनी बार गिरे??

इन्द्रधनुष, नितिन बागला

जिन्दगी के अनगिनत रंगों का संकलन; हँसी-मजाक, सुख-दुःख, यारी-दोस्ती,भूली बिसरी यादें, आस-पास के विभिन्न मुद्दों पर मेरे विचार...और भी ना जाने क्या-क्या.....

टुन्नू-और भी ना जाने क्या-क्या.....थोड़ा तो खुलासा करो, मेरे भाई...क्या सब कुछ यहीं लिख डालोगे!!! हूम्म्म्म!!

रचनाकार

इंटरनेट पर हिन्दी साहित्य के दस्तावेज़ीकरण का एक सार्थक प्रयास...

टुन्नू- सार्थक प्रयास,,,न आप बताते, न हम समझ पाते!! :)

की-बोर्ड का रिटायर्ड सिपाही, नीरज दीवान

ख़बरों की लत ऐसी कि शायद छुटाए नहीं छूटेगी.

टुन्नू- और बाकि की लतें, वो छूट गईं?? :)

आलोक, नौ दो ग्यारह

दिल तो है दिल, दिल का ऐतबार क्या कीजे आ गया जो किसी पे प्यार क्या कीजे

टुन्नू- जिस हिसाब लिखना स्थगित है, उससे लग ही रहा है..कि आ गया जो किसी पे प्यार क्या कीजे!! थोड़ा प्यार चिट्ठे पर भी आये तो बात बनें.

सृजन शिल्पी

अपनी मुक्ति के लिए प्रयत्नशील प्रत्येक व्यक्ति के लिए एक मित्र, दार्शनिक और मार्गदर्शक के रूप में निरंतर उपलब्ध।

टुन्नू- जब भी मुक्ति के लिये प्रयत्नशील होंगे, आपसे संपर्क साधा जायेगा. तब तक ऐसे ही ठीक है!!

एक शाम मेरे नाम, मनीष

जिन्दगी यादों का कारवाँ है.खट्टी मीठी भूली बिसरी यादें.क्यूँ ना उन्हें जिन्दा करें अपने प्रिय गीतों ,गजलों और कविताओं के माध्यम से! अपनी एक शाम उधार देंगे ना उन यादगार पलों को बाँटने के लिये ..

टुन्नू- यार, उधार प्रेम की कैंची है, ऐसा पान वाले ने बताया है. आप ऐसे ही ले जाओ एक शाम!!

दुनिया मेरी नज़र से!!

ये ब्लॉग एक प्रयोग है जहाँ मैं हिन्दी में लिखूँगा। यदि आपको हिन्दी नहीं आती तो मैं माफ़ी चाहूँगा, या तो आप हिन्दी सीखिए अथवा केवल देख कर ही खुश हो ली जिए।

टुन्नू- यह नोटिस बोर्ड उसके लिये जिसे हिन्दी आती ही नहीं!! उन्हीं के लिये तो लगाया है, न??

अभय तिवारी, निर्मल-आनन्द

कानपुर की पैदाइश, इलाहाबाद और दिल्ली में शिक्षा के नाम पर टाइमपास करने के बाद कई बरसों से मुम्बई में टेलेविज़न की दुनिया में मजूरी कर के जीवनयापन।

टुन्नू- शिक्षा के नाम पर टाइमपास-पढ़ कर तो नहीं लगता ऐसा!!

दिल का दर्पण-परावर्तन, मोहिन्दर सिंग

एक सामान्य परन्तु संवेदनशील व्यक्ति हूं

टुन्नू- दोनों एक साथ- सामान्य और संवेदनशील- वाह, यह तो कमाल हो गया!!

पाण्डेय जी के मधुर वचन

बनारस वाले अभिषेक पाण्डेय जी के मधुर वचन - ब्लॉग के रूप मे

टुन्नू- स्व-सम्मान में आत्मनिर्भरता का अनुपम उदाहरण, अपने नाम के साथ जी?? आपका साधुवाद!!

दिल के दरमियाँ, भावना कँवर

मुझे साहित्य से बहुत प्यार है। साहित्य की वादियों में ही भटकते रहने को मन करता है। ज्यादा जानती नहीं हूँ.........

