बुधवार, जनवरी 24, 2007

अतुल्य भारत या भारत उदय

अभी दो दिन पहले ही फुरसतिया जी के प्रश्न पर अपनी एक जबाबी पोस्ट लिखी थी, खुलासा-ए-मुहब्बत: आग का दरिया. यह पोस्ट जैसे ही नारद पर आई वैसे ही एकाएक भाई रवि रतलामी जी का पर्यावरण प्रेम ऐसा जागा कि दनादन एक दो नहीं, अट्ठारह पोस्ट आ गईं. हमेशा हमारी पोस्ट सीढ़ी दर सीढ़ी नारद से उतरा करती थी और धीरे धीरे महासागर में विलुप्त हो जाती थी मगर उस दिन पर्यावरण की ऐसी आँधी आई कि हमारी पोस्ट मात्र तीन मिनट में ही विलुप्त प्रायः हो गई और नारद के दूसरे पन्ने पर, उसमें भी सबसे नीचे जाकर बैठ गई. बाकि अन्य चिट्ठों को जैसे आना था आये मगर बस दो चार ही और आये और हम तीसरे पन्ने पर याने कि विलुप्त. कई बार मन किया कि इसे मिटाकर फिर से पोस्ट कर दें नई के समान, किसिको क्या पता चलेगा मगर एक तो अति सज्जनता का चक्कर और उस पर से घोर प्रेमियों द्वारा उसी तीन मिनटों के आधार पर या बिना नारद के निर्देश पर पधार कर जो टिप्पणियां आ गई, उस वजह से वो हथियार भी जाता रहा.

खैर, मै धार्मिक आदमी हूँ. मान कर चलता हूँ दाने दाने पर लिखा है खाने वाले का नाम, वैसे ही हर पोस्ट पोस्ट पर लिखा है टिप्पणी करने वाले का नाम. बस, थोड़ा दुख इस बात का रह गया कि कितने लोग इसके चलते हमारा बहुप्रतिक्षित खुलासा हो जाने के बाद भी खुलासे का इंतजार ही करते रह गये और सोच रहे हैं कि हम अब खुलासा करेंगे या तब. वैसे भी दूसरों की झंझट देख मजा भी ज्यादा आता है. यह ईमेल से प्राप्त खबरों के आधार पर बता रहा हूँ. न जाने और कितनों की पोस्टों का इस तरह का हश्र होता होगा.

यह तो वैसा ही हुआ जैसा हमें लगा भारत उदय होने वाला है, और अब होगा कि तब होगा और टीवी देखते हैं तो पता चला कि वो तो उदय हो गया.बम्बई दिखाया, बैंगलूर दिखाया, दिल्ली, गुड़गांव, काल सेंटर, डिस्को...वाह. खुब रहा. खुब उगा.

ना जाने कितनी बात हुई, कितने चिट्ठे लिखे गये...भारत उदय...अतुल्य भारत...उदीयमान भारत.....चमकता सूरज. वाह वाह, बकौल डॉ कुमार...वाह वाह करनी है, दाद देनी है खाज नहीं...वाकई अब तो इतना ज्यादा खींचा जा रहा है कि लगता है खाज दी जा रही है. क्या भारत सिर्फ़ महानगरों में बसता है या उसके बाहर भी उसका असतित्व है. क्या सिर्फ़ तड़क भड़क, महानगरीय सभ्यता और अंग्रेजी गटर पटर भारत को अतुल्य भारत बना देगी... ९९% प्रतिशत भारत अभी भी बिना सड़कों (टूटी सड़कों की हालत ऐसी है कि बिना कहना ही उचित है), बिना बिजली( ३ घंटे आ भी जाये तो क्या) और बिन पानी(रात २ से ४ बजे आता है, भर लो जितना भर पाओ) के जिंदा है मौसम के सहारे, जिसका कोई ठिकाना नहीं.

मुझे लगता है अभी आवश्यक्ता है इन आधारभूत सुविधाओं की तरफ ध्यान देने की. छोटे शहरों में युवाओं को रोजगार के अवसर प्रदान करने की. जड़ों में दीमक के तरह लगे भ्रष्टाचार को खतम करने की. हालांकि अनेकों स्थानों पर परिवर्तन होते देखे जा रहे हैं, मानसिकता बदल रही है मगर अभी बहुत कुछ होना होगा सही मायने मे अतुल्य भारत बनने में या भारत उदय के सपने को सच्चाई में परिवर्तित होने में.

