शुक्रवार, अगस्त 11, 2006

कहाँ रहती हो तुम, जाना.....?

आज सबेरे जब टहल कर लौटा तो वो नदारत थी.
बड़ी कोफ़्त होती है, जब मन किया आ गयी,जब मन किया-गायब.अभी कुछ साल पहले की ही बात है, हरदम घर मे रहती थी.कभी कभार कहीं जाना भी हुआ तो थोड़ी देर को गई और लौट आई, उस पर भी, अधिकतर तो बता कर ही जाती थी.चुलबुली शूरु से थी, मगर बस आंख मिचौली टाइप शरारत करती थी. इधर कुछ सालों से व्यवाहर एकदम बदल सा गया है. एकदम उदंड, लापरवाह और आवारगी की हद तक स्वच्छंदता.पूरे पूरे दिन गायब रहना.फिर कुछ देर को आ गई और जब तक हम कुछ पूछे ताछे, फिर गायब. ना बच्चों की चिंता, ना उनकी पढ़ाई की फिक्र.
उसके इस स्वभाव से, कभी भी आना और फिर कभी भी चले जाना-उस पर भी जाना अधिक और आना कम, हमने उसका नामकरण ही "जाना" कर दिया है.वो इसे प्यार वाला "जानू" टाइप समझती है और खुश होती है.खैर वो क्या समझे, उससे मुझे कोई फर्क नही पडता है.
टहल कर लौटता हूँ थका हारा तो लगता है उसकी कमी ज्यादा खलती है.खैर, वो नदारत थी और कोई मैसेज भी नही था कि कब तक आयेगी, सो खिड़की, दरवाजे खोल कर बैठ गया.बाहर किरण खड़ी थी.दरवाजा खुलते ही मुस्कराई और घर के अन्दर आ गई. किरण बहुत अच्छी लगती है मुझे. दिन भर साथ बिताता हूँ.बच्चों का भी खुब ख्याल रखती है.उनके नहाने से ले कर खाने और पढ़ने तक साथ साथ रहती है .सुबह सुबह अपने बापू के साथ आ जाती है और शाम को जब उसके बापू अपने काम निपटा कर लौटते हैं, तो वो भी साथ वापस.यही उसका रोज नित का नियम है.कभी भी बापू के जाने के बाद तक नही रुकी. उसके बापू तो बहुत व्यस्त रहते और वो अपना सारा समय मेरे साथ बिताती. इस बीच कभी कभी जाना अगर कुछ देर को आ भी जाती, तो भी वो किरण के रहने का बुरा नही मानती.अब मानती भी क्यूँ. उसका सारा दायित्व तो लगभग किरण ही निभा रही थी, कम से कम दिन मे तो.
इधर मै देख रहा था कि गर्मियों मे तो जाना ज्यादा ही गायब रहने लगी है.कभी कभी तो दो दो तीन तीन दिन तक लगातार. लोकलाज के डर से रिश्तेदारों से भी कुछ कह नही सकते और ना ही उन्हें अपने घर आने की दावत दे सकते हैं कि कहीं वो भी जाना के इस रवैये को ना जान जायें.इसी के चलते सबसे कटते चले जा रहा हूँ.
आज मौसम मे बदली छाई थी.जाना तो कल रात से ही नदारत थी.मै सुबह जल्दी उठ गया था.किरण का इंतजार मन मे लग गया था मगर आज तो वो भी देर से आयी.कुछ बुझी बुझी सी थी.बदली जब आकाश मे छाती है, तो मैने देखा है अक्सर किरण उदास सी दिखने लगती है, ना वो हमेशा वाला तेज, ना चंचलता.बस आयी, और धीरे से बरामदे मै बैठ गई.मैने दरवाजा खोला, फिर भी अंदर ना आई. अब उसके सानिध्य का लोभ संवरण मेरे लिये संभव ना था तो मै भी वहीं कुर्सी खिसका कर उसके पास बैठ गया.वो उदास बैठी रही, मैने भी कारण जानने के लिये कुरेदना अच्छा नही समझा.सोचा वक्त के साथ मन हल्का हो जायेगा तो खुद ही ठीक हो जायेगी.सामने चाय की गुमटी वाला ट्रांजिस्टर पर एक गाना फुल स्पीड मे बजाये हुये है.