टुन्नू- भटकते रहने को मन करता है और ज्यादा जानती भी नहीं हैं- कहीं गुम ही न जायें, बड़ी चिंता सी लग गई है??

ई-स्वामी

यहां पर "कुछ" लिखा है!

टुन्नू- देखा, हाँ!! कुछ तो लिखा है.

बिहारी बाबू कहिन

फिलहाल जिंदगी से सीखते हुए आगे बढ़ने की कोशिश जारी है...

टुन्नू- फिलहाल?? आगे क्या बिल्कुल बंद कर दोगे सीखना??

क्या करूँ मुझे लिखना नहीं आता..., गुरनाम सिंह सोढी

ये blog मैने अपनो मित्रों की सलाह पर प्रारंभ किया है। इसमे मेरी कुछ रचनाएँ प्रस्तुत हैं। आशा है कि आपको ये पसंद आएँगी। पिछलो दस मास की मेहनत के उपरांत ये संभव हुआ है। यदि कोई त्रुटि हो जाए तो क्षमा किजीएगा। आपकी किसी भी प्रकार की टिप्पणी का हार्दिक स्वागत है। धन्यवाद

टुन्नू- दस माह की मेहनत-बहुत भयंकर मेहनत की यार ब्लाग प्रारंभ करने में. क्या करते रहे, जरा स्टेप बाई स्टेप समझाना!!

अंतर्मन

देश से बाहर रहने वाला एक भारतीय युवक। अंतरजाल का प्रेमी। हिन्दी लेखन-पाठन में रुचि ।

टुन्नू- हिन्दी लेखन-पाठन में रुचि -अच्छा, लगा लिख दिया वरना लगता कि कोई कार्य बिना रुचि का मजबूरीवश कर रहे हो!!

इधर उधर की

कुछ इधर की, कुछ उधर की, कहीं की ईंट कहीं का रोड़‌ा। या यूँ कहें, विचारों का बेलगाम प्रवाह…

टुन्नू- कुछ इधर की, कुछ उधर की-यह तो नाम से भी समझ आ गया था- इधर उधर की !!

उडन तश्तरी, समीर लाल

--ख्यालों की बेलगाम उडान...कभी लेख, कभी विचार, कभी वार्तालाप और कभी कविता के माध्यम से......

टुन्नू- अरे भई!! कुछ तो लगाम दो, ज्यादा ही बेलगाम है, यह अच्छी बात नहीं!!

मुझे भी कुछ कहना है..., रचना बजाज

आप खुद तय कर लीजियेगा कि ये लेख, निबन्ध है या कि कोई कविता है, मेरे लिये तो ये मेरे विचारों की अभिव्यक्ति और शब्दों की सरिता है!!

टुन्नू- अरे, लिखें आप तो आपको तो मालूम ही होगा बस थोड़ा सा लेबल लगा दें कि लेख, निबन्ध या कविता है - सब को आराम हो जायेगा!!

खाली पीली, आशीष श्रीवास्तव

कभी कभार कवितायें लिख लेता हुं. लोगो को अपनी बातो मे बांधे रखने मे मेरा जवाब नही है, बिना किसी विषय के घंटो बोल सकता हुं.

टुन्नू- अच्छा है, पॉडकास्ट वाला ब्लाग नहीं है वरना तो घंटो बोलते रहते!!!

भावनाऐं, रीतेश गुप्ता

इस ब्लाँग के माध्यम से मैं अपनी भावनाओं को व्यक्त कर रहा हूँ ।

टुन्नू- चाहो तो डायरी में भी व्यक्त कर सकते हो या दोस्तों को फोन करके!! सारी नाराजगी क्या ब्लागरों से ही है??

आवारा बंजारा, संजीत त्रिपाठी

कुछ अपनी, कुछ अपने आसपास की, युं कहें कि मैं और मेरी आवारगी

टुन्नू- कुछ अपने आसपास की-वाह भई, वाकई!! मेरी आवारगी!! बहुत सच सच कहते हो!

कुछ विचार, मृणाल कांत

हिन्दी ब्लागि॑ग का एक प्रयत्न - विभिन्न विषयो॑ पर मेरे विचार, आदि। आपकी टिप्पणिया॑ आमन्त्रित है॑।

टुन्नू-
टिप्पणियाँ तो सभी के यहाँ आमंत्रित हैं वरना ब्लाग काहे खोलते?