इसी पर आधारित यह कुछ मुक्तक सुनें:




भारत उदय



दिन भर आज सुना टीवी पर, भारत उदय कहानी को
डिस्को में जो रही थिरकती, उस मदमस्त जवानी को,
कितने लोग गिनें हैं तुमने, कितना भारत छूट गया,
तरस रही है कितनी जनता, बिजली को औ’ पानी को.

हालातों से कर समझौता, जीना उसने सीख लिया
अधिकारों को उसने अपने, जैसे मानो भीख लिया
कल फिर एक चलेगी आँधी, और फिर युवा जागेगा,
सहते सहते बिन शब्दों के, उसने कितना चीख लिया.





--समीर लाल 'समीर' Indli - Hindi News, Blogs, Links

11 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

भारत उदय की तो सही तस्वीर रखी आपने, बहुत सही

पंकज बेंगाणी ने कहा…

अतुल्य भारत का सूरज

एक दिन उगेगा,

विजयी पताका लहराएगी,

जग सारा देखेगा।


मातृभूमि को कर्म से सिंचकर,

खुशीयों की फसल उगाएंगे,

नतमस्तक होगी दुनिया इक दिन,

जब ध्वज विजयी लहराएंगे!

बेनामी ने कहा…

भारत उदय भले ही न हुआ हो, पर आशा की किरणे तो दिखाई देती ही है, जो घनघोर अंधेरे से बेहतर है.
जन-जन तक अन्न-जल पहूँचे उस दिन की प्रतिक्षा है,
निराशा में घूटने क्यों टेकें जब उदीत होने की परिक्षा है.

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

Sameer ji bahut khub.

Divine India ने कहा…

हालात का अंधियारा है यह सब,मैंने कहा है कई लोगों से कि भारत एक संक्रमण काल से गुजर रहा है जहाँ दो सत्ता के बीच का फासला बहुत ही ज्यादा है… इसकारण कुछ जाग कर भी सो रहे हैं और जो सोएं हैं वो तो है ही…भारत की दशा उस भीखारी की तरह है जो सुबह कमाता है और रात नदी में फेंक आता है…लेकिन वहाँ जरुर कुछ न कुछ बदल रहा है…आकाश के दूजे किनारे तक भारत का परचम लहरा रहा है…

Pramendra Pratap Singh ने कहा…

यह पोस्ट जैसे ही नारद पर आई वैसे ही एकाएक भाई रवि रतलामी जी का पर्यावरण प्रेम ऐसा जागा कि दनादन एक दो नहीं, अट्ठारह पोस्ट आ गईं.

ye panktiya vastav me maje daar thi. kafi dino baad ek line ko pad kar itni hasi aayi hai. isse pahale ratlami ji ne chithacharcha par ek line likh kar isase bhi jyada hashaya tha.

mere blog ki bhi narad ji 12 se 24 ghante baad khabar le kar aate hai. aur pure din dekho to nahi dikhegi sham ko dekho to. sabse niche rahati hai. sameer ji ke mahasamudra me dubaki lagane ke liye. :)

Geetkaar ने कहा…

माना सबको उड़ा ले गई असमय क्रूर काल की आँधी
आंधी में ही पोस्ट उड़ गई और रहे बस रवि रतलामी
ऐसे ही संशय के सारे कोहरे कल तक छँट जायेंगे
सूर्य उदित भारत के फिर से अम्बर जगमग कर जायेंगे

प्रेमलता पांडे ने कहा…

गहन निहितार्थ!!!

Manish Kumar ने कहा…

अच्छा लिखा है समीर जी ! मुक्तक जानदार था ।

रंजू भाटिया ने कहा…

हालातों से कर समझौता, जीना उसने सीख लिया
अधिकारों को उसने अपने, जैसे मानो भीख लिया
कल फिर एक चलेगी आँधी, और फिर युवा जागेगा,
सहते सहते बिन शब्दों के, उसने कितना चीख लिया.


वाह वाह !!बहुत ख़ूब लिखा है

rachana ने कहा…

मै इस पोस्ट को अभी देख पा रही हूँ!! आपकी पन्क्तियाँ बहुत अच्छी हैं..आपने जिस पीछे छूट गई जनता का जिक्र किया है..मेरी २६ जन्. की पोस्ट भी वही सब कह रही है.