" पंछी बनो उड़ते फिरो, मस्त पवन मे"

मुझे लगा कि जैसे जाना के बारे मे जान गया है और मुझे चिड़ा रहा है.मै वैसे भी शांत स्वभाव का आदमी हूँ, खास तौर पर छोटे लोगों से जो गाली गलौज पर उतर आते है या फिर जो हमसे ताकतवर होते हैं. मैने चाय वाले को आवाज लगाई और चाय और मंगोडे मंगवा लिये. किरण ने कुछ नही खाया और कुछ घंटे वहीं बरामदे मे बिताने के बाद, आज रोज की अपेक्षा जल्दी लौट गई. मै भी भीतर लौट आया. मौसम मे उमस होने लगी थी, जाना अब भी गायब थी, रात घिर आयी और मै छत पर आकर टहलने लगा. फिर वही दरी बिछा कर लेट गया और ना जाने कब नींद लग गई.एकाएक आधी रात गये नींद खुली तो नीचे जाना आ चुकी थी. मै आखिर पूछ ही उठा कि कहाँ नदारत थी इतने समय तक.कहने लगी सोनिया जी आयी थी, उन्ही की सेवा मे लगी थी और अभी वापस गईं हैं सो थोडी देर को आ गई हूँ, फिर जाना है,कल दुपहर तक तो मुख्य मंत्री जी वगैरह यहीं पर हैं, उन्ही के साथ रहूँगी. मुझे इसके राजनितिज्ञों के साथ संबंधो पर शूरु से ही नाराजगी रहती थी सो गुस्से मे मै वापस छत पर आकर सो गया और जो होना था सो हुआ.सुबह उठा तो जाना जा चुकी थी. नेताओं से उसे विशेष लगाव है, खास कर मंत्रियों से, वो जहां भी होते है, जाना जरुर साथ देती है, भले हम जैसे चाहने वाले उसके इंतजार मे तड़पते रहें. ये मंत्री भी, खुद की वाली तो घर छोड़ कर निकलते है, वो तो कहीं जाती नही है और हमारी वाली वो जहां जायें, उनकी सेवा मे लगी रहती है. शायद यही हमारी किस्मत है. हम भी चाहने वाले हैं, अक्सर गुनगुना उठते हैं:

" हम इंतजार करेंगे तेरा कयामत तक,
खुदा करे कि कयामत हो और तू आये.."

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मित्रों,
यह रचना पढ़कर आप मेरे चरित्र का आंकलन तो नही करने लगे. अरे, यह तो हमने अभी अपनी भारत यात्रा के दौरान उत्तर प्रदेश के दौरे के बाद वहां की बिजली की स्थिती को देखते हुये एक आम आदमी के लिये लिखी थी. इस कहानी मे ‘जाना’ बिजली है और किरण सूर्य देव की प्यारी बिटिया ‘सूर्य किरण’.

समीर लाल ‘समीर’ Indli - Hindi News, Blogs, Links

21 टिप्‍पणियां:

ई-छाया ने कहा…

हम तो पहले ही समझ गये थे।

Udan Tashtari ने कहा…

अरे छाया भाई, आप तो महाज्ञानी और अंर्तध्यानी् हो, ये तो हम पहले से ही जानते हैं. :)

अनूप शुक्ल ने कहा…

हमने कुछ समझा नहीं था। लेख के साथ समझते गये। अब मिल गये न जाना और किरण दोनों!

Udan Tashtari ने कहा…

आपका वरद हस्त है अनूप जी, अब तो दोनों के साथ ऎश चल रही है.:)

Sagar Chand Nahar ने कहा…

किरण नाराज नहीं होती थी जब आप उसके साथ होते हुए भी जाना का इन्तजार करते रहते थे, या आपको बेवफ़ा तो नहीं कहती थी?

शालिनी नारंग ने कहा…

देश की राजधानी दिल्ली में रहते हुए भी आपकी जाना को हम पहले ही पहचान गए। आपकी जाना ने हमें भी बहुत परेशान किया हुआ है।

संजय बेंगाणी ने कहा…

क्षमा करें थोड़ा देर से आया, क्या करता हमारी किरण पीछले दस-बारह दिनो से नदारद हैं और हम रात(?) दिन उसी के इंतजार में लगे रहते हैं. वह तो अच्छा हैं हमारी जाना हमारा एक पल भी साथ नहीं छोडती, बस उसी का सहारा हैं.

Udan Tashtari ने कहा…

सागर भाई

किरण तो बेचारी मुकुट बिहारी वाली जूली है, वो क्या नाराज हो, वो तो जाना का अधिकार क्षेत्र है.

शालिनी जी

एक उम्मीद बस है कि कभी तो स्वभाव बदलेगा जाना का.वैसे माने ना माने, थोडी देर को सही, जाना जब जब भी रहती है, सुख बडा देती है.इसीलिये तो शायर ने कहा:
"हम इंतजार करेंगे, तेरा कयामत तक....."

संजय भाई

बेहतर है अगर जाना साथ निभाये. किरण तो यूँ भी शाम तक बापू के साथ लौट जाती.खैर, अब आपके यहाँ, उसके बापू या किरण कौन बीमार है, पता करवाया जाये.