प्रतिभास, अनुनाद सिंग

अकस्मात , स्वछन्द एवम उन्मुक्त विचारों को मूर्त रूप देना तथा उन्हे सही दिशा व गति प्रदान करना - अपनी भाषा हिन्दी में ।

टुन्नू- उद्देश्य तो जबरदस्त हैं- कब दोगे मूर्त रुप और सही दिशा व गति ?


मेरी कठपूतलियाँ, बेजी

POEMS IN HINDI moments....thoughts....emotions....analysis..... descriptions...reflections....expressions....impressions.....my words....my feelings

टुन्नू-बिल्कुल, आपकी ही अनुभूति और आपके ही शब्द. बाकि सारे ब्लागों में दूसरों के शब्द??


॥शत् शत् नमन॥, गिरिराज

दिल मे है कुछ तो गुनगुनाकर देखो … ग़ज़ल अपनी भी कहाँ “ग़ालिब” से कम है …

टुन्नू- देखा गुनगुना कर, गालिब टाइप ही लग रही है. कैसे लिख लेते हो ऐसा??

आईना, जगदीश भाटिया

??

टुन्नू- उद्देश्यविहिन यात्रा-कहाँ जा रहे हैं?

आओ कि कोई ख्वाब बुनें.., अनूप भार्गव

न तो साहित्य का बड़ा ज्ञाता हूँ, न ही कविता की भाषा को जानता हूँ, लेकिन फ़िर भी मैं कवि हूँ, क्यों कि ज़िन्दगी के चन्द भोगे हुए तथ्यों और सुखद अनुभूतियों को, बिना तोड़े मरोड़े, ज्यों कि त्यों कह देना भर जानता हूं ।

टुन्नू- बिना तोड़े मरोड़े, ज्यों कि त्यों कह देना भर जानता हूं - कभी इस कला के बारे लिख कर हम सबको भी सिखाईये न!! प्लीज़!!

महाशक्ति, प्रमेन्द्र प्रताप सिंह

जो हमसे टकरायेगा चूर-चूर हो जायेगा

टुन्नू- धमकी दे रहे हो कि सूचना??

होम्योपैथी-नई सोच/नई दिशायें , डॉ.प्रभात टंडन

‘डा प्रभात टन्डन की कलम से’

टुन्नू- भईये, जब ब्लाग आपका है, तो कलम तो आपकी ही रहेगी, हम तो आकर लिखेंगे नहीं??

मानसी

कुछ दिल से...

टुन्नू- बस, दिल से-दिमाग से नहीं ? काहे??


मेरी कवितायें, शैलेश भारतवासी

हर बार समय से यही सवाल करता हूँ "मैं कौन हूँ,मुझे बनाने की जरूरत क्या थी?"

टुन्नू- क्या इसी जवाब की तलाश में ब्लागजगत में भटक रहे हैं? गौतम बुद्ध तो इसी तलाश में जंगल गये थे.


नुक्ताचीनी, देबाशीष

तकनीकी मसलों पर बिना लाग-लपेट बेबाक नुक्ता चीनी, और इसके अलावा भी बहुत कुछ!

टुन्नू- इसके अलावा भी बहुत कुछ ?? थोड़ा खुलासा तो करें कभी!!


निलिमा

बहते बदलते समय में......

टुन्नू-बहते बदलते समय में...... क्या कुछ नया होने वाला है??





---चलो, अब बुरामानो, होली है!! अगर किसी को बुरा लगा हो तो टुन्नू को पकड़ना. अभी तो सोया है, इतने चिट्ठे घूम कर आया है कि थक गया और उपर से ये भांग!!

सबको होली की शुभकामनायें!!!!
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गुरुवार, मार्च 01, 2007

बाई वन गेट वन फ्री के साथ एक साल पूरे!!

ये लो साहब, अब कर लो बात! बाई वन गेट वन फ्री की तर्ज पर अभी बाल गिरने की समस्या के झटके से उबरे नहीं थे कि कल डॉक्टर साहब बोले कि आपको हाई ब्लड प्रेशर( उच्च रक्तचाप) है और सतर्कता की आवश्यकता है. हमारे तो पाँव तले धरती ही सरक गई. हमने कहा, "डॉक्टर साहब, एक बार और टेस्ट करके देखो, कहीं गलत रिडिंग आ गई होगी या वो चुनाव का प्रेशर था उसके कारण बढ़ा होगा, एक दो दिन में ठीक हो जायेगा". अब डॉक्टर साहब तो डॉक्टर साहब, पहला सुझाव तो जैसे सुना ही नहीं और खुले आम निरस्त कर दिया. दूसरे के लिये पूछा गया कि कब था चुनाव और कैसा चुनाव. हमने भी छाती फूला कर कहा, " वो क्या है कि हमें इंडीब्लागिज का बेस्ट हिन्दी ब्लागर २००६ चुना गया है, उसी का टेंशन था, अब नहीं है."

उनके हावभाव देखकर लगा कि उन्हें अव्वल तो कुछ समझ में नहीं आया कि यह क्या बला है और उस पर से पत्नी साथ थी वो कह उठीं कि अरे, उसका परिणाम आये तो चार दिन गुजर गये. हमारा उत्साह ठंडा और डॉक्टर साहब का दो गुना. बस उन्होंने अपनी प्रवचन माला शुरु कर दी कि वजन कम करो, चिंता मत पालो, नमक नहीं, तला भुना नहीं और तो और बोतल-शोतल तो सोचो भी मत. हर सलाह के साथ हमारा मूँह उतरता जा रहा था और पत्नी को तो जैसे ब्रह्म आशीष प्राप्त हो रहे हों, अति प्रसन्न. बोतल की बात तो डॉक्टर साहब भूल भी जाते मगर यह भूलने दे, तब न!! ऐसा भोला मूँह बना के पूछा जैसे हमारा फेवर कर रही हों-"डॉक्टर साहब, यह हल्की फुल्की ड्रिंक लेते हैं, वो तो चल जायेगी न!!". कौन डॉक्टर दूनिया का कहेगा कि हाँ. यह वो भी जानती थी और हम भी. तो लो साहब, वो भी नमस्ते.

अब डॉक्टर साहब को तो जो पाबंदी लगानी थी वो तो हम यूँ भी मान्य कर लेते. मगर हमारी पत्नी ने उनकी पाबंदियों की मूल तत्व का बोध प्राप्त है. वो एक बोलें यह दस समझें.

घर लौट आये. हमें कंबल ढ़ांक कर लिटा दिया गया. हम सदमें में थे.

इनकी सारी सहेलियों से हमारा हाल फोन पर बताया गया. शाम को सारी सहेलियाँ और उनके पति, जो हमारे मित्र हैं, सब एकत्रित हुये. वैसे यहाँ का नियम बता दूँ कि यहाँ हमारे मित्र वही होते हैं जो इनकी सहेलियों के पति होते हैं. इनकी सबसे पक्की सहेली का पति हमारा सबसे पक्का मित्र. अगर किसी की पत्नी से इनकी मित्रता नहीं हो पाई, तो वो हमारे मित्र होने की पात्रता नहीं रखता. यह रिवर्स फिलासफी कनाड़ा में आने के बात शुरु हुई, उसके पहले हम पहले ठीक ठाक आदमी थे.


वैसे यहाँ का नियम बता दूँ कि यहाँ हमारे मित्र वही होते हैं जो इनकी सहेलियों के पति होते हैं. इनकी सबसे पक्की सहेली का पति हमारा सबसे पक्का मित्र. अगर किसी की पत्नी से इनकी मित्रता नहीं हो पाई, तो वो हमारे मित्र होने की पात्रता नहीं रखता. यह रिवर्स फिलासफी कनाड़ा में आने के बात शुरु हुई, उसके पहले हम पहले ठीक ठाक आदमी थे.

अब जब सब एकत्रित हुये तो जो हमारे सबसे खास मित्र थे, यानि हमारी पत्नी की पक्की सहेली के पति ने अपने खास होने का फायदा उठाते हुये कहा:' वाह समीर भाई, आप तो अब उच्च श्रेणी के कहलाये. यह बिमारी तो बड़े लोगों की निशानी है. हमें भूल न जाना बड़े लोगों की जमात में जाकर".