:)
समीर लाल 'समीर'

पंकज बेंगाणी ने कहा…

हमारे यहाँ तो जाना कम्बख्त जाती ही नहीं... हम तो अब उसे घरव... समझ बैठे हैं। ;-)

और ये किरण तो 10 दिन से गायब हैं. अब तो चरित्रहीन लगने लगी है, साहब

Laxmi ने कहा…

अरे समीर जी,

बहुत गहरे से बोल गये। मैं कुछ समझ रहा था और कुछ नहीं भी। बढ़िया लिखा है।

Udan Tashtari ने कहा…

पंकज भाई

अच्छा है जाना कहीं नही जाती, वरना बड़ी तकलीफ़ हो जाती है. और किरण, शायद बीमार होगी बेचारी.उसके लिये कुछ गलत सुनने का दिल नही करता.:)

लक्ष्मी भाई

धन्यवाद, आपको अच्छा लगा.

समीर

रत्ना ने कहा…

बेहद बढ़िया लेख है पढ़ कर मज़ा आ गया। सच में आपके बिना चिठ्ठा जगत् का सन्नाटा खल रहा था।

Udan Tashtari ने कहा…

अरे रत्ना जी
आपका प्रोत्साहन रहता है तो कुछ लिख लेते हैं.
मेरे बिना सन्नाटा, मै तो बहुत शांतिप्रिय व्यक्ति हूँ..:)

समीर

राकेश खंडेलवाल ने कहा…

लौटे भारत भ्रमण कर जब कविराज समीर
लगे सुनाने लेख में जो कुछ बोगी पीर
जो कुछ भोगी पीर, गोल कर गये दावतें
फ़ुरसतिया के साथ ग्रीष्म में मिली राहतें
सुन समीर कविराय, बाँट कर सबसे खाऒ
जो लाये रसगुल्ले, हम तक भी पहुँचाऒ

Udan Tashtari ने कहा…

राकेश भाई

वाकई फ़ुरसतिया जी के साथ बीती शाम मे गर्मी का अहसास ही नही हुआ.अब मिठाई खाने तो आपको यहां टोरंटो आना होगा.पूरी दावत ही खायें, सिर्फ़ मिठाई क्यों. :)
बहुत बढियां कुण्डली है, मजा आया पढकर.

समीर लाल

Udan Tashtari ने कहा…

सिंधु जी

अच्छा है, जाना कहीं नही जाती है यहां पर.जहां जाती है, उनकी हालत खस्ता है. सिर्फ़ किरण से तो काम चलता नहि है ना! :)

समीर लाल

नीरज दीवान ने कहा…

ओ जाने जाना.. धत तेरी की.. इधर भी भाव खाती है. जाना तो बस नेताओं की समझती है. जाना को जनता की परवाह कहां. जाना का विकल्प जनरेटर है. यह नए क़िस्म की प्रजाति है जो जाना के जैसा ही सुख देती है. इसे ले आएं और जाना की कमी हद तक पूरी कर लें. अपने बाज़ूवाले इस नई जाना को लाएं है लेकिन बहुत शोर मचाती है. ज़्यादा मत पूछना वरना मेरी जाना जान खा जाएगी.

तश्तरी उड़ाते रहो.. शुक्रिया भैया

Shuaib ने कहा…

हममममम समीर जीः हम तो टाइटल पढते ही समझ गए कि आपने किया लिखा है :) लगता है आपको वहां 15 Agust की छुट्टी नही मिली और यहां मुझे भी :( और वहां पूरा इन्डिया छुट्टी मना रहा है
आपको 59 वां आज़ादी वर्ष और साथ मे काम का दिन मुबारक ;)

Udan Tashtari ने कहा…

नीरज भाई

अब जाना जैसा संपूर्ण सुख तो जाना ही दे सकती है, ना! बाकी सारे विकल्प तो विकल्प ही हैं-कोई आवाज करती है, शोर मचाती है और कोई कुछ देर साथ निभाने का वादा करती है, जैसे किरण और वो आपका इनवर्टर...:)
बहुत धन्यवाद आप पधारे.अब तो उड़न तश्तरी उड़ चली है, तो आपकी शुभकामनाओं के साथ उड़ती रहेगी.

शुऎब भाई

आप तो बहुत समझदार हैं. वैसे अब आपकी हमारी किस्मत मे कहाँ १५ अगस्त की छुट्टी मनाना.मगर आपको बहुत बहुत मुबारक हो १५ अगस्त, स्वतंत्रता दिवस की, वैसे ही काम के साथ.

समीर लाल

Udan Tashtari ने कहा…

श्याम जी
आप तो बहुत समझदार हैं..सब समझते हैं.:)
पधारने के लिये धन्यवाद.

Rajeev (राजीव) ने कहा…

भई वाह समीर जी, हमने तो अभी देखा इसे।


आपने चपला के व्यवहार को बड़ी ही चपलता से प्रस्तुत किया है!