हमने भी सोचा कि हम चाहें भी तो नहीं भूल सकते. आखिर आप हमारी पत्नी के पक्की सहेली के पति हैं. बोले,"इस प्रमोशन के मौके पर पार्टी हो जाये, बोतल शोतल खुले" मैं उनके चेहरे पर तैरती कुटिलता देख रहा था मगर मजबूर था.

मैने भी कहा, "हाँ हाँ हो जाये. आखिर कल जब तक नहीं पता था,पी ही रहे थे, आज और सही. चलो भाई सब लोग, जश्न मनाया जाये. ऐसा मान लेंगे कि डॉक्टर साहब ने कल देखा है".

मगर हमारे मानने से क्या होता है, एकाएक पत्नी के तमतमाये चेहरे पर नज़र पड़ी, कहने लगीं, "भाई साहब, आप लोग लिजिये, इनको तो डॉक्टर साहब ने कहा है कि एक बूँद भी जहर साबित होगी." यह लो, पता नहीं कब यह हमारे डॉक्टर ने इनको एस एम एस कर दिया. हमारे सामने तो नहीं कहा था और यह हमारे साथ लौट भी आईं थीं. यह जरुर वार्तालाप का मूल होगा. खैर, सब अपना अपना गिलास बना लाये हमारी बार में हमारी बोतल से और हमारे लिये, इनकी खास सहेली, जो हमारे परिवार की शुभचिंतक मानी जाती हैं, की सलाह पर लौकी का जूस. हम उदास से सोफे के कोने में बैठे लौकी का जूस पीने लगे, बाकि सब चियर्स. हम भी लौकी जूस लिये ही कंबल ओढे चियर्स किये.

जूसर में से पत्नी लौकी का निचुड़ा गुदा फैंकने लगी तो दूसरी शुभचिंतिका सलाह लिये हाजिर हो गईं,'अरे दीदी, आप इसे फैंकने जा रहीं हैं. अरे, इसको सफोला तेल आधा चम्मच में जीरे से बघार कर भाई साहब को खिलाऐं, बहुत फायदा करेगा.' तो अब उसे नहीं फैंका गया, कचरे की पेटी में जाने की बजाये उसे हमारी पेटी में भेजने के लिये तैयारी की जाने लगी, हाय री किस्मत!!

'अरे दीदी, आप इसे फैंकने जा रहीं हैं. अरे, इसको सफोला तेल आधा चम्मच में जीरे से बघार कर भाई साहब को खिलाऐं, बहुत फायदा करेगा तो अब उसे नहीं फैंका गया, कचरे की पेटी में जाने की बजाये उसे हमारी पेटी में भेजने के लिये तैयारी की जाने लगी, हाय री किस्मत!!

इस बीच हम तथाकथित मित्रों के बीच असाहय से बैठे गपिया रहे थे. ये सभी मित्र हमें मजबूरीवश समय बेसमय पढ़ते भी रहते हैं. हम ईमेल करके उन्हें बताते हैं कि आज यह लिखा है. वो नारद नहीं देखते और न हीं हिन्दी में ब्लागिंग करते हैं.

दूसरे बोले, 'यार, तुम तो सबका भविष्य बांचते हो, कि तुम्हारे चिट्ठे के साथ ऐसा होगा, वैसा होगा. संत बने प्रवचन बांटते हो. ज्ञान की बाते बताते हो. अपना भविष्य नहीं समझ पाये क्या जो अब मूँह उतार कर बैठे हो. वो स्माईली का फैशन चलवाये थे, वो काहे नहीं अपने मूँह पर लगाते हो!!" उसकी बात पर सब ठहाकों के साथ हँसे और हम बगलें झाँकते रहे.

तब तक अन्य कूद पड़े, "यह आपको पाप लगा है, सब की खूब मौज लेते थे न!! खूब हँसी छूटती थी सबकी परेशानी पर . कभी एक दो तीन करके माधुरी वाले ठूमके लगाते थे और किसी का भी, कभी भी माखौल उड़ाते थे, और उड़ाओ. लो लग गया न, श्राप!! इस बार नहीं समझ पाये कि डॉक्टर तीर्थंकर है और पीठाधीश भी-अब झेलो!!"

एक बोले, "तुम तो सब इलाज जानते हो, बाल गिर रहे थे तब बाल आरती बना कर गाते थे. अब गाओ न कोई रक्तचाप आरती."

ये हैं दोस्त, जिनके रहते मुझे आज तक दुश्मनों की कमी ही नहीं महसूस हूई.

जिससे जितना बन पाया, साहनभूति की आड़ में कोस गया. सबने फिर खाने के नाम पर मुर्गी से लेकर बिरयानी और पालक पनीर की दावत उड़ाई और हमारे हिस्से आई- दो बिना घी की रोटियाँ, दाल का बिना नमक वाला पानी, और वो बचे गुदे की लौकी की सब्जी. पहले कौर में तो आँख से दो आँसूं गिर पड़े लौकी की सब्जी में. उसी आँसूं के क्षार से अगला कौर कुछ नमकीन हो गया, तो खा पाये वरना बिना नमक का खाना!! हे प्रभू, अब से किसी का मजाक नहीं उडाऊँगा. बुरी बात है!!"


जिससे जितना बन पाया, साहनभूति की आड़ में कोस गया. सबने फिर खाने के नाम पर मुर्गी से लेकर बिरयानी और पालक पनीर की दावत उड़ाई और हमारे हिस्से आई- दो बिना घी की रोटियाँ, दाल का बिना नमक वाला पानी, और वो बचे गुदे की लौकी की सब्जी. पहले कौर में तो आँख से दो आँसूं गिर पड़े लौकी की सब्जी में. उसी आँसूं के क्षार से अगला कौर कुछ नमकीन हो गया, तो खा पाये वरना बिना नमक का खाना!! हे प्रभू, अब से किसी का मजाक नहीं उडाऊँगा. बुरी बात है!!"

खैर, हम डरे जरुर हैं मगर हारे नहीं हैं. हम अब भी लिखेंगे और रक्तचाप पर ही लिखेंगे. किसी रक्तचाप की क्या मजाल कि हमें लिखने से रोके., जब कि बाल नहीं रोक पाये. वो तो सबको दिखते हैं, रक्तचाप तो किसिको दिखता भी नहीं.

'हिम्मत करने वालों की हार नहीं होती'

तो सुनिये, रक्तचाप पुराण:

रक्तचाप

सुबह सबेरे उठते ही मैं, इक गोली छोटी खाता हूँ.
रक्तचाप के बढ़ते पग में, अंकुश जरा लगाता हूँ.
रक्तचाप यदि उच्च हुआ तो, हृदय गति थम जायेगी.
इस अनिष्ट से घबरा कर मैं, रोज टहलने जाता हूँ.

शक्कर वज़न बढ़ाती है, लगी नमक पाबंदी है.
पेट मेरे में अच्छे खासे, बाज़ारों सी मंदी है.
वज़न घटाने को अपना मैं, केवल फल सब्जी ही खाता हूँ.
स्वपन लोक मे ही अब मिलते, मुर्ग मुस्सलम हंडी है.

बंद हुई अब दूध जलेबी, फुलकी के दिन बिसूर गये
साथ कचौड़ी खाने वाले, संगी साथी बिछूड गये.
सुना रहा हूँ दर्द मैं फिर भी,चेहरे पर मुस्कान लिये
बिन सिगरेट का सुट्टा मारे, सर्दी में हम ठिठूर गये.

सूखी रोटी हाथ हमारे, घी का डब्बा दूर हुआ.
नहीं पता है उस ढ़ाबे का, जो अभी यहाँ मशहूर हुआ.
सजे मेज पर जाम सुराही,मैं तक तक कर रह जाता हूँ.
स्वादहीन से इस जीवन पर, कविता को मजबूर हुआ.

अपना लिखा पढ़ाना सबको, यह तो मेरी आदत है
रक्तचाप बस बना बहाना, भेजी इसको लानत है.
नहीं नीरस यह जीवन होगा, जब तक सबका साथ मिले
भेज रहा हूँ नेह निमंत्रण, प्यार की सबको दावत है.

--समीर लाल ‘समीर’




इसी के साथ आज हमारी चिट्ठाकारी के एक साल पूरे हुये और होली भी आ गयी. हुरर्रे....सब होली के रंग में रंग जायें, खूब खुशी से होली के रंगो की बरसात हो, इन्हीं शुभकामनाओं के साथ अपने चिट्ठाकारी की पहली वर्षगांठ मनाता हूँ!!!